निगहसन (लखीमपुर खीरी : उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में रविवार को भड़की हिंसा में अपने बेटे पत्रकार रमन कश्यप की मौत की खबर सुनने के बाद से राम दुलारे कश्यप के मन में एक ख्याल आना अभी भी बंद नहीं हुआ है.
जब उन्हें पता चला कि तिकोनिया में हो रहे किसानों के विरोध स्थल, जिसे कवर करने उनका बेटा रमन भी गया था, पर एक कार ने कुछ लोगों को कुचल दिया गया है और वहां कथित तौर पर गोलियां चलाई गई हैं, तो उन्होंने अपनी पूरी शाम अपने बेटे की खोजखबर प्राप्त करने के लिए बेचैनी के साथ लगातार फोन कॉल करने में ही बिताई.
राम दुलारे ने दिप्रिंट को बताया कि बाद में कुछ लोगों ने कहा कि कार की चपेट में आने वाले लोगों में रमन भी शामिल था और उसके शव को पुलिस मुर्दाघर ले गई है.
और तभी यह दिल को जमा देने वाला ख्याल पहली बार उनके मन में आया. धरना स्थल से सिविल अस्पताल के मुर्दाघर तक जाने का एकमात्र रास्ता निगहसन स्थित उनके घर से ही गुजरता है. वे कहते कहा, ‘कल्पना कीजिए कि उसका शरीर हमारे अपने घर के पास से चला गया और हम उसकी तलाश में व्यस्त थे.’
मध्य प्रदेश स्थित साधना प्लस टीवी समाचार चैनल के साथ काम करने वाले रमन कश्यप, राम दुलारे के तीन बेटों में से एक थे. एक तहसील संवाददाता के रूप में काम करने वाले रमन को पैसे तभी मिलते थे जब उनके द्वारा दी गयी खबर प्रसारित होती थी.
वह जिस विरोध प्रदर्शन को कवर करने गए थे, वह अब इस साल की अब तक की सबसे बड़ी खबरों में से एक बन गया है, फिर भी, इसके लिए उन्हें सिर्फ 500 रुपये मिलने थे – क्योंकि उन्हें टीवी पर प्रसारित होने वाली अपनी प्रत्येक खबर के लिए इतने ही पैसे मिलते थे.
रमन के पिता के अनुसार, उन्होंने पत्रकारिता को इसलिए चुना थे क्योंकि वह इस दुनिया में बदलाव लाना चाहते थे.
राम दुलारे बताते हैं, ‘वह एक निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ाता था और इसके साथ ही एक रिपोर्टर के रूप में भी काम कर रहा था. वह कुछ सामाजिक कार्य करना चाहते थे और उसे लगा कि उसकी रिपोर्टिंग समाज के लिए कुछ करने का एक माध्यम है.’
33-वर्षीय रमन अपने पीछे पत्नी आराधना और दो बच्चों, ढाई साल का एक बेटा अभिनव, और एक बेटी, वैष्णवी (11 साल) को, छोड़ गए हैं.
वह रविवार की हुई उस हिंसा की घटना में मारे गए आठ लोगों में से एक है, जिसने पूरे देश भर में दहशत फैला दी है. घटना स्थल के एक कथित वीडियो में एक एसयूवी वहां पर खड़े प्रदर्शनकारियों की भीड़ को कुचलते हुए दिखाई दे रही है. इसके आलावा खून से लथपथ घायलों के दृश्य भी हैं.
इस हिंसा को लेकर उपजे गुस्से के केंद्र में हैं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी, जो रविवार को हो रहे किसान विरोध का मुख्य निशाना थे. यह कार कथित तौर पर मिश्रा के काफिले का हिस्सा थी और आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसे उनके बेटे आशीष मिश्रा चला रहे थे.
हालांकि केंद्रीय मंत्री मिश्रा ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है, और उनका दावा है कि प्रदर्शनकारियों के बीच शामिल बदमाशों द्वारा उनके काफिले में शामिल तीन भाजपा कार्यकर्ताओं और एक ड्राइवर की हत्या कर दी गई थी.
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मर्मान्तक घटना की न्यायिक जांच शुरू कर दी है और मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा भी की है. वहीं आशीष पर कथित तौर पर हत्या का मामला दर्ज किया गया है.
रमन के परिवार का कहना है कि वे नहीं चाहते कि उनकी मौत का राजनीतिकरण किया जाए और वे किसी तरह के दोषारोपण से भी बचना चाहते हैं. लेकिन उनका आरोप है कि उनके बेटे के मामले को संभालने में पुलिस द्वारा किये गए आचरण पर उन्हें आपत्ति जरूर है.
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‘अगर उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया होता’
मंगलवार सुबह जब दिप्रिंट शोकसंतप्त परिवार से मिलने पहुंचा तो धरना स्थल से सिर्फ 25 किमी दूर निगहसन स्थित कश्यप परिवार के घर में उनके तमाम रिश्तेदार जमा थे.
दरवाजे के बाहर कई जोड़ी चप्पलें पड़ी थीं, जो झाड़ियों से घिरी हुई थीं.
अंदर के एक कमरे में, रमन की पत्नी आराधना बिस्तर पर बैठी सिसक रही थी और उनकी रिश्तेदार महिलाएं बिस्तर के पैताने में रखी कुर्सियों पर बैठी थीं. कुछ ही देर में आराधना के बच्चे भी उनके साथ आ गए. आराधना ने छोटे वाले बच्चे को अपनी गोद में खींच लिया, जबकि उसकी बहन उसके पैरों से लिपटी हुई थी.
घर के पुरुष सदस्य घर के एक दूसरे हिस्से में बैठे हुए थे. रमन के छोटे भाइयों में से एक पवन कश्यप एक चारपाई पर बैठे थे, जबकि राम दुलारे बगल में बने एक लकड़ी के चबूतरे पर बैठे थे.
दिप्रिंट से बात करते हुए, रामदुलारे ने कहा कि उन्हें सबसे पहले रमन के बारे में तब चिंता होनी शुरू हुई जब वह रविवार को तयशुदा समय पर नहीं लौटे. इसके बाद चिंता से व्याकुल पिता ने कुछ लोगों को फोन करना शुरू कर दिया. उन्होंने जिन लोगों को फोन किया उनमें अन्य स्थानीय पत्रकार भी थे जो उसी विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहे थे.
जब परिवार को यह पता चला कि बाकी अन्य सभी लोग वापस आ गए हैं, तो उनके मन में दहशत समा गई.
रामदुलारे आगे कहते हैं, ‘हम अपने लापता बेटे के बारे में खोजखबर लेने के लिए रात 9 बजे निगहसन कोतवाली गए, लेकिन वहां से हमें कुछ भी नहीं मिला. लगभग 3 बजे, हमें मुर्दाघर से एक फोन आया कि उन्हें एक शव मिला है और वे इसकी पहचान नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने हमें अस्पताल आने के लिए कहा. हम दौड़ते हुए मुर्दाघर गए तो हमने देखा कि उसका शव खून से लथपथ पड़ा था.’
पवन का कहना है कि उसके परिवार को कुछ ‘सूत्रों’ से पता चला है कि ‘शाम 6 बजे’ मौके से ले जाये जाने वक्त तक रमन संभवतः जीवित थे, लेकिन उनके तत्काल इलाज की व्यवस्था नहीं की गई.
अपने ‘सूत्रों’ की पहचान उजागर करने से इनकार करते हुए पवन ने कहा, ‘प्रशासन ने उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाने या परिवार से तुरंत संपर्क करने का कोई प्रयास नहीं किया.’
वे कहते हैं, ‘जिस स्थान पर यह घटना हुई, उसके आस-पास तीन अस्पताल हैं, जिनमें से एक तो सिर्फ 100-200 मीटर की दूरी पर ही है. अगर उसे समय पर अस्पताल ले जाया जाता तो शायद उसकी जान बच जाता. कोतवाली के उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई अवश्य की जानी चाहिए जो उसे सीधे 45 किमी दूर स्थित मुर्दाघर ले गए, वह भी पुलिस की गाड़ी में, न कि एम्बुलेंस में. मेरा भाई तब तक जीवित था.’
पवन ने दावा किया कि ‘रमन के कपड़े फटे हुए थे और उसके शरीर पर चोट के कई निशान थे, जो उसे सड़क पर घसीटे जाने की वजह से हो सकते हैं. मेरे भाई को गाड़ी से टक्कर मारी गई थी.’
व्याकुल परिवार ने गाड़ी चलाने वाले शख्श और तिकोनिया कोतवाली – जिसने उसे अस्पताल ले जाए बिना ही मृत घोषित कर दिया – के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.
हालांकि पुलिस इन सभी आरोपों से इनकार कर रही है. तिकोनिया के थाना प्रभारी बालेंदु गौतम ने कहा ‘हम कश्यप सहित चार घायल लोगों को अस्पताल ले गए. अस्पताल पहुंचने के बाद उनकी मृत्यु हो गई और उसके बाद हमने उन्हें मुर्दाघर में स्थानांतरित कर दिया.’
पुलिस सूत्रों ने यह भी कहा कि किसानों से उन्हें जाने देने का काफी देर तक अनुरोध करने के बाद ही वे कश्यप और अन्य तीन को अस्पताल ले जा पाए थे. एक पुलिस सूत्र ने कहा, ‘इन सभी लोगों के शरीर किसानों के कब्जे में थे और हमने उनसे अनुरोध किया कि हम उन्हें बचा सकते है. इसलिए उसे (रमन को)अस्पताल नहीं ले जाने के दावे का कोई अर्थ ही नहीं है.’
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‘उसने अपना काम करते हुए जान दी’
साधना प्लस के चैनल हेड बृजमोहन सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि रमन उनके साथ पिछले एक साल से काम कर रहे थे.
वे कहते हैं, ‘हमें सुबह ही इस घटना के बारे में पता चला. उसके तुरंत बाद ही हमने इस मुद्दे को उठाया. इससे पहले तो कोई इस बात का जिक्र तक नहीं कर रहा था कि इस झड़प में एक पत्रकार की भी मौत हुई है.’
रमन की नौकरी के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने कहा कि वे एक तहसील रिपोर्टर थे, जिन्हें चैनल पर प्रसारित होने वाली ख़बरों के आधार पर भुगतान किया जाता था. वे कहते हैं, ‘उन्हें प्रत्येक खबर के लिए 500 रुपये और फोनो (फोन-इन) के लिए 300 रुपये का भुगतान किया जाता था,’ उनका कहना है कि आम तौर पर एक महीने में किसी भी तहसील के पत्रकार द्वारा भेजी गई दो या तीन ख़बरें चैनल पर प्रसारित की जाती हैं.
वे बताते हैं, ‘वह पिछले एक साल से हमारे साथ काम कर रहा थे और खास तौर पर से अपराध और राजनीति पर ख़बरें दिया करता थे. हम उन्हें इस नवरात्रि के दौरान जिला रिपोर्टर के रूप में पदोन्नत करने जा रहे थे.’
सिंह का कहना है कि वह इस बात से स्तब्ध हैं कि ‘एक संवाददाता द्वारा अपनी जान गंवाए जाने पर भी कोई आक्रोश नहीं दिखाया जा रहा है’.
वे कहते हैं, ‘एक शख्श की जान चली गयी है, लेकिन ऐसा लगता है कि इससे किसी को भी कोई फर्क हीं नहीं पड़ा है. एक पत्रकार के रूप में वे रिपोर्ट करने गए थे और कल्पना कीजिए, उनका मृत शरीर वापस आ गया. गोदी मीडिया (ऐसी मीडिया जिसे सरकार का पक्षधर माना जाता है) के बारे में की जा रही बयानबाजी के कारण प्रदर्शनकारियों का हम पर भरोसा नहीं है और न ही हमें राजनेताओं का भरोसा प्राप्त है. इन दोनों के बीच इसका सारा का सारा खामियाजा रिपोर्टर्स को भुगतना पड़ रहा है.’
विगत 4 अक्टूबर को लखनऊ पत्रकार संघ ने कश्यप के मामले को उठाया और राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके परिवार को वित्तीय मदद के रूप में 1 करोड़ रुपये और उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की पेशकश करने का अनुरोध किया. फिर, मंगलवार को, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर सदमा लगने की बात कही है और अदालत के नेतृत्व वाली एसआईटी जांच की मांग की है.
पवन का कहना है, ‘हम सरकार से केवल इतना अनुरोध करना चाहते हैं कि मेरा भाई किसी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं थे और न ही वह कोई किसान था. इसलिए उसका मुआवजा दूसरों से अलग होना चाहिए. यहां पैसे की कोई बात नहीं है. हमें और कुछ नहीं चाहिए, लेकिन हम बस उनकी यह पहचान चाहते हैं कि वह एक पत्रकार थे और अपना दायित्व निभाते हुए मारे गए.‘
उन्होंने सरकार से यह भी आग्रह किया कि पत्रकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
वे कहते हैं, ‘मेरा भाई तो पहले ही दुनिया से जा चुका है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि अन्य पत्रकारों के साथ ऐसा नहीं होगा. पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाये जाने की जरूरत है. उनके जैसे लोग अपनी जान जोखिम में डालकर आम लोगों तक सच्चाई पहुंचाते हैं. अतः उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना अति आवश्यक है.’
रमन कश्यप के परिवार का कहना है कि उनकी मौत का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. उनके पिता कहते हैं, ‘वह एक पत्रकार थे और उन्होंने रिपोर्टिंग करते हुए अपनी जान दी. हम किसी तरह के दोषारोपण में शामिल नहीं होना चाहते. हमने अपना बेटा खो दिया है और अब कोई भी उसे वापस नहीं ला सकता है.’
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