आगरा: भले ही दौड़ में पीछे रह गए हों लेकिन वो दौड़ना बंद नहीं करेंगे. पिछले दो सालों में सेना में भर्तियां न होने की वजह से ओवरएज हो चुके सशस्त्र बलों के ये उम्मीदवार अंदर से टूट चुके हैं. उनका कहना है कि वे हार मानने को तैयार नहीं हैं.
कुछ लोगों के लिए सेना का टैग पाना ही उनकी जिंदगी का मकसद है, भले ही इसके लिए उन्हें नकली दस्तावेज बनवाने पड़ें, फिर से नौवीं और दसवीं की पढ़ाई करनी पड़े और झूठ बोलना पड़े. क्योंकि ऐसा कर वे सेना में सैनिक बनने के लिए कम उम्र का प्रमाण प्राप्त हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे.
21 साल के अमिंदर ने कहा, ‘पांच साल से दौड़ लगा रहा हूं, कोई ना कोई जुगाड़ तो करना पड़ेगा. ऐसे नहीं तो वैसे… हमारा कोई कसूर नहीं था…’ उत्तर प्रदेश के अकोला क्षेत्र के एक गांव में रहने वाला अमिंदर ऐसा सोचने वाले अकेले नहीं हैं. बहुत से युवा इसी तरह के जुगाड़ में लगे हैं. यह इलाका युवाओं को रक्षा बलों में भेजने के लिए जाना जाता है.
उत्तर प्रदेश ने 2017 से 2019 तक हर 10 लाख लोगों के लिए, अनुमानित 28 लोगों को सेना में भेजा है.
सैकड़ों भारतीय वायु सेना (IAF) और भारतीय नौसेना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और अर्धसैनिक बलों की तैयारी करते हैं और इस क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं, लेकिन सेना, उम्मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर है.
आगरा जिले के अकोला कस्बे में दर्जनों युवा सेना भर्ती प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार कर रहे थे.
लेकिन उनकी फिजिकल फिटनेस टेस्ट और मेडिकल एग्जामिनेशन की तैयारी उस समय विफल हो गई जब केंद्र ने मार्च 2020 में कोविड के चलते भर्ती अभियान को रद्द कर दिया.
2021 में भी भर्ती प्रक्रिया अधूरी रह गई क्योंकि शारीरिक और चिकित्सा परीक्षाओं के लिए उपस्थित होने वाले उम्मीदवारों को फिर से कोविड-19 के कारण लिखित परीक्षा के लिए नहीं बुलाया गया था.
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‘दस्तावेज बदलना कोई बड़ी बात नहीं’
आगरा जिले के एक गांव के मूल निवासी अनिल ने कहा कि वह पिछले पांच सालों से सेना में भर्ती की तैयारी कर रहा था. वह अब एक सामान्य ड्यूटी सैनिक के रूप में भर्ती के लिए पात्र नहीं है क्योंकि उसने दो साल पहले 21 साल की उम्र सीमा पार कर ली थी.
उन्होंने कहा, ‘सेना में जाने की मेरी उम्र 2020 में ही निकल गई थी. अब मैं 23 साल का हूं. जब मैंने 2020 में आवेदन किया था, तब मैं 21 साल का नहीं हुआ था, क्योंकि उम्र की गणना अधिसूचना की तिथि से की जाती है. अब, मैं 23 साल का हूं और इस साल की भर्ती में भाग नहीं ले सकता.’
विवादास्पद अग्निपथ योजना के विरोध के एक दिन बाद, केंद्र सरकार ने 17 जून को घोषणा की कि वह 2022 की भर्ती के लिए एक बार के लिए उम्र सीमा में छूट देगी. अब 23 साल तक के युवा आवेदन कर सकेंगे.
ऐसा लगता है कि यहां के बहुत कम उम्मीदवारों को इससे राहत मिली है. बहुत से युवा इस बात से दुखी हैं कि वे अधिसूचना जारी होने की तारीख में 23 साल की उम्र को पार कर चुके होंगे.
ऐसे ही एक उम्मीदवार हैं अनिल, जो नियमित तौर पर दौड़ और व्यायाम करते रहते हैं. लेकिन अपनी उम्र के चलते सेना की दौड़ से बाहर हो गए है. सेना में भर्ती के लिए वह ‘प्रासंगिक दस्तावेज’ प्राप्त करने के लिए दोबारा से हाईस्कूल परीक्षा में बैठने की योजना बना रहे हैं. ताकि वह अपनी उम्र कम करके दिखा सकें.
जिले के एक गांव के एक अन्य युवक अशोक की भी यही योजना है. 23 साल के हो चुके अशोक ने दिप्रिंट को बताया, ‘अब यही एकमात्र विकल्प है. मैं फिर से 9वीं और 10वीं की पढ़ाई करूंगा और अपनी उम्र को कम करा लूंगा.
लेकिन आधार कार्ड में तो उम्र लिखी होती है? इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसे बदलना मुश्किल नहीं होगा. वह कहते हैं, ‘सब कुछ संभव है. आजकल तो ये पल भर में हो जाता है.’
अकोला में भारतीय सेना में शामिल होने के लिए ‘कई प्रयास’ पाने के लिए कक्षाओं को दोहराना कोई नई बात नहीं है. अकोला शहर में लोगों की जुबान पर एक मजाक बना रहता है– ‘कौन कितनी बार मैट्रिक कर सकता है.’
‘उससे बात करो, उसने चार बार (दसवीं) की है.’ मनकेंडा गांव के पास एक खुले मैदान में तैयारी कर रहे एक 23 साल के युवक ने 27 वर्षीय एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा. वह अभी भी सेना में शामिल होने की उम्मीद लगाए बैठा है.
बाद वाले ने एक्सरसाइज करते हुए हमसे अनुरोध किया कि उनका नाम प्रकाशित न किया जाए. उन्होंने कहा, ‘बचपन से ही मेरा लक्ष्य सेना में जाने का रहा है’
स्टेट्स से जुड़ी सेना की नौकरी
अकोला में सेना में नौकरी का मतलब एक तरह का रुआब है. सेना में नौकरी करने की चाह उन्हें विरासत में मिली है. उनके दादा, परदादा, सेना से किसी न किसी तरह जुड़े रहे हैं. स्थानीय जाट युवाओं का कहना है कि उनके लिए यह एक स्टेटस सिंबल है.
मनकेंडा जाने से पता चला कि सेना में शामिल होना कैसे किसी व्यक्ति के स्टेटस को बढ़ा देता है- अक्सर पड़ोसियों और रिश्तेदारों, और यहां तक कि भाईयों के बीच भी प्रतिस्पर्धा बनी रहती है.
चाहे वह घरों के बाहर लगे बोर्ड हों या वाहनों पर लाइसेंस प्लेट, ये सभी आने-जाने वालों को बताते नजर आते हैं कि व्यक्ति सेना, वायु सेना या यूपी पुलिस की सेवा करता है या नहीं.
श्याम सिंह चाहर के पिता आगरा में केंद्रीय आयुध डिपो में सर्विस कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि उनके समेत परिवार के छह सदस्य या तो पहले रक्षा बलों में सेवा कर चुके हैं या मौजूदा समय में फोर्स की सर्विस से जुड़े हैं.
उन्होंने कहा, ‘इस गांव में लगभग 1,000 परिवार रहते हैं. इसमें से तकरीबन 600 घर जाटों के हैं. ज्यादातर जाट परंपरागत रूप से सेना में भर्ती होते रहे हैं. यहां बचपन से ही बच्चे के दिमाग में डाला दिया जाता है कि उसे बड़े होकर सेना में जाना है. अगर उसका मन नहीं भी है तो उसकी तुलना बाकी के बच्चों के साथ कुछ इस तरह से की जाती है कि उसे मजबूरी वश इस तरफ अपना मन बनाना पड़ जाता है.’
यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि इन सबके अलावा एक सेना का जवान होने का मतलब है लाखों का दहेज.
‘गुरु’ नाम से जाने जाने वाले भीखम चाहर गांव के युवाओं को शारीरिक फिटनेस परीक्षा के लिए प्रशिक्षित करते है. इस ट्रेंड के बारे में वह बड़ी बेफिक्र से अपनी राय रखते हैं.
उन्होंने कहा, ‘एक आर्मी बॉय की कीमत लगभग 15 से 20 लाख रुपये है. यहां के परिवार अपनी लड़की के लिए सेना का जवान पसंद करते हैं. वायु सेना के एक कर्मचारी को इतना नहीं मिलता है और उत्तर प्रदेश पुलिस नौकरी पर लगे युवाओं की कीमत और भी कम हो जाती है.’
कभी सेना में जाने के इच्छुक रहे राहुल कुमार ने कहा कि ‘कीमत’ हमेशा दूल्हे का परिवार तय नहीं करता है.
32 साल के राहुल ने कहा, ‘कभी-कभी लड़की वाले खुद शादी के लिए ‘इतना’ खर्च करने की बात कहते हैं. सेना के एक जवान को अमीर ससुराल मिलेगी इसकी संभावना बेहद ज्यादा होती है.’
लेकिन कुछ युवा इसे कहानी बताते हुए खारिज करते हैं. उनके मुताबिक यह ट्रेंड घर के बुजुर्गों तक सीमित है. सशस्त्र बलों के एक अन्य उम्मीदवार रमेश ने कहा, ‘ आर्मी सिर्फ जाट की शान की बात है, दहेज से मतलब नहीं है.
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