नई दिल्ली: भारत सरकार ने भले ही देश में अंग दान की व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत और एक समान बनाने और शव दान को बढ़ावा देने के वास्ते बेहद अहम फैसला किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थिति में सुधार के बावजूद प्रत्यारोपण के लिए अंगों की उपलब्धता में कमी एक बड़ी समस्या बनी हुई है.
तथ्यात्मक आधार पर देखें तो भारत में हर चार ट्रांसप्लांट में से केवल एक सरकारी क्षेत्र में होता है, यह दर्शाता है कि यह सुविधा अब भी केवल समृद्ध भारतीयों के लिए उपलब्ध है. यह भी गौरतलब है कि केवल चार राज्यों—तमिलनाडु, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र—ने केंद्र के उस कार्यक्रम का लाभ उठाया है, जिसके तहत राज्यों को सार्वजनिक क्षेत्र में नए प्रत्यारोपण केंद्र स्थापित करने के लिए मदद दी जाती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले 5 साल में भारत सरकार की तरफ से राज्यों को अंग प्रत्यारोपण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र वाले केंद्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से चलाए जा रहे एक कार्यक्रम के तहत सिर्फ चार राज्यों ने अनुदान मांगा है.
उन्होंने बताया, ‘‘कार्यक्रम के तहत, हम नए केंद्रों के लिए 1.5 करोड़ रुपये और मौजूदा केंद्र को अपग्रेड करने के लिए 75 लाख रुपये देते हैं, लेकिन इसका लाभ उठाने का उत्साह कम है क्योंकि हम मैनपॉवर के लिए अनुदान नहीं देते. अब तक हमने ट्रांसप्लांट सेंटर के लिए तमिलनाडु को, ऑर्गन रिट्रीवल सेंटर के लिए पंजाब को, ट्रांसप्लांट एंड रिट्रीवल सेंटर के लिए बिहार को और रिट्रीवल ट्रेनिंग सेंटर और बायोमटेरियल (टिशू बैंक) के लिए महाराष्ट्र को पैसा दिया है. केंद्र ने आज तक किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया है.’’ लाइसेंस राज्य स्तर के अधिकारियों की तरफ से दिया जाता है.
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शव दान के लिए प्रोत्साहित करने की ज़रूरत
भारत में अंग प्रतिरोपण के हर पांच मामले में से एक से भी कम शव दान के कारण संभव हो पाता है.
बावजूद इसके कि शवों के अंग दान को बढ़ाने के लिए कई वर्षों से प्रयास किए जा रहे थे, 2022 में भारत में 15,556 अंग प्रत्यारोपण हुए और इसमें से केवल 2,765 अंग शव दान की वजह से मिले थे. हालांकि, संख्या धीरे-धीरे बढ़ी है—2013 में 837 देह दान से 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 2,765 हो गया. जागरूकता की कमी और सामाजिक और धार्मिक आस्थाएं ऐसे ब्रेन डेड मरीज़ों के अंगदान में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं, जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं होती है.
वन नेशन वन वेटिंग लिस्ट (शव दान से मिलने वाले अंग) की तरफ कदम बढ़ाने की जानकारी देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष सूत्रों ने गुरुवार को कहा कि सरकार ने अंग चाहने वालों के पंजीकरण के लिए डोमिसाइल की बाध्यता खत्म करने और प्रक्रिया को अधिक न्यायसंगत बनाने का निर्णय लिया है. सरकार संभावित शव अंग प्राप्तकर्ताओं के लिए 65 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा और राज्यों की तरफ से वसूले जाने वाले पांच हज़ार से दस रुपये के पंजीकरण शुल्क को भी समाप्त करने की योजना बना रही है.
डॉक्टर बिरादरी ने इस कदम का स्वागत किया, साथ ही कहा कि डोमिसाइल की बाध्यता खत्म करने संबंधी प्रस्तावित योजना को लागू करने से पहले इसके पुख्ता करने की ज़रूरत होगी कि ट्रांसप्लांट के लिए अंगों को बेहद सीमित समय में और उपयुक्त स्थितियों में एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचाया जा सके. इस बीच, सरकार शवों के अंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए ड्रोन का उपयोग करने की योजना पर काम कर रही है.
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निजी क्षेत्र ही आगे
चिंता की बात यह है कि ट्रांसप्लांट के मामले में निजी क्षेत्र को ही महारत हासिल है, जबकि सरकार के पास इसका डेटा तक नहीं है कि कितने प्रतिशत प्रत्यारोपण गैरसरकारी संस्थानों में होते हैं. हालांकि, इंडस्ट्री अनुमानों के मुताबिक, देश में सभी प्रत्यारोपणों में से लगभग तीन चौथाई निजी क्षेत्र में होते हैं.
आमतौर पर हार्ट और लंग ट्रांसप्लांट कम ही होते हैं और जो होते हैं ज्यादातर निजी क्षेत्र में ही होते हैं. वहीं, किडनी और लीवर ट्रांसप्लांट जैसी अधिक सामान्य सर्जरी के मामले में भी निजी क्षेत्र बहुत आगे हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि इसमें डॉक्टरों की विशेष टीम तो होती ही है, इस क्षेत्र में काफी निवेश किया जाता है और ज्यादातर संपन्न लोग ही इस तरह की सर्जरी कराते हैं.
सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा किडनी ट्रांसप्लांट सेंटर चंडीगढ़ का पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) है, जो प्रति वर्ष लगभग 200 सर्जरी करता है. यह आंकड़ा दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में हर साल होने वाले ट्रांसप्लांट की तुलना में एक-तिहाई ही है.
लिवर ट्रांसप्लांट के लिए देश में हर साल होने वाली 2000-2200 सर्जरी में से लगभग 250-300 दिल्ली में सिर्फ एक निजी अस्पताल मैक्स सुपरस्पेशलिटी, साकेत में होती हैं.
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ज़रूरत और उपलब्धता में भारी अंतर
प्रत्यारोपण के लिए अंगों की ज़रूरत और उपलब्धता में कमी का एक बड़ा कारण शवदान अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम की धीमी गति है. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अनुमानों के मुताबिक, हर साल लगभग 1.8 लाख लोग गुर्दा फेल होने की समस्या पीड़ित होते हैं. 2022 में गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए कुल 11,423 सर्जरी हुईं, जिनमें से 9,834 दानदाता जीवित व्यक्ति थे.
डीजीएचएस का अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग 2 लाख लोग लिवर फेल होने या लिवर कैंसर के कारण जान गंवा देते हैं. 2022 में भारत में लीवर ट्रांसप्लांट की कुल संख्या 3718 थी, जिनमें से 2,957 जीवित दाताओं के थे. हर साल करीब 50,000 लोग हार्ट फेल से पीड़ित होते हैं. 2022 में देश में सिर्फ 250 हार्ट ट्रांसप्लांट हुए.
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के एक वरिष्ठ लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘‘65 साल की आयु सीमा को हटाने का निर्णय बहुत अच्छा है, लेकिन यह वन नेशन वन वेटिंग लिस्ट कैसे काम करेगी, यह स्पष्ट नहीं है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्यारोपण के लिए निकाले गए अंग बहुत थोड़े समय तक ही किसी को लगाए जाने लायक रहते हैं. यदि पंजीकरण की अनुमति दे भी दी जाती है तो अंगों को एक शहर से दूसरे शहर ले जाना एक जटिल काम होगा. ऐसे कई उदाहरण हैं जब अंगों को एक शहर से दूसरे शहर भेजा गया लेकिन यह अभी सामान्य प्रक्रिया नहीं है. ऐसी व्यवस्था नियमित तौर पर लागू करने के लिए उपयुक्त इंतजाम करने होंगे. मुझे यह आशंका है कि इससे कुछ समय के लिए तो भानुमती का पिटारा खुलने जैसी स्थिति ही आ जाएगी. अब ऐसी कंपनियां हैं जो कुछ समय के लिए अंगों को स्टोर करती हैं, लेकिन इससे प्रक्रिया की लागत भारत में 10-12 लाख रुपये और बढ़ सकती है.’’
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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