नई दिल्ली: कई राज्यों की वित्तीय स्थिति मजबूत नहीं है और कर्ज का बोझ उन्हें पूंजीगत संपत्ति पर खर्च करने से रोक रहा है – इस बात से कोई भी अंजान नहीं है. लेकिन अब इसने केंद्र सरकार को चेतावनी जारी करने और डिफ़ॉल्ट की स्थिति को रोकने के लिए राज्यों के खर्च में भौतिक बदलाव का सुझाव देने के लिए मजबूर कर दिया है.
केंद्रीय वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन ने 15 से 17 जून के बीच धर्मशाला में राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ एक बैठक में राज्यों को अपने वित्त में सुधार करने में मदद करने के लिए कई सुझाव दिए. बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे. सुझावों में ‘योजनाओं और स्वायत्त निकायों का सुव्यवस्थीकरण और अकुशल सब्सिडी को कम करने के उपाय’ शामिल थे.
राज्यों के राजस्व घाटे को कम करने के लिए सोमनाथन के सुझाए गए कुछ संभावित उपायों में संपत्ति करों में आवधिक वृद्धि, पानी जैसी विभिन्न सरकारी सेवाओं पर नियमित रूप से शुल्क बढ़ाना, और समय-समय पर शराब पर उत्पाद शुल्क बढ़ाना शामिल है.
सिफारिशें एक प्रेजेंटेशन का हिस्सा थीं. इसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है.
2012 में 15वें वित्त आयोग ने भी, मुद्रास्फीति और विकास के अनुरूप नगर पालिकाओं को संपत्ति कर दरों में आवधिक वृद्धि करने पर जोर दिया था.
ये सुझाव भारतीय रिज़र्व बैंक के पिछले महीने एक विस्तृत अध्ययन जारी करने के बाद आए हैं, जिसमें उन्होंने कम से कम ऐसे 10 राज्यों को रेखांकित किया है, जिन्होंने अपने स्वयं के कर राजस्व में मंदी, प्रतिबद्ध व्यय में बढ़ती हिस्सेदारी और बढ़ते सब्सिडी बोझ को देखा है. उनका खर्च पहले से ही कोविड-19 की वजह से बढ़ गया था.
अध्ययन के अनुसार बिहार, केरल, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की हालत चिंताजनक है. इनमें से अधिकांश राज्यों ने 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित अपने ऋण स्तर को पार कर लिया है.
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‘स्वायत्त निकायों, योजनाओं को युक्तिसंगत बनाएं’
प्रेजेंटेशन में सोमनाथन ने कहा कि राज्यों को केंद्र का अनुसरण करना चाहिए और पिछले महीने उनके द्वारा हाल ही में लिए गए कुछ फैसलों को लागू करना चाहिए.
उन्होंने विस्तृत समीक्षा के लिए केंद्र सरकार द्वारा 231 स्वायत्त निकायों को लेने का उदाहरण दिया. मई 2022 में समीक्षा के बाद अन्य बातों के अलावा, विलय, क्लोजर और विघटन के जरिए 112 स्वायत्त निकायों को कम करने का निर्णय लिया गया था.
सोमनाथन ने कहा, सुव्यवस्थीकरण न केवल ‘अनुत्पादक प्रशासनिक लागत में कटौती’ करेगा, बल्कि ‘संगठनों के बीच सिलोस को भी तोड़ देगा, जो जनता के लिए बेहतर परिणामों और सेवा के साथ सहयोग करने वाले हैं’
उन्होंने कहा, ‘राज्य इस तरह का कदम उठा सकते हैं और इसमें मुख्य सचिवों का नेतृत्व महत्वपूर्ण होगा.’
उन्होंने कहा कि सहयोग करने वाले संगठनों के बीच सिलोस को तोड़ने से बेहतर परिणाम और जनता की सेवा हो सकती है.
इसी तरह, वित्त सचिव ने सुझाव दिया कि ‘राज्य अपनी योजनाओं को युक्तिसंगत तरीके से कम करके, प्रशासनिक लागत घटाकर उन्हें बेहतर बना सकते हैं.’
उन्होंने उल्लेख किया कि, 2016 से 130 केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) में से 60 को बड़े प्रोजेक्ट के साथ मिला दिया गया और पांच को बंद कर दिया गया था.
इसने सीएसएस की संख्या को घटाकर 65 कर दिया. उदाहरण के तौर पर, पशुपालन विभाग की 10 योजनाओं को मिलाकर एक – राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना- कर दिया गया. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि राज्य इस फंड का लचीले ढंग से इस्तेमाल कर सकें.
एक सीएसएस योजना में आम तौर पर केंद्र और राज्य के बीच 6:4 के अनुपात में खर्च साझा किया जाता है.
2021 में 15वें वित्त आयोग ने भी धीरे-धीरे उन सीएसएस और उनके उप-घटकों के लिए फंडिंग को रोकने की सिफारिश की थी, जो या तो अपनी उपयोगिता खो चुके हैं या फिर जिनके पास राष्ट्रीय कार्यक्रम के अनुरूप बजट न के बराबर है.
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अकुशल सब्सिडी को कम करना
सोमनाथन ने इसे एक बड़ा कदम बताते हुए सुझाव दिया कि राज्यों के राजस्व घाटे को कम करने के विकल्पों में से एक – जब सरकार का कुल राजस्व व्यय उसकी कुल राजस्व प्राप्तियों से अधिक हो – अकुशल सब्सिडी को कम करना है.
अकुशल सब्सिडी का ऐसी चीजों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो बेकार खपत को प्रोत्साहित करती है. इसमें लाभार्थियों से कोई लागत वसूली नहीं जा सकती है और इसके दुष्प्रभावों के तौर पर हम प्रदूषण या अत्यधिक पानी की खपत को देख सकते है.
वित्त सचिव ने अपनी प्रेजेंटेशन में कहा, ‘ऐसी सब्सिडी में कमी राज्यों की दीर्घकालिक वित्तीय हालत की दिशा में एक बड़ा कदम होगा.’
केंद्र ने अकुशल सब्सिडी के उदाहरण के रूप में किसानों को मुफ्त बिना मीटर बिजली देने की ओर संकेत किया. इसकी वजह से ‘वित्तीय नुकसान और ओवरड्यूज, के साथ-साथ बिजली का दुरुपयोग, चोरी और कृषि के लिए बेतहाशा पानी का इस्तेमाल किया जाता है.
समाधान के तौर पर वित्त सचिव ने सुझाव दिया, ‘भले ही रियायतें दी गई हों, लेकिन मीटरिंग एक महत्वपूर्ण कदम है. इसके साथ ही प्रीपेड मीटरिंग भी एक और महत्वपूर्ण कदम है जिसके लिए ऊर्जा मंत्रालय वित्तीय सहायता देता है.’
पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की हाल ही में राज्यों के सभी घरों में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने के लिए आलोचना की गई, क्योंकि इससे सिस्टम में अक्षमता पैदा होगी और राज्य की वित्तीय संकट में इजाफा होगा.
राज्यों के कर्ज में वृद्धि चिंताजनक
प्रेजेंटेशन में राज्य के वित्त को विस्तार से देखा गया और कुछ राज्यों में कर्ज में चिंताजनक वृद्धि के रेखांकित किया गया.
उदाहरण के लिए, 2015 और 2020 के बीच बकाया देनदारियों की वार्षिक दर (ऑफ-बजट उधार और बिजली क्षेत्र की बकाया राशि को छोड़कर) तेलंगाना (30.6 प्रतिशत) में सबसे अधिक थी, इसके बाद छत्तीसगढ़ (22.5 प्रतिशत), ओडिशा (21.7 प्रतिशत), अरुणाचल प्रदेश (20.9 प्रतिशत) और तमिलनाडु (19.2 प्रतिशत) का नंबर है.
2019-20 में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में बकाया देनदारियां नगालैंड के लिए सबसे अधिक 47 प्रतिशत थी. जबकि अरुणाचल प्रदेश और पंजाब में इसका प्रतिशत 43 था. कुछ 21 राज्यों के लिए, जीएसडीपी या राज्यों की आय के लिए बकाया देनदारियां 2019-20 में 25 प्रतिशत से अधिक थीं.
चूंकि राज्य के राजस्व का 90 प्रतिशत राजस्व व्यय जैसे वेतन, पेंशन, मुफ्त में सब्सिडी के रूप में खर्च किया जा रहा है, यह राज्यों को पूंजी निर्माण पर खर्च करने से रोक रहा है. इसका विकास पर काफी ज्यादा असर पड़ता है.
पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने 2015-2020 के बीच पूंजीगत व्यय पर अपने कुल बजट आउटले का केवल 10 प्रतिशत तक ही खर्च किया था. इसकी तुलना उनके कुल खर्च के लगभग 18 प्रतिशत पर पूंजीगत व्यय के लिए केंद्र के परिव्यय से की गई.
इन से बेहतर स्थिति में, ओडिशा अपने कुल बजट परिव्यय का 21.2 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश 18.5 प्रतिशत, बिहार 18 प्रतिशत और गुजरात और झारखंड 17.8 प्रतिशत पूंजीगत व्यय पर खर्च करता है.
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