नई दिल्ली: रेटिंग एजेंसी फिच का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में विनिवेश लक्ष्य के हासिल नहीं हो पाने की स्थिति में भी केंद्र सरकार राजस्व संग्रह के उम्मीद से बेहतर रहने से राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.6 प्रतिशत के स्तर पर रख सकती है.
पिछले हफ्ते ही भारत के परिदृश्य को नकारात्मक बताने के साथ उसकी रेटिंग को ‘बीबीबी-‘ पर यथावत रखने वाली फिच ने कहा है कि मध्यम अवधि में भारत के वृद्धि परिदृश्य से जुड़े जोखिम कम हो रहे हैं. इसमें महामारी के बाद आर्थिक गतिविधियां बहाल होने और वित्तीय क्षेत्र पर दबाव कम होने का योगदान है.
फिच रेटिंग्स के निदेशक (एशिया-प्रशांत) जेरमी जूक ने कहा कि कर्ज का बोझ कम करने के लिए मध्यम अवधि में एक विश्वसनीय राजकोषीय रणनीति अपनाना और वृहद-आर्थिक असंतुलन खड़ा किए बगैर निवेश एवं वृद्धि की तीव्र दर होने पर भारत के आर्थिक परिदृश्य को ‘स्थिर’ किया जा सकता है.
जूक ने कहा, ‘हमारा पूर्वानुमान है कि केंद्र सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.6 प्रतिशत पर लाने में सफल रहेगी. इसके पीछे राजस्व संग्रह के उम्मीद से बेहतर रहने का योगदान रहेगा. हालांकि, हमारा यह भी मानना है कि सरकार विनिवेश लक्ष्य से पीछे ही रहेगी.’
वर्ष 2021-22 के आम बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटे (जीडीपी) के 6.8 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया था. इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में राजकोषीय घाटे का आंकड़ा इस बजट अनुमान के 35 प्रतिशत तक पहुंच चुका था.
यह पूछे जाने पर कि फिच भारत के बारे में अपने रेटिंग परिदृश्य के कब स्थिर होने की उम्मीद करता है तो जूक ने कहा, ‘नकारात्मक परिदृश्य में बदलाव की कोई समयसीमा नहीं होती है. आमतौर पर दो साल की अवधि में ऐसे परिदृश्य में बदलाव होता है लेकिन उससे ज्यादा वक्त भी लग सकता है. हम भारत की सॉवरेन रेटिंग की साल में दो बार समीक्षा करना चाहते हैं.’
उन्होंने कहा कि अगली समीक्षा में निवेश एवं वृद्धि के मोर्चे पर भारत की मध्यम-अवधि प्रगति को ध्यान में रखा जाएगा.