नई दिल्ली: अयोध्या में सोमवार को होने वाली राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले के जैजेपुर में चल रहे रामनामी मेला में आए गुलाराम रामनामी ने कहा कि लगभग 150 साल पहले ही उनके पूर्वजों ने उन्हें बता दिया था कि समारोह शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी के बीच किया जाएगा.
गुलाराम ने कहा कि हमारा मेला भी इसी तिथि में आता है और अद्भुत संयोग है कि राम के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा भी इसी दौरान होगी. ये कैसा संयोग है ये तो राम ही बताएंगे. गुलाराम और उनके साथियों ने कहा कि पूर्वजों की कही बात पूरा होने से वह लोग बहुत खुश हैं.
रामनामी मेले के बारे में बताते हुए खम्हरिया से आये मनहरण रामनामी ने बताया कि हर साल इसी तिथि में मेले का आयोजन होता है, एक साल महानदी के इस पार और एक बार महानदी के उस पार.
मनहरण ने बताया कि 150 साल पहले से हम लोग भजन गाते आए हैं. पहले छोटे भजन गाते थे 15 साल से बड़े भजन की शुरुआत हुई.
सरस केला से आई सेजबना ने बताया कि मैं बचपन से भजन गाती हूं. सात साल से राम नाम गुदवाया है. मेरे माता-पिता भी भजन गाते थे. हम चौथी पीढ़ी हैं जो भजन गा रहे हैं, जिस परिसर में यह सब भजन गा रहे हैं उस परिसर में राम नाम लिखवाया गया है.
अपने घर, वस्त्रों में भी राम का नाम लिखा है. रामनामी राम के नाम के उपासक हैं. रामनामियों का मानना है कि किसी भी रूप में राम को भजो, चाहे गेरुवा पहन कर भजो, चाहे मुंडन करवा लो, लेकिन भेदभाव और छलकपट न करो…यही उनका संदेश है.
मेला परिसर के तीन किलोमीटर के दायरे में मांस-मदिरा वर्जित होते हैं. रामनामियों ने कहा कि हमने शरीर के हर अंग में राम का नाम लिखा है तो हमने यह संकल्प लिया है कि हम अपने शरीर को दूषित नहीं कर सकते. इसलिए मांस-मदिरा से परहेज करते हैं. गुलाराम का मानना है कि राम सभी जाति धर्मों से परे सभी के हैं.
राम नाम के हज़ारों किस्सों में से एक बताते हुए मनहरण ने कहा कि एक बार महानदी में बाढ़ आई. नाव में कुछ रामनामी सवार थे और कुछ सामान्य लोग थे. धार बहुत बढ़ गई. नाविक ने सभी से राम नाम याद करने को कहा, सभी को लगा कि अंत आ गया है. फिर राम नाम का भजन गाया गया और बहाव कम होने लगा और सब सुरक्षित तट पर लौट आये. ये 1911 की बात हैं. हम सभी को यही बताते हैं. इसी दिन से मेला भरना शुरू हुआ.
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