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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशगुलामी का प्रतीक राजपथ अब इतिहास की बात, कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं: PM मोदी

गुलामी का प्रतीक राजपथ अब इतिहास की बात, कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं: PM मोदी

पीएम ने नेताजी को महामानव बताते हुए कहा कि उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था. उन्होंने कहा, 'उनमें साहस था, स्वाभिमान था. उनके पास विचार थे, विजन था. उनमें नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियां थीं.'

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नई दिल्ली: इंडिया गेट पर कर्तव्य पथ का उद्घाटन करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानी राजपथ, आज से इतिहास की बात हो गया है और हमेशा के लिए मिट गया है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है. उन्होंने कहा, ‘राजपथ ब्रिटिश राज के लिए था, जिनके लिए भारत के लोग गुलाम थे. राजपथ की भावना भी गुलामी का प्रतीक थी, उसकी संरचना भी गुलामी का प्रतीक थी. आज इसका आर्किटैक्चर भी बदला है, और इसकी आत्मा भी बदली है.’

उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में देश को आज एक नई प्रेरणा और ऊर्जा मिली है. आज हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं. पीएम ने इस मौके पर देशवासियों को आजादी के अमृतकाल में गुलामी की एक और पहचान से मुक्ति के लिए बधाई दी.

कर्तव्य पथ के उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने इंडिया गेट पर सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का भी अनावरण किया. उन्होंने कहा, ‘गुलामी के समय यहां ब्रिटिश राजसत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा लगी हुई थी. आज देश ने उसी स्थान पर नेताजी की मूर्ति की स्थापना करके आधुनिक, सशक्त भारत की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी है.’

उन्होंने कहा, ‘आज अगर राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्यपथ बना है, आज अगर जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी की मूर्ति लगी है, तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है. ये न शुरुआत है, न अंत है. ये मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक, निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है.’

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पीएम ने बताया, ‘आज देश अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सैकड़ों कानूनों को बदल चुका है. भारतीय बजट, जो इतने दशकों से ब्रिटिश संसद के समय का अनुसरण कर रहा था, उसका समय और तारीख भी बदली गई है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए अब विदेशी भाषा की मजबूरी से भी देश के युवाओं को आजाद किया जा रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं है. ये भारत के लोकतांत्रिक अतीत और सर्वकालिक आदर्शों का जीवंत मार्ग है. यहां जब देश के लोग आएंगे, तो नेताजी की प्रतिमा, नेशनल वार मेमोरियल, ये सब उन्हें कितनी बड़ी प्रेरणा देंगे, उन्हें कर्तव्यबोध से ओत-प्रोत करेगा.’

प्रधानमंत्री ने इस मौके पर उन श्रमिकों को भी याद किया जिन्होंने पूरे निर्माण कार्य में भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा, ‘मैं अपने उन श्रमिक साथियों का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिन्होंने कर्तव्यपथ को केवल बनाया ही नहीं है, बल्कि अपने श्रम की पराकाष्ठा से देश को कर्तव्य पथ दिखाया भी है.’

श्रमिकों को श्रमजीवी बताते हुए पीएम मोदी ने उन्हें 26 जनवरी के समारोह के लिए उन्हें विशेष अतिथि बताया. प्रधानमंत्री ने देश के नागरिकों से कर्तव्य पथ को आकर देखने का आह्वान किया और कहा कि इसमें भविष्य का भारत नज़र आएगा.

उन्होंने कहा, ‘नए भारत में आज श्रम और श्रमजीवियों के सम्मान की एक संस्कृति बन गई है, एक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है. जब नीतियों में संवेदनशीलता आती है, तो निर्णय भी उतने ही संवेदनशील होते चले जाते हैं, इसलिए देश अब अपनी श्रम शक्ति पर गर्व कर रहा है.’

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सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा

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नेताजी को पूरा विश्व नेता मानता था: पीएम मोदी

पीएम ने नेताजी को महामानव बताते हुए कहा कि उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था. उन्होंने कहा, ‘उनमें साहस था, स्वाभिमान था. उनके पास विचार थे, विजन था. उनमें नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियां थीं.’

पीएम मोदी ने बताया कि पिछले आठ वर्षों में हमने एक के बाद एक ऐसे कितने ही निर्णय लिए हैं, जिन पर नेताजी के आदर्शों और सपनों की छाप है. नेताजी सुभाष, अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था.

उन्होंने कहा, ‘अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता! लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया. उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया.’

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इंडिया गेट पर पीएम मोदी ने सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया

मोदी ने कहा कि आज भारत के आदर्श और आयाम अपने हैं. वहीं पथ और प्रतीक भी अपने हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लिए पंच प्राणों को दोहराते हुए कहा, ‘आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर देश ने अपने लिए ‘पंच प्राणों’ का विजन रखा है. इन पंच प्राणों में विकास के बड़े लक्ष्यों का संकल्प है, कर्तव्यों की प्रेरणा है. इसमें गुलामी की मानसिकता के त्याग का आहृवान है. अपनी विरासत पर गर्व का बोध है.’


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