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Sunday, 22 December, 2024
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COVID के बीच राजकोट सिविल अस्पताल की अलग समस्या- रोगी पर ‘हमला’ और शव की अस्पताल वापसी

राजकोट में कोविड के बढ़ते मामलों के अलावा 'मानसिक रूप से अस्थिर' रोगी से डील करने के मामले में सिविल अस्पताल विवादों से निपट रहा है और एक शव को छोड़ने के बाद वापस क्यों बुलाया गया.

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राजकोट:  शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, सिविल अस्पताल में कोविड मामलों की संख्या में भारी वृद्धि के बीच, अस्पताल दो विवादास्पद घटनाओं से निपट रहा है. पहला, रोगी पर कथित शारीरिक हमला और दूसरा, एक अन्य मामले में प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी.

एक वीडियो के वायरल होने के बाद पहला मामला सामने आया, जिसमें अस्पताल के कर्मचारियों को एक मरीज के साथ शारीरिक रूप से मारपीट करते देखा गया है. रोगी को कोविड-19 के इलाज के लिए 8 सितंबर को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था और कई दिनों बाद 12 सितंबर को उसकी मृत्यु हो गई. मरीज की मौत के छह दिन बाद यह वीडियो सामने आया है.

रोगी के परिवार ने आरोप लगाया कि मरीज की कोविड-19 से नहीं, हमले की वजह से जान गई. हालांकि, अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने एक वीडियो बयान में दावा किया कि वह मानसिक रूप से अस्थिर था और अन्य रोगियों के लिए खतरा था.

दूसरी घटना, एक मृत 70 वर्षीय व्यक्ति का मामला है, जिसके परिजनों को शव को अस्पताल लाने के लिए कहा गया था, जबकि वे अंतिम संस्कार करने जा रहे थे, क्योंकि पोस्टमार्टम एग्जामिनेशन नहीं की गई थी.

इन घटनाओं के खबरों में आने के बाद अस्पताल ने अपने शीर्ष कोविड-19 भवन को सील कर दिया है और रोगियों  के उपचार और प्रगति या डॉक्टरों के बारे में किसी भी जानकारी का खुलासा करने से इनकार कर रहा है, जबकि यह कोविड-19 से लड़ाई से संबंधित है.

जब दिप्रिंट ने अधिकारियों से मिलने के लिए सोमवार को अस्पताल का दौरा किया, तो अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ जतिन भट्ट ने कहा, ‘हम प्रेस से बात नहीं कर रहे हैं. अगर किसी भी प्रकार की जानकारी की आवश्यकता है तो कलेक्टर कार्यालय से जानकारी प्राप्त की जा सकती है.’

अस्पताल ने परिसर में सुरक्षा भी कड़ी कर दी, जिससे मरीजों के परिवार को चिंता है.

नाम न बताने की शर्त पर एक मरीज के परिवार के सदस्य ने कहा कि मेरी मां अंदर है और मैं घटना के बाद डरा हुआ हूं. मुझे नहीं पता कि वे कैसा बर्ताव कर रहे हैं और मैं एक निजी अस्पताल का खर्च नहीं उठा सकता.


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घटनाएं

वायरल वीडियो में किडनी रोगी, प्रभाशंकर पाटिल को एक पैरामेडिक द्वारा उसके सीने पर नीलिंग करते हुए देखा जा सकता है. 38 वर्षीय रोगी को बार-बार ‘कोरोनोवायरस’ चिल्लाते हुए सुना जा सकता है. कर्मचारी को उसे परेशान करते हुए देखा जा सकता है.

मृतक के भाई विलास पाटिल ने एक टिप्पणी करते हुए कहा, ‘हम अभी भी शोक में हैं और महाराष्ट्र में हमारे गांव में हैं. हम तीन दिनों में वापस आ रहे हैं और हम अधिकारियों से न्याय मांगने की योजना बना रहे हैं.’

विलास ने कहा कि उनका भाई अपने परिवार के लिए रोटी कमाने वाला एकलौता व्यक्ति था. अब उन्हें कौन खिलाएगा? उनकी छह साल की बेटी के मस्तिष्क में एक ट्यूमर है, उसके इलाज के लिए कौन भुगतान करेगा?

घटना के तुरंत बाद, जयंती रवि गुजरात के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण), ने परिवार के आरोपों से इनकार किया.

अस्पताल के एक कर्मचारी ने कहा कि जब से वीडियो वायरल हुआ है, तब से कर्मचारी कड़ी निगरानी में हैं. वीडियो को साझा करने वाले अटेंडेंट को निलंबित कर दिया गया है और दो अन्य जो वीडियो साझा करने के साथ जुड़े पाए गए, उन्हें भी हटा दिया गया है.

उसी दिन एक वीडियो में 70 वर्षीय बटुक कंडोलिया के शव को श्मशान से वापस बुला लिया गया था, जबकि राजकोट से 40 किमी दूर गोंडल में अंतिम संस्कार किया जा रहा था.

बाबू लाल कंडोलिया ने कहा, ’12 सितंबर को मेरे भाई को इलाज के लिए गोंडल से राजकोट लाया गया था. उनका एक्सीडेंट हुआ और एक गंभीर स्थिति में थे. 18 सितंबर को चोटों के कारण उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु के दिन अधिकारियों ने उनका मृत्यु प्रमाण पत्र बनाया और शव हमें सौंप दिया.’

जब हम गोंडल पहुंचे और शव का अंतिम संस्कार करने वाले थे, हमें अस्पताल से यह कहते हुए फोन आया कि शव का पोस्टमार्टम (परीक्षण) नहीं किया गया है. 50 वर्षीय कंडोलिया ने कहा, ‘हमें तुरंत राजकोट लौटने के लिए कहा गया. गोंडल में शव परीक्षण के लिए उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया. हमें अगले दिन शव यात्रा के लिए उसके शरीर को वापस लाना था. अगर हम पोस्टमार्टम नहीं करवाते, तो हम यह भी नहीं जानते कि उन्होंने मृत्यु प्रमाणपत्र कैसे जारी किया.

कलेक्टर की प्रतिक्रिया

मारपीट मामले के बारे में बात करते हुए, जिला कलेक्टर रेम्या मोहन ने दिप्रिंट को बताया, ‘श्री पाटिल के साथ जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन वह नियंत्रण से बाहर हो गए. वह एक मजबूत व्यक्ति की तरह लग रहा था, यही वजह है कि उसे नियंत्रित करने के लिए कर्मचारियों के इतने सदस्यों को लगाया गया था वह अपने कपड़े उतार रहा था और दूसरे मरीजों को डरा रहा था.

उन्होंने कहा, ‘वह मानसिक रूप से अस्थिर था और कर्मचारियों ने उस पल जो हो सकता था वो किया.

बटुक कंडोलिया के मामले में मोहन ने कहा कि वह ऐसी किसी भी घटना से अवगत नहीं है और इसलिए इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती हैं.

अस्पताल की कोविड से लड़ाई

ये घटनाक्रम तब सामने आए जब राजकोट सिविल अस्पताल शहर में ज्यादा केसलोड का सामना कर रहा है. यह राज्य में तीसरा सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है. बढ़े हुए काम से निपटने के लिए अस्पताल ने तीन नए वार्ड जोड़े हैं.

राजकोट मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ जय धीरवानी के अनुसार, शहर में कोविड-19 पॉजिटिव होने वाले 110 डॉक्टरों में से अधिकांश सिविल अस्पताल के हैं.

गैर-कोविद मरीजों के रिश्तेदार आपातकालीन वार्ड के बाहर इंतजार करते हुए | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

धीरवानी ने कहा, ‘यह अस्पताल में ज्यादा केस लोड के कारण हो रहा है. उन्होंने सामूहिक रूप से डेली कम से कम 400 रोगियों को देखा है.

अस्पताल के कोविड-19 वार्ड में काम करने वाले एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘अस्पताल के बहुत सारे डॉक्टरों को पॉजिटिव पाया गया था और ठीक होने के तुरंत बाद (काम) वापस आ गए हैं. शुरुआती महीनों में कोविड-19 वार्ड के आठ चिकित्सक 24 × 7 काम कर रहे थे, जिसमें कोई प्रतिस्थापन नहीं था और अंततः एक के बाद एक पॉजिटिव पाए गए.

डॉक्टर ने कहा कि दवा और एनेस्थीसिया विभागों में डॉक्टरों के लिए स्थिति समान है. लंबे समय तक ड्यूटी और संक्रमण के कारण हमारा व्यक्तिगत जीवन और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ.

डॉक्टर ने कहा कि 80 पैरामेडिक्स और रेजिडेंट डॉक्टरों की एक टीम को सूरत और अहमदाबाद से मदद के लिए बुलाया गया है. हालांकि, सलाहकार डॉक्टरों की अभी भी कमी है.

डॉक्टर ने कहा, ‘अन्य शहरों से टीमों को बुलाए जाने के बाद अब ड्यूटी को को घटाकर आठ घंटे कर दिया गया है, लेकिन फिलहाल हमारी ड्यूटी कोविड वार्डों में तय की गई है. कोविड वार्डों में लगातार काम करना तनावपूर्ण है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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