भीलवाड़ा: मई में शादी के दो दिन बाद 19 साल की केबी और उसके पति को उसकी ससुराल के एक मामूली से घर के एक कमरे में भेज दिया गया, और दोनों परिवारों की बुज़ुर्ग महिलाएं उत्सुकता के साथ युवा जोड़े के विवाह को संपन्न करने के इंतज़ार में बैठ गईं. लेकिन उनका मन जल्द ही खट्टा हो गया, क्योंकि बिस्तर पर बिछी सफेद चादर पर ‘दाग़ नहीं लगा’ था.
नई दुल्हन ‘कुकड़ी प्रथा’ कही जाने वाली एक असभ्य वर्जिनिटी टेस्ट यानी कौमार्य जांच में फेल हो गई थी.
सेक्स यानी सहवास के दौरान केबी को ख़ून नहीं आया. देखते ही देखते पूरे गांव में यह बात फैल गई, और उत्सुक पड़ोसी ‘अनैतिक स्त्री’ की एक झलक देखने के लिए, घर के बड़े दरवाज़े से अंदर झांकने लगे- यह एक ऐसा ठप्पा जिससे केबी आसानी से पीछा नहीं छुड़ा पाएगी.
वो एक ज़माने से चली आ रही इस अपमानजनक प्रथा की नई शिकार है, जिनसे सांसी समुदाय की महिलाओं को गुज़ारा जाता रहा है. राजस्थान की इस ख़ानाबदोश जनजाति में, जो अनुसूचित जाति की सूची में आती है, महिलाओं को उनके पति के परिवार में तभी स्वीकार किया जाता है, जब वो अपने कुंआरेपन के सबूत के तौर पर, सहवास के बाद ख़ून के धब्बे लगा हुआ सफेद कपड़ा (या सफेद पेटीकोट) दिखा देती हैं. बात यहीं ख़त्म नहीं होती- जांच में फेल होने का एक व्यापक प्रभाव पड़ता है, जिसमें कलंक, लज्जा, और घरेलू हिंसा सब शामिल होते हैं, और इनसे भी ख़राब ये कि तलाक़ की कोई संभावना नहीं होती. नई दुल्हन पर उसके माता-पिता और ससुराल, दोनों की ओर से इज़्ज़त बचाने का दबाव होता है.
हालांकि योनी की झिल्ली के टूटने को वर्जिनिटी या कौमार्य का संकेत मानने की धारणा को दुनिया भर के डॉक्टरों ने ख़ारिज किया है (कम उम्र में एक्सरसाइज़ करने या तैरने से भी ये झिल्ली टूट सकती है), लेकिन सांसी समुदाय में अभी भी इसी मानदंड से आंका जाता है, कि क्या महिला ने विवाह-पूर्व सेक्स से परहेज़ किया है.
और जब कोई महिला इस जांच में फेल हो जाती है, तो उसकी सफाई में अकसर बलात्कार के आरोपों का हवाला दिया जाता है.
एक कहानी में बदलाव
हालांकि केबी की अग्नि परीक्षा गालियां सुनने पर ही ख़त्म नहीं हुई. कुछ दिन बाद भीलवाड़ा शहर की बगदाना बस्ती में अपने माता-पिता के घर में एक दरी पर बैठे हुए, उसने स्थानीय पत्रकारों को सुनाया कि किस तरह उसकी शादी से कुछ महीने पहले, एक पड़ोसी ने उसके साथ बलात्कार किया था. उस सफाई के बावजूद उसके पति और उसकी सास लाली देवी ने भीलवाड़ा के बाघोर गांव के अपने घर में उसकी पिटाई की.
काले और गुलाबी स्कार्फ से अपने चेहरे को ढके हुए, केबी ने वहां जमा हुए पत्रकारों को बताया, ‘मैं कुकड़ी जांच पास नहीं कर पाई. मेरे पति और सास ने मेरी पिटाई की’.
उसके ख़ुलासे से भीलवाड़ा में सनसनी फैल गई. बलात्कार की एक एफआईआर दर्ज की गई, कुछ दिनों के भीतर अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया गया, और एक हिंदी अख़बार दैनिक भास्कर में ख़बर छपने के बाद, पुलिस ने कौमार्य जांच की परंपरा की जांच के आदेश दे दिए.
लेकिन अपने साथ दुर्व्यवहार और कुकड़ी प्रथा पर सवाल उठाने का उसका नया साहस, ज़्यादा समय क़ायम नहीं रहा.
अपने विवाद के चार महीने बाद 8 सितंबर को, केबी भीलवाड़ा पुलिस अधीक्षक के दफ्तर में दाख़िल हुई और अपना बयान वापस ले लिया- और ये तब हुआ जब स्थानीय पुलिस उसके पति और ससुर तथा ज़िले के एक सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ केबी की कुकड़ी जांच कराने के लिए मुक़दमा दर्ज कर चुकी थी.
लेकिन उसकी कहानी बदल गई थी.
एक लिखित बयान में उसने कहा, ‘मेरे ससुराल वाले कुकड़ी प्रथा में विश्वास नहीं रखते. मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ और मैं ख़ुशी से अपने शादी के घर में रह रही हूं’.
केबी के ससुराल वाले भी उससे सहमत थे.
उसके ससुर ने गरजते हुए कहा, ‘मैं कुकड़ी प्रथा में विश्वास नहीं रखता. इस घर में उस प्रथा का पालन नहीं किया गया’.
इसके बिल्कुल विपरीत, वो उग्र केबी जिसने मई में अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को अन्याय बताया था, अपने पति के घर में अब एक लंबा घूंघट डाले दिखती है.
हाथों में भरी पीले रंग की प्लास्टिक चूड़ियों से खेलते हुए, उसने बड़ी धीमी सहमी आवाज में दिप्रिंट से कहा, ‘मेरे ऊपर अपना बयान बदलने का कोई दबाव नहीं है’. धूप में उसकी लाल लिप्सटिक और सिंदूर उसके घूंघट के पीछे फीके से चमक रहे थे. ‘ये मीडिया का फैलाया हुआ झूठ है कि मुझे कौमार्य जांच से गुज़रना पड़ा’.
‘वर्जिन स्त्री एक समर्पित पत्नी और मां होगी’
सांसी समुदाय के बारे कोई शैक्षणिक दस्तावेज़ नहीं हैं, और कुकड़ी प्रथा पर हाल में कोई स्टडी नहीं हुई है.
मात्र 30 प्रतिशत साक्षरता दर वाले राजस्थान में, सांसी सबसे पिछड़े समुदायों में से एक माना जाता है. अपने समाज की बहुत सी दूसरी महिलाओं की तरह, केबी की अपने पति से तब मंगनी हो गई थी, जब वो पांच साल की थी.
समुदाय में शादियों को पवित्र माना जाता है, भले उसका मतलब बाल विवाह हो. दोबारा विवाह या तलाक़ पर पाबंदी है, और शादी से जुड़े झगड़े सामुदायिक पंचायत या खाप द्वारा सुलझाए जाते हैं. उनमें समुदाय के पांच बुज़ुर्ग या सत्तावादी पुरुष होते हैं- जिनका कोई चुनाव या संवैधानिक वैधता नहीं होती.
लेकिन जब केबी ने पंचायत का विरोध किया और कार्यकर्त्ताओं तथा स्थानीय मीडिया को इसकी ख़बर दी, तो उसने दमनकारी कुकड़ी प्रथा को सार्वजनिक कर दिया. वो एक अकेली महिला थी जो एक बहुत गहरे से स्थापित व्यवस्था के खिलाफ खड़ी थी.
भीलवाड़ा की लेबर कॉलोनी में रहने वाली एक सांसी महिला बड़े गर्व से कहती है, ‘कुकड़ी प्रथा को जारी रहना चाहिए. ये सुनिश्चित करती है कि महिलाएं बहक न जाएं. जब मेरी शादी हुई तो मुझे भी इससे गुज़रना पड़ा, और हाल में मेरी बेटियों की शादियां हुई हैं. दोनों इस जांच में पास हो गईं. अगर घर की महिलाएं ‘अच्छे चरित्र’ की हैं, तो घर फले फूलेगा और बच्चों का भविष्य भी अच्छा होगा’.
‘अच्छे चरित्र’ से मतलब मोटे तौर पर कुंआरापन होता है.
उसका युवा भतीजा प्रदीप सांसी उसकी हां में हां मिलाता है.
प्रदीप पूछता है, ‘अगर महिला घर से बाहर निकल जाएगी, तो वो अपने परिवार की देखभाल कैसे करेगी? क्या उसके बच्चे ख़राब नहीं हो जाएंगे?’
सांसी समाज से आने वाले एक वकील देश कुमार मालावत कहते हैं कि कड़ी जांच की सामाजिक स्वीकार्यता और बहुत कम महिलाओं के उसमें फेल होने से सुनिश्चित हो जाता है कि इसके खिलाफ कोई सामूहिक आवाज़ नहीं उठाई जाती.
वो कहते हैं, ‘प्रताड़ित हो रही महिलाएं कम संख्या में हैं, और ये समुदाय की उम्र दराज़ महिलाएं हैं, जो इस प्रथा को आगे बढ़ा रही हैं’.
भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कौमार्य जांच को अपराध नहीं माना जाता. लेकिन अभियुक्त पर दहेज निरोधक एक्ट, 1961 और आईपीसी के तहत मुक़दमा दर्ज किया जा सकता है.
भीलवाड़ा पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि केबी के ससुराल वालों ने पुलिस के हस्तक्षेप की वजह से उसे परिवार में स्वीकार कर लिया होगा.
केबी अब कहती है, ‘पहले मैं किसी के असर में थी जब मैं अपने ससुराल वालों के खिलाफ बोली थी, और उनके ऊपर आरोप लगाए थे’.
लेकिन पुलिस की प्रारंभिक जांच में इस बात के सबूत मिले कि केबी के शादी के घर में कुकड़ी प्रथा का पालन होता था, और इसके आधार पर 2 सितंबर को सर्किल ऑफिसर ने बागोर पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई थी.
बागोर पुलिस एसएचओ अयूब ख़ान कहते हैं, ‘जांच में पता चला कि केबी को दो पक्षों की ओर से प्रताड़ित किया गया था- उसकी ससुराल और पंचायत सदस्य. उसके पति और ससुर नामज़द किए गए हैं जिनके ऊपर अन्य बातों के अलावा महिलाओं के साथ क्रूरता, जबरन वसूली, और महिला की लज्जा को अपमानित करने के आरोप लगाए गए हैं’.
लेकिन चूंकि पुलिस जांच में पाया गया कि समुदाय के अंदर कुकड़ी प्रथा अभी भी प्रचलित है, इसलिए मुक़दमा चलता रहेगा.
भीलवाड़ा पुलिस अधीक्षक आदर्श सिद्धू कहते हैं, ‘भले ही केबी अब कह रही हो कि ऐसा नहीं हुआ, पुलिस केस अभी भी अपनी जगह है. अब हम सबूत जुटाएंगे और मामला अदालत में जाएगा’.
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कुंआरी नहीं है? आग और पानी से आज़मायश
राजपूतों की एक शाखा सांसी समुदाय को ब्रिटिश राज में एक आपराधिक क़बीले के रूप में वर्गीकृत किया गया था, और बाद में अधिसूचना को वापस ले लिया गया था. वो थोड़ी संख्या में पूरे देश में मौजूद हैं. बड़ी एहतियात के साथ इस बात को छिपाकर रखते हुए, सांसी समुदाय महिला की शुचिता को परिवार की ईमानदारी के केंद्र में रखता है.
अपने पति के साथ पहली बार सहवास के दौरान, अगर महिला को ख़ून नहीं निकलता तो उसे पीटा जाता है, और अपने ‘प्रेमी’ का नाम बताने के लिए कहा जाता है. पति का परिवार फिर खाप पंचायत बुलाता है, जो महिला के परिवार पर भारी जुर्माना लगाती है, जो 5 लाख रुपए से लेकर 15 लाख रुपए तक होता है.
अगर महिला सांसी समुदाय से ही किसी ‘प्रेमी’ का नाम बताती है, तो खाप पंचायत का जुर्माना उस व्यक्ति के परिवार को भरना होता है. अकसर उसके घर में मार-पीट या फिर तोड़-फोड़ कर दी जाती है. अगर वो व्यक्ति किसी और समुदाय से है, तो जुर्माना महिला के परिवार को भरना होता है.
ये प्रथा न केवल महिलाओं के खिलाफ है बल्कि डॉक्टरी भाषा में भी सही नहीं है.
फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गाइनीकॉलजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की अध्यक्ष, और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनीकॉलजी की कोषाध्यक्ष, डॉ एस शांता कुमारी कहती हैं, ‘बहुत बार ऐसा होता है कि महिलाओं के एक्सरसाइज करने या फिर खेलकूद करने या फिर गिरने की वजह से योनि की झिल्ली टूट जाती है, और ऐसा ज़रूरी नहीं होता कि पहली बार सेक्स करने पर ख़ून निकल आए. ये महिलाओं के खिलाफ एक तरह की हिंसा है, और हम स्त्री-रोग विशेषज्ञों ने इसका कड़ा विरोध किया है’.
इस प्रथा को देखकर बड़े हुए वकील मालावत कहते हैं कि अगर महिलाएं अपने सेक्स पार्टनर का नाम नहीं बतातीं, तो पति और सास-ससुर का अत्याचार और ज़्यादा बढ़ जाता है. और दबाव के चलते महिलाएं विरले ही अपना मुंह खोलती हैं. यही कारण है कि मामलों का पता नहीं चल पाता, और उनपर अदालतों में मुक़दमा नहीं चलता.
मालावत कहते हैं, ‘महिलाओं को ऐसी प्रथाओं के खिलाफ क़ानूनी जानकारी नहीं होती है’.
ऐसे मामलों में जहां महिलाएं जांच में फेल हो जाती हैं, लेकिन वर्जिन (कौमार्य) होने का दावा करती हैं, तो उन्हें एक अग्नि या जल परीक्षा से गुज़रना होता है. अग्नि परीक्षा में भोर होते ही उसकी हथेलियों को पीपल की सात ताज़ी पत्तियों से ढक कर, उसपर एक सफेद कुकड़ी धागा लपेट दिया जाता है. फिर उसकी हथेलियों पर धातु का एक गर्म बर्तन रखा जाता है, और उसे बर्तन को लेकर सात क़दम चलना होता है. अगर उसकी हथेलियां जल जाएं, तो माना जाता है कि वो झूठ बोल रही है. अगर हथेलियां नहीं जलतीं तो वो टेस्ट में पास हो जाती है. समुदाय के कई सदस्यों ने दिप्रिंट को इस प्रथा के बारे में बताया.
लेबर कॉलोनी की एक महिला कहती है, ‘हमने महिलाओं को इस जांच में पास होते देखा है’.
सांसी समुदाय के सदस्य बताते हैं कि पानी की आज़मायश में महिला को तब तक पानी के अंदर डूबे रहना होता है, जब तक कोई गांव वासी क़रीब 100 क़दम नहीं चल लेता. अगर महिला पानी से अपना सर जल्दी उठा लेती है, तो वो फेल हो जाती है और जुर्माना अदा करती है.
मालावत कहते हैं, ‘जुर्माना सीधे से बुज़ुर्ग खाप सदस्यों के लिए कुछ पैसा बनाने का तरीक़ा है’.
‘सांसी महिलाएं भोले-भाले लोगों को फंसा रही हैं’
केबी ने जब पत्रकारों को अपनी व्यथा सुनाई, उसके कुछ ही दिन बाद उसकी मां ने भलवाड़ा के सुभाष नगर पुलिस थाने में रेप की एक एफआईआर दर्ज करा दी.
मां के अनुसार 20 नवंबर 2021 को, जब वो और उसका पति परिवार की एक शादी में गए हुए थे, तो उनके पड़ोसी शाहिद रंगरेज़ ने केबी को अग़वा कर लिया, जब वो अपने घर के बग़ल में बने शौचालय में जाने के लिए बाहर निकली थी, और फिर उसके साथ बलात्कार कर लिया. केबी उस समय अपने छोटे भाई-बहनों के साथ अकेली थी, लेकिन उसने रेप के बारे में किसी को नहीं बताया, क्योंकि रंगरेज़ ने कथित रूप से उसके छोटे भाई को मार डालने की धमकी दी थी.
रंगरेज़ जो उस समय सत्रह साल का था, तीन दिन बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया.
ऐसा पहली बार नहीं है कि कौमार्य जांच के बाद रेप का मामला प्रकाश में आया है. 2019 में, केबी की एक फर्स्ट कज़िन की भी बिल्कुल यही कहानी थी.
अपनी शादी के तीन दिन बाद एसएस, जो उस समय नाबालिग़ थी, सूजी हुई आंखें और अपने पूरे दुर्बल शरीर पर चोटों के नील के निशान लेकर, अपनी मां के घर लौट आई थी. अपने पति के साथ पहली बार सहवास के दौरान, जो ख़ुद भी उस समय नाबालिग़ था, उसे ख़ून नहीं निकला था.
महिला की मां याद करती है, ‘उसने दरवाज़ा बंद कर लिया, और चूल्हे से निकाली हुई जलती लकड़ियों से उसकी पिटाई की’.
एसस के घावों के निशान तो भर गए हैं, लेकिन उस रात की याद अभी भी स्पष्ट है.
ये जानते हुए कि उसकी मां पैसों का इंतज़ाम नहीं कर पाएगी, एसएस जो अब दो बेटों की मां है, सीधे स्थानीय पुलिस स्टेशन चली गई. उसने अपने पति पर घरेलू उत्पीड़न का आरोप लगाया, और कहा कि शादी से पहले दो लोगों ने- जिनमें एक ठाकुर था और दूसरा मुसलमान था- उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था.
उसकी मां ने बताया, ‘हम एक पारिवारिक समारोह में गए थे, और मेरी बेटी अपने छोटे भाई के साथ घर में अकेली थी’.
अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया, और केस अभी भी चल रहा है. उसके पति को भी प्रताड़ना के लिए गिरफ्तार करके तीन दिन तक जेल में रखा गया, और जुर्माना माफ कर दिया गया.
जब केबी ने भी इसी तरह रेप की अपनी शिकायत में पड़ोसी का नाम लिया- जो 50 मीटर दूर रहता था- तो उसका परिवार हैरान रह गया, और उसने कहा कि रंगरेज़ को फंसाया गया है.
रंगरेज़ के पिता महबूब अली कहते हैं, ‘शाहिद उसके आसपास ही रहता था, और हो सकता है कि लड़की के साथ उसकी दोस्ती रही हो, या उनके बीच संबंध रहे हों. हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते. लेकिन ये आरोप झूठा है कि शाहिद ने उसका रेप किया’.
अली आगे बताते हैं कि कैसे केबी के अपने इलाक़े में सांसी समुदाय के दो लोगों के साथ रिश्ते थे, और उसके माता-पिता को अकसर उन लोगों के माता-पिता से बहस करते, और पैसा अदा करने के लिए कहते देखा गया था. लेकिन, कुकड़ी प्रथा के बाद जब केबी की पिटाई हुई, तो उसने अपने बलात्कारी के तौर पर रंगरेज़ का नाम ले लिया.
अली ने बताया, ‘23 मई को जब पुलिस ने शाहिद को उठाया, तो केबी के माता-पिता ने केस वापस लेने के लिए मुझे 15 लाख रुपए अदा करने को कहा. जब मैंने मना कर दिया तो पुलिस ने औपचारिक गिरफ्तारी से तीन दिन पहले ही उसे उठा लिया’. केबी की मां इस आरोप से इनकार करती है.
अली का कहना है कि चूंकि पैसे की बातचीत ज़बानी हुई थी, इसलिए उनके पास अदालत में पेश करने के लिए कोई सबूत नहीं है.
रंगरेज़ के वकील अमजद परवेज़ ने कहा, ‘रेप के अलावा उसपर कड़ा एससी-एसटी एक्ट भी लगा दिया गया है. हम उसकी ज़मानत के लिए हाईकोर्ट में आवेदन कर रहे हैं. एक बार शाहिद बाहर आ जाए, तो फिर हम उसे किशोर गृह की बजाय जेल में रखने के लिए, पुलिस के खिलाफ केस दर्ज करेंगे’.
रंगरेज़ के परिवार का कहना है कि वो कौमार्य जांच की दमनकारी प्रथा का शिकार है, जो युवा सांसी महिलाओं को बेगुनाह लोगों पर रेप का आरोप मढ़ने की ओर ढकेलती है, सिर्फ इसलिए कि वो निर्दोष दिखें और ख़ुद को अपमान और प्रताड़ना से बचा सकें.
अली ने कहा, ‘जब सांसी समाज की लड़कियों को उनके पति के घर में अपमानित किया जाता है, तो वो किसी भी व्यक्ति को अपना बलात्कारी बता देती हैं. मेरे वकील ने भी कोर्ट में इस प्रथा पर सवाल उठाए थे’.
अली और रंगरेज़ कुकड़ी परंपरा के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने की भी योजना बना रहे हैं.
इस बीच सवाल उठाए जा रहे हैं कि केबी ने कुकड़ी टेस्ट के बाद ही रेप की बात क्यों की.
उसका कहना है, ‘शाहिद मेरी शादी हो जाने के बाद भी मुझे परेशान कर रहा था. यही कारण है कि मैंने उसके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करा दी’. अली इस आरोप से इनकार करते हैं.
एक दुष्चक्र
शहरी जीवन की गहमा-गहमी से दूर, केबी अपने शादी के घर में बिना घूंघट के फर्श पर बैठी है, क्योंकि घर के मर्द बाहर गए हुए हैं.
कहीं दूर देखते हुए वो ग़ुस्से में कहती है, ‘ये प्रथा महिलाओं के जीवन तबाह कर देती है, इतनी लड़ाइयां होती हैं’, लेकिन जैसे ही उसका पति और ससुर खेतों से लौटकर घर में घुसते हैं, वो ख़ामोश हो जाती है.
मई में उसके ससुर पर कौमार्य जांच में फेल हो जाने के बाद, केबी के परिवार से पैसा मांगने का आरोप लगा था. लेकिन अब वो इससे इनकार करता है.
ससुर कहते हैं, ‘मुझपर आरोप है कि एक खाप पंचायत के बाद मैंने 10 लाख रुपए की मांग की. हम नहीं जानते कि ये खाप कौन हैं. मैं कभी उनसे नहीं मिला’.
उधर बगदाना बस्ती में एक और महिला बेचैन है. उसकी सबसे बड़ी बेटी के जांच में फेल हो जाने की ख़बर जंगल की आग की तरह कॉलोनी में फैल गई है, जिससे उसके परिवार की बदनामी हुई है.
वो उत्तेजित होकर कहती है, ‘ये प्रथा बंद होनी चाहिए. कभी कभी ग़लतियां हो जाती हैं’.
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