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Tuesday, 17 December, 2024
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कैसे राजस्थान, महाराष्ट्र और मणिपुर संकट ने कांग्रेस में टीम राहुल के उदय को दर्शाया

के.सी. वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला और अजय माकन - अलग-अलग और एक साथ में कांग्रेस के लिए कई संकटों में सामने रहे हैं.

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नई दिल्ली: राजस्थान कांग्रेस में पिछले महीने संकट को पार्टी के पहले परिवार सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने हल किया था. कांग्रेस के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बागी तेवर को समाप्त करने के लिए परिवार आगे आया था.

हालांकि, स्थिति को प्रबंधित करने में तीन संकट मैनजरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जो पायलट के पहली बार 12 जुलाई को राज्य की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बागी होने के बाद से साथ थे. वे हैं, महासचिव के.सी. वेणुगोपाल, मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और वरिष्ठ नेता अजय माकन, जिन्हें सभी कांग्रेस के वारिस राहुल गांधी के भरोसेमंद लेफ्टिनेंट के रूप में जानते हैं.

वेणुगोपाल उस समय मौजूद थे, जब पायलट और 18 बागी विधायक पिछले हफ्ते दिल्ली में प्रियंका और पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल से मिले थे.

इस बीच, सुरजेवाला और माकन ने पिछले महीने जयपुर में लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बगावत के बीच पार्टी के लिए एक भरोसेमंद मोर्चा बनाने की कोशिश की. गहलोत सरकार की स्थिरता को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

गुरुवार को कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) में पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे, जहां बागी होने के बाद पहली बार गहलोत और पायलट आमने-सामने आए.

माकन और वेणुगोपाल, पटेल के अलावा पायलट द्वारा की गई शिकायतों के समाधान के लिए बनाई गई तीन सदस्यीय समिति का हिस्सा हैं और पायलट द्वारा की गई ‘प्रेसिंग डिमांड्स’ में से एक के संदर्भ में माकन को अविनाश पांडे की जगह रविवार को राजस्थान का कांग्रेस महासचिव प्रभारी बनाया गया था.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राहुल और प्रियंका के तहत पार्टी में संकट मैनजरों की एक नई टीम के उभरने का संकेत देती है.

महाराष्ट्र और मणिपुर

राजस्थान के मामले में केंद्र में आने से पहले, वेणुगोपाल को कांग्रेस द्वारा महाराष्ट्र में अपने मुख्य फाइटर के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया था, जहां पिछले साल विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सहयोगी दल बीजेपी और शिवसेना के बीच मतभेद बढ़े थे.

कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और शिवसेना ने बाद में गठबंधन सरकार बनाने के लिए बातचीत शुरू की, भाजपा ने राकांपा प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजय पवार के साथ गठबंधन करके कार्यालय हासिल करने का प्रयास किया था.

फडणवीस और जूनियर पवार(अजित पवार) के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद वेणुगोपाल ने भाजपा पर ‘राजनीतिक अनैतिकता’ के लिए प्रहार किया कहा कि उन्हें विश्वास मत के बाद ‘शर्मनाक ढंग से पदत्याग’ करना होगा.

फडणवीस और अजित के बीच गठबंधन अल्पकालिक साबित हुआ और बाद में इस्तीफा दे दिया यह मानते हुए कि उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है.

राजस्थान की स्थिति में एक कांग्रेस नेता ने कहा, वेणुगोपाल ने माकन या सुरजेवाला की तुलना में बड़ी भूमिका निभाई.

राजस्थान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘वह गहलोत खेमे के 100 से ज्यादा विधायकों से मिल रहे थे और लगातार आश्वासन दे रहे थे कि वे धैर्य रखें. राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि एक महीना बांध के रखना भी एक कुशलता होती है. लेकिन हाईकमान के सीधे आदेशों के बिना कोई कदम या निर्णय कभी नहीं लिया गया.’

इस बीच, माकन को जून में मणिपुर भेजा गया था, क्योंकि एनडीए में विद्रोह से राज्य में कांग्रेस को सत्ता में वापसी के लिए मंच तैयार नज़र आया था.

इस बगावत में मणिपुर के तीन भाजपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल होने और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के चार विधायक, तृणमूल कांग्रेस से एक और एक अन्य विधायक को एनडीए सरकार से रूप से समर्थन वापस लेते हुए देखा गया था.

माकन असम के सांसद और मणिपुर के राज्य प्रभारी गौरव गोगोई के साथ राज्य में पहुंचे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अंतरिम अपडेट देने के प्राथमिक कार्य के साथ मणिपुर भेजा गया था.

मणिपुर कांग्रेस के प्रवक्ता निंगोबम बूपेंडा मितेई ने कहा कि वह (अजय माकन) मणिपुर में जमीन की स्थिति का आकलन करने और सोनिया गांधी जी को एक रिपोर्ट देने के लिए आए थे.


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लेकिन जब तक यह जोड़ी हरकत में आई, खासकर पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में तब तक कांग्रेस पहले से ही विभाजित हो चुकी थी. दोनों को कोविड-19- संबंधित मानदंडों को ध्यान में रखते हुए क्वारंटाइन में रखा गया था, जिससे उनकी संचालन क्षमता में बाधा आ रही थी. आखिरकार ये अवसर कांग्रेस के हाथ से फिसल गया.

‘दोनों नेताओं को बहुत लंबे समय तक क्वारंटाइन में रखा गया था और उस समय तक, स्थिति बदल गई थी क्योंकि एनपीपी के चार विधायक जिन्होंने भाजपा-सरकार को छोड़ दिया था, पहले से ही अमित शाह से मिलने के लिए एक सौदा करने के लिए ले जाया गया था.’

एनपीपी के चार विधायक भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में वापस चले गए और कांग्रेस के आठ विधायकों के सत्र को स्किप करने के बाद भाजपा ने पिछले सप्ताह विधानसभा में विश्वास मत जीता.

पार्टी के व्हिप को खारिज करने वाले आठ विधायकों में से छह ने ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में ‘विश्वास की कमी’ का हवाला देते हुए कांग्रेस छोड़ दी. कांग्रेस ने मणिपुर के राज्यपाल को लिखा कि जिस तरह से विश्वास मत का आयोजन किया गया था, उसमें उल्लंघन का हवाला देते हुए एक और बार विश्वास मत कराने की मांग की गई थी.

‘कौन प्रमुखता हासिल कर रहा है’

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा, ‘विभिन्न राज्यों में परिणाम की परवाह किए बिना संकट मैनजरों की पसंद दर्शाती है कि गांधी किसके साथ सहज हैं.’

किदवई ने कहा, ‘गुलाम नबी आज़ाद, एके एंटनी और अन्य, जो सोनिया के साथ सहज थे, अब कहीं नहीं दिखते. इससे पता चलता है कि उन्हें अब चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है और राहुल के भरोसेमंद लोगों को प्रमुखता मिल रही है.’

उन्होंने कहा कि अगर राहुल को अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालते हैं, तो वेणुगोपाल और सुरजेवाला इंट्रा-पार्टी की गतिशीलता में बहुत महत्वपूर्ण हो जाएंगे.

उन्होंने सुझाव दिया कि राजस्थान में परिणाम – जहां गहलोत को पायलट के साथ एक मुकाम हासिल करने के लिए बनाया गया है. यह दिखाता है कि राहुल और प्रियंका किस तरह से जीत हासिल कर रहे हैं.

‘लोग कहते हैं कि गहलोत ने लड़ाई जीत ली है. लेकिन गहलोत वास्तव में पायलट से बाहर निकलना चाहते थे. ये गांधी हैं जिसने एक तरह से पायलट को बनाए रखा.’

राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भंडारी ने कहा कि गहलोत ‘आगे बढ़ने’ के लिए सहमत थे क्योंकि वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेता अहमद पटेल उनके पास राहुल और प्रियंका के संदेश को लेकर आए थे. राहुल और प्रियंका दोनों पायलट के लिए एक नरम स्थान हैं. वेणुगोपाल और पटेल का काम गहलोत को पूरी तरह से विश्वास दिलाना था, क्योंकि आलाकमान ने कमान संभाली थी.’

भंडारी ने कहा, ‘राहुल और प्रियंका का पूरा जोर सरकार को बचाना और पायलट को नहीं जाने देना था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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