नई दिल्ली: राफेल विवाद में शनिवार को एक नया मोड़ आ गया. फ्रांस के एक बड़े अख़बार ‘ला मॉन्ड’ ने लिखा है कि फ्रांस में मौजूद अनिल अंबानी की कंपनी को 2015 में 143.7 मिलियन यूरो (अभी की कीमत के हिसाब से 1100 करोड़ से ज्यादा) का फायदा पहुंचाया गया. ये फायदा उन्हें टैक्स रद्द करके पहुंचाया गया. अनिल को ये टैक्स में छूट प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राफेल सौदे के तहत 36 लड़ाकू विमानों को हरी झंडी दे देने के छह महीने बाद दिया गया.
हालांकि, रक्षा मंत्रालय ने अपने ताज़ा बयान में कहा है, ‘हमने ऐसी रिपोर्ट्स देखी हैं जिनमें अनुमान लगाया गया है कि भारत सरकार द्वारा राफेल फाइटर जेट की ख़रीद और एक निजी कंपनी को मिली टैक्स छूट के बीच संबंध है. ना तो टैक्स में मिली छूट का समय और ना ही रियायत का विषय किसी भी तरह से उस राफेल डील से जुड़ा है जिसे वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पूरा किया गया. टैक्स के मामले और राफेल डील के बीच कोई संबंध स्थापित करना बिल्कुल ग़लत, विवाद खड़ा करने का प्रयास और शैतानी से भरी झूठी जानकारी देने का प्रयास है.’
फ्रांस के अख़बार की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए रिलायंस कम्युनिकेशन ने कहा कि टैक्स से जुड़ी मांग ग़लत और गैर कानूनी थी और ‘निबटारे के मामले में किसी पक्षपात या फायदे’ से इंकार किया. सवालों के घेरे में जो कंपनी थी उसका नाम रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस है. ये समुद्र के भीतर केबलिंग का काम करती है. फ्रांस के टैक्स प्राधिकारियों ने इसकी जांच की थी. जांच के बाद उन्होंने पाया कि 2007 से 2010 के बीच तक कंपनी पर 60 मिलियन यूरो का बकाया है.
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इस बकाए से जुड़ी सुलह के लिए रिलायंस ने 7.6 मिलियन यूरो के पेशकश की. फ्रांस के टैक्स पदाधिकारियों ने इस सुलह से इनकार करते हुए एक और जांच की. ये जांच 2010 से 2012 के समय से जुड़ी थी. पेपर की रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद टैक्स पदाधिकारियों ने टैक्स के तौर पर अतिरिक्त 91 मिलियन यूरो की मांग की.
अख़बार में आगे लिखा है कि जिस समय प्रधानमंत्री मोदी ने 36 राफेल विमानों के ख़रीद की घोषणा की तब तक रिलायंस पर फ्रांस सरकार के टैक्स का कुल बकाया 151 मिलियन यूरो का हो गया. हालांकि, मोदी सरकार द्वारा राफेल सौदे की घोषणा के छह महीने बाद फ्रांस की टैक्स पदाधिकारियों ने सुलह के तौर पर 7.3 मिलियन यूरो की रकम स्वीकार ली, जबकि ये रकम 151 मिलियन यूरो की थी.
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अख़बार ने लिखा है, ‘फ्रांस ने 143.7 मिलियन यूरो की कुल टैक्स वसूली को रद्द किया है. ये सालों से बाकी था. ये टैक्स अनिल अंबानी के रिलायंस कम्युनिकेशन से जुड़ी फ्रांस की कंपनी के पक्ष में माफ किया गया है.’ आपको याद दिला दें कि भारत में लंबे समय से अनिल अंबानी का नाम राफेल विवाद से जुड़ा हुआ है. विपक्ष का आरोप है कि डसॉल्ट एविएशन का ऑफसेट बनाए जाने के मामले में मोदी सरकार ने अनिल का साथ दिया है. डसॉल्ट एविएशन वो एवियोनिक्स और सॉफ्टवेयर निर्माता है जो राफेल विमान और थेल्स का निर्माण करता है. अख़बार ने लिखा है कि लेखा परीक्षक (ऑडिटर) द्वारा 30 जनवरी 2015 को दी गई ऑडिटर रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस दो टैक्स समायोजन के अधीन है.
‘ख़ास तौर से टैक्स पदाधिकारियों उस तरीके से मतभेद रखते है जिसका सहारा कंपनी ने दूसरी कंपनियों से रिलायंस समूह के लिए की गई ख़रीद के लिए किया है और इसके लिए ‘दस्तावेजों’ की कमी का हवाला दिया है’, जो कि रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस द्वारा ‘हस्तांतरण की कीमत’ के लिए इस्तेमाल की गई पद्धति को चुनौती देने के समान है.
अख़बार ने लिखा है, ‘नियामकों की इस प्रसिद्ध तकनीक का इस्तेमाल कंपनियां अपने टैक्स को कम करने के लिए करती हैं. इसका इस्तेमाल टैक्स का स्वर्ग माने जाने वाली जगहों पर भेजे जाने के लिए किया जाता है, जहां इन पर टैक्स नहीं लगेगा. अनिल अंबानी के फ्रांस की कंपनी की मूल कंपनी रिलायंस ग्लोबलकॉम लिमिटेड का पता बरमूडा का है. ये वो जगह है जिसे यूरोपियन यूनियन ने मार्च में टैक्स का स्वर्ग माने जाने वाली काली सूची में डाला है.’
एक अप्रैल 2007 से 31 मार्च 2010 के बीच की टैक्स ऑडिट के बाद ब्याज और सरचार्ज के साथ पहली वसूली की रमक 60 मिलियन यूरो तय की गई थी. कंपनी ने इसका विरोध किया और 2013 में 7.6 मिलियन यूरो के भुगतान के साथ विवाद को हल करने का प्रस्ताव दिया.
लॉ मोंड के मुताबिक, ‘इसके बाद कंपनी ने लगातार अपील दायर की. इसके बाद दिक्कत और बढ़ गई क्योंकि प्रशासन ने एक और टैक्स ऑडिट करना शुरू कर दिया. ये एक अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2012 के बीच के लिए था. इसके बात 91 मिलियन यूरो और वसूले जाने की बात सामने आई जिसमें देरी के लिए ब्याज और दंड भी लगाया गया था.’
आगे लिखा गया है कि कंपनी के नए लेखा परीक्षक (ऑडिटरों) फैब्रिस एब्टन और औरेलिस फर्म ने अपनी 29 सितंबर 2015 की रिपोर्ट में राहत के साथ लिखा है, रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस कंपनी ‘टैक्स प्राधिकारियों के साथ एक समझौते करने वाला है. 7.5 से 8 मिलियन यूरो की एक समग्र राशि से जुड़े एक व्यापक निपटारे वाले प्रस्ताव के लिए शुक्रिया.’
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विवाद के निपटारे से जुड़ी ये वही रकम थी जिसे लेने से टैक्स प्राधिकरण ने कुछ साल पहले मना कर दिया था, तब इसका कोई महत्व भी नहीं था. एक महीने बाद यानी 22 अक्टूबर 2015 को इस समझौते पर औपचारिक तौर से दस्तखत किए गए. अख़बार ने लिखा, ‘कंपनी के सारे टैक्स भुगतान को 7.3 मिलियन यूरो की रकम के एवज में सेटल कर लिया गया. ये सीवीएई (कॉन्ट्रिब्यूशन ऑन वैल्यू ऐडेड कंपनीज़) और 2008 से 2014 के बीच टैक्स रोके जाने से जुड़ा था. इससे अनिल अंबानी को भारी फायदा पहुंचा: उन्होंने 143.7 मिलियन यूरो का टैक्स बचा लिया.’
पेपर ने ये भी लिखा है कि अप्रैल 2015 के अंत में मोदी ने 36 राफेल विमानों की ख़रीद से जुड़े अपने इरादे को साफ किया. इसके कुछ दिनों बाद अनिल अंबानी ने अपनी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को पंजीकृत (रजिस्टर्ड) करवाया और डसॉल्ट के साथ अपना संयुक्त उपक्रम बनाया.
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पेपर मे लिखा है, ‘क्या अनुबंध पर दस्तख़त होने से पहले ही उन्हें पता था कि ऑफसेट उन्हीं के पास आएगा? ये एक साल बाद होगा. फरवरी से अक्टूबर 2015 के बीच अनिल अंबानी डसॉल्ट के नए पार्टनर ठीक तभी बनते हैं जब अपने असल दावे की जगह टैक्स प्राधिकारी 151 मिलियन यूरो की जगह उनके 7.3 मिलियन यूरो के लेन-देन को स्वीकार कर लेते हैं.’
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