नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद वसीम रिज़वी, पिछले हफ्ते ये दावा करते हुए धर्म बदलकर हिंदू हो गए कि उन्हें इस्लाम से ‘निष्कासित’ कर दिया गया था. धर्म बदलने से कुछ हफ्ते पहले ही रिज़वी को अपनी एक नई किताब में पैगंबर का खराब ढंग से चित्रण करने के लिए धमकियां मिली थी.
रिज़वी के धर्म बदलने के कुछ दिनों के भीतर ही केरल स्थित फिल्मकार अली अकबर और उकी पत्नी लूसियम्मा ने भी दावा किया कि वो इस्लाम को छोड़कर हिंदू धर्म अपना रहे हैं क्योंकि कुछ मुसलमानों ने एक हेलिकॉप्टर हादसे में सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मौत से जुड़ी सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में मुस्कुराती हुई इमॉटिकॉन्स लगाईं थीं.
लेकिन इस्लाम और ईसाईयत जैसे धर्मों के विपरीत, हिंदू धर्म में कोई धर्मांतरण प्रक्रिया नहीं होती, जिसकी वजह से धर्म बदलने की की प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है.
आर्य समाज और हिंदू सेना तथा विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) जैसे सीमांत हिंदुत्व संगठनों ने धर्मांतरण की अपनी व्यवस्था बना ली है- एक निशुल्क सेवा जिसमें एक शुद्धीकरण अनुष्ठान होता है- जिससे धर्म को अपनाने वालों की सहायता की जाती है लेकिन जाति का सवाल जो हिंदू सामाजिक प्रथा का एक अभिन्न अंग है, इस प्रक्रिया को जटिल कर देता है.
एक और चुनौती ये है कि कई राज्यों में धर्मांतरण-विरोधी कानून हैं क्योंकि धर्मांतरण का विषय विवादास्पद है, जिसमें अलग-अलग समय पर सभी धर्म एक दूसरे पर जबरन या मजबूरी में धर्मांतरण कराने का आरोप लगाते रहते हैं.
दिप्रिंट कुछ प्रचलित हिंदू धर्मांतरण संस्कारों और इस प्रक्रिया से जुड़ी चुनौतियों पर एक नज़र डाल रहा है.
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आर्य समाज में क्या होती है प्रक्रिया
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में स्थापित एक हिंदू सुधारवादी संगठन आर्य समाज में- जो कोई भी धर्म परिवर्तन करके हिंदू बनना चाहता है, उसे किसी आर्य समाज मंदिर में जाकर इसे लेकर एक आवेदन देना होता है. आवेदन के साथ उसे एक हलफनामा भी देना होता है कि वो अपनी स्वतंत्र इच्छा से धर्म परिवर्तन करना चाहता है. साथ ही आयु तथा पते का सबूत भी देना होता है, जिस पर आवेदक तथा दो गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं.
आर्य समाज की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इसके बाद एक पुरोहित ‘शुद्धीकरण’ अनुष्ठान का आयोजन करेगा, जिसकी अवधि लगभग दो घंटे की होती है. इसके बाद आवेदक पुरोहित के निर्देशानुसार, आग के सामने वेदों के कुछ मंत्रों का उच्चार करेगा और फिर उसे ‘हिंदू धर्मांतरण का प्रमाण पत्र’ दे दिया जाएगा.
वेबसाइट में दावा किया गया है कि धर्मांतरण की ये प्रथा, मूल रूप से दयानंद सरस्वती ने 1877 में ‘उन हिंदुओं को वापस लाने के लिए शुरू की थी, जिन्होंने अपनी पसंद या मजबूरी वश कोई दूसरा धर्म अपना लिया था और जो बाद में हिंदू धर्म में वापस आने के इच्छुक थे’.
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हिंदू सेना की धर्मांतरण प्रक्रिया
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘वो देवल स्मृति की समझ के आधार पर धर्मांतरण संस्कार का संचालन करते हैं, जिसमें कुछ प्रण सूचीबद्ध किए गए हैं, जिन्हें धर्मांतरण प्रक्रिया के दौरान भावी धर्म बदलने वालों को लेना चाहिए’.
उनके अनुसार हर भारतीय हिंदू पैदा हुआ था और बाद में अलग-अलग कारणों से उन्होंने अपने धर्म बदल लिए. उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब वो सनातन धर्म में वापस आना चाहते हैं और यही कारण है कि हम इसे ‘घर वापसी’ कह रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘अपने घर वापसी अभियान को सफल बनाने के लिए हम सुनिश्चित करते हैं कि हिदू धर्म में शामिल होने के लिए लोगों को किसी थकाऊ प्रक्रिया से होकर गुजरना न पड़े. उन्हें केवल ये करना है कि करीबी हिंदू सेना केंद्र चले जाएं, जहां हम शुद्धि करते हैं, जिसके बाद वो हिंदू बनने में सफल हो जाते हैं और हम उन्हें अपनी पसंद का एक नया नाम दे देते हैं’.
गुप्ता के अनुसार किसी की जाति निर्धारित करना भी उसकी पसंद पर निर्भर होता है. उसने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति जो अपना धर्म बदलकर हिंदू होना चाहता है, उसे विकल्प दिया जाता है कि वो किस जाति का हिस्सा बनना चाहता है’.
उन्होंने कहा कि धर्मांतरण का अनुष्ठान उनकी पसंद पर निर्भर करता है क्योंकि अलग-अलग जातियों के अनुष्ठान और प्रण अलग-अलग होते हैं.
रिज़वी की मिसाल देते हुए- जिसका धर्मांतरण गाज़ियाबाद के डासना देवी मंदिर में हुआ, जिसका संचालन यति नरसिंहानंद सरस्वती ने किया, इस पर गुप्ता ने कहा, ‘कोई उन्हें हिंदू धर्म में आने के लिए मजबूर नहीं कर रहा है. रिज़वी ने हिंदू धर्म को इसलिए अपनाया, क्योंकि उन्हें समझ आ गया कि उनके पूर्ववर्ती हिंदू थे. इनमें से अधिकतर लोगों को ये भी पता होता है कि उनके पूर्वज किस जाति से ताल्लुक रखते थे’.
रिज़वी को, जो पहले एक सैयद थे- जिन्हें मुसलमानों में ब्राह्मणों का समकक्षी माना जाता है- इसलिए उन्हें त्यागी की जाति दी गई, जिससे पुरोहित बनने से पहले खुद सरस्वती का भी ताल्लुक था (कुछ लोगों ने रिज़वी को दी गई जाति को लेकर सवाल उठाए हैं).
त्यागी खुद को ब्राह्मणों के बराबर मानते हैं लेकिन ब्राह्मण उनके इस दावे को स्वीकार नहीं करते.
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कानून और आरोप
इस साल सितंबर में प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा जारी एक सर्वे में 1951 से 2011 तक की जनगणना का हवाला देते हुए कहा गया कि देश में हिंदुओं की संख्या (30.4 करोड़ से बढ़कर) 96.9 करोड़ हो गई है, मुसलमानों की आबादी (3.5 करोड़ से बढ़कर) 17.2 करोड़, ईसाइयों की (80 लाख से बढ़कर) 2.8 करोड़, सिखों की (68 लाख से बढ़कर) 2.08 करोड़, बौद्धों की (28 लाख से बढ़कर) 84 लाख और जैन की (17 लाख से बढ़कर) 45 लाख हो गई है.
धर्म परिवर्तन का मुद्दा भारत में हमेशा से विवादास्पद रहा है.
इस साल नवंबर से दिसंबर के बीच मध्य प्रदेश में तथाकथित धर्म परिवर्तन के छह से अधिक मामले सामने आए, जिनमें पुलिस ने दावा किया कि ईसाई मिशनरियां ‘आदिवासी महिलाओं कों फुसलाकर उन्हें ईसाई बनाने की कोशिश कर रही हैं’.
ऐसा ही एक आरोप बुधवार को गुजरात में, वडोदरा के जिला सामाजिक रक्षा अधिकारी मयंक त्रिवेदी ने, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटीज़ के खिलाफ लगाया, जो मदर टेरेसा द्वारा स्थापित एक संस्था है. संस्था ने जबरन धर्म परिवर्तन की किसी भी कोशिश से इनकार किया है.
दशकों पहले, 1981 में मीनाक्षीपुरम में 1,100 से अधिक निचली जाति के हिंदुओं या हरिजनों ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम धर्म अपना लिया था.
भारत में फिलहाल धर्म परिवर्तन को लेकर कोई केंद्रीय कानून नहीं है लेकिन अलग-अलग राज्यों ने इस विषय पर अपने अलग-अलग नियम बना लिए हैं.
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021, इसी साल पारित किया गया है. उत्तराखंड में भी 2018 में इसी तरह का कानून- उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 लाया गया था और हिमाचल प्रदेश ने 2019 में धर्म परिवर्तन के अपने 2007 के कानून में संशोधन कर लिया. अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और झारखंड जैसे राज्यों में भी धर्म परिवर्तन को लेकर कानून बने हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और देश में मानवाधिकार उल्लंघनों पर काम करने वाली संस्था, इंडियन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन के संस्थापक अनस तनवीर ने बताया, ‘जब कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलता है, तो उसे संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के सामने, हलफनामे की शक्ल में एक घोषणा करनी पड़ती है कि ‘मैंने अपना धर्म छोड़ दिया है और अब मैं ये धर्म अपना रहा हूं’. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे सूबों में धर्मांतरण-विरोधी कानून के तहत अध्यादेशों द्वारा स्थापित कुछ अतिरिक्त प्रक्रियाओं का पालन करना होता है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘दोनों सूबों में, धर्मांतरण करने के इच्छुक व्यक्तियों को 60 दिन पहले डीएम को अग्रिम सूचना देनी होती है. लेकिन यूपी में धर्म परिवर्तकों (धर्मांतरण समारोह का संचालन करने वालों) को एक महीना पहले सूचना देनी होती है. एमपी में पुरोहितों या आयोजकों को भी 60 दिन पहले सूचना देनी होती है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में घोषणा प्राप्त करने के बाद डीएम को प्रस्तावित धर्म परिवर्तन की मंशा, उद्देश्य और कारण की पुलिस जांच करानी होती है’.
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