फतेहगढ़ साहिब, लुधियाना : पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में एक इंजीनियरिंग कॉलेज और एक विश्वविद्यालय चालू होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने टियर-1 शहरों में प्लेसमेंट और 2 करोड़ रुपये की स्कॉलरशिप का वादा करने जैसी हर चीज को आजमाया.
लेकिन पंजाब के युवा दूसरे ही रास्ते पर हैं, उनके कनाडा भाता है.
लुधियाना में करीब 60 किलोमीटर दूर की कहानी थोड़ी अलग है. ‘भारत के मैनचेस्टर’ कही जाने वाली फर्म्स की लोकल ग्रेजुएट्स को लेने में दिलचस्पी नहीं हैं. व्यवसाय के मालिकों का कहना है कि निजी और सरकारी दोनों कॉलेजों में ट्रेनिंग युवा लड़कों और महिलाओं को बाजार के स्टैंडर्ड से लैस करने में समर्थ नहीं हैं.
लुधियाना और फतेहगढ़ साहिब की कहानियों के बीच पंजाब की बेरोजगारी की समस्या पुरानी है.
पंजाब के युवा अब शिक्षा को सुरक्षित, सफल भविष्य का रास्ता नहीं मानते. पेशेवर डिग्रियां उच्च वेतन वाली नौकरियों का भरोसा नहीं देतीं, यहां तक कि शिक्षा पर खर्च की गई राशि भी रिकवर नहीं हो पाती.
हरित क्रांति के बाद से कोई इनोवेशन न होने से कृषि से भी फायदा रुक गया है. उद्योगों ने ज्यादा पैसे देने वाली नौकरियां पैदा करने वाली मूल्य श्रृंखला (उत्पादन और परफॉर्मिंग सर्विस) को आगे नहीं बढ़ाया है और विश्व स्तर पर ज्ञान-आधारित क्षेत्रों में बदलाव कर दिया है. राज्य में युवाओं के लिए रोल मॉडल आज लोकप्रिय मनोरंजन करने वाले लोग हैं, न कि वैश्विक सीईओ और स्टार्ट-अप यूनिकॉर्न के लोग. गायकों और अभिनेताओं का जीवन विदेशों में चमकने को लेकर, युवा अपने राज्य के साथ मोहभंग और प्रवासन (देश से बाहर जाने) की बेकार की चाह में फंस हुए हैं.
एवन साइकिल के प्रबंध निदेशक ओंकार पाहवा रोजाना इस समस्या का अनुभव करते हैं. उनका 71 साल पुराना व्यवसाय जो 150 तरह की एडवांस साइकिलें बनाता है, अपने लुधियाना के कारखाने में 1,500 से अधिक लोगों को नौकरी दी है, लेकिन उन्हें उत्कृष्ट वर्कफोर्स मिलना मुश्किल है.
पाहवा कहते हैं, ‘छात्र इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर हमारे पास आते हैं और वे वर्नियर कैलीपर पर माप कर पाने की भी स्थिति में नहीं होते, जो एक इंजीनियर का बेसिक उपकरण है. वे अंग्रेजी में छुट्टी का आवेदन भी नहीं लिख सकते हैं.’
लुधियाना में व्यवसायों के मालिकों ने इसी तरह की भावना जाहिर की. लुधियाना और चंडीगढ़ के कारोबारियों का कहना है कि कुकुरमुत्ते की तरह खुल रहे निजी विश्वविद्यालय बिना व्यावहारिक ज्ञान के डिग्री बांट रहे हैं.
पहली पीढ़ी के व्यवसायी, अशप्रीत साहनी ने जो कि 2014 में ऑटोमोबाइल उद्योग के क्षेत्र में अपनी कंपनी शुरू की, वह कहते हैं, ‘पंजाब के युवा एकदम रोजगार के लायक नहीं हैं’, ‘ज्यादातर कॉलेजों के पाठ्यक्रम अब चलन में नहीं हैं और वे (युवा) कम पैसे चुकाते हैं, क्योंकि वे कुछ भी नहीं जानते या सीख पाते हैं.’
कॉलेजों में रेग्युलर वक्ता, साहनी कहते हैं कि अधिकांश छात्रों के शोध (अध्ययन) का उद्योग के साथ कोई तालमेल नहीं है. ‘वे यहां कंपनियों के लिए असेट्स नहीं बन पाते.’ एक अर्थशास्त्री और शिक्षाविद्, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के पूर्व कुलपति, प्रोफेसर भूरा सिंह घुमन बताते हैं कि राज्य में दो क्षेत्रों – उद्योग और शिक्षा – हमेशा बिना एक-दूसरे से जुड़े हुए आगे बढ़े हैं. नतीजतन, शिक्षण संस्थान बाजार की जरूरतों को जाने बिना युवाओं को तैयार कर रहे हैं.
घुमन कहते हैं कि पंजाब के विश्वविद्यालयों को जीएसटी और नोटबंदी पर एक मॉड्यूल पेश करने में महीनों लग गए, जो देश में हाल के दो बड़े आर्थिक फैसले हैं.
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कॉलेज से नए स्नातकों की, वर्कफोर्स की जागरूकता को लेकर एक दुखद स्थिति है. पंजाब में एक इंजीनियर महीने में 10,000-12,000 रुपये के साथ कहीं से भी अपनी नौकरी की शुरुआत कर लेता है.
रोहित झाझरिया, जिनके पास सिविल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री है और एक सरकारी कार्यालय में कार्यरत हैं, वह कहते हैं, ‘शिक्षा पर 10-15 लाख रुपये खर्च करने के बाद, छात्र 10,000 रुपये के वेतन से संतुष्ट नहीं होना चाहते हैं. ज्यादातर को उनकी योग्यता के आधार पर नौकरी नहीं मिलती. एकेडमी में अच्छा प्रदर्शन करने को लेकर उनके लिए यह एक बड़ा निराश करने वाल फैक्टर होता है. उन्हें लगता है कि अगर वे विदेश जाते हैं, तो उन्हें कम से कम एक निश्चित न्यूनतम वेतन मिलेगा.’
इन सबसे बढ़कर, राज्य में भविष्य की कल्पना करने और निवेश करने में युवाओं की एकदम असमर्थता है.
फतेहगढ़ साहिब के एक गांव में, करणवीर सिंह एक दिन कनाडा जाने का सपना देखने में अपना वक्त गुजार रहे हैं. उन्होंने 12वीं पूरी करने के बाद अध्ययन करना बिना मतलब का समझा और इसके बजाय आईईएलटीएस कोचिंग में दाखिला लिया.
सिंह कहते हैं, ‘मैं कॉलेज नहीं गया क्योंकि मुझे पता है कि मुझे नौकरी नहीं मिलेगी. पंजाब में अवसर नहीं है, तो पढ़ाई में समय क्यों जाया करें? मैं कनाडा जाना चाहता हूं.’
हालांकि, वह पंजाब के कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता को खारिज नहीं करते हैं, लेकिन उनका कहना है कि जब तक सरकार युवाओं को नौकरी नहीं देती, उन्हें यहां कोई भविष्य नजर नहीं आता.
‘निजी क्षेत्र में वेतन केवल 4,000-5,000 रुपये है, जो कुछ भी नहीं.’
उद्योग का रुक जाना
जर्मनी में 2013 यूरोबाइक एक्सपो में हरमनजीत सिंह के अपमानजनक अनुभव ने उन्हें व्यापार करने के तरीके को बदलने के लिए प्रेरित किया. उनकी कंपनी नवयुग नामधारी एंटरप्राइजेज, जिसे उनके दादा ने 1951 में शुरू किया था, साइकिल के पुर्जे बनाती थी. वह लुधियाना के शुरुआती कारोबारियों में से एक थे. सिंह को अपने परिवार के किए गए काम पर गर्व था.
एक ट्रेड शो में, जब सिंह, अन्य देशों के नागरिकों के बीच, एक साइकिल की तस्वीरें ले रहे थे तो उसके प्रतिनिधि ने उन्हें रुकने के लिए कहा.
उसने सिंह से कहा, ‘आप भारतीय यहां सिर्फ नकल करने आए हैं, खरीदने नहीं.’ शुरुआती झटकों और कई रातों की नींद हराम करने के बाद उन्होंने इस धारणा को बदलने का फैसला किया.
सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह गलत लगा. यह सिर्फ मेरा ही नहीं बल्कि भारत का अपमान था.’ ‘हमें दुनिया को साबित करना था कि भारत कुछ बना सकता है.’
आज, नवयुग Verdant ब्रांड नाम से हाई-एंड साइकिल बनाती है और इसे पूरे यूरोप और अमेरिका में निर्यात करती है. लुधियाना में भारत के कोर साइकिल उद्योग, जिन्होने देश को एवन और हीरो जैसे साइकिल ब्रांड दिए, सिंह ने समय के साथ साइकिल की बदलती मांगों को भांपा. उनका कहना है कि इनोवेशन इन कंपनियों को बचाए हुए है.
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रजनीश इंडस्ट्रीज जो कि ऑटोमोबाइल के पार्ट्स बनाती है और हॉस्पिटैलिटी में अपनी मौजूदगी रखते है, के मालिक राहुल आहूजा बताते हैं कि लेकिन इनोवेशन लुधियाना के उद्योगों के हर क्षेत्र में नहीं हुआ है.
आहूजा कहते हैं, ‘लुधियाना की ज्यादातर कंपनियों में, टेक्नॉलजी एडवांसमेंट नहीं किया गया है. एक कंपनी जो 10-20 साल पहले फास्टनरों और हाथ के औजारों का निर्माण कर रही थी, अब भी उसी का उत्पादन कर रही है.’
चंडीगढ़ में एक औद्योगिक संघ के प्रमुख, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, कहते हैं, वर्षों से, जैसे-जैसे पंजाब में मौजूदा व्यवसायों का विस्तार हुआ है, उन्हें राज्य के बाहर सस्ता, व्यवहार्य विकल्प मिल गया. ट्राइडेंट ग्रुप ने मध्य प्रदेश को तब चुना जब उसने एक नए प्लांट के साथ अपने बेडशीट निर्माण व्यवसाय का विस्तार करने का फैसला किया.
पंजाब के उद्योग के अपने नुकसान हैं. यह एक उपजाऊ भूमि वाला राज्य है, जो भूमि खरीदने, कच्चे माल और तैयार माल को बंदरगाहों तक पहुंचाने की लागत को बढ़ाता है. कर छूट, भूमि बैंक और मुफ्त बिजली जैसी किसी भी तरह की राज्य की तरफ से मिलने वाली सब्सिडी के अभाव में, पंजाब पड़ोसी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, या उत्तराखंड से प्रतिस्पर्धा करने में हार जाता है.
आहूजा बताते हैं कि खराब अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी और राज्य में कानून और व्यवस्था की गड़बड़ी जैसे नशीली दवाओं का संकट, सड़क पर विरोध प्रदर्शन, गैंगवार्स और गायक सिद्धू मोसे वाला की तरह दिन के उजाले में गोलीबारी, पंजाब की एक स्थिर राज्य की छवि को बिगाड़ता है, जो निवेशकों को हतोत्साहित करता है.
2020 में, उन्हें पंजाब की विकास रणनीति तैयार करने के लिए तत्कालीन सीएम अमरिंदर सिंह द्वारा गठित विशेषज्ञ समूहों के उद्योग कार्यक्षेत्र का प्रमुख बनाया गया था. औद्योगिक विकास में तेजी लाने के लिए, उन्होंने सरकार से बड़ी कंपनियों को आमंत्रित करने, भूमि और कर सब्सिडी देने और मौजूदा विनिर्माण इकाइयों में वैश्विक मानकों से मेल खाने के लिए उच्च-प्रौद्योगिकी इनोवेशन लाने की सिफारिश की. लेकिन उनकी रिपोर्ट पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
आहूजा कहते हैं, ‘पंजाब में पुरुष और महिलाएं काम करना चाहते हैं. हमारे पास मानव संसाधन हैं. हम लगातार पंजाब की सरकारों से यहां बड़े उद्योग लाने के लिए कह रहे हैं. तब पेरिफेरल उद्योग और नए कौशल इसके आसपास स्वाभाविक तौर पर विकसित होते नजर आएंगे. इस तरह के देश में काफी औद्योगिक शहर विकसित हुए हैं.’
इसके अलावा, प्रो. घुमन बताते हैं कि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य होने के नाते, यहां के उद्योग कभी भी उदारीकरण का लाभ नहीं उठा सके. आर्थिक सुधारों के बाद दो दशकों में न केवल कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्य आगे बढ़े, यहां तक कि नोएडा, बादी और गुरुग्राम ने भी आईटी पार्क और विनिर्माण केंद्र स्थापित किए हैं.
प्रोफेसर सत्यपाल सहगल, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी, पंजाब विश्वविद्यालय बताते हैं, ‘जब बेंगलुरू और हैदराबाद विकास कर रहे थे, तब पंजाब में कुछ भी नहीं हो रहा था. मोबाइल उद्योग राज्य से बाहर शिफ्ट हो गए और मादक पदार्थों की लत और उग्रवाद जैसे सामाजिक फैक्टर्स ने लंबे समय तक राज्य को परेशान किया. इसने निजी निवेश को यहां फलने-फूलने से रोक दिया.’
पंजाब के पास कई अन्य राज्यों की तरह वाइब्रेंट आईटी शहर नहीं हैं. यहां के युवाओं की निगाहें पश्चिम पर टिकी रहती हैं, लेकिन ऐसा आंध्र प्रदेश के आईटी इंजीनियरों में नहीं है. पंजाब के युवा एच1बी वीजा की तलाश में नहीं होते; वे बस जैसे-तैसे प्रवास करना चाहते हैं.
1960 के दशक के मध्य से 1990 के दशक के शुरुआत में, कृषि ने पंजाब के विकास को गति दी और राज्य में बहुत समृद्धि लाई. घुमन कहते हैं, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है, लेकिन कृषि-आधारित विकास रुक जाने पर राज्य के पास विकास का कोई वैकल्पिक मॉडल नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘अगर राज्य की खरीद क्षमता बढ़ रही है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उद्योग अपने आप यहां शिफ्ट हो जाएगा. पंजाब, मोबाइल और ऑटोमोबाइल सामानों के सबसे ज्यादा उपभोक्ताओं में से एक हो सकता है, लेकिन ये यहां घरेलू स्तर पर नहीं बनाए जाते हैं. पंजाब विकास का आत्मनिर्भर मॉडल नहीं है.’
पंजाब में इंडस्ट्री के विस्तार को लेकर लिए बढ़ावा देने की कोशिश नदारद है.
ज्ञान-आधारित उद्योग की कमी
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में इनोवेशन लाने के लिए, जहां घुमन अगस्त 2017 से नवंबर 2020 तक इस्तीफा देने तक कुलपति थे, उन्होंने 2018 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा साइंस में स्नातक और मास्टर डिग्री के पाठ्यक्रम शुरू किए. यह वैश्विक स्तर पर उभरने वाले 10 सेक्टरों के अनुरूप था और वह चाहते थे कि उनके छात्र भविष्य के लिए तैयार हों.
लेकिन कोर्स शुरू नहीं हुआ.
घुमन कहते हैं, ‘हालांकि बच्चों ने धीरे-धीरे रुचि दिखाई, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि प्रशासन और शिक्षक बदलाव के लिए तैयार नहीं थे.’ उन्होंने कहा कि मार्गदर्शन के अभाव से लेकर संसाधनों की कमी तक कदम-कदम पर बाधाएं थीं. ‘विश्वविद्यालय उचित बुनियादी ढांचा प्रदान नहीं कर सका.’
यूनिवर्सिटी ने बाद में AI और डेटा साइंस कोर्स को कंप्यूटर साइंस के साथ मर्ज कर दिया.
ज्ञान आधारित उद्योगों को लाने के लिए पंजाब सरकार द्वारा भी प्रयास किए गए हैं, लेकिन ये भी विफल रहे हैं.
2018 में, सरकार ने मोहाली में एक स्टार्ट-अप हब स्थापित किया. लेकिन हाई-टेक सॉफ्टवेयर कंपनियों के बजाय, कॉम्प्लेक्स में अब बीपीओ (कॉल सेंटर फर्म) हैं, जो हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और पंजाब के युवा पुरुषों और महिलाओं को 10,000 रुपये से 25,000 रुपये प्रति माह के बीच वेतन वाली नौकर दे रहे हैं.
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इन बीपीओ में से एक में काम करने वाले नलिन राणा कहते हैं, ‘यहां काम करने वालों में से ज्यादातर के पास कॉलेज की डिग्री है, लेकिन उन्हें कहीं और नौकरी नहीं मिली. उनका वेतन, पॉकेट मनी की तरह हैं जब तक कि वे अनुभव और बेहतर पैसे वाली नौकरी हासिल नहीं कर लेते हैं या कनाडा चले जाते हैं.’
यदि पंजाब, जैसा कि सहगल कहते हैं, एक महत्वाकांक्षी राज्य है, तो भी इसके भीतर आकांक्षाएं अधूरी रह जाती हैं.
सहगल कहते हैं, ‘पंजाब में युवा एक ऐशो-आराम का जीवन चाहते हैं और वे इसे बिना अपराधबोध के चाहते हैं. वे ऐसे छोटे-मोटे काम नहीं करना चाहते कि जिसमें कोई गर्व का भाव न हो.’
सफेदपोश नौकरियां इसका उत्तर हैं, लेकिन ये राज्य में बड़े पैमाने पर नहीं हैं. कर्नाटक में इंफोसिस है, हैदराबाद में गूगल है, और मुंबई में पुराने समूह के मुख्यालयों का जमावड़ा है. पंजाब में इनका खालीपन है.
उद्योग प्रमुख जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, उनका कहना है, ‘जब युवा नौकरी के बाजार में प्रवेश करते हैं, तो वे जैव प्रौद्योगिकी या मोटर वाहन क्षेत्र में बड़े नामों से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन पंजाब में उन्हें तुरंत सफेदपोश नौकरियों की कमी महसूस होती है. न तो बड़ी कंपनियों के पास अपने कॉर्पोरेट कार्यालय हैं और न ही संयंत्र.’
कृषि क्षेत्र अब आकर्षक नहीं रहा
पंजाब में उद्योग ही अकेला क्षेत्र नहीं है जो इनोवेशन से वंचित है. किसान अभी भी मुख्य रूप से गेहूं और धान का उत्पादन करते हैं, भले ही उनकी आय गिर रही हो और भूमि जोत वर्षों से कम हो रही हो. पंजाब के युवा जो एक शानो-शौकत, आरामदायक जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उनके लिए ये कमियां कृषि क्षेत्र को नो-गो जोन बनाती हैं.
जसबीर सिंह, वडाला जौहल गांव, अमृतसर के रहने वाले कहते हैं, ‘महंगाई ने खेती की लागत बढ़ा दी है. डीजल, कीटनाशक और उर्वरक, ट्रैक्टर किराए पर लेना और परिवहन, सभी के दाम बढ़ गए हैं. और उपज से आय में वृद्धि नहीं हुई है.’
राज्य के कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी जो अपनी पहचान नहीं जाहिर करना चाहते है, वह बताते हैं कि जैसे-जैसे परिवार बड़े होते जा रहे हैं, गिरते जल स्तर और भूमि के बंटवारे के कारण एक सीमांत किसान (जिनके पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है) के लिए वार्षिक कृषि आय 1 लाख रुपये तक सीमित हो रही है.
अधिकारी ने कहा, ‘पंजाब को कृषि क्षेत्र में अधिक से अधिक रोजगार सृजित करने चाहिए. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 2010 में पंजाब के कुल किसानों में से 15 फीसदी सीमांत थे. 2022 में यह आंकड़ा घटकर 13 फीसदी रह गया. लिहाजा, जमीन का बंटवारा हो रहा है और परिवार बंट रहे हैं. युवा खेती छोड़ रहे हैं. यह अब उनके लिए आकर्षक नहीं रह गया है.’
पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में इस गिरावट और उदासीनता की कीमत युवाओं को चुकानी पड़ रही है. खेती में बने रहने के प्रति बेरुखी और शहरी, उच्च-वेतन वाली नौकरियों को हथियाने में कमजोरी की वजह से वे मायूसी और राजनीतिक अलगाव के कारण खुद को किनारे रखते हैं.
अधिकारी ने कहा कि, ‘विदेश में, उनका बेसिक तौर पर न्यूनतम वेतन तय होता है. वे पंजाब में साल में दो बार फसल उगाकर जितना कमाते हैं, उतना ही पैसा विदेश में एक महीने में छोटे-मोटे काम करके बचा लेते हैं.’
क्या चीज करेगी काम
पंजाब में एक के बाद एक सरकारें राज्य को विकास की पटरी पर वापस लाने या युवाओं की रोजगार क्षमता में सुधार करने के लिए एक दीर्घकालिक विजन देने में विफल रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि दखल कई स्तरों पर करनी होगी. किसानों का सुझाव ग्रामीण स्तर पर कृषि आधारित उद्योग को बढ़ावा देने का है.
किसान जसबीर सिंह कहते हैं, ‘हमारे पास कच्चा माल है. अगर हम इसे प्रॉसेस करके बाजार में बेचते हैं तो हमें ज्यादा मुनाफा होगा. यह ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार की एक धारा भी शुरू करेगा जो खेती नहीं करना चाहते हैं.’
कृषि के औद्योगीकरण से भी लाभ होगा क्योंकि यह तकनीकी जानकारी और खेतों में काम करने वाले उपकरण का ज्ञान प्रदान कर सकता है.
पंजाब में 13 महीने पुरानी आम आदमी पार्टी (आप) सरकार उद्योग, किसानों और शिक्षकों का तनाव कम करती नजर आ रही है. 2023-24 के बजट में, इसने कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए 13,888 करोड़ रुपये आवंटित किए– जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत की वृद्धि है- और 117 स्कूलों के विकास के लिए 200 करोड़ रुपये दिए गए हैं. एक कृषि नीति भी बन रही है.
फरवरी में, चंडीगढ़ में 5वीं प्रोग्रेसिव पंजाब इन्वेस्टर्स समिट से एक दिन पहले, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आइडियाज को स्वतंत्र रूप से बहने देने के लिए व्यवसायियों के एक समूह के साथ एक अनौपचारिक बैठक की. उसी महीने, उन्होंने नई औद्योगिक और व्यवसाय विकास नीति 2022 पेश की. पिछले साल सितंबर में, मान ने फ्रैंकफर्ट में आयोजित ऑटोमोटिव उद्योग के लिए दुनिया के सबसे बड़े व्यापार मेलों में से एक में हिस्सा लेने के लिए जर्मनी की यात्रा की थी और जर्मन और पोलिश कंपनियों से पंजाब में निवेश करने का आग्रह किया था. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य का 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज एक बाधा हो सकता है.
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इन क्षेत्रों में हो रहे प्रयोग
पंजाब में मुट्ठी भर संस्थान राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) जैसे पारंपरिक करियर विकल्पों में रुचि को फिर जगाने को लेकर प्रतिभा पलायन रोकने की कोशिश कर रहे हैं.
तरनतारन जिले के खडूर साहिब गांव में, एक धर्मार्थ ट्रस्ट निशान-ए-सिखी यूपीएससी, एनडीए और एनईईटी और जेईई जैसे अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए कोचिंग कक्षाएं संचालित कर रहा है, जिसमें फिरोजपुर, होशियारपुर, गुरदासपुर और कपूरथला के लगभग 40 अंडरग्रेजुएट छात्र हैं.
गुरदासपुर के भाम गांव की गुरनूर कौर कहती हैं, ‘पंजाब में हर कोई विदेश नहीं जाना चाहता. अगर हम यहां रहकर मेहनत से पढ़ाई करें तो हम उतना ही कमा सकते हैं, जितना हमारे दोस्त विदेशों में कमाते हैं.’
इस वर्ष से, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने सरकारी नौकरशाही तंत्र के लिए होड़ कर रहे छात्रों के लिए अपना खुद का ड्राइव शुरू किया है.
इसने निश्चय अकादमी खोली है और चंडीगढ़ में एक निजी कोचिंग संस्थान – राज मल्होत्रा के IAS स्टडी ग्रुप – के साथ एक अनुबंध साइन किए हैं – जो इस वर्ष 25 अमृतधारी सिख छात्रों के भोजन, आवास और कोचिंग के खर्चों को वहन करेगा.
एसजीपीसी के सहायक सचिव, शाहबाज़ सिंह कहते हैं, ‘सिख समुदाय ने महसूस किया कि यूपीएससी में उनका प्रतिनिधित्व कम हो रहा था और उन्होंने हमसे सरकार में अधिक सिखों को शामिल करने के लिए पहल करने का आग्रह किया. 1970 और 1980 के दशक में, कई सिख नौकरशाह थे लेकिन ये संख्या तब से गिर गई है.’
लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) इस बात से सहमत हैं कि दशकों से राज्य में नौकरशाही, रक्षा और चिकित्सा जैसे शिक्षा-संचालित व्यवसायों के लिए आकर्षण फीका पड़ गया है.
वे कहते हैं, ‘1970 के दशक में, फतेहगढ़ साहिब में मेरे गांव महादियान ने दो डॉक्टर और पांच से छह सेना अधिकारी पैदा किए. 1975 के बाद, इसने किसी को भी पैदा नहीं किया है जिसे शिक्षा के आधार पर नौकरी मिली हो.’
पनाग कहते हैं, इसी तरह, पंजाब के कुछ पुरुष और महिलाएं सेना की नौकरी के लिए क्वालीफाई कर पाते हैं. अग्निवीर की नई भर्ती नीति एक बड़ा झटका थी और जिसने युवाओं को सेना को करियर विकल्प के रूप में चुनने से हतोत्साहित किया है और अल्प पोषण भी पंजाबी युवाओं को अयोग्य बनाता है. हालांकि वह इसके इतर इस योजना के समर्थक हैं.
यूपीएससी पहल की घोषणा के बाद, एसजीपीसी को 300 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए. इसी तरह, निशान-ए-सिखी की कक्षाओं में, यूपीएससी कोचिंग के लिए प्रवेश परीक्षा के लिए 70 से अधिक छात्र आए.
चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा 1998 में स्थापित एक आईएएस कोचिंग संस्थान जो कि उसी पूल में काम कर रहा है, जिसका दावा है कि अच्छे मार्गदर्शन के साथ छात्रों को इन प्रोफेशन्स के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
संस्थान की निदेशक सोनल चावला कहती हैं, ‘हमें पंजाब के ग्रामीण इलाकों से कई सिख छात्र मिलते हैं, और सेंटर में आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि हुई है.’
लेकिन यूपीएससी एक लॉटरी है. नाकाम होने पर छात्र प्लान बी के साथ आने को लेकर संघर्ष करते हैं.
2016 में, गुरदासपुर जिले के एक सीमावर्ती शहर बडाला के रंकीरत सिंह बिजनेस मैनेजमेंट कोर्स के लिए कनाडा चले गए. उनके क्षेत्र के कई युवा पढ़ने के लिए विदेश जा रहे थे, जिससे उनके माता-पिता को लगा कि यह उनके लिए सबसे अच्छा फैसला होगा.
लेकिन 2 साल की भागदौड़ के बाद रंकीरत वापस पंजाब आ गए.
वो कहते हैं, ‘विदेश में जीवन बहुत कठिन है. आप वहां वैसे ही नहीं बैठ सकते जैसे युवा यहां बैठे रहते हैं. आपको अपनी पढ़ाई और काम के बीच लगातार प्रबंधन करना पड़ता है. यदि आप काम नहीं कर सकते, तो आप वहां नहीं रह सकते.’
पिछले 3 साल से वह यूपीएससी क्रैक करने की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें पंजाब में अपने लिए कोई भविष्य नजर नहीं आता.
‘मैं कनाडा वापस जाऊंगा और वहां ट्रकिंग का काम करूंगा. यह पंजाब में किसी भी काम से बेहतर पैसा देने वाली नौकरी है.’
(संपादन- इन्द्रजीत)
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