चंडीगढ़, सात अगस्त (भाषा) पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को पंजाब की भूमि समेकन नीति (लैंड पूलिंग पॉलिसी) के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया।
यह निर्देश गुरदीप सिंह गिल की ओर से दायर एक याचिका पर आया, जिसमें पंजाब सरकार की भूमि समेकन नीति 2025 को चुनौती दी गई थी।
सुनवाई के बाद, याचिकाकर्ता के वकील गुरजीत सिंह ने कहा कि अदालत ने इस नीति पर अंतरिम रोक लगा दी है।
उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में यह भी बताया कि जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।
अधिवक्ता ने कहा कि भूमि समेकन नीति के तहत न तो कोई सामाजिक प्रभाव आकलन किया गया और न ही पर्यावरण संबंधी कोई आकलन किया गया।
भूमि समेकन नीति के तहत छोटे-छोटे जमीन के टुकड़ों को मिलाकर एक बड़ी भूमि बनाई जाती है, ताकि उस जमीन का बेहतर और व्यवस्थित विकास किया जा सके। इसमें जमीन के मालिक अपनी जमीन सरकार या प्राधिकरण को कुछ अवधि के लिए देते हैं, और बदले में उन्हें विकसित हुई जमीन का एक हिस्सा मिलता है।
लुधियाना के रहने वाले याचिकाकर्ता गिल ने राज्य सरकार की 24 जून की अधिसूचना और भूमि समेकन नीति 2025 को रद्द करने के निर्देश देने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि यह (उनके) अधिकार क्षेत्र से बाहर है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला एक ‘छद्म विधान’ है।
‘छद्म विधान’ से तात्पर्य ऐसे कानून से है, जो दिखावे में सही लगे, लेकिन असल में संविधान के नियमों का उल्लंघन करता हो या अपनी सीमा से बाहर जाकर बनाया गया हो। यह कानून के वास्तविक उद्देश्य को छिपाकर संवैधानिक सीमाओं को दरकिनार करने का एक तरीका है।
अदालत ने छह अगस्त को पंजाब सरकार से पूछा था कि क्या इस समेकन नीति में भूमिहीन मजदूरों के जीवनयापन के लिए पुनर्वास का कोई प्रावधान है।
राज्य को यह भी निर्देश दिया गया था कि वह अदालत को बताए कि क्या भूमि समेकन नीति को अधिसूचित करने से पहले सामाजिक प्रभाव का आकलन किया गया था।
भाषा रंजन रंजन सुरेश
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