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Monday, 23 December, 2024
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पंजाब और हरियाणा एचसी ने जाति, नस्ल से जुड़े भेदभाव खत्म करने को कहा, पूछा- भगवान की त्वचा का रंग क्या है

जज ने पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिए वर्कशॉप करने और सभी अधिकारियों को दस्तावेजों में नस्लीय कलंक वाले शब्दों के इस्तेमाल रोकने को कहा

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नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बुधवार को त्वचा आधारित और जतीय-नस्ल के आधार पर भेदभाव रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया और सवाल किया कि, ‘भगवान की त्वचा का रंग क्या है’.

न्यायमूर्ति राजीव नारायण रैना ने सामाजिक और जैविक पूर्वाग्रह के खिलाफ जाने वाले रंग को लेकर नजरिए को अर्थपूर्ण बनाने को कहा जो कि एक वर्ग को हीन या श्रेष्ठ दिखाता है.

अदालत ने कहा कि आखिरकार, मन के पास कोई त्वचा नहीं होती. क्या वह पूछ सकते हैं कि भगवान की त्वचा किस रंग की है, और यदि कोई भगवान हो, अगर कोई जानता हो. आइए, हम जाति, पंथ, त्वचा, राष्ट्र और नस्ल के आधार पर अनुचित सामाजिक या नस्लीय भेदभाव पर ऐसी किसी विचार प्रक्रिया का संपूर्ण नाश करें.

न्यायमूर्ति रैना ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के प्रावधानों को सिद्धांत रूप में, भारत में सभी विदेशियों के खिलाफ अपमानजनक शब्दों के उपयोग से बचाने के लिए इस अधिनियम के विस्तार की वकालत की.

अदालत ने कहा, ‘अधिनियम में वर्तमान में इस शब्द के लिए हैं- जान बूझकर अपमान या अपमानित करना.’

यह आदेश कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 12 जून को पारित किया था, जब उसने पंजाब पुलिस को एक अफ्रीकी नागरिक के लिए आपत्तिजनक शब्द ‘नीग्रो’ के इस्तेमाल को लेकर फटकार लगाई और पुलिस को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि इस ‘अनुचित शब्द’ का उपयोग कभी किसी भी दस्तावेज़ में फिर से न किया जाए.

अदालत को बाद में बताया गया कि यह शब्द वास्तव में, एक गवाह द्वारा पूछताछ के दौरान इस्तेमाल किया गया था, पुलिस अधिकारी द्वारा नहीं. हालांकि, जस्टिस रैना ने कहा कि गवाहों को भी इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल के प्रति सावधान किया जाना चाहिए.

न्यायाधीश ने कार्यशालाओं के माध्यम से पुलिसकर्मियों की काउंसलिंग कर संवेदनशील बनाने के लिए वर्कशॉप करने को कहा, जो कि व्यक्तिगत टिप्पणियों और अपमान के बिना भारत में अफ्रीकियों के मामलों को निपटारे में वांछित दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है.

पुलिस को संवेदनशील बनाया जाए, सार्कुलर जारी

अदालत को बुधवार को सूचित किया गया कि ‘सभी आधिकारिक दस्तावेजों में विभिन्न राष्ट्रों के व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त टर्म के उपयोग करते हुए.’ उसके 12 जून के आदेश के बाद, पुलिस महानिदेशक, पंजाब ने 16 जून को एक परिपत्र जारी किया है.

इस परिपत्र में सभी अधिकारियों को यह कहते हुए नस्लीय टिप्पणियों का उपयोग बंद करने का निर्देश यह कहते हुए दिया है कि ‘निग्रो’ या ‘नीग्रो’ या ऐसे किसी भी शब्द, जिसमें ‘कला’ या कोई भी ‘जातिवादी’ शब्द शामिल हो, जो जातिवादी अर्थ रखता हो, का उपयोग किसी भी आधिकारिक दस्तावेज, धारा 173 Cr.PC के तहत एफआईआर, पुलिस रिपोर्ट सहित कई आधिकारिक रिकॉर्ड या पुलिस द्वारा तैयार कोई जब्ती मेमो/पंचनामा में नहीं किया जाएगा.’

इसने पंजाब पुलिस के सभी कार्यालयों के साथ-साथ पंजाब के सभी पुलिस आयुक्तों और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को ‘निग्रो ‘या’ नीग्रो’ शब्द का आधिकारि रिकार्ड में उपयोग करने से परहेज करने के लिए सभी एसएचओ और जांच अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए निर्देश दिया है. ‘इसे पुलिस प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बनाने के लिए भी कहा गया.’

न्यायमूर्ति रैना ने सरकार द्वारा उठाए गए ‘त्वरित कदम’ की सराहना की और भरोसा जताया कि न कहे जाने लायक सर्वनामों, शब्दों के इस्तेमाल के बारे में, जो सभ्य दुनिया में सार्वभौमिक रूप से अपनी प्रकृति, टोन और संस्कृति के लिहाज से अपमानजनक हैं को लेकर यह पुलिस सेट अप के नजरिए में सकारात्मक बदलाव लाएगा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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