scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेश'प्राउड ऑफ यू माई लॉर्ड': HC जजों को लोगों के बीच मशहूर करते कोर्ट कार्यवाही के वीडियो

‘प्राउड ऑफ यू माई लॉर्ड’: HC जजों को लोगों के बीच मशहूर करते कोर्ट कार्यवाही के वीडियो

उच्च न्यायालय की कार्यवाही के वीडियो और क्लिप का यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर एक बड़ा दर्शक वर्ग है. और इन शो में दिल जितने वाले सितारे वकील नहीं बल्कि जज हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: किसी भी फिल्म में जहां कानूनी लड़ाई का ड्रामा चल रहा होगा, आमतौर पर वकील स्क्रीन पर पूरा समय हथिया लेते हैं. उनकी शानदार डायलॉग डिलिवरी पर लोग खूब तालियां पीटते हैं और उनके फैन हो जाते हैं. लेकिन जब से अदालतों ने अपनी कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम करना शुरू किया है, यह माहौल कुछ बदला-बदला सा है. अब जज शो के सितारे बन गए हैं. उनकी तीखी टिप्पणी से लेकर उनकी डायलॉग डिलीवरी और हास्य-व्यंग्य तक, सब दर्शकों को खूब लुभा रहा है. अब चाहे एक घंटे का YouTube वीडियो हो या इंस्टा पर स्नैक-आकार का स्निपेट, सबमें वाहवाही पाने वाले जज ही हैं.

जजों के फैसले या फिर उनकी टिप्पणियों में ऐसा क्या है कि लोग उन्हें खासा पसंद कर रहे हैं? शायद उनकी दार्शनिक अंदाज में जीवन जीने की दी गई सलाह या फिर कड़ी फटकार. या फिर कहे कि दोनों के बीच टॉस-अप चलता रहता है.

‘प्यार खो गया है. भावनाएं मर गई हैं. उनके बीच प्यार कहां है? लगाव कहां है?’ एक तलाक की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जज रोहित आर्य मामले को कुछ इस तरह से देखते हैं. वह एक रोती हुई पत्नी को ढांढस बढ़ाते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ने और तलाक को कलंक के रूप में नहीं देखने की सलाह देते हैं.

हाल ही में YouTube पर कोर्टरूम के इस वीडियो को पोस्ट किया गया था. अलग हुए जोड़े को एक ‘अभिभावक’ की तरह सलाह देने को आर्य की यूएसपी बनाते हुए पोस्ट किया गया था.

अब एक दूसरे वीडियो पर नजर घुमाते हैं. पटना उच्च न्यायालय के जस्टिस पी.बी. बजंतरी एक आईएएस अधिकारी को कोट न पहनने पर फटकार लगा रहे हैं- ‘क्या आपने किसी सिनेमा हॉल में आए है?’

22 मई को यूट्यूब पर ‘आईएएस वॉर्न्ड फॉर हिज ड्रेस बाय पटना हाई कोर्ट जज’ शीर्षक वाले इस वीडियो को 10 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

एक अन्य वीडियो में गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार बच्चे की कस्टडी के मामले की सुनवाई के दौरान कई तरह की भावनाओं को सामने लाते हैं. वह पिता की तरफ से पैरवी कर रहे वकील से कहते हैं ‘आप बच्चों की कस्टडी चाहते हैं? पहले पैसे दो… यह सब रोकड़ा से ही हो पाएगा न.’ वकील सकपकाते हुए थोड़ा सा मुस्कुराने लगता है. अपनी इस तीखी टिप्पणी के बाद फिर जज अपनी बातचीत में थोड़ा नर्म होते हुए दिखते हैं.

कुमार कहते हैं, ‘हर बच्चे का अपना बचपन होता है… आप दोनों अपने बच्चों की मौजूदगी में लड़ाई न करें, इससे उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.’ वीडियो पर आए दर्जनों कमेंट्स में से ज्यादातर तारीफों से भरे हैं. एक ने लिखा, ‘हमें पूरी दुनिया के हर कोने में इसी तरह के जजों की ज़रूरत है.’

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उस समय पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं, पिछले महीने तीन कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम किया गया. 27 सितंबर को शाम 5 बजे तक, 7 लाख से ज्यादा दर्शकों ने सुनवाई देखने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के यूट्यूब वेबकास्ट पर लॉग इन किया था.

इन वीडियोज ने देश के उच्च न्यायालयों की कार्यवाही को पसंद करने वाले दर्शकों की भूख को बढ़ा दिया है.

कम से कम आठ उच्च न्यायालयों के पास लाइवस्ट्रीम कार्यवाही के लिए अपने स्वयं के YouTube चैनल हैं. गुजरात उच्च न्यायालय ने दो साल पहले अक्टूबर 2020 में इसकी पहल की थी.

तब से यह साफ हो गया है कि लोग अदालती कार्यवाही को देखने में रुचि रखते हैं. खासकर तब, जब इनमें जनहित के मामलों को शामिल किया जाए. उदाहरण के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय की विवादास्पद हिजाब प्रतिबंध मामले की सुनवाई उसके YouTube चैनल पर सबसे अधिक बार देखी गई. उनमें से दो को 7 लाख से ज्यादा बार देखा गया है (यहां और यहां देखें) और दूसरे को 4 लाख से ज्यादा व्यूअर मिले हैं.

कुल मिलाकर उच्च न्यायालय के लाइवस्ट्रीम और रिकॉर्डिंग ने न सिर्फ न्यायिक प्रणाली को और अधिक पारदर्शी बनाने में योगदान दिया है, बल्कि YouTube, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफार्मों पर भी इसे लोकप्रिय बना दिया है. उन्होंने कुछ जजों को सही मायने में सेलिब्रटीज बना दिया है.

‘असली नायक’

अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण सफेद और काले बालों वाले एमपी उच्च न्यायालय के रोहित आर्य ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सबसे लोकप्रिय न्यायाधीशों में से एक हैं. उनकी कुछ वीडियो को तो 10 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है. उनमें से एक वीडियो में वह एक वकील को इस आधार पर जमानत की मांग करने के लिए चुनौती देते हुए नजर आते हैं कि उनकी पत्नी जल्द ही एक बच्चे को जन्म देने वाली है.

आर्य वीडियो में पूछते हैं, ‘कितनी बार बीवी की डिलीवरी करवाओगे?’ क्योंकि जमानत को जायज ठहराने के लिए उनके सामने पहले भी यही कारण पेश किया गया था.

10 लाख से ज्यादा बार देखे गए एक दूसरे वीडियो में वह काफी गुस्से में हैं और एक पुलिस वाले की खिंचाई कर रहे हैं. जिरह करने पर वह उसे डांटते हुए कहते हैं, ‘चुप रहो!’

कई अदालती वीडियो में की गई टिप्पणियों में दर्शक जजों की समझ और उन्हें मिले अधिकारों से काफी प्रभावित रहते हैं. कुछ को वकीलों और गवाहों के साथ उनके बातचीत करने का अंदाज पसंद आता है तो कुछ सिस्टम के सही ढंग से काम करने की ‘उम्मीद’ से प्रभावित हो जाते हैं.

सिस्टम से ‘उम्मीद’ के भाव को इस एक क्लिप से साफ तौर पर समझा जा सकता है, जिसमें आर्य एक स्टेशन हाउस अधिकारी को 15 दिनों के भीतर एक लापता बच्चे को खोजने के लिए आदेश देते हैं और कहते हैं कि अन्यथा ये आपकी नौकरी को खतरे में डाल सकती है. एक व्युअर ने लिखा, ‘’आप गरीबों की याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं और समय पर उन्हें न्याय दिला रहे हैं. आप जैसे लोग हमें सिस्टम में विश्वास दिलाते हैं.’

एक फेसबुक रील पर आर्य बलात्कार और हत्या के मामले में जांच के संबंध में पुलिस अधिकारियों को को फटकार लगाते हुए दिख रहे हैं. (‘अपनी हद में रहो!’). इस विडियो पर एक कमेंट मिला, ‘ आप ही असली हीरो हैं. हमें आप पर गर्व है, माईलोर्ड.’

पटना हाईकोर्ट के 5 जून के वीडियो में जस्टिस आशुतोष कुमार जमानत अर्जी में एक वकील को उसकी ‘आधी-अधूरी तैयारी’ के लिए फटकार लगाते हैं, लेकिन फिर भी उसे मंजूर कर लेते हैं.

वह कहते हैं, ‘फिर भी अभी जमानत दे रहा हूं … क्योंकि जज जानते हैं कि वकील (एसआईसी) की नाकामी की वजह से आरोपी को परेशान नहीं किया जाना चाहिए.’

गुजरात उच्च न्यायालय के पहले अपलोड वीडियो को 12 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है और उसे 1,000 से ज्यादा कमेंट मिले हैं. इनमें से अधिकतर कमेंट आम जनता की तरफ से किए गए हैं. कुछ अदालती शिल्प की सुंदरता और उच्च न्यायालय की पहल की सराहना करते हैं. तो वहीं कुछ दर्शक बताते हैं कि उन्होंने वास्तविक अदालती कार्यवाही को पहली बार देखा हैं और फिर वे फिल्मों में अदालती कार्यवाही के साथ इसकी तुलना करते हैं.

उदाहरण के लिए एक दर्शक ने कमेंट किया, ‘मैं कभी नहीं जानता था कि न्यायाधीश भी वकीलों के साथ बहस करते हैं. फिल्मों ने मुझे गलत जानकारी दी है.’

एक अन्य कमेंट में लिखा था, ‘इसे देखकर मुझे पता चला कि मैंने कुछ फिल्मों में कोर्ट के जो दृश्य देखे हैं, वे वास्तविकता से परे हैं. जज कैसे बहुत तेजी से और जल्दी से याचिकाओं को पढ़ रहे हैं, यह वास्तव में बहुत अच्छा है.’


यह भी पढ़ें: दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकतें अस्थिरता बढ़ा रही हैं, भारत संतुलन बनाए रखने के लिए क्या करे


‘सिस्टम में पारदर्शिता भ्रष्टाचार को रोकती है’

सुप्रीम कोर्ट ने चार साल पहले 2018 में स्वप्निल त्रिपाठी के फैसले में अदालती कार्यवाही की लाइवस्ट्रीमिंग को अधिकृत किया था.

इस फैसले में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने प्रसिद्ध टिप्पणी की थी कि ‘’सिस्टम में पारदर्शिता भ्रष्टाचार को रोकती है’ यानी जब लोगों को पता होता है कि उन पर नजर रखी जा रही है तो वह ठीक ठंग से अपना काम करते हैं. वह अब सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति के प्रमुख हैं.

हालांकि इस तरह की पहली पहल अक्टूबर 2020 में हुई, जब गुजरात उच्च न्यायालय अपनी सुनवाई को लाइवस्ट्रीम करने वाला देश का पहला बन कोर्ट बना था. इसके YouTube चैनल वीडियो पर 1.5 करोड़ से से ज्यादा व्यू हैं और चैनल के 1.11 लाख सब्सक्राइबर हैं.

पिछले साल जून में जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति ने सभी हितधारकों से सुझाव और इनपुट आमंत्रित करते हुए, अदालती कार्यवाही की लाइवस्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के लिए मसौदा मॉडल नियम जारी किए थे.

26 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार अपनी कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम किया. भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण की औपचारिक पीठ की कार्यवाही का उनके कार्यालय में अंतिम दिन लाइवस्ट्रीम किया गया था.

समर्पित यूट्यूब चैनल

उच्च न्यायालय की कार्यवाही की लाइवस्ट्रीमिंग ने न्यायाधीशों और वकीलों के बीच हुई बहस की क्लिप को YouTube पर डालकर उन्हें चैनलों के समानांतर फलने फूलने का मौका दिया है.

ऐसा ही एक चैनल लॉ चक्र ने पांच महीने पहले ही वीडियो अपलोड करना शुरू किया था, लेकिन पहले से ही इसके 74.8 हजार सब्सक्राइबर हैं. चैनल के पास 140 से ज्यादा वीडियो हैं और उनमें से लगभग सभी अदालती सुनवाई या न्यायाधीशों के भाषणों के अंश हैं.

एक अन्य कोर्ट रूम चैनल इस साल 30 जून को लॉन्च किया गया था. अदालती सुनवाई के 170 से ज्यादा वीडियो के साथ यह पहले ही बार में 126 हजार सबसक्राइबर बनाने में कामयाब रहा है. चैनल के विवरण में कहा गया है कि वह लोगों के लिए खुद को पारदर्शी बनाने के अदालतों के प्रयासों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है.

इसी तरह का एक और कोर्ट रूम लाइव चैनल है. यह 30 जून को ‘कानूनी इंटर्न और आम भारतीय जनता को वास्तविक कोर्ट रूम लाइव वीडियो के जरिए कानूनी कार्यवाही के बारे में शिक्षित करने’ के इरादे से शुरू हुआ है. सुनवाई के क्लिप्स ने इसे इंस्टाग्राम पर कई मीम पेजों और कानूनी शिक्षा देने पर फोकस करने वाले अन्य YouTube चैनलों पर जगह दी है.

‘जजों पर पहरा नहीं बिठा सकते’

सभी लीगल प्रोफेशनल्स कोर्ट रूम लाइवस्ट्रीमिंग के फायदों पर सहमती नहीं जताते हैं. लेकिन कुछ इसके प्रबल समर्थक हैं. जबकि कुछ का मानना है कि इसका दूसरा पहलू भी है.

वरिष्ठ अधिवक्ता के.टी.एस. तुलसी के लिए लाइवस्ट्रीमिंग का मतलब ‘न्याय को लोगों के करीब लाना’ और ‘सच्चाई’ को पर्दे पर रखने जैसा है.

उन्होंने कहा, ‘चाहे वह अच्छा हो या बुरा, सच किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता है. मुझे लगता है कि यह बहुत पहले किया जाना चाहिए था’

तुलसी लाइवस्ट्रीमिंग को बुरा नहीं मानते हैं. उन्होंने कहा, वास्तव में जजों की ओर से ‘कुछ सनकी चीजों से बचा जा सकेगा’

वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा को इसे लेकर कुछ आपत्तियां हैं. हालांकि उनका यह भी मानना है कि लाइवस्ट्रीमिंग से ‘भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने और जवाबदेही को मजबूत करने’ में मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि अदालती कार्यवाही की लाइवस्ट्रीमिंग जो प्रकृति में संवेदनशील नहीं है, भारत में बहुत सराही जाएंगी. लेकिन हमारे मीडिया को भी मामलों की रिपोर्टिंग करते समय अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए और संयम बरतना चाहिए.’

लूथरा के अनुसार, लाइवस्ट्रीमिंग का संभावित रूप से ‘न्याय प्रशासन के समग्र वितरण पर’ प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

उन्होंने समझाया, ‘उदाहरण के लिए बार और बेंच के बीच कभी-कभी हल्का-फुल्का वाद-विवाद हो सकता है. जरूरी नहीं है कि उसे रिकॉर्ड किया जाए और उसे एक मामला बनाते हुए लोगों के सामने पेश किया जाए. या फिर गलत तरीके से रिपोर्ट किया जाए. हाल ही में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की टिप्पणी को ले. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा किसी मामले की सुनवाई के दौरान कही गई कोई बात को आप आदेश नहीं मान सकते हैं. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है.

उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ‘हमारी न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही है. इसलिए बार और बेंच पर कोई बाहरी दबाव नहीं होना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: रियल एस्टेट, IT, गिग जॉब्स, मनरेगा: भारत में बढ़ती बेरोजगारी का आखिर उपाय क्या है


 

share & View comments