नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक रिट पेटिशन द्वारा भारत में एक ई-याचिका प्रणाली लागू करने की मांग की गई है, जहां नागरिक सार्वजनिक हित के मामलों पर सीधे संसद में याचिका दायर कर सकते हों.
दिसंबर 2022 में दायर इस याचिका में कहा गया है, “उक्त ढांचा संवैधानिक संवाद के एक युग की शुरुआत करेगा, जिसके द्वारा नागरिक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मामलों पर बहस और चर्चा शुरू कर सकते हैं.”
इसमें प्रस्ताव दिया गया है कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए कि बिना किसी अनुचित बाधाओं का सामना किए संसद में एक नागरिक की आवाज़ सुनी जाए, जिससे सार्वजनिक हित के विषयों पर चर्चा हो सके.
आईआईटी रुड़की और केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ग्रेजुएट करण गर्ग द्वारा दायर रिट में कहा गया है कि जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बात आती है तो वह खुद को शक्तिहीन और आवाज़हीन महसूस करते हैं.
प्रस्तावित सूक्ष्म ढांचे के माध्यम से एक नागरिक याचिका तैयार कर सकता है, लोक समर्थन प्राप्त कर सकता है और न्यूनतम सीमा पार करने पर याचिका को संसद में बहस के लिए शामिल किया जा सकेगा.
यह रिट ऐसे समय में आई है जब संसद खुद को संविधान के निर्माता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कथित तौर पर राज्यसभा में कहा, “मैं सदन को विश्वास दिलाता हूं कि हमारे कार्यों की जांच करने के लिए संसद से परे कोई अधिकार नहीं है. मैं सदन को यह भी विश्वास दिलाता हूं कि उस स्तर तक एक संवैधानिक नुस्खा है. मैंने 7 दिसंबर 2022 को ऐसा संकेत दिया था, मैं दोहराता हूं, हम संविधान के अंतिम शिल्पकार हैं. संविधान के तहत ऐसा कोई अधिकार नहीं है जो उन मुद्दों को देख भी सके जो हमारे लिए हैं.”
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प्रस्तावित मॉडल
गर्ग ने कहा कि सरकार को एक कमेटी के तहत एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाना चाहिए, जब कोई नागरिक सार्वजनिक हित की चिंता कर रहा हो तो मंच का उपयोग नागरिक याचिका बनाने के लिए किया जा सकता है.
संसद के समक्ष इसे प्रस्तुत करने पर विचार करने के लिए नागरिकों की न्यूनतम संख्या से समर्थन और स्वीकृति प्राप्त करनी होगी. याचिका में कहा गया है, “जैसा कि याचिका समिति द्वारा उचित समझा जाएगा याचिका पर विचार करने के लिए अनुमोदित हस्ताक्षरों की न्यूनतम संख्या की आवश्यकता होगी.”
एक बार जब याचिका न्यूनतम हस्ताक्षर की इस आवश्यकता को पूरा कर लेगी, तो इसे एक सार्वजनिक याचिका में परिवर्तित कर दिया जाएगा और सार्वजनिक विचार के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. इसके बाद इसे संबंधित मंत्रालय या सरकारी विभाग से जवाब देने के लिए जनता से उच्च समर्थन प्राप्त करना होगा.
लोकतांत्रिक भागीदारी की कोई गुंजाइश नहीं है
यह गर्ग का मामला है कि एक बार नागरिकों ने अपना वोट डाल दिया, तो किसी भी लोकतांत्रिक भागीदारी की कोई गुंजाइश नहीं है. सांसदों के साथ नागरिकों की भागीदारी के लिए औपचारिक तंत्र का ‘पूर्ण अभाव’ है, जो निर्वाचित प्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच खाई बढ़ाता है.
याचिका में कहा गया है, “भारतीय लोकतंत्र में पूरी तरह से भाग लेने के लिए नागरिकों को उनके निहित अधिकारों से दूर करना गंभीर चिंता का विषय है और यह एक मुद्दा है, जिसे तुरंत देखने की ज़रूरत है.”
गर्ग ने याचिका में कहा कि मौजूदा व्यवस्था नागरिकों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के मामलों पर पर्याप्त रूप से आवाज़ उठाने की अनुमति नहीं देती है.
उन्होंने कहा कि 130 करोड़ से अधिक भारतीयों के लिए केवल 543 विधायक हैं, जिसका अर्थ है कि लगभग 24 लाख नागरिकों का प्रतिनिधित्व एक विधायक द्वारा किया जाता है.
याचिकाकर्ता ने कहा, “यह प्रस्तुत किया गया है कि यह सर्वोपरि है कि प्रतिवादी यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाता है कि नागरिक कानून निर्माताओं के साथ जुड़ सकते हैं और नागरिकों के अधिकारों और भविष्य से संबंधित मुद्दों पर संसद में चर्चा शुरू करने के वास्ते कदम उठाने के लिए ये सशक्त हैं.”
इस तरह के प्रस्ताव के लागू होने से जुड़ाव बढ़ेगा और न्यायपालिका पर बोझ भी कम होगा. यह संविधान के भीतर पाई जाने वाली जांच और संतुलन की प्रणाली को भी आगे बढ़ाएगा.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के अपने स्वयं के निर्माण, एपिस्ट्रीरी क्षेत्राधिकार का भी उल्लेख किया गया है, जहां शीर्ष अदालत उसे संबोधित पत्रों को याचिकाओं में परिवर्तित करने की अनुमति देती है.
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यूके, ऑस्ट्रेलिया में पहले से मौजूद
गर्ग ने कहा कि सीधे संसद में याचिका दायर करने वाले नागरिकों की प्रणाली नई नहीं है और यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया में यह कई वर्षों से काम कर रही है.
यूनाइटेड किंगडम में याचिका वेबसाइट जनता के सदस्यों को यूके हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा विचार के लिए याचिकाएं बनाने और समर्थन करने की अनुमति देती है. यह ब्रिटिश नागरिकों और ब्रिटेन के निवासियों के लिए खुला है. इसके तहत नागरिक को एक याचिका तैयार करनी होगी और इसका समर्थन कम से कम पांच सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए.
याचिका समिति तब न्यूनतम आवश्यकताओं के लिए ऐसी सभी याचिकाओं की समीक्षा करती है और जनता के लिए उपलब्ध होने के बाद, यह सरकार से जवाब या संसद में हस्ताक्षर की संख्या के आधार पर चर्चा करती है.
उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रणाली के लिए बड़े कानूनों को लागू करने की आवश्यकता नहीं होगी और भारत में इस तरह की प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए सुविचारित नियम पर्याप्त होंगे.
रिट में कहा गया है, “भारत में समान प्रणाली को लागू करने में कोई कठिनाई नहीं है.”
क्या दलील दी
गर्ग के बेटे और भाई सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित हैं, यह ऐसे डिसोर्डर का ग्रुप है जो मांसपेशियों की मुद्रा को प्रभावित करता है और ग्रोथ में रुकावट पैदा करता है.
याचिका में कहा गया है कि हालांकि, जब गर्ग विकलांग लोगों के लिए जीवन को बेहतर बनाने के सुझावों के साथ अपने सांसद के पास पहुंचे, तो वहां इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.उन्होंने अपने सुझावों को उठाने के लिए सीधे संसद से संपर्क करने में सक्षम होने की आवश्यकता महसूस की ताकि विकलांग लोग ‘मुख्यधारा का हिस्सा महसूस करें.
मार्च 2022 में गर्ग ने प्रधानमंत्री कार्यालय और लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों सहित संबंधित अधिकारियों को प्रणाली के लिए पत्र के माध्यम से प्रस्ताव प्रस्तुत किया था.
पत्र में कहा गया है, “मेरी परवरिश और आईआईटी में मेरे वर्षों ने मुझे अपने देश और अपने झंडे को उच्च सम्मान देना सिखाया है, जिससे मुझे एक जिम्मेदार नागरिक बनने की मेरी जिम्मेदारी और जिस समाज में मैं रहता हूं, उसके प्रति मेरे कर्तव्य के प्रति जागरूक किया.”
उन्होंने कहा, “वर्तमान में भारत में काम करते हुए मैं स्पष्ट रूप से पहचानने में सक्षम हूं कि मैं, एक सामान्य नागरिक के रूप में अपने सिस्टम में खुद को कमजोर क्यों महसूस करता हूं और हमारे देश के लोकतांत्रिक संस्थानों में मेरा विश्वास डगमगाता क्यों है.”
गर्ग के पत्र को बाद में पीएमओ ने संसदीय मामलों के मंत्रालय के सचिव को विचार के लिए भेज दिया था. हालांकि, केंद्र सरकार के केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) पर फॉलोअप जमा करने के बावजूद उन्हें सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिला.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन गर्ग को संसदीय सचिव को एक प्रति उपलब्ध कराने को कहा है.
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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