scorecardresearch
Thursday, 12 December, 2024
होमदेशभारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर से व्यापार बढ़ाने की तैयारी, पश्चिमी बंदरगाहों को बेहतर बना रही सरकार

भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर से व्यापार बढ़ाने की तैयारी, पश्चिमी बंदरगाहों को बेहतर बना रही सरकार

ऐसा पता चला है कि जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह, महाराष्ट्र में आगामी वधावन बंदरगाह और गुजरात में दीनदयाल और मुंद्रा बंदरगाहों को गलियारे से जोड़ा जा सकता है.

Text Size:

नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक प्रस्तावित भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईईसी) जो अरब प्रायद्वीप के माध्यम से भारत और यूरोप को रेल और समुद्री संपर्क के माध्यम से जोड़ेगा, के अभी भी वैचारिक स्तर तक होने की संभावना है, लेकिन भारत पहले से ही इसे पूरा करने के लिए कमर कस रहा है.

शिपिंग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत पहले से ही EXIM (निर्यात-आयात) कार्गो का समर्थन करने के लिए अपने पश्चिमी बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है, और गलियारा शुरू होने के बाद यह काम में आएगा.

IMEEC की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 सितंबर को दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के मौके पर की थी.

नाम न छापने की शर्त पर शिपिंग अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि पश्चिमी तट पर चार बंदरगाह – जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (नवी मुंबई), दीनदयाल पोर्ट (कांडला, गुजरात), मुंद्रा बंदरगाह (गुजरात) और आगामी वधावन बंदरगाह (दहानू, महाराष्ट्र के पास) – हैं, जिन्हें IMEEC कॉरिडोर से जोड़ा जा सकता है.

नाम न छापने की शर्त पर शिपिंग अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि पश्चिमी तट पर चार बंदरगाह हैं, जिन्हें IMEEC कॉरिडोर से जोड़ा जा सकता है. ये बंदरगाह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (नवी मुंबई), दीनदयाल पोर्ट (कांडला, गुजरात), मुंद्रा बंदरगाह (गुजरात) और आगामी वधावन बंदरगाह (दाहा के पास “कांडला बंदरगाह पर, इसकी मौजूदा क्षमता को बढ़ाने के लिए नए टर्मिनल जोड़े जा रहे हैं, जबकि ग्रीनफील्ड वधावन बंदरगाह, जिसे भारत का सबसे बड़ा माना जाता है, विकसित किया जा रहा है). अधिकारी ने कहा कि एक बार आईएमईसी तैयार हो जाएगा तो हमारे पश्चिमी पोर्ट पर एक्ज़िम कार्गो को हैंडल करने की भारत के पास पर्याप्त से अधिक क्षमता होगी.”

अधिकारी ने कहा,“कांडला बंदरगाह पर, इसकी मौजूदा क्षमता को बढ़ाने के लिए नए टर्मिनल जोड़े जा रहे हैं, जबकि ग्रीनफील्ड वधावन बंदरगाह, जिसे भारत का सबसे बड़ा माना जाता है, विकसित किया जा रहा है. IMEC तैयार होने के बाद भारत के पास हमारे पश्चिमी बंदरगाहों पर EXIM कार्गो को संभालने की पर्याप्त क्षमता होगी,”

शिपिंग मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि नए टर्मिनल जुड़ने के बाद कांडला बंदरगाह की वार्षिक क्षमता 2.19 मिलियन टीईयू (बीस फुट समतुल्य इकाई) होगी, जबकि आगामी वधावन बंदरगाह की क्षमता 24.9 मिलियन टीईयू होगी. टीईयू कार्गो क्षमता के माप की एक मानक इकाई है और इसका उपयोग कंटेनर क्षमता निर्धारित करने के लिए भी किया जाता है. बीस फुट समतुल्य इकाई का अर्थ 20 फीट लंबे, 8 फीट चौड़े और 8 फीट लंबे कंटेनर से है.

66,544 करोड़ रुपये के वधावन बंदरगाह को कैबिनेट ने फरवरी 2020 में मंजूरी दी थी और इसे विकसित करने के लिए एक स्पेशल पर्पज़ वीकल का गठन किया गया है.

अधिकारी ने कहा, पश्चिमी तट पर अन्य दो बंदरगाहों – जेएनपी और मुंद्रा – में क्रमशः 10 मिलियन टीईयू और 7.5 मिलियन टीईयू को संभालने की क्षमता है.


यह भी पढ़ेंः ‘क्या महिलाएं गायों से भी कमतर हैं’, कोटा बिल लागू करने में देरी पर महुआ मोइत्रा ने सरकार पर साधा निशाना


IMEEC चीन के BRI का जवाब है

IMEEC को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब के रूप में देखा जा रहा है, जिसे 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू किया गया था.

सबसे महत्वाकांक्षी इन्फ्रास्ट्रक्चर इनीशिएटिव में से एक, इस परियोजना में भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका शामिल हैं.

हालांकि, एक समुद्री क्षेत्र विशेषज्ञ, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि इसमें शामिल देशों के अलग-अलग भू-राजनीतिक हितों को देखते हुए गलियारे को विकसित करना चुनौतीपूर्ण होगा.

इस परियोजना में भारत और सऊदी अरब के बीच जहाज द्वारा पारगमन शामिल होगा, इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात और संभवतः जॉर्डन के लिए एक रेल लिंक होगा, जहां से शिपमेंट समुद्र के रास्ते तुर्की और आगे रेल द्वारा जाएगा.

IMEEC में दो अलग-अलग गलियारे बनाने का प्रस्ताव है – पूर्वी गलियारा, जो भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ता है, और उत्तरी गलियारा, जो पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ता है.

सरकारी सूत्रों के अनुसार, इसमें एक रेल लाइन शामिल होगी, जो पूरा होने पर, मौजूदा मल्टी-मॉडल परिवहन मार्गों के पूरक के लिए एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी सीमा-पार जहाज-से-रेल पारगमन नेटवर्क प्रदान करेगी.

उन्होंने कहा कि यह भारत से पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व और यूरोप के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया के बीच वस्तुओं और सेवाओं के परिवहन को भी बढ़ाएगा.

हालाँकि, एक समुद्री क्षेत्र विशेषज्ञ, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि इसमें शामिल देशों के अलग-अलग भू-राजनीतिक हितों को देखते हुए गलियारे को विकसित करना चुनौतीपूर्ण होगा.

इस परियोजना में भारत और सऊदी अरब के बीच जहाज द्वारा पारगमन शामिल होगा, इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात और संभवतः जॉर्डन के लिए एक रेल लिंक होगा, जहां से शिपमेंट समुद्र के रास्ते तुर्की और आगे रेल द्वारा जाएगा.

IMEEC में दो अलग-अलग गलियारे बनाने का प्रस्ताव है – पूर्वी गलियारा, जो भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ता है, और उत्तरी गलियारा, जो पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ता है.

सरकारी सूत्रों के अनुसार, इसमें एक रेल लाइन शामिल होगी, जो पूरा होने पर, मौजूदा मल्टी-मॉडल परिवहन मार्गों के पूरक के लिए एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी सीमा-पार जहाज-से-रेल पारगमन नेटवर्क प्रदान करेगी.

उन्होंने कहा कि यह भारत से पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व और यूरोप के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया के बीच वस्तुओं और सेवाओं के परिवहन को भी बढ़ाएगा.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः क्या दिसंबर तक सभी राष्ट्रीय राजमार्गों से हट जाएंगे गड्ढे? सड़क मंत्रालय ने अफसरों के लिए तय की समयसीमा


 

share & View comments