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Saturday, 12 October, 2024
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POCSO और प्यार: रोमांटिक रिलेशन होने पर गिरफ्तारी में जल्दबाजी न करे पुलिस, मद्रास HC का निर्देश

तमिलनाडु और पुडुचेरी पुलिस को लिखे गए एक पत्र में, जुवेनाइल जस्टिस पैनल का कहना था कि पोक्सो के 60% मामले 'आपसी रोमांटिक रिलेशन' से जुड़े होते हैं, लेकिन पुलिस का कहना है कि इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

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नई दिल्ली: ’18 साल से कम उम्र की किसी लड़की से प्यार करने के गुनाह में, एक व्यक्ति को पोक्सो अधिनियम के कड़े प्रावधानों के तहत गिरफ्तार करके अपराधी के तौर पर मुकदमा चलाया गया.’

तमिलनाडु और पुडुचेरी पुलिस को हिदायत देते हुए ये शब्द मद्रास हाईकोर्ट ने कहे. कोर्ट ने कहा कि ‘आपसी रोमांटिक संबंधों’ के मामले में प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंसेज़ (पोक्सो) एक्ट के तहत गिरफ्तारी करने में पुलिस ‘जल्दबाजी’ न करे.

तमिलनाडु और पुडुचेरी के पुलिस महानिदेशकों को लिखे एक पत्र में मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि जांच अधिकारी ऐसे मामलों में कथित तौर पर संदिग्ध शख्श को नोटिस जारी कर सकते हैं और जांच कर सकते हैं, लेकिन केवल पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बाद ही कोई गिरफ्तारी कर सकते हैं.

1 दिसंबर को ज़ारी ये निर्देश, हाई कोर्ट की किशोर न्याय समिति (जुवेनाइल जस्टिस पैनल) के न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की अध्यक्षता में अदालत की पोक्सो समिति और अन्य सरकारी एजेंसियों तथा स्टेक होल्डर्स के साथ आयोजित राज्य स्तरीय परामर्श बैठकों की एक श्रृंखला के बाद जारी किये गए थे.

हालांकि, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इसको लागू करना एक चुनौती पेश कर सकता है.

इस पत्र, जिसे दिप्रिंट ने भी देखा है, में किशोर न्याय समिति के हवाले से कहा गया है कि ‘पोक्सो के तहत जो मामले दर्ज किए गए हैं, उनमें से 60 प्रतिशत मामले ‘आपसी रोमांटिक रिलेशन’ से संबंधित होते हैं.’

इस तरह के ज्यादातर मामले पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के बीच दर्ज किए जाते हैं, और पत्र में आगे कहा गया है कि इस तरह की पुलिस कार्रवाई ‘आदिवासियों को अलग-थलग’ कर सकती है.

किशोर न्याय समिति के इस पत्र के अनुसार, ‘कई आदिवासी और आदिवासी संस्कृतियों में, किसी पुरुष के लिए 18 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करना वर्जित नहीं है. राज्य आदिवासियों की तरफ अच्छी नीयत के कारण उन्हें प्रसव के लिए सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है.

जब कोई 17 वर्षीय आदिवासी शादीशुदा महिला सरकारी अस्पताल में प्रसव के लिए जाती है, तो पुलिस को इसकी सूचना भेज दी जाती है, और इसके बाद उसके पति के खिलाफ पोक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाता है तथा उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है.’

समिति ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई जारी रखने से आदिवासी महिलाएं अस्पतालों में डिलीवरी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने के प्रति अनिच्छुक हो सकती हैं. इसमें यह भी टिप्पणी की गई है कि ऐसे कई मामलों में यह भी देखा गया है कि कथित अभियुक्त और पीड़िता के बीच विवाह खत्म होने का खतरा बन जाता है.

यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच भी इस बात की मांग बढ़ रही है कि आपसी सहमति वाले संबंधों को पोक्सो अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाए.

पोक्सो की धारा 19 अस्पतालों में डॉक्टरों सहित किसी के लिए भी इस बात का प्रावधान करती है कि किसी बच्चे’ से जुड़े हर कथित यौन अपराध की घटना को रिपोर्ट करना अनिवार्य होगा, इसके लिए नाबालिग की सहमति होना जरूरी नहीं है.

इस कानून के तहत एक बच्चे को ’18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति’ के रूप में परिभाषित किया गया है और पुलिस को ऐसे सभी मामलों में संदिग्धों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करनी होती है.


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‘इसे लागू करना जटिल है’

हालांकि, हाई कोर्ट के निर्देशों ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को इसे लागू करने को लेकर परेशान कर दिया है.

तमिलनाडु में तैनात भारतीय पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि यह ‘इसे लागू करना काफी जटिल’ है. उन्होंने कहा, ‘निर्देशों के मुताबिक अगर रोमांटिक रिलेशन आपसी सहमति से हैं तो गिरफ्तारी में जल्दबाजी नहीं करनी है. लेकिन एक्ट इससे इतर बात कहता है.’

उन्होंने कहा, ‘जब किसी नाबालिग लड़की के घर से भाग जाने या किसी अविवाहित नाबालिग लड़की के गर्भवती होने की घटना होती है, तो कई बार, (यह) उसका परिवार होता है जो पोक्सो के तहत प्राथमिकी दर्ज करता है.’

उन्होंने कहा कि बाकी के समय में, अस्पताल हैं जो कम उम्र में प्रेग्नेंसी की सूचना देते हैं.

इसके अलावा बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामले भी आते हैं. ऊक्त अधिकारी ने कहा, ‘हमें ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जिनमें किसी नाबालिग के प्रेम संबंध में होने के बावजूद उसके अपने साथी द्वारा मारपीट की जाती है. इसलिए सहमति का मुद्दा भी आता है. हम मामला-दर-मामला (केस-टू-केस) निर्णय ले सकते हैं, लेकिन निर्देशों में अधिक स्पष्टता होनी चाहिए. पुलिस को कोई विवेकाधीन शक्ति नहीं दी गई है. अगर हम आरोपियों को नहीं पकड़ते हैं, तो उनके फरार हो जाने की संभावना होती है.’

हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि हाई कोर्ट द्वारा दिए गए ये निर्देश ज्यादा ‘मानवीय’ हैं, लेकिन साथ में वे यह भी कहते हैं कि पुलिस को ऐसे सभी आरोपों की जांच करनी चाहिए और गिरफ्तारी करते समय अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत एक वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है. भले ही हम दोषियों को दंडित करना चाहते हैं, लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि नाबालिग लड़कियों को अस्पतालों से मदद मांगने में डर या संकोच महसूस न हो.’

हालांकि, वह इस बात से सहमत थीं कि जब इसे लागू करने की बात आती है तो इसमें ढेर सारी चुनौतियां हो सकती हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह के निर्देशों का कार्यान्वयन जटिल हो सकता है क्योंकि इसके कई पहलू हैं. कई मामलों में, प्रेम संबंध में होने के बावजूद यौन उत्पीड़न होता है. इसलिए लड़की को सहमति का अर्थ समझना होगा. युवा वयस्कों को शिक्षित करने के लिए एक मैकेनिज़म होना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना)
(संपादन: अलमिना खातून)


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