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Saturday, 20 April, 2024
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गुजरात के आदिवासी जिले ‘दाहोद’ में BJP को बढ़ाने, और ‘धर्मांतरण’ से निपटने के लिए RSS अपना रही लोन व बचत योजना

बीजेपी इस क्षेत्र में बार-बार अपनी हार के लिए 'ईसाई मिशनरियों द्वारा कराए जा रहे आदिवासियों के धर्मांतरण' को बड़ा कारण मानती है. सदस्यों का मानना है कि आरएसएस के प्रयासों के बावजूद घर वापसी का विचार आगे नहीं बढ़ पा रहा है.

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दाहोद, गुजरात: भारतीय जनता पार्टी तीन-चौथाई आदिवासी आबादी वाले गुजरात के दाहोद जिले में दो दशकों से ज्यादा समय से नहीं जीती है. फिलहाल इस महीने होने वाले विधानसभा चुनावों में इस बार कांटे की टक्कर है. लेकिन यह लड़ाई दाहोद जीतने की नहीं है, बल्कि विश्वास जीतने की है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ईसाई मिशनरियों के साथ एक लड़ाई लड़ रहा है. यह लड़ाई धर्मांतरण को रोकने और जो कथित तौर पर ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके हैं, उन आदिवासियों की ‘घर वापसी’ की है.

भाजपा इस क्षेत्र में अपनी बार-बार हार के लिए ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों के कथित धर्मांतरण को बड़ा कारण मानती है. वोटर लिस्ट के मुताबिक यहां की करीब 75 फीसदी आबादी आदिवासी है.

दाहोद में धर्म जागरण के आरएसएस प्रभारी नरेश भाई मावी ने दावा किया कि अब तक (पिछले एक दशक में) लगभग 50 से 60 फीसदी ग्रामीण परिवार अपना धर्म परिवर्तन कर चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘दाहोद तालुका में 70 चर्च हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है.’

‘पहले विश्वास और फिर चुनाव’ स्लोगन के साथ इस खोई हुई जमीन को बचाने के लिए आरएसएस ने खुद को पूरी तरह से झोंक दिया है. इसके स्थानीय नेता स्वीकार करते हैं कि घर वापसी या आदिवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाने के विचार से बहुत निराशा हुई है. दरअसल यह विचार आगे नहीं बढ़ पा रहा है.

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संगठन कथित धर्मांतरण का मुकाबला करने के लिए कुछ क्रिएटिव आइडियाज पर भी काम कर रहा हैं. दाहोद के गांवों और आदिवासी बस्तियों की अपनी यात्रा में दिप्रिंट ने लोगों के एक बड़े हिस्से और स्थानीय नेताओं से बात की. बातचीत से पता चला कि आरएसएस अब अपनी विचारधारा को आर्थिक पहल के जरिए आगे लाने का काम कर रहा है. सीधे तौर पर की जाने वाली धार्मिक अपील कहीं पीछे छूट गई है.

आरएसएस से जुड़े संगठनों की ओर से चलाई जा रही सहकारी समितियों द्वारा चार प्रतिशत ब्याज वाली लघु बचत योजनाएं, कम ब्याज वाला लोन, खेती की जमीन का संरक्षण और हिंदू अनुष्ठानों पर केंद्रित कार्यक्रम, जैसे वीज पूजन (बीजों की पूजा), वनवाजी महोत्सव (ट्राइबल फूड फेस्टिवल और आदिवासी महिलाओं के पाक कौशल को बढ़ावा देना), वन पूजन और जल पूजन आरएसएस के कुछ हथियार हैं, जिन पर भाजपा-आरएसएस मिलकर इस इलाके में कथित धर्मांतरण की गति को धीमा करने के लिए काम कर रहे हैं.

कथित धर्मांतरण पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने ‘कैथोलिक बिशप सम्मेलन ऑफ इंडिया’ से संपर्क करने की भी कोशिश की थी. लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. जवाब मिलते ही कॉपी को अपडेट कर दिया जाएगा.

दाहोद जिले में छह निर्वाचन क्षेत्र हैं – दाहोद, फतेपुरा, झालोद, लिमखेड़ा, गढ़बाड़ा, देवगढ़ बारिया. इनमें से पांच इलाके अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों के लिए आरक्षित हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भील जनजाति का यहां ज्यादा दबदबा है, जो इस क्षेत्र की आबादी का 50 फीसदी हिस्सा है. पिछले 20 सालों में भाजपा दाहोद में लगातार तीन विधानसभा चुनाव कांग्रेस से हारती आई है.

इस साल के विधानसभा चुनावों के लिए जिले में दूसरे चरण में 5 दिसंबर को मतदान होगा.


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धर्मांतरण पर RSS का पलटवार

आरएसएस इस क्षेत्र में कम से कम एक दर्जन ट्रस्ट और तीन सहकारी समितियां चलाता है जो आदिवासियों की आर्थिक मदद करती हैं.

दाहोद के ग्रामीण विकास के आरएसएस प्रभारी दिलीप सिंह चौहान ने कहा, ‘हम उन आदिवासियों को फिर से धर्मांतरित करने में सक्षम नहीं हैं जो ईसाई धर्म में जा चुके हैं. लेकिन हम इस प्रवाह को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन यह धर्म के जरिए हो पाना संभव नहीं है. बल्कि उनकी आर्थिक सहायता करके ही हम उन्हें ऐसा करने से रोक सकते हैं. हम आदिवासी गांवों को अपना व्यवसाय बनाने, उनकी आर्थिक और बचत की योजना बनाने और उद्यमिता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.’

आरएसएस की ओर से चलाए जा रहे ट्रस्टों के अलावा, यहां कम से कम आठ अन्य संगठन आदिवासियों के बीच काम कर रहे हैं. इन्हें भी आरएसएस के पदाधिकारियों या उनके सहयोगियों द्वारा चलाया जा रहा है. सहकारी समितियां बैंकों की तरह काम करती हैं. हालांकि वे इस रूप में पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन फिर भी वह कर्ज देने और छोटी बचत व निवेश के लिए नकदी इकट्ठा करने का काम करते हैं.

सुविधाएं और योजना सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए हैं जो उनके साथ जुड़े हुए हैं या उन समितियों के सदस्य हैं.

चौहान के अनुसार, दाहोद की सबसे बड़ी सहकारी समिति श्री राम बैंक के 13,000 आदिवासी सदस्य हैं. इसमें सात सदस्यीय बोर्ड है, जिसकी अध्यक्षता चौहान प्रबंध निदेशक के रूप में करते हैं. 28 एजेंटों का एक समूह परिवारों से जमा किए गए पैसों को इकट्ठा करता है. उन्होंने कहा कि वह इन योजनाओं के लिए उन्हें चार प्रतिशत ब्याज देते है. और एजेंट दो प्रतिशत का कमीशन पाते हैं.

The cooperative, Sri Ram Bank, in Dahod | Photo: Madhuparna Das | ThePrint
दाहोद में को-ऑपरेटिव श्रीराम बैंक । फोटोः मधुपर्णा दास । दिप्रिंट

चौहान ने कहा कि हालांकि इन सहकारी समितियों को राज्य सरकार के नियमों के तहत कवर नहीं किया गया है. ये स्वायत्त रूप से कार्य करती हैं.

मावी के अनुसार, ‘फिर भी यहां घर वापसी की दर बहुत कम है क्योंकि वे (चर्च की ओर से दी गई) सुविधाएं चाहते हैं. उन्हें आधिकारिक तौर पर हिंदू के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. हम मांग कर रहे हैं कि सरकार उन्हें एसटी श्रेणी से हटा दे.’

ईसाई धर्म में परिवर्तित होने की बात स्वीकार करने वाले ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया कि यह उनके लिए एक ‘जीवित रहने की रणनीति’ है.क्योंकि स्थानीय चर्च उनकी बीमारियों का इलाज करते हैं, उन्हें दवाइयां देते हैं और उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने में मदद करते हैं.


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आस्था और राजनीति

भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि उसने लगातार तीन सालों से मिशनरियों को ‘आदिवासियों के धर्मांतरण’ में मदद की है. तो वहीं कांग्रेस कह रही है कि राज्य में भाजपा सरकार आदिवासी ग्रामीणों की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में विफल रही है.

गुजरात में 1995 से यानी पिछले 27 सालों से भाजपा का शासन रहा है.

दिप्रिंट से बातचीत में कांग्रेस नेताओं ने दाहोद में पलायन, बेरोजगारी और गंभीर जल संकट को अपनी प्राथमिक चिंता बताया.

Congress candidate Congress candidate Harshadbhai Valchandbhai Ninama | Photo: Madhuparna Das | ThePrint
कांग्रेस कैंडीडेट हर्षद भाई वलचंद भाई निनामा | फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

आदिवासी बहुल महुवा (गुजरात के भावनगर जिले में) में पिछले हफ्ते एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आदिवासी आबादी के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द को लेकर विवाद खड़ा कर दिया था. कांग्रेस सांसद ने दावा किया था कि कांग्रेस ‘आदिवासी’ का इस्तेमाल करती है, जबकि भाजपा-आरएसएस अक्सर उन्हें ‘वनवासी’ के रूप में संबोधित करते हैं.

गांधी ने आरोप लगाया कि जहां उनकी पार्टी आदिवासियों के अधिकारों के लिए खड़ी हुई और उन्हें ‘फर्स्ट ऑनर’ के रूप में माना, वहीं भाजपा-आरएसएस ने उन्हें ‘वनवासी’ कहा और उनकी जमीन छीन ली.

कांग्रेस नेता दाहोद को पार्टी का गढ़ बताते हैं. पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस अपने वोट शेयर को स्थिर 55 प्रतिशत या उससे अधिक पर बनाए रखने में सफल रही है. जबकि भाजपा का वोट घटकर 25 से 35 प्रतिशत के बीच रह गया है. भाजपा राज्य में आदिवासी बेल्ट में हमेशा संघर्ष करती रही है. पिछले एक दशक से आरएसएस भाजपा की मदद करने के लिए आगे आई है.

दिप्रिंट से बात करते हुए दाहोद में बीजेपी उम्मीदवार कन्हैयालाल बच्चूभाई किशोरी ने आरोप लगाया, ‘यहां धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा है. कांग्रेस ने उन मिशनरियों के लिए रास्ता बनाया है जो हमारे आदिवासी भाइयों का धर्मांतरण करते रहते हैं. इसके लिए उन्हें भारी मात्रा में विदेशी फंडिंग मिलती है. इसे रोकने की जरूरत है. धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए लगभग एक खतरा है और यह हमारे लोगों को हमसे दूर कर रहा है.

किशोरी कांग्रेस से निकलकर 2014 में भाजपा में शामिल हुए थे. उन्होंने 2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. उनके पिता बच्चूभाई किशोरी इस क्षेत्र में चार बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.

BJP candidate Kanhaiyalal Bachubhai Kishori | Photo: Madhuparna Das | ThePrint
बीजेपी कैंडीडेट कन्हैया लाल बच्चूभाई किशोरी | फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

हालांकि पिछले साल के दाहोद तालुका पंचायत चुनावों में किशोरी ने जीत हासिल की थी. भाजपा ने 2021 में तालुका पंचायत चुनावों में 38 में से 32 सीटों पर अपनी जीत का परचम लहराया और जिला परिषद की छह में से चार सीटों पर जीत हासिल की. 20 वर्षों में यहां पार्टी की यह पहली जीत है. इसने नगर निगम की 36 में से 34 सीटों पर कब्जा जमाने में भी कामयाबी हासिल की थी.

हालांकि, कांग्रेस नेताओं ने यह दावा करते हुए भाजपा की निकाय चुनावों की जीत को खारिज कर दिया कि ग्रामीण इलाकों में इसका कोई आधार नहीं है.

कांग्रेस उम्मीदवार हर्षदभाई वलचंदभाई निनामा ने दिप्रिंट को बताया, ‘दाहोद गंभीर जल संकट से जूझ रहा है. ग्रामीणों को दो-तीन दिन में एक बार पानी की आपूर्ति होती है. 200 घरों वाला गांव एक तालाब पर निर्भर है. इस इलाके में इतना पलायन पहले कभी नहीं हुआ है, जितना इन दिनों देखने को मिल रहा है. ये यहां के मुद्दे हैं. लेकिन बीजेपी सिर्फ ध्रुवीकरण करना जानती है. यहां उनके पास हिंदू और मुसलमान नहीं हैं. इसलिए यहां वे आदिवासी और ईसाई कार्ड खेल रहे हैं.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः संघप्रिया)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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