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Monday, 23 December, 2024
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मॉनसून सत्र का नया चेहरा- पॉलिमर शीट्स, मास्क लगाए सांसद, राहुल गांधी और अमित शाह अनुपस्थित

पिछले पांच दिनों में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कई बार सांसदों को मास्क को नीचे खिसकाकर बात करने के लिए सख्ती से टोका.

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संसद सत्र भारतीय लोकतंत्र का एक आवश्यक अंग हैं. लेकिन कानून निर्माताओं और आम लोगों के बीच जितना ध्यान, आशंका और उत्सुकता चालू मॉनसून सत्र ने पैदा की है. उतनी शायद किसी दूसरे सत्र ने नहीं की है.

सबसे ज़्यादा ध्यान देने योग्य चीज़ है. राज्यसभा और लोकसभा के अंदर का नज़ारा. सदस्य जब बैठते हैं तो उनके बीच पॉलीकार्बोनेट शीट्स होती हैं और वो मास्क और ग्लव्ज़ पहनकर बैठते हैं. कुछ तो हेड कैप्स भी लगाए रखते हैं. कोरोनावायरस महामारी की वजह से संसद के अंदर का नज़ारा किसी सपने जैसा लगता है.

इसके अलावा, लोकसभा सदस्यों को राज्यसभा के चैम्बर और गलियारे में बैठे देखा जा सकता है और इसी तरह राज्यसभा सदस्यों को लोकसभा में.

लेकिन वो सिर्फ एक पहलू है, जो इस मॉनसून सत्र को अनोखा और दिप्रिंट का न्यूज़ मेकर ऑफ द वीक बनाता है.

आवेश में विपक्ष

मॉनसून सत्र से पहले के महीने भारत और इसके लोगों के लिए आसान नहीं रहे हैं. लगातार जारी एक स्वास्थ्य संकट, जिसके नतीजे में एक सख़्त लॉकडाउन हुआ बहुत से लोग मारे गए और लाखों लोगों की नौकरियां व रोज़गार छिन गए. और उसके बाद लद्दाख़ में एलएसी पर तनावपूर्ण गतिरोध, जो अभी तक बरक़रार है. अब एक किसानों का मुद्दा भी खड़ा हो गया है. आवेश में आए विपक्ष ने कोविड-19 प्रबंधन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर झड़पें, किसानों के मुद्दे और अर्थव्यवस्था पर, मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की.

सरकार को नरम होना पड़ा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दोनों ने सदन के पटल पर बयान दिए.

सेशन के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद परिसर में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि देश भारत की सीमाओं की रक्षा कर रहे सैनिकों के पीछे खड़ा है.

दो दिन बाद, राजनाथ सिंह ने एलएसी पर एक बयान दिया और कहा कि कोई ताक़त भारतीय सैनिकों को सामान्य मार्गों पर गश्त लगाने से नहीं रोक सकती.

लेकिन, मॉनसून सेशन से एक उल्लेखनीय अनुपस्थिति रही है गृह मंत्री अमित शाह की, जो आमतौर से संसद में सरकार की अगुवाई किया करते थे. कोविड-19 से ठीक हो रहे शाह अभी तक सत्र में शरीक नहीं हुए हैं.

अगर बीजेपी शाह की अनुपस्थिति महसूस कर रही है. तो प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को भी अपनी अंतरिम अध्यक्ष सेनिया गांधी और सांसद राहुल गांधी की कमी खटक रही है. राहुल अपनी मां के साथ गए हैं, जो अपने इलाज के लिए विदेश गईं हैं.

संसद के बारे में जो चीज़ नहीं बदली है वो है सांसदों का व्यवहार- विवादास्पद टिप्पणियां जिनके लिए या तो वो बाद में माफी मांग लेते हैं या वो संसद के रिकॉर्ड्स से निकाल दी जाती हैं- शोर-ग़ुल के सामान्य नज़ारे और स्थगन. शुक्रवार को लोकसभा में ये सब देखने को मिला और अंत में स्पीकर ओम बिड़ला ने सदन को शनिवार दोपहर 3 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया.

नए नियम

इस मॉनसून सत्र में जो बहुत सी नई चीज़ें देखने को मिल रही हैं. उनमें एक है सांसदों का सदन को बैठे हुए संबोधित करना. परंपरा ये है कि सदन को संबोधित करते हुए सांसद खड़े होते हैं.

अपने तईं सांसद सावधान रहे हैं और एक दूसरे से फासला रख रहे हैं और क्यों न हो- एक अनिवार्य आरटी-पीसीआर टेस्ट, जो हर सांसद को सत्र में हिस्सा लेने से पहले कराना पड़ता है से पता चला कि उनमें से कम से कम 30 कोविड पॉज़िटिव थे.

सांसद अब मास्क लगाकर बोलने के आदी हो रहे हैं. पिछले पांच दिनों में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कई बार, सांसदों को अपने मास्क ठोड़ी तक नीचे खिसकाकर बात करने के लिए सख़्ती से टोका.

सदस्यों को विरोध के लिए अध्यक्ष के आसन के सामने आने या सहयोगियों के लिए अपनी सीट छोड़ने से भी रोक दिया गया है. बृहस्पतिवार को राज्यसभा में नायडू ने सोशल डिस्टेंसिंग प्रोटोकोल्स तोड़ने पर सदस्यों को चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि अगर सदस्यों को अपने सहयोगियों से कुछ शीघ्र संवाद करना है, तो अपनी सीटें छोड़ने की बजाय उन्हें चिट्स लिखनी चाहिएं.

राज्यसभा की बैठक चार घंटे के लिए सुबह में होती है, जबकि लोकसभा की बैठक दोपहर चार घंटे के लिए दोपहर में होती है.

संसद ने कुछ हल्का- फुल्का समय भी देखा क्योंकि सदस्य अब दोनों में से किसी भी सदन में बैठ सकते हैं. मसलन, राज्यसभा में नायडू को किसी सदस्य का नाम पुकारने के बाद, अकसर सदन में लगी एक बड़ी स्क्रीन पर ढूंढते देखा गया, कि कहीं वो सदस्य लोकसभा में तो नहीं बैठा.


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संदेहास्पद क़दम

14 सितंबर को शुरू हुए सत्र के पांच दिन बाद केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने, जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सबसे पुराने सहयोगी, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) का प्रतिनिधित्व करती हैं संसद द्वारा पारित किए गए तीन कृषि विधेयकों के विरोध में मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.

लेकिन मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले ही, मोदी सरकार के अनिवार्य प्रश्नकाल को स्थगित करने के क़दम से जिसमें सांसद पार्टियों से ऊपर उठकर, जनहित के अहम मुद्दों पर सरकार से सवाल पूछते हैं, काफी हंगामा मचा था.

दोनों सदनों के सांसदों ने, शोर-शराबे के साथ इसका विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगा कि इसकी आड़ में सरकार अपने कोविड प्रबंधन, लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था और एलएसी पर चीन के साथ झड़पों पर जवाब देने से बचना चाह रही है.

सरकार शुरू में दृढ़ रही. उसका तर्क था- प्रश्नकाल के लिए संबद्ध मंत्रालयों के अधिकारियों को बड़ी संख्या में संसद के दोनों सदनों में मौजूद रहना होगा. इससे सोशल डिस्टेंसिंग प्रोटोकाल ख़तरे में पड़ जाएगा.

लेकिन, एकजुट विपक्ष आंशिक रूप से मोदी सरकार को बैकफुट पर लाने में कामयाब हो गया, जिसे मजबूरन तारांकित प्रश्नों की अनुमति देनी पड़ी, जिसमें सांसद सवाल पूछते हैं और ज़ुबानी जवाब देने की बजाय संबद्ध मंत्री लिखित में जवाब दाख़िल कर देता है, जिसे सदन के पटल पर रखा जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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