नई दिल्ली: कवि और लेखक गुलजार का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदियां बढ़ गई हैं.
दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ मंगलवार को एक वर्चुअल ‘ऑफ द कफ’ बातचीत के दौरान गुलजार ने कहा कि आज बड़े कलाकारों में डर का माहौल हावी हो गया है.
उन्होंने कहा, ‘थोड़ा-थोड़ा जमाने का फर्क है. हम पहले भी कुछ बोलने से पहले थोड़ा संयम बरतते थे, लेकिन हमें डर नहीं लगता था. लेकिन इस दौर में डर कुछ ज्यादा है. कोई बात आपने जिस संदर्भ में कही उससे अलग ढंग से समझे जाने का जोखिम रहता है, जो काफी चिंताजनक है. इसलिए आजकल सब कुछ इडियट-प्रूफ करने की जरूरत पड़ती है.’
गुलजार ने अपनी नई किताब ‘अ पोएम अ डे ‘के बारे में बात की, जो भारत, श्रीलंका, नेपाल बांग्लादेश और पाकिस्तान की 34 भाषाओं में 279 कवियों की 365 कविताओं का संकलन है. गुलजार ने कविताओं का अंग्रेजी और हिंदुस्तानी में अनुवाद किया है.
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने इतनी विविध भाषाओं की कविताओं का अनुवाद करना क्यों चुना, गुलजार ने कहा, ‘एक जबान कभी हिंदुस्तान की शायरी का, या साहित्य और संस्कृति का चेहरा बयान नहीं कर सकती.’
उन्होंने यह भी कहा कि आज की पीढ़ी स्कूली पाठ्यक्रम में कविताओं से कोई खास जुड़ाव रखने या उन्हें पहचानने में असमर्थ है, और वह कविता को अतीत के साथ जोड़ती है. उन्होंने कहा, ‘बच्चे विलियम शेक्सपियर या अल्फ्रेड टेनिसन, रॉबर्ट वार्शो या रवींद्रनाथ टैगोर के कामों से जुड़ने में विफल रहते हैं, जब वे उन्हें पाठ्यक्रम की किताबों में पढ़ते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम छात्रों को समकालीन कवियों जैसे फिराक गोरखपुरी, अहमद फराज या फैज अहमद फैज को नहीं पढ़ा रहे. इसलिए मैं इस तरह के समकालीन कार्यों को सामने लाना चाहता था.’
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गुलजार और कविताएं
गुलजार ने नई किताब में शामिल कुछ कविताएं पढ़कर सुनाई भीं. इसमें से एक है ‘लैमिनेशन’—त्रिपुरी लोगों की मूल भाषा कोकबोरोक में इस कविता की रचना त्रिपुरा की कवयित्री शेफाली देववर्मा ने की है.
जो कुछ इस तरह है–
‘वो कार्ड पिछड़े कबीले के सर्टिफिकेट का
मुहर लगाके दस्तखत करके मिला था
एक अफसर से सब डिवीजन के
उस बरस जब पैदा हुई थी.
कहीं वो कागज खराब न हो
रिजा और पिछरा की तह में रख के मां ने
खतूरत में महफूज कर लिया था.
सदी के बाद आज, वो दिल पसंद पोशाक
रिजा और पिछरा तो फट चुके
तागा तागा होकर, खतूरत को दीमक ने खा लिया
मगर वो पिछड़े कबीले का कार्ड बचा हुआ है
उसी तरह ताजा और चमकीला
लैमिनेट करके, फ्रेम करके रखा हुआ है’
पूर्वोत्तर के इतिहास में एक खास गतिशीलता करार देते हुए गुलजार ने कहा कि देश को स्वीकारना होगा कि आजादी के बाद से इस क्षेत्र के प्रति उसका नजरिया अनुचित रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमने पूर्वोत्तर की ओर ध्यान देने में देरी की है. आजादी के बाद भी तमाम लाभ वहां तक नहीं पहुंचे. हम इस तथ्य से किनारा नहीं कर सकते कि हम उनके प्रति अन्याय करते रहे हैं. नतीजन एक बेचैनी स्पष्ट है. जाहिर है, वहां का जीवन जटिल है, और इसलिए उनकी शायरी भी.’
उन्होंने एक नज्म ‘मणिपुर मेरा वतन’ भी पढ़ी, जिसमें कवि लनचेंबा मीतेन ने मणिपुर के विद्रोह का वर्णन किया है.
‘इस जमीन की हर गली हर गेट पर
मौत है टहलती कई नकाबों में,
हाथ में लिए हुए भरी हुई बंदूक
पहले जब दिखाई देते थे तो कुत्ते भौंका करते थे
गर्दनों के बाल अकड़ जाते थे उनके
आज हमें लंबी, गहरी चीख में पुकारा करते हैं.
ये है मणिपुर, मेरा मणिपुर,
मेरी जन्मभूमि मणिपुर.’
गुलजार ने आगा शाहिद अली की कविता ‘कश्मीर से पोस्टकार्ड’ का पाठ भी किया. अली ने अमेरिका में रहते हुए यह कविता लिखी थी.
‘सुकड़कर मेल बॉक्स में आ गया कश्मीर मेरा
मेरा घर साफ-सुथरा 4 बाई 6 का है अब
मुझे सब साफ-सुथरा अच्छा लगता था हमेशा
हथेली पर हिमालय है अब मेरा आधा इंच का
यही घर है, अब उतना ही करीब घर के रहूंगा
मैं जब भी लौटकर आया न इतने शोख होंगे रंग
न इतना साफ होगा पानी झेलम का
न इतना गहरा नीला
मेरा महबूब और बेपर्दा इतना
मेरी याददाश्त भी कोई धुंधली होगी कि जैसे
एक बड़ा ब्लैक-एंड व्हाइट निगेटिव
अभी तक अनडेवल्प्ड है.’
गुलजार ने कहा कि उन्होंने भारतीय भाषाओं में कविताएं चुनीं, लेकिन साथ ही राजनीतिक रूप से कायम सीमाएं उन्हें पड़ोसी मुल्कों के साहित्य को खंगालने से रोक नहीं पाईं.
उन्होंने कहा, ‘हम पाकिस्तान के साथ पंजाबी, उर्दू, सिंधी, श्रीलंका के साथ तमिल और बांग्लादेश के साथ बांग्ला भाषा को साझा करते हैं. राजनीतिक सीमाएं भाषाओं पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकतीं.’ उन्होंने उस्ताद दमन द्वारा पंजाबी में लिखी एक और नज्म पढ़ी. उसका एक अंश—
‘दो अल्लाह है अपने मुल्क में
ला इलाह और मार्शल ला
एक फलक पर रहता है
दूजा जमीन पर डटा हुआ है
इक का नाम सिर्फ अल्लाह
दूजे का है जनरल जिया
हिप-हिप हुर्रे जनरल जिया’
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भविष्य की योजनाएं
गुलजार ने यह भी बताया कि कैसे कविता लेखन ने उनके जीवन को आकार दिया. उन्होंने कहा कि यह कला उनके लिए कुछ भी देखे-सुने को छोटे-छोटे वाक्यांशों में कलमबद्ध करके खुद को खोजने में मददगार बनी. लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया कि यह किसी के लिए भी कविता लिखने का पाठ या सूत्र नहीं हो सकता है.
उन्होंने बच्चों के लिए साहित्य लेखन के बारे में भी बात की, और बताया कि कैसे उनकी बेटी उनकी प्रेरणा रही. उन्होंने कहा, ‘जब मेरी बेटी बड़ी हो रही थी, तो मैंने सीखा था कि कैसे दो साल के बच्चे से, चार साल के बच्चे से, आठ साल के बच्चे से बात की जाए… और इसी तरह से मैं समझ गया कि बच्चों से बात करने का हमारा तरीका बदलता रहता है. हम बच्चे से सीख रहे हैं और फिर उसी भाषा का इस्तेमाल लिखने में कर रहे हैं.’
उन्होंने बच्चों के लिए अभी और कुछ लिखने की इच्छा भी जताई, विशेषकर वर्चुअल कक्षाओं के इस समय को लेकर. गुलजार ने कहा, ‘मानवीय पहलू शिक्षा से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, और मुझे डर है कि बच्चे वर्चुअल कक्षाओं के कारण इसे खो रहे हैं. इसलिए, मैं इस वर्ष बच्चों के लिए लिखकर उस अंतर को भरने की कोशिश कर रहा हूं.’
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