नई दिल्ली: पिछले कोई 50 दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में करीब 27 जनसभाओं को संबोधित किया, और वहां पूरी तरह राजनीतिक भाषण दिए.
ये कोई अजूबा बात नहीं है, सिवाय इसके कि इनमें से करीब 90 प्रतिशत मौक़ों पर 2019 के आम चुनाव के अपने अभियान को उन्होंने आधिकारिक कार्यक्रमों से जोड़ दिया-दौरा प्रधानमंत्री के रूप में शुरू करना पर शीघ्र ही राजनीतिक मोदी का रूप धारण कर लेना-और ये सब एक नैतिक रूप से अस्पष्ट क्षेत्र का मामला बन जाता है.
लोकसभा चुनाव के करीब आते जाने के मद्देनज़र चुनाव में आगे रहने को प्रयासरत राजनीतिक नेताओं के लिए हरेक दिन मूल्यवान हो गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने लगता है अपने आधिकारिक दौरों का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अधिक से अधिक फायदा उठाने का तरीका अपना लिया है, और संसद सत्र जारी रहते भी वह ऐसा करते रहे हैं.
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मंगलवार को हरियाणा में कुरुक्षेत्र के दौरे पर, बजट सत्र के जारी रहते, विकास परियोजनाओं के उदघाटन और ‘स्वच्छ शक्ति 2019’ में शामिल होने के बाद दिया गया उनका भाषण इसका नवीनतम उदाहरण है. यह एक सरकारी कार्यक्रम था, पर उनका भाषण राजनीति से परिपूर्ण था, प्रकटत: किसी चुनावी भाषण से कम नहीं.
अक्सर, उनके भाषण किसी अलग जनसभा के बजाय सरकारी कार्यक्रम में ही होते हैं, पर वे राजनीतिक प्रकृति के होते हैं. इसलिए अक्सर राजनीतिक रैलियों और सरकारी कार्यक्रमों में दिए गए भाषणों के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है.
मोदी के पिछले 51 दिनों में -24 दिसंबर से 12 फरवरी तक- स्वदेश में हुए दौरों के दिप्रिंट द्वारा किए विश्लेषण से ज़ाहिर होता है कि इस दौरान उन्होंने 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 19 दौरे किए. यहां एक साथ हुए किसी दौरे को उस स्थिति में भी एक ही माना गया है, जब वह एक से अधिक राज्य में गए हों या यात्रा के दौरान ही रात्रि विश्राम भी किया हो.
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संसद का शीतकालीन सत्र 11 दिसंबर से 8 जनवरी तक चला, जबकि 29 जनवरी से शुरू हुआ बजट सत्र 13 फरवरी को समाप्त हो रहा है. इसका मतलब यही हुआ कि संसद के सत्र के दौरान मोदी ना सिर्फ प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यों के लिए बल्कि राजनीतिक प्रचार अभियानों के लिए भी कई दिनों तक दिल्ली से बाहर रहे.
प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनावों के सिलसिले में 100 रैलियां करने का लक्ष्य तय कर रखा है.
‘आधिकारिक और गैरआधिकारिक’ दौरे
इन करीब तीन महीनों में, प्रधानमंत्री ने देश के एक छोर से दूसरे छोर तक की यात्रा की है. इन दौरों में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर, केरल, ओडिशा, महाराष्ट्र, मणिपुर, पंजाब, अंडमान और निकोबार, हिमाचल प्रदेश, दमन और दीव, झारखंड और गुजरात शामिल रहे हैं.
प्रधानमंत्री के दौरों में आमतौर में ‘आधिकारिक’ और ‘गैर-आधिकारिक’ का भेद किया जाता है, पर सरसरी तौर पर देखने पर भी पता चल जता है कि किस हद तक दोनों के परस्पर मिलने की गुंजाइश रखी गई है. आधिकारिक कार्यक्रमों में मुख्यत: उद्घाटन या विकास योजनाओं का शुभारंभ या विशेष समारोह जैसे आयोजन होते हैं.
इन दौरों पर – ज़्यादातर दिन भर के और तीन में रात्रि विश्राम भी शामिल -प्रधानमंत्री ने कोई 27 राजनीतिक रैलियों/सभाओं/कार्यक्रमों को संबोधित किया, और इनमें से 25 को आधिकारिक कार्यक्रमों के साथ जोड़ा गया था. इसके अतिरिक्त उन्होंनें 30 जनवरी को अपने गृह राज्य गुजरात के सूरत में एक युवा सम्मेलन को संबोधित किया, जिसके साथ कई आधिकारिक कार्यक्रम भी रखे गए थे.
अधिकांशत: हर आधिकारिक कार्यक्रम को 15-20 मिनट की छोटी अवधि तक सीमित रखा गया, जबकि जनसभाओं के लिए करीब 45 मिनट रखे गए जो और भी अधिक समय तक चले.
प्रधानमंत्री और राजनीतिक नेता की भूमिकाएं
अपने हाल के अधिकतर दौरों में – भाजपा और गैरभाजपा शासित राज्यों दोनों ही में – मोदी ने दो तरह की भूमिकाएं निभाई. उन्होंने दौरे की शुरुआत प्रधानमंत्री के रूप में की और आधिकारिक कार्यक्रमों में भाग लिया, और फिर वह एक जुझारू राजनीतिक नेता की भूमिका में आ गए और रैलियों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने विरोधियों को निशाना बनाया और अपनी पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम किया.
आइए इन उदाहरणों को देखते हैं:
प्रधानमंत्री ने 10 फरवरी को दक्षिण भारत के तीन राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक का दौरा किया.
आंध्र प्रदेश के गुंटूर में प्रधानमंत्री ने 1.33 मिलियन मीट्रिक टन क्षमता वाली विशाखापत्तनम स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व फैसिलिटी राष्ट्र को समर्पित किया, और अन्य उद्घाटन समारोहों में भाग लिया. पर इसके तुरंत बाद उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया जहां उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री और मित्र से विरोधी बने चंद्रबाबू नायडू पर तीखे हमले किए.
तमिलनाडु के तिरुपुर में ईएसआई मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के शिलान्यास कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री के 10 मिनट निर्धारित थे, जिसके बाद 45 मिनट जनसभा के लिए रखे गए थे.
कर्नाटक के हुबली में भी इसी तरह शिलान्यास समारोह के लिए प्रधानमंत्री के 10 मिनट निर्धारित थे, जिसके बाद 45 मिनट की रैली थी.
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असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश के 9 फरवरी के अपने दौरे में प्रधानमंत्री के लिए इनमें से हर राज्य में आधिकारिक कार्यक्रमों के लिए तकरीबन 15 मिनट निर्धारित थे – अरुणाचल के होलोंगी में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट का शिलान्यास, असम के अमीनगांव में एम्स की आधारशिला रखना और त्रिपुरा में 23.32 किलोमीटर रेल लाईन राष्ट्र को समर्पित करना. इन कार्यक्रमों में से हरेक के बाद रैली रखी गई थी.
अपने 3 फरवरी के जम्मू कश्मीर दौरे में प्रधानमंत्री के जम्मू और श्रीनगर में एम्स संस्थानों तथा लद्दाख विश्वविद्यालय की आधारशिलाएं रखने के कार्यक्रम के साथ ही जम्मू में जनसभा का भी कार्यक्रम रखा गया था.
गत माह, ओडिशा और केरल के 15 जनवरी के दौरे पर प्रधानमंत्री ने दोनों ही राज्यों में विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन किया, और साथ ही जनसभाएं भी संबोधित की. केरल में कोल्लम बाईपास के शुभारंभ के बाद मोदी ने कहा, “सबरीमाला मुद्दे पर केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार का आचरण इतिहास में किसी भी पार्टी या सरकार के सर्वाधिक शर्मनाक आचरण के रूप में दर्ज़ किया जाएगा.”
प्रधानमंत्री 9 जनवरी को महाराष्ट्र में शोलापुर और उत्तर प्रदेश में आगरा के दौरे पर गए, और इस बार भी कार्यक्रम उपरोक्त पैटर्न पर ही रखे गए थे. ये संसद में सामान्य श्रेणी के ‘गरीबों’ के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण वाले विधेयक पारित होने के बाद प्रधानमंत्री की पहली जनसभाएं थीं, और उन्होंने ना सिर्फ इस बात का ज़िक्र किया बल्कि यह भी बताया कि कैसे ‘विपक्ष झूठ फैला रहा है.’
इसी तरह 3 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने 106वें विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन के लिए पंजाब में गुरदासपुर की यात्रा की. जबकि 25 दिसंबर को असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगिबील पुल का उद्घाटन करने के बाद उन्होंने धेमाजी में एक जनसभा को संबोधित किया. वहां क्रिश्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “वर्षों तक किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि हेलिकॉप्टर घोटाले में शामिल किसी व्यक्ति को भारत लाया जाएगा. हमारी सरकार ने ऐसा कर दिखाया.”
अपवाद
कुछेक बड़ी राजनीतिक रैलियां – मसलन हिमाचल प्रेदश में भाजपा सरकार के एक साल पूरा करने पर 27 दिसंबर को धर्मशाला में और 8 फरवरी को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में – किसी बड़े सरकारी कार्यक्रम के बगैर आयोजित की गईं. रायगढ़ की रैली में मोदी पश्चिम बंगाल जाते हुए शामिल हुए थे जहां कि उन्होंने एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया.
इस अवधि में, कुछ दौरों में – जैसे पिछले महीने वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में शामिल होने के लिए या मुंबई में सिनेमा संग्रहालय के उद्घाटन के वास्ते- जनसभा के कार्यक्रम नहीं रखे गए थे. या फिर, जब प्रधानमंत्री आठ नई परियोजनाओं के शिलान्यास के लिए 4 जनवरी को मणिपुर गए. हालांकि, इन मौकों पर किसी दूसरी जगह पर रैली रखी गई थी.
जैसे गुजरात और मुंबई दौरों के बीच प्रधानमंत्री मोदी हज़ीरा गन फैक्ट्री की स्थापना से जुड़े समारोह में शामिल होने और एक जनसभा संबोधित करने सिलवासा गए. जहां तक मणिपुर दौरे की बात है, तो प्रधानमंत्री इंफाल से असम के सिलचर गए और वहां रैली को संबोधित करते हुए विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर विस्तार से बात की.
व्यवस्था पर खर्च
भाजपा सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री के आधिकारिक समारोहों के साथ आयोजित राजनीतिक कार्यक्रमों पर अतिरिक्त खर्च मात्र रैलियों के आयोजन और उनकी तैयारी में लगी राशि के रूप में ही होती है.
भाजपा का दावा है कि ऐसी हर रैली में इन दोनों मदों पर होने वाले खर्च को पार्टी वहन करती है. जहां तक प्रधानमंत्री की यात्रा की बात है, सुरक्षा प्रावधानों के कारण चुनावी या राजनैतिक यात्राओं का खर्च भी सरकार ही उठाती है.
इस बारे में विस्तृत सवालों के साथ एक ईमेल प्रधानमंत्री के सूचना अधिकारी को भेजी गई, पर इस लेख को प्रकाशित किए तक कोई जवाब नहीं आया था. प्रधानमंत्री कार्यालय से जवाब मिलने पर इस लेख को अपडेट किया जाएगा.