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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशPM की सुरक्षा में सेंध ने पंजाब के DGP की समस्या उजागर की, 4 महीने में इस पद पर तीसरे अधिकारी की हुई निंदा

PM की सुरक्षा में सेंध ने पंजाब के DGP की समस्या उजागर की, 4 महीने में इस पद पर तीसरे अधिकारी की हुई निंदा

सितंबर महीने में दिनकर गुप्ता की जगह आई.पी.एस सहोता को डीजीपी बनाया गया था. फिर दिसंबर में सहोता को इस पद से हटा सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को लाया गया. पीएम की सुरक्षा में लगी सेंध ने इस सारे मामले को और खराब ही किया है.

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चंडीगढ़ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान बुधवार को हुई ‘सुरक्षा चूक’ ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद, जो फ़िलहाल म्यूज़िकल चेयर जैसा मामला बन गया है, को फिर से सुर्खियां में ला दिया है.

पिछले चार महीनों में, पंजाब पुलिस का नेतृत्व तीन अलग-अलग आईपीएस अधिकारियों ने किया है, जिनमें दो ‘कार्यवाहक’ डीजीपी भी शामिल हैं. और अब एक चौथे अधिकारी की इस पद पर नियुक्ति होनी अभी बाकी है.

अस्थिरता का यह दौर सितंबर में राज्य के राजनैतिक शीर्ष नेतृत्व में बदलाव के बाद शुरू हुई जब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह ली थी.

सिंह के चहेते अधिकारी दिनकर गुप्ता की जगह आईपीएस सहोता को डीजीपी बनाया गया था. फिर दिसंबर में सहोता को इस पद से हटा कर सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को लाया गया.

लेकिन बुधवार को, जब प्रधानमंत्री की फिरोजपुर की निर्धारित यात्रा को सुरक्षा उल्लंघन के कारण रद्द किया जाना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप के खेल में बदल गया, तो पंजाब के डीजीपी फिर से चर्चा में आ गए.

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अब इस घटना को लेकर जहां सभी विपक्षी दलों ने चट्टोपाध्याय पर जमकर हमला बोला है, वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी माने जाने वाले इस आईपीएस अधिकारी पर पंजाब कांग्रेस के भीतर से भी हमले हो रहे हैं.

गुरुवार को, भाजपा की पंजाब इकाई ने यह आरोप लगाते हुए कि यह पीएम को नुकसान पहुंचाने की एक पूर्व नियोजित साजिश थी, चट्टोपाध्याय को बर्खास्त किये जाने और राज्य के गृहमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा के इस्तीफे की मांग की.

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने भी डीजीपी को बर्खास्त किये जाने की मांग की है.

एक कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने भी इस सब के लिए डीजीपी और गृहमंत्री को जिम्मेदार ठहराया. फिरोजपुर से कांग्रेस विधायक परमिंदर सिंह पिंकी ने भी चट्टोपाध्याय को ही दोषी ठहराया.

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय और पंजाब सरकार ने इस घटना की जांच के लिए दो अलग-अलग जांच दल बनाए हैं.


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इसके पीछे की राजनीति

फ़िलहाल, पंजाब सरकार पर एक राष्ट्रीय मुद्दे में बदल गए इस सारे घटनाक्रम के सिलसिले में कड़ी कार्रवाई करने का दवाब है. लेकिन पंजाब के डीजीपी के पद – और इसके साथ-साथ पुलिस बल के कई अन्य पदों के भी- के राजनीतिकरण पर लगे प्रश्नचिन्ह का उदाहरण इस बात से मिलता है कि चन्नी के सत्ता संभालने के लगभग दो महीने बाद तक मुख्यमंत्री की नवजोत सिद्धू के साथ इस बात के लिए रस्साकशी चलती रही कि राज्य पुलिस का नेतृत्व कौन करेगा.

1987 बैच के आईपीएस अधिकारी दिनकर गुप्ता को 2019 में कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा चट्टोपाध्याय, जो उस समय इस पद की दौड़ में सबसे आगे थे, सहित अन्य पांच वरिष्ठ अधिकारियों के वरीयता क्रम का उल्लंघन करते हुए डीजीपी बनाया गया था. उनकी नियुक्ति के कारण एक लंबी मुकदमेबाजी का दौर चला जो अंततः नवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किये जाने के बाद ही समाप्त हुआ.

हालांकि, जब चन्नी ने सीएम पद का कार्यभार संभाला, तो उन्होंने गुप्ता को छुट्टी पर भेज दिया और उनकी जगह 1988 बैच के अधिकारी सहोता को नियुक्त किया, जिन्होंने केवल कुछ ही महीनों के लिए कार्यवाहक डीजीपी के रूप में कार्य किया. सहोता राज्य के डीजीपी रहे कुछ ही दलित अधिकारियों में से एक थे. मगर, चन्नी को उन्हें बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि सिद्धू उन्हें बाहर करना चाहते थे.

सिद्धू ने दावा किया कि उन्हें 2015 के बेअदबी के मामलों को लेकर सहोता के साथ समस्या थी. उन्होंने आरोप लगाया कि सहोता ने बेअदबी के मामलों की जांच कर रहे एक विशेष जांच दल के प्रमुख के रूप में गलत व्यक्तियों को हिरासत में लिया और तत्कालीन अकाली दल सरकार के इशारे पर काम किया.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा ज़ोर दिए जाने के बाद 1986 बैच के अधिकारी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय ने दिसंबर में कार्यवाहक डीजीपी का पदभार ग्रहण किया.

उसके बाद से ही चट्टोपाध्याय का कार्यकाल काफी व्यस्त रहा है. कार्यभार संभालने के लगभग तुरंत बाद उन्हें अमृतसर के स्वर्ण मंदिर और उसके बाद कपूरथला में हुए बेअदबी के मामलों से निपटना पड़ा. इन दोनों घटनाओं के कुछ ही दिनों के भीतर ही लुधियाना के एक कोर्ट परिसर में बम धमाका हो गया.

चट्टोपाध्याय ने पूर्व राजस्व मंत्री और वरिष्ठ अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स से जुड़े मामलों में उनकी कथित संलिप्तता के लिए प्राथमिकी दर्ज कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कुछ ही महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उठाया गया यह कदम कांग्रेस सरकार के लिए राजनीतिक रूप से काफी अनुकूल था.

उसके बाद से ही सिद्धू विभिन्न राजनीतिक रैलियों में बोलते समय मजीठिया को आरोपित करने के लिए अपनी सरकार की ‘बहादुरी’ का बखान करते रहे हैं.

जल्द ही होगा एक नया बदलाव?

चट्टोपाध्याय को अब जल्द ही एक पूर्णकालिक डीजीपी द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने की उम्मीद है, जिन्हें इस नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप नामित किया जाएगा.

गुप्ता को छुट्टी पर भेजे जाने के बाद, राज्य सरकार ने तीन अधिकारियों, जिन्हें डीजीपी के रूप में नियुक्त किया जा सकता था, के नाम को शॉर्टलिस्ट करने के लिए यूपीएससी से संपर्क किया था. इसके लिए पंजाब सरकार ने 10 नामों की एक सूची भेजी थी.

लेकिन, डीजीपी के रूप में ‘अपना आदमी’ रखने की चन्नी सरकार की प्रबल इच्छा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने यूपीएससी को अधिकारियों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए कट-ऑफ तारीख (अधिकारियों की सेवा के बचे हुए महीनों) को बदलने के लिए भी लिखा था. सूत्रों के अनुसार, ऐसा अनुरोध यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि चट्टोपाध्याय, जिनके सेवा काल में मुश्किल से छह महीने बचे थे, को भी इस शॉर्टलिस्ट में शामिल किया जा सके.

सूत्रों का कहना है सिद्धू के राज्य प्रमुख के पद से इस्तीफा देने के बाद आधी रात तक चला ड्रामा सिर्फ इस बात के लिए हुआ क्योंकि उन्होंने चट्टोपाध्याय का नाम इस सूची में शामिल होने तक चन्नी के साथ सुलह करने से इनकार कर दिया था.

हालांकि, 4 जनवरी को, यूपीएससी ने (राज्य सरकार के) इस अनुरोध को ठुकरा दिया और कथित तौर पर दिनकर गुप्ता, वी.के. भवरा और प्रबोध कुमार के नामों को ही अंतिम सूची में रखा है.

राज्य सरकार द्वारा अभी इस सूची के बारे में कोई भी फैसला करना बाकी है.


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सुरक्षा में लगी सेंध के मामले पर तकरार

पीएम की सुरक्षा में नियमों के उल्लंघन की घटना ने चन्नी सरकार के लिए स्थिति को और भी खराब कर दिया है.

गुरुवार को कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा कि यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके लिए पंजाब के डीजीपी और गृहमंत्री (रंधावा) जिम्मेदार हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय एजेंसियों, जो पीएम की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं, को भी समान रूप से दोषी ठहराया जाना चाहिए. इसके एक दिन पहले, फिरोजपुर के कांग्रेस विधायक परमिंदर सिंह पिंकी ने कहा था कि यदि कोई चूक हुई है, तो इसके लिए राज्य के पुलिस प्रमुख की जिम्मेदारी बनती है जिन्हें राज्य के भीतर पीएम की यात्रा के दौरान उनके साथ होना चाहिए था.

पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने भी डीजीपी को बर्खास्त करने की मांग करते हुए कहा कि वह अपने पद पर बने रहने के लायक नहीं हैं. चंडीगढ़ में पत्रकारों से बात करते हुए बादल ने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज है हीं नहीं.

इसी मुद्दे पर गुरुवार को पंजाब के राज्यपाल से मिलने के लिए अपनी पार्टी के नेताओं का नेतृत्व करने वाले राज्य भाजपा प्रमुख अश्विनी शर्मा ने प्रेस को बताया कि उन्होंने ने भी डीजीपी को बर्खास्त करने और गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग की है.

‘तबादले और पोस्टिंग एक उपकरण बन गए हैं’

इस पद के राजनीतिकरण के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए, पंजाब के पूर्व डीजीपी शशि कांत ने कहा कि भारत में पुलिस बल तथा कानून और व्यवस्था संविधान की सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट ‘राज्य सूची’ के अधिकार क्षेत्र में आती है.

कांत ने कहा, ‘यही पुलिस बल के राजनीतिकरण का प्रारंभिक बिंदु है. पुलिसकर्मियों और राजनेताओं के बीच सीधा संपर्क पुलिसकर्मियों को नेताओं के रहमोकरम पर छोड़ देता है. राज्य सरकार की मजबूत शाखा होने के कारण पुलिस कानून और व्यवस्था से जुड़े कर्तव्यों का पालन करती है. यह पुलिस को एक बाहुबली बल के रूप में बदल देता है; और इस बाहुबली बल की सबसे अधिक आवश्यकता किसे होती है?’

कांत कहते हैं, ‘किसी भी राजनेता का उद्देश्य अपनी इच्छाओं की सम्पूर्ण रूप से पूर्ति, प्रतिद्वंद्वियों का दमन और अपने वोट बैंक को सुनिश्चित करना होता है. और यहीं से पुलिस बल को राजनेताओं के अधीन करने की कहानी की शुरुआत होती है. अधिकांश पुलिसकर्मी, चाहे उनकी रैंक कुछ भी हो, तीन बुरे माने जाने वाले ‘पी’ – ‘प्रोटेक्शन, पोस्टिंग और पेट्रोनेज’ – की वजह से राजनेताओं का पक्ष लेते हैं.‘

ये राजनेता अपने मजबूत हाथ, यानि कि पुलिस बल को, अपनी गिरफ्त से फिसलने नहीं देना चाहते. यही कारण है कि विभिन्न आयोगों द्वारा सुझाए गए पुलिस सुधारों को लागू नहीं किया गया है. यहां तक कि अदालतों के आदेश का पालन भी नहीं किया जाता है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण आदेश ‘प्रकाश सिंह और अन्य बनाम भारत संघ’ के मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश है जो अन्य मुद्दों के अलावा अति-महत्वपूर्ण अधिकारियों के कार्यकाल की सुरक्षा का समर्थन करता है.

इस बीच पंजाब के पूर्व डीजीपी के.के. अत्री ने दिप्रिंट को बताया कि इस सप्ताह पीएम की सुरक्षा में लगी सेंध उस मार्ग विशेष पर किसानों के विरोध का स्थानीय स्तर पर किये जा रहे प्रबंधन में हुई एक चूक प्रतीत होती है, न कि यह किसी बड़े ‘पूर्व नियोजित’ साजिश का हिस्सा है.

उन्होंने भी पुलिस बल के राजनीतिकरण को रेखांकित किया.

अत्री ने कहा, ‘सरकारी विभागों का राजनीतीकरण, विशेष रूप से वे विभाग जिनमें पैसा कमाना शामिल होता है, सबसे अधिक है. यह अकेले पुलिस विभाग की बात नहीं है. राजनेताओं का एक पसंदीदा उपकरण, जिसका वे अक्सर उपयोग करते हैं, अधिकारियों के तबादले का होता है. अधिकांश अधिकारी तबादले को अपना अपमान भी मानते हैं. कई सारे अधिकारी भी राजनेताओं की जी-हुजूरी में ही खुश रहते हैं. लेकिन साथ ही ऐसे कई अधिकारियों के भी अनेकों उदाहरण हैं जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखते हुए अपनी सेवा पूरी की है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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