scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेशPM-CARES सरकारी फंड नहीं है, यह पारदर्शिता से काम करता है: केंद्र ने दिल्ली HC को बताया

PM-CARES सरकारी फंड नहीं है, यह पारदर्शिता से काम करता है: केंद्र ने दिल्ली HC को बताया

सम्यक गंगवाल की याचिका में कहा गया है कि पीएम केयर्स कोष एक 'राज्य' है क्योंकि इसे 27 मार्च, 2020 में प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के मद्देनगर भारत के नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था.

Text Size:

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया गया है कि प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष ‘पीएम केयर्स’ भारत सरकार का कोष नहीं है और इसके द्वारा एकत्र किया गया धन भारत की संचित निधि में नहीं जाता.

पीएम केयर्स न्यास में मानद आधार पर अपने कार्यों का निर्वहन कर रहे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में अवर सचिव ने कहा है कि न्यास पारदर्शिता के साथ काम करता है और लेखा परीक्षक उसकी निधि की लेखा परीक्षा करता है. यह लेखा परीक्षक भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार किए गए पैनल का चार्टर्ड एकाउंटेंट होता है.

यह याचिका सम्यक गंगवाल ने दायर की है. इसमें पीएम केयर्स कोष को संविधान के तहत ‘राज्य’ घोषित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, ताकि इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके. इस याचिका के जवाब में यह शपथ पत्र दाखिल किया गया.

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने इस मामले की आगे की सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है.

प्रधानमंत्री कार्यालय में अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है, ‘पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, न्यास द्वारा प्राप्त धन के उपयोग के विवरण के साथ लेखा परीक्षा रिपोर्ट उसकी आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाती है.’

अधिकारी ने कहा, ‘मैं कहता हूं कि जब याचिकाकर्ता लोक कल्याण के लिए काम करने वाला व्यक्ति होने का दावा कर रहा है और केवल पारदर्शिता के लिए विभिन्न राहतों के लिए अनुरोध करना चाहता है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीएम केयर्स भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 की परिभाषा के दायरे में ‘राज्य’ है या नहीं.’

इसमें कहा गया है कि भले ही न्यास संविधान के अनुच्छेद 12 में दी गई परिभाषा के तहत एक ‘राज्य’ हो या अन्य प्राधिकरण हो या सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के प्रावधानों की परिभाषा के तहत कोई ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ हो, तब भी तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं है.

इसमें कहा गया है कि न्यास द्वारा प्राप्त सभी दान ऑनलाइन भुगतान, चेक या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं और प्राप्त राशि की लेखा परीक्षा की जाती है तथा इसकी रिपोर्ट एवं न्यास के खर्च को वेबसाइट पर दिखाया जाता है.

हलफनामे में कहा गया है, ‘न्यास किसी भी अन्य परमार्थ न्यास की तरह बड़े सार्वजनिक हित में पारदर्शिता और लोक भलाई के सिद्धांतों पर कार्य करता है और इसलिए उसे पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी प्रस्तावों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती.’

इसमें दोहराया गया, ‘न्यास की निधि भारत सरकार का कोष नहीं है और यह राशि भारत की संचित निधि में नहीं जाती है.’

अधिकारी ने बताया कि वह पीएम केयर्स कोष में अपने कार्यों का निर्वहन मानद आधार पर कर रहे हैं, जो एक परमार्थ न्यास है और जिसे संविधान द्वारा या उसके तहत या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के जरिए नहीं बनाया गया है.

उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार का अधिकारी होने के बावजूद, मुझे मानद आधार पर पीएम केयर न्यास में अपने कार्यों का निर्वहन करने की अनुमति है.’

सम्यक गंगवाल की याचिका में कहा गया है कि पीएम केयर्स कोष एक ‘राज्य’ है क्योंकि इसे 27 मार्च, 2020 में प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के मद्देनगर भारत के नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था.

उनके वकील ने अदालत से कहा था कि अगर यह पाया जाता है कि पीएम केयर्स कोष संविधान के तहत ‘राज्य’ नहीं है, तो डोमेन नाम ‘जीओवी’ का उपयोग, प्रधानमंत्री की तस्वीर, राज्य का प्रतीक आदि को रोकना होगा.

याचिका में कहा गया है कि कोष के न्यासी प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री हैं.


यह भी पढ़ें: लव, सेक्स, बदला : असम में बढ़ रहा है साइबर अपराध और वो देश के बाक़ी हिस्सों से अलग है


 

share & View comments