वाराणसी: पिछले कई महीनों से उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर एक और जमकर लड़े जा रहे कानूनी विवाद के केंद्र में है. हालांकि, यह मुद्दा कई दशक पहले साल 1991, का है जब ‘मंदिर की भूमि’ को हिंदू समुदाय को सौंपने के निर्देश देने की मांग करते हुए अदालत में एक मुकदमा दायर किया गया था.
विवाद की नवीनतम वजह मस्जिद परिसर के भीतर स्थित ‘मां श्रृंगार गौरी स्थल और अन्य क्षेत्रों’ का एक सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी है, जिसके बारे में पिछले अप्रैल में महिलाओं के एक समूह द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति मांगने वाली एक याचिका के जवाब में एक दीवानी अदालत द्वारा आदेश दिया गया था.
यह सर्वेक्षण पिछले सप्ताहांत में हुआ था, लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी की आपत्तियों के बीच यह परिसर के बाहरी इलाके तक ही सीमित था. यह कमिटी सर्वेक्षण दल के मस्जिद और उसके चारों ओर लगे बैरिकेडिंग में प्रवेश करने का विरोध कर रही थी.
इसके बाद इंतेज़ामिया कमिटी ने भी इस शनिवार को दीवानी अदालत का रुख किया और अधिवक्ता आयुक्त (एडवोकेट कमिश्नर) को इस आधार पर बदले जाने की मांग की कि उसे ‘उनकी निष्पक्षता पर संदेह है’. मंगलवार को इस मामले की सुनवाई हुई थी और इस पर बुधवार को भी सुनवाई होने की संभावना है.
दिप्रिंट उस जटिल कानूनी लड़ाई पर एक बारीक नजर डाल रहा, जिसने न केवल एक पुरानी धार्मिक बहस को पुनर्जीवित कर दिया है, बल्कि यह तेजी के साथ एक और राजनीतिक विवाद के रूप में बदलता जा रहा है.
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर में 18वीं सदी में बना काशी विश्वनाथ मंदिर और 17वीं सदी की ज्ञानवापी मस्जिद स्थित हैं.
काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की वेबसाइट के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण साल 1780 में इंदौर की मराठा महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में माना जाता है कि इसका निर्माण 1669 में मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर हिंदू देवता शिव को समर्पित एक पुराने मंदिर के विध्वंस के बाद किया गया था.
इतिहासकारों के द्वारा दिए गए विवरणों में यह भी कहा गया है कि ग्वालियर की बैजा बाई, पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह, नागपुर के रघुजी भोंसले तृतीय जैसे अन्य कई शासकों द्वारा भी इस परिसर में कई संरचनात्मक और स्थापत्य सम्बन्धी नयी चीजें जोड़ी गईं थीं.
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि आज की ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ उस जगह पर बनी है जहां कभी विश्वेश्वर मंदिर हुआ करता था. इसे साल 1194 और साल 1669 के बीच कई आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था और इसकी पश्चिमी दीवार में अभी भी पुराने मंदिर के भग्नावशेष लगे हैं.
ब्राह्मण विद्वानों की एक संस्था, केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा का दावा है कि औरंगजेब द्वारा ध्वस्त किया गया विश्वेश्वर मंदिर आंशिक रूप से अकबर के शासन के दौरान राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था और 16 वीं शताब्दी में राजा टोडरमल द्वारा भी इस पर काम जारी रखा गया था.
1936 से चल रहा है मुकदमा, 1991 में दायर हुआ था मालिकाना हक का मुकदमा
यह परिसर कई दौर की मुकदमेबाजी की विषय-वस्तु रहा है. सबसे पहला मुकदमा 1936 में तीन मुसलमानों द्वारा दायर किया गया था जिन्होंने मांग की थी कि पूरे परिसर को मस्जिद का हिस्सा घोषित किया जाए. वह याचिका खारिज कर दी गई और 1942 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ दायर एक अपील भी खारिज कर दी गई थी.
1991 में वाराणसी के एक सिविल कोर्ट में दायर किए गए मालिकाना हक विवाद से सम्बंधित पहली याचिका में तीन वादी थे – पंडित सोमनाथ व्यास, जिन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशज होने का दावा किया, संस्कृत के प्रोफेसर डॉ रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे. एडवोकेट विजय शंकर रस्तोगी उनकी तरफ से वकील थे.
इस याचिका में ‘मंदिर की भूमि’ को हिंदू समुदाय को सौंपने के लिए कहा गया था और यह तर्क दिया कि प्लेसेस ऑफ़ वरशिप (स्पेशल प्रोविशंस) एक्ट, 1991, उस पर लागू नहीं होता है क्योंकि यह मस्जिद उस मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी, जिसके हिस्से अभी भी मौजूद हैं.
यह अधिनियम ‘किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र और उससे जुड़े या उसके प्रासंगिक मामलों को उसी रूप में रखने का प्रावधान करता है जैसा कि यह 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में था.
दिप्रिंट से बात करते हुए, एडवोकेट रस्तोगी ने कहा कि दीवानी अदालत ने इस मामले का नतीजा हिंदू याचिकाकर्ताओं के पक्ष में दिया था, जिसके खिलाफ इंतेज़ामिया कमिटी ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश I की अदालत में एक दीवानी पुनरीक्षण याचिका (सिविल रिवीजन पेटिशन) दायर की थी.
उन्होंने कहा, ‘अदालत ने इस याचिका का निपटारा करते हुए निर्देश दिया कि इस परिसर के धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए इस बारे में सबूत पेश किए जाएं कि यह 15 अगस्त 1947 को मंदिर था या मस्जिद.’
हालांकि, मस्जिद कमिटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने यह तर्क देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया कि इस विवाद को स्थगित नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा किया जाना प्लेसेस ऑफ़ वरशिप (स्पेशल प्रोविशंस) एक्ट, 1991 द्वारा वर्जित है.
रस्तोगी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने उस मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी और यह अब तक लंबित है.
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वर्तमान कानूनी विवाद
इस बीच 8 अप्रैल 2021 को, विश्व वैदिक सनातन संघ नामक एक संगठन द्वारा समर्थित दिल्ली स्थित राखी सिंह ने चार अन्य महिलाओं – मंजू व्यास, सीता साहू, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक – के साथ मिलकर ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी की मूर्तियों की दैनिक पूजा की अनुमति के लिए अदालत में एक याचिका दायर की.
इसके बाद वाराणसी के सीनियर डिवीजन सिविल कोर्ट ने इस परिसर के निरीक्षण के लिए एक वकील को कोर्ट कमिश्नर के रूप में नियुक्त करते हुए आदेश दिया कि परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया जाए.
इस साल 12 अप्रैल को, मस्जिद की प्रबंधन कमिटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसमें काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर के निरीक्षण हेतु निचली अदालत द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी. हालांकि, यह याचिका भी 22 अप्रैल को खारिज कर दी गई थी.
रस्तोगी ने दिप्रिंट को बताया कि चूंकि निचली अदालत की कार्यवाही पर उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए स्थगन आदेश को छह महीने से अधिक हो गए थे और कमिटी की याचिका भी खारिज कर दी गई थी, अतः अधिवक्ता आयुक्त अजय कुमार के नेतृत्व में अदालत द्वारा नियुक्त टीम ने 6-7 मई को सर्वेक्षण किया.
सर्वे को रोका गया
जब कुमार के नेतृत्व वाली टीम ने 6-7 मई को मस्जिद और उसके अंदर एक बैरिकेडिंग क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास किया, तो उन्हें एक भीड़ द्वारा रोक दिया गया.
इस बीच, इंतेज़ामिया कमिटी ने अधिवक्ता आयुक्त की ओर से पक्षपात का आरोप लगाया है, और ‘1992 की एक सुरक्षा योजना’ को उसकी आपत्ति के आधार पर बताया है.
इंतेजामिया कमिटी के संयुक्त सचिव सैय्यद मोहम्मद यासीन ने रविवार को मीडियाकर्मियों को बताया था, ‘हम उन्हें (एडवोकेट कमिश्नर की टीम को) मस्जिद और बैरिकेडिंग के अंदर प्रवेश नहीं करने देंगे. अगर वे अपना सर्वे (परिसर के) बाहर करना चाहते हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं है. जब यह सुस्थापित तथ्य है कि बैरिकेडिंग की सीमा के भीतर केवल मुसलमान और सुरक्षाकर्मी ही प्रवेश कर सकते हैं, तो क्या इन्हें हटा दिया जाना चाहिए? हम किसी को अंदर नहीं आने देंगे.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति के दौरान उनके पक्ष की उचित ढंग से सुनवाई नहीं की गई थी.
विवाद की असल जड़ और ‘1992 की सुरक्षा योजना’
हालांकि अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या किसी तरह का ‘अध्यारोपण (सुपर इम्पोजिशन), परिवर्तन या जोड़-तोड़ हुआ था अथवा किसी अन्य धार्मिक संरचना के साथ या इसके ऊपर किसी भी प्रकार का संरचनात्मक ओवरलैपिंग है’, मस्जिद कमिटी इस बात पर अड़ी है कि वह किसी को भी मस्जिद में प्रवेश नहीं करने देगी और सर्वेक्षण को बाहरी दीवार तक ही सीमित रखा जाना चाहिए.
वाराणसी के जिन कई स्थानीय निवासियों के साथ दिप्रिंट से बात की उन्होंने कहा कि 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस तक, हिंदू और मुसलमान दोनों बिना किसी सुरक्षा जांच के परिसर में स्वतंत्र रूप से प्रवेश किया करते थे.
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व पुजारी महंत कुलपति तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘1992 के बाद, नई सुरक्षा योजना के तहत हिंदुओं को मस्जिद परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था.’
‘ज्यादा राजनीति, अंतहीन मामला’
गंगा की सफाई के लिए समर्पित एक गैर-सरकारी संगठन ‘संकट मोचन फाउंडेशन’ के अध्यक्ष विश्वंभर नाथ मिश्रा ने कहा कि यह विवाद ‘एक अनावश्यक और अंतहीन मामला’ है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘काशी के तो कंकड़-कंकड़ में शिव हैं. ज्यादा खुदाई करने पर आपको हर जगह शिवलिंग मिल जाएंगे, लेकिन फिर आप इसके साथ कितनी दूर तक जा सकते हैं? यह एक अंतहीन मामला है. इससे भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की जानी है लेकिन निहित स्वार्थों के कारण यह मसला बना हुआ है.’
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा, जिन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर गलियारे के निर्माण के दौरान ‘पुराने मंदिरों को उजाड़े जाने’ की आलोचना करते हुए कई फेसबुक पोस्ट लिखे थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘मां श्रृंगार गौरी स्थल मस्जिद के पीछे की ओर प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर की दीवार के पास एक मंच पर स्थित है, जो अभी भी मस्जिद का हिस्सा है. सरकार ने इसके साथ सड़क बना दी है. पहले जहां पूजा के लिए जगह होती थी, वहीं अब चबूतरे के साथ सट कर दब गई है. (काशी विश्वनाथ) गलियारे के निर्माण के दौरान विश्वनाथ मंदिर के अंदर से कई मूर्तियां उखड़ गईं थी, जो वास्तविक समस्या है. इस स्थल का सर्वेक्षण बाहर से भी किया जा सकता है.’
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