नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा दायर उस याचिका की ग्राह्यता (maintainability) पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध को बरकरार रखने के यूएपीए ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी गई है.
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला की खंडपीठ ने की. सुनवाई का केंद्र यह था कि क्या हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत इस अपील की सुनवाई का अधिकार है या चुनौती सीधे सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 136 के तहत दी जानी चाहिए.
केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस.वी. राजू ने याचिका की ग्राह्यता पर कड़ा विरोध जताया. उन्होंने दलील दी कि चूंकि एक मौजूदा हाईकोर्ट जज ने यूएपीए ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता की थी, इसलिए उसके फैसले को उसी हाईकोर्ट की दूसरी पीठ के सामने चुनौती नहीं दी जा सकती.
एएसजी के अनुसार, इस तरह की चुनौती सुप्रीम कोर्ट के सामने ही दी जा सकती है.
“हाईकोर्ट के मौजूदा जज ने संगठन पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखा है. ऐसे में रिट कैसे दायर हो सकती है?” एएसजी राजू ने कार्यवाही के दौरान सवाल उठाया. उन्होंने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल की शक्तियां अधीनस्थ अदालतों की श्रेणी में नहीं आतीं, इसलिए हाईकोर्ट द्वारा न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है.
पीएफआई के वकील, जो स्वयं पेश हुए, ने तर्कों का एक नोट दाखिल किया और याचिका की ग्राह्यता को सही ठहराने के लिए पहले के फैसलों का हवाला दिया. एक पुराने फैसले का जिक्र करते हुए वकील ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत रिट दायर करना मान्य है.
“इस अदालत ने माना है कि 226 के तहत रिट दायर की जा सकती है,” वकील ने कहा, और न्याय तक पहुंच और कानूनी उपाय की आवश्यकता पर जोर दिया.
वकील ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जब याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया था, तब उसने याचिका की ग्राह्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की थी, जिससे स्वतंत्र न्यायिक व्याख्या की गुंजाइश बचती है.
पीठ ने माना कि सुप्रीम कोर्ट ने ग्राह्यता के मुद्दे पर कोई स्पष्ट फैसला नहीं दिया है और यह भी कहा कि उद्धृत फैसलों पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जा सकता है. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका की ग्राह्यता पर आदेश सुरक्षित रख लिया.
“सुना गया, आदेश याचिका की ग्राह्यता पर सुरक्षित रखा गया,” पीठ ने निष्कर्ष दिया.
केंद्र ने सितंबर 2022 में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर यूएपीए के तहत पांच साल का प्रतिबंध लगाया था, जिसमें आतंकवादी गतिविधियों और साम्प्रदायिक नफरत भड़काने के आरोप लगाए गए थे. यूएपीए ट्रिब्यूनल, जिसकी अध्यक्षता एक मौजूदा हाईकोर्ट जज ने की थी, ने मार्च 2024 में इस प्रतिबंध को बरकरार रखा.
गृह मंत्रालय ने पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों, जिनमें कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब इंडिया फाउंडेशन और नेशनल वुमेन्स फ्रंट शामिल हैं, को “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया.
सरकार ने व्यापक सबूत पेश किए, जिनमें वीडियो फुटेज और 100 से अधिक गवाहों की गवाही शामिल थी, जो पीएफआई को आईएसआईएस, सिमी और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जोड़ते थे. यह भी आरोप लगाया गया कि पीएफआई आतंकवाद के वित्तपोषण, टारगेटेड किलिंग और सार्वजनिक व्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिशों में शामिल था.
प्रतिबंध के बाद, पीएफआई से जुड़े लगभग 150 लोगों को देशभर में हिरासत में लिया गया.
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