नयी दिल्ली, 28 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली वक्फ बोर्ड के प्रशासक के तौर पर अश्विनी कुमार की नियुक्ति को रद्द करने का आग्रह करने वाली याचिका को 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर खारिज कर दिया।
यह याचिका इस साल के शुरू में अखुंदजी मस्जिद को तोड़ने को लेकर दायर की गई थी।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने यामीन अली की याचिका को प्रचार हथकंडा बताया और कहा कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है क्योंकि इसमें बोर्ड के प्रशासक के रूप में दिल्ली सरकार के अधिकारी की नियुक्ति को रद्द करने के लिए कोई वैध कारण नहीं दिया गया है।
न्यायमूर्ति ने 24 मई को पारित आदेश में कहा, “यह अदालत वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने की इच्छुक नहीं है और याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए रिट याचिका को खारिज करना चाहती है और यह राशि चार हफ्ते के अंदर सशस्त्र बल युद्ध हताहत कल्याण कोष में जमा कराई जाए।”
न्यायाधीश ने कहा, “ इस अदालत को प्रतिवादी नंबर 2 की नियुक्ति को रद्द करने का कोई कारण नहीं मिला। यह नहीं कहा जा सकता कि प्रतिवादी नंबर 2 प्रशासक के रूप में नियुक्त होने के योग्य नहीं है। यह रिट याचिका और कुछ नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और एक प्रचार पाने की मंशा से दायर की गई है।”
महरौली निवासी याचिकाकर्ता ने कहा था कि उनकी मां को प्राचीन मस्जिद के निकट कब्रिस्तान में दफनाया गया था, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह दिल्ली वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।
उनका दावा था कि प्रशासक मस्जिद के संरक्षक होने के बावजूद मस्जिद को तोड़े जाने से बचाने में विफल रहे। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उन्हें पद से हटा दिया जाना चाहिए।
माना जाता है कि ‘अखूंदजी मस्जिद’ 600 साल से अधिक पुरानी थी। उसे तथा उसके पास स्थित बेहरुल उलूम मदरसे को अवैध ढांचा घोषित कर दिया गया और 30 जनवरी को डीडीए द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।
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नोमान नरेश
नरेश
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