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Monday, 4 November, 2024
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जयपुर धमाकों के आरोप में 11 साल जेल में रहने के बाद शख्स बरी, उन्हीं सबूतों पर फिर अभियुक्त बनाया

शाहबाज़ अहमद 2008 के जयपुर धमाकों से जुड़े, 8 मामलों में आरोपी था और 2019 में उसे सभी से बरी कर दिया गया. लेकिन रिहा करने की बजाय, उस पर एक और केस ठोंक दिया गया. आख़िरकार पिछले हफ्ते उसे ज़मानत मिल पाई.

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नई दिल्ली: 42 वर्षीय शाहबाज़ अहमद ने 2008 जयपुर धमाके मामले में कथित संलिप्तता के चलते क़रीब 11 साल विचाराधीन क़ैदी के तौर पर जेल में गुज़ारे थे, जिसके बाद दिसंबर 2019 में उसे सभी आठ मामलों में बरी कर दिया गया था.

लेकिन, जेल से रिहा किए जाने की बजाय, राजस्थान पुलिस ने अहमद को 9वीं बार, उन्हीं सबूतों के आधार पर फिर से आरोपी बना दिया, जिन्हें उसे बेगुनाह घोषित करने वाली अदालत ने ख़ारिज कर दिया था.

पिछले हफ्ते, आख़िरकार उसे ज़मानत मिली और राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे जेल से रिहा कर दिया, जिसने इस बात पर हैरत का इज़हार किया कि पुलिस ने 9वें केस में उस पर उन 12 सालों में मुक़दमा नहीं किया, जो उसने जेल में बिताए थे.

न्यायमूर्ति पंकज भंडारी की एक सदस्यीय बेंच ने कहा कि अहमद ने 12 साल जेल में काटे हैं- जज ने ये शब्द इसलिए इस्तेमाल किए, क्योंकि अहमद को आख़िरकार सभी आरोपों से बरी कर दिया गया- और उन्होंने सवाल किया कि सबसे ताज़ा मामले में, उसे पहले गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया.

जब जज ने सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता से ये सवाल किया, तो एचसी के आदेश के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, उन्हें इसकी कोई खबर नहीं थी.


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शाहबाद अहमद के खिलाफ नौवें केस में, ख़ारिज किए जा चुके सबूत का हवाला

13 मई 2008 को जयपुर में आठ स्थानों पर, नौ बम धामाके हुए थे, जिनमें 71 लोग मारे गए थे और 185 लोग घायल हुए थे.

आठ बम शाम 7.20 बजे से 7.45 बजे के बीच फटे थे, जबकि 9वें को पुलिस ने नाकाम कर दिया था. पुलिस के आरोप पत्र के मुताबिक़, सभी बम उन जगहों पर खड़ी साइकिलों से बंधे हुए थे. उनमें बॉल बियरिंग्स के साथ अमोनियम नाइट्रेट था, जिन्हें तारों से टाइमर्स के साथ जोड़ा गया था.

धमाकों के फौरन बाद कई मीडिया घरानों को एक ईमेल भेजा गया, जिसमें आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने घटना की ज़िम्मेदारी ली थी. पुलिस के अनुसार, ये अहमद था जिसने वो ईमेल, उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद के एक कैफे से भेजा था. इस आरोप को साबित करने के लिए राजस्थान पुलिस ने साइबर कैफे मालिक को, बतौर गवाह पेश किया था.

लेकिन, 18 दिसंबर 2019 को, एक विशेष अदालत ने अहमद को बरी कर दिया लेकिन अन्य चार अभियुक्तों को मौत की सज़ा सुनाई. कोर्ट में गवाही के दौरान साइबर कैफे मालिक, अहमद को अपनी दुकान में देखने की अपनी बात से मुकर गया.

लेकिन जब उसका परिवार और वकील, अहमद की रिहाई कराने के लिए जेल पहुंचे तो उन्हें पता चला कि राजस्थान पुलिस ने उसके खिलाफ, एक नौवां केस दायर कर दिया था.

जेल प्रशासन ने केवल 25 दिसंबर को ही, अहमद के वकीलों को केस में उसकी गिरफ्तारी के बारे में सूचित किया.

एचसी में अहमद की ज़मानत पर सुनवाई के दौरान उसके वकीलों की दलील थी कि अहमद के खिलाफ दायर नई चार्जशीट, ख़ारिज किए गए सुबूतों पर आधारित थी और इसकी भाषा शब्दश: वही थी, जो उसके खिलाफ पिछले आठ मुक़दमों में दायर की गई चार्जशीट्स की थी.

उसके वकील मुजाहिद अहमद ने दिप्रिंट से कहा कि नौवें केस में उस पर चल रहा मुक़दमा, दोहरे ख़तरे के सिद्धांत के ख़िलाफ था, जिसके तहत किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए दो बार मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता.

इसी आधार पर अगस्त 2020 में निचली अदालत में उनकी रिहाई के लिए एक याचिका दायर की गई.

इस मामले की 15 बार तारीख़ें पड़ीं, लेकिन कोई कारगर सुनवाई नहीं हुई और आख़िरकार निचली अदालत ने उसकी ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी, जिसके बाद उसे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा.

हाईकोर्ट के चार पन्नों के आदेश में दोहरे ख़तरे के सिद्धांत का संज्ञान लिया गया और जज ने कहा, ‘विद्वान अतिरिक्त महाधिवक्ता कोर्ट को ये बताने की स्थिति में नहीं थे कि फरियादी को मौजूदा एफआईआर के तहत क्यों गिरफ्तार किया है, जबकि इसी तरह की आठ एफआईआर्स में, उसे दोषी नहीं पाया गया था’.

जेल गार्ड्स पर कथित हमले के मामले में मुक़दमा

लेकिन, धमाका मामला अकेला केस नहीं था, जिसमें जेल में रहने के दौरान अहमद को गिरफ्तार किया था. मार्च 2019 में उसके खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें उसके ऊपर जेल के गार्ड्स पर शारीरिक हमले का आरोप लगाया गया था.

मुजाहिद के अनुसार, अहमद ने जेल अधिकारियों के ख़िलाफ कई अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों को लिखा था, जिसमें आंतकवाद के आरोप का सामना कर रहे क़ैदियों के साथ, अमानवीय बर्ताव को उजागर किया गया था.

उसके वकील ने कहा कि इस कारण से, ‘शाहबाज़ को सबक़ सिखाने के लिए’ एफआईआर दर्ज की गई थी.

अहमद को इस केस में जुलाई 2019 में गिरफ्तार किया गया और इस साल जनवरी में उसे सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई, जिसने अपने आदेश में इस बात को नोट किया कि ये अहमद था जिसे 11 घाव आए थे.

इसके अलावा, जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने, ये भी आदेश दिया कि राजस्थान सरकार किसी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से तथ्य खोज सर्वेक्षण कराए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे. इस आदेश का पिछले हफ्ते अनुपालन किया गया.

मुजाहिद ने दिप्रिंट से कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को लिए गए अपने पत्रों में, अहमद ने आतंकी मामलों का सामने कर रहे, विचाराधीन क़ैदियों के साथ हो रहे, भेदभाव पर रोशनी डाली थी.

अपने पत्रों में, उसने ज़िला जज से कहा था कि वो महीने में एक या दो बार जेल का दौरा करें, और क़ैदियों के साथ बातचीत करके उनकी शिकायतें सुनें.

मुजाहिद ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये मांग उठाने के लिए उसकी पिटाई की गई. शाहबाज़ ने ख़ून से सने कपड़े सेफ कस्टडी में रखे थे, लेकिन 1 मार्च को जब वो जेल से बाहर आया, तो उसे वो कपड़े बाहर लाने नहीं दिया गया. अब हमने एक याचिका डाली है कि उन कपड़ों को सुरक्षित रखने के निर्देश जारी किए जाएं, क्योंकि तथ्य खोजी जांच में उनकी ज़रूरत पड़ेगी’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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