(अनिल भट्ट)
खौर (अखनूर), 17 मई (भाषा) नियंत्रण रेखा के पार से भारी गोलाबारी से तबाह हुए जम्मू जिले के खौर-पर्गवाल सेक्टर के कई सीमावर्ती गांवों के निवासी अपने घर, पशुधन और आजीविका खोने के बाद सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।
मकानों के क्षतिग्रस्त होने और पशुधन के नष्ट होने के बाद, वे अब सरकार से तत्काल आश्रय- सिर पर छत और दीर्घकालिक पुनर्वास प्रदान करने का आग्रह कर रहे हैं।
पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले में 26 लोगों के मारे जाने के बाद पाकिस्तान और इसके कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में आतंकी ढांचे को निशाना बनाकर भारत द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किए जाने के बाद यह गोलाबारी हुई थी।
जम्मू में हाल में हुई गोलाबारी और ड्रोन हमलों में 27 लोग मारे गए और 70 से अधिक घायल हो गए। हजारों लोगों ने नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्रों से पलायन कर सरकारी राहत शिविरों में शरण ली थी।
सीमावर्ती गांव की रहने वाली कमला देवी अपने भाई के साथ लौटीं तो देखा कि उनका घर बर्बाद हो चुका है और उनके मवेशी मर चुके हैं। रुंधे हुए स्वर में उन्होंने कहा, ‘‘अब हम कहां रहेंगे? हम इन जानवरों पर निर्भर थे। वे मर चुके हैं और हमारा घर भी बर्बाद हो चुका है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मेरे पति के मना करने के बावजूद मैं जबरदस्ती घर वापस आ गई। अब यहां कोई काम नहीं है। हमें रहने के लिए जगह दें। हम बेघर हैं।’’
विस्थापन के दर्द को याद करते हुए कमला कहती हैं, ‘‘सीमा पर तनाव के कारण हम भागकर अपने पिता के घर में शरण लिए हुए थे। 10 मई को संघर्षविराम की घोषणा की गई थी। मेरे पति घर पर थे, लेकिन शाम को चले गए। उस रात संघर्षविराम के बावजूद पाकिस्तान ने हमारे गांव पर भारी गोलाबारी की। दो गोले हमारे घर पर गिरे, हमारे तीन मवेशी मारे गए। हम बाल-बाल बच गए।’’
बार-बार होने वाली गोलाबारी और पिछले कुछ साल में संघर्षविराम समझौते की कथित विफलता को लेकर ग्रामीणों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। पूर्व पंचायत सदस्य जोगिंदर लाल ने पूरी तरह संघर्षविराम की मांग की है। अन्य ग्रामीणों ने भी यही मांग की।
उन्होंने कहा, ‘‘जब पाकिस्तान संघर्षविराम का सम्मान नहीं करता तो संघर्षविराम का क्या मतलब है? हम पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए युद्ध चाहते हैं। हम किसी भी सरकारी नीति के बंधक नहीं बन सकते जो हमें अनिश्चितता में डालती है।’’
दीपक कुमार के कान में मामूली चोट लगी है और उनके घर को नुकसान पहुंचा है। उन्होंने याद किया कि कैसे गोलाबारी में उनके पड़ोसी करण सिंह का मकान नष्ट हो गया।
कुमार ने कहा, ‘‘यह पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए युद्ध जैसा था। अगर वे भविष्य में आतंकी हमले करते हैं, तो हमें मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। लेकिन यह (जैसे को तैसा) नीति सीमावर्ती निवासियों के लिए और अधिक कष्ट लाती है। इसका एकमात्र समाधान पाकिस्तान के साथ युद्ध है।’’
घर खोने का दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपने सिर पर छत चाहिए। हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आग्रह करते हैं कि वे हमारे लिए आश्रय और मुआवजा सुनिश्चित करें। हममें से ज़्यादातर लोग अब अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं।’’
हाल में हुए संघर्ष के निशान गांवों में अब भी मौजूद हैं। क्षतिग्रस्त मकान, टूटी दीवारें, टूटी खिड़कियां, खून के धब्बे और मृत मवेशी नुकसान को दर्शाते हैं।
लाल ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सैन्य कार्रवाई के लिए अपना समर्थन दोहराया। उन्होंने कहा, ‘‘हम सेना और प्रधानमंत्री मोदी के साथ हैं। हम निर्णायक युद्ध चाहते हैं। हम 1947 से ही युद्ध कर रहे हैं, फिर 1965, 1971 और 1999 में भी युद्ध किया। हम कब तक पाकिस्तानी गोलाबारी से पीड़ित होते रहेंगे? केवल युद्ध ही हमें शांति दिला सकता है।’’
जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए मुख्य सचिव अटल डुल्लू ने अखनूर और खौर का दौरा किया तथा मकानों और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान का निरीक्षण किया तथा प्रशासन को राहत और पुनर्वास कार्य में तेजी लाने का निर्देश दिया।
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति (जेकेपीसीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद, जिन्होंने कई बार इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है, ने प्रभावितों के लिए भूमि और वित्तीय सहायता की मांग की।
ताराचंद ने कहा, ‘‘हम मांग करते हैं कि सीमा के आसपास रहने वाले प्रत्येक परिवार को 10 मरला प्लॉट और 5 लाख रुपये दिए जाएं ताकि वे सुरक्षित क्षेत्रों में जा सकें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पर्गवाल-खौर-गरखल-छंब क्षेत्र में 80 से ज़्यादा गांव हैं। गोलाबारी से 10 किलोमीटर तक के इलाके प्रभावित हुए हैं। नुकसान बहुत ज़्यादा है।’’
जम्मू के उपायुक्त सचिन कुमार वैश्य ने भी लोगों की शिकायतें सुनने के लिए छंब सेक्टर का दौरा किया। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार प्रभावित लोगों के लिए सभी ज़रूरी सहायता और उपाय सुनिश्चित करेगी।’’
भाषा आशीष नेत्रपाल
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