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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'एक रुपये की गड़बड़ी पर भी भारी जुर्माना'- योगी की GST रेड का कानपुर के व्यापारियों ने क्यों किया विरोध

‘एक रुपये की गड़बड़ी पर भी भारी जुर्माना’- योगी की GST रेड का कानपुर के व्यापारियों ने क्यों किया विरोध

स्टेट जीएसटी की टीमों ने पिछले सप्ताह पूरे यूपी में छापेमारी की थी. अधिकारियों ने कहा कि सिर्फ GST पंजीकरण और Tax से बचने वालों को निशाना बनाया गया है, लेकिन कार्रवाई बड़ी गड़बड़ियों को उजागर कर रही है.

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कानपुर: योगी आदित्यनाथ सरकार की 5 दिसंबर से पूरे राज्य में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रेड मारने के बाद से उत्तर प्रदेश के व्यापारियों के बीच जो गुस्सा उबल रहा था, वह अब सड़कों पर नज़र आने लगा है.

यूपी में राज्य जीएसटी विभाग की 248 टीमों ने 71 जिलों में छापेमारी की थी. यह कार्य प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर किया गया, जिन्होंने राज्य में ‘जीएसटी चोरी’ के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान किया था.

स्थानीय और राज्य स्तर के बाज़ार संघों ने इस कार्रवाई का बड़े पैमाने पर विरोध किया है. उन्होंने चेतावनी दी कि वे छापे या सर्वेक्षण को बर्दाश्त नहीं करेंगे.

कथित तौर पर कर चोरी करने वाली दुकानों पर मारे गए ये छापे जीएसटी पर अमल में गड़बड़ियों को उजागर कर रहे हैं. जीएसटी लागू होने के पांच साल बाद भी प्रतिरोध का सामना कर रहा है.

हालांकि, इसे लेकर अभी तक कोई आधिकारिक आंकड़े सामने नहीं आए हैं, लेकिन एक समाचार रिपोर्ट ने कर चोरी की राशि कम से कम 208 करोड़ रुपये बताई है.

कानपुर से लेकर वाराणसी तक छोटे और मंझोले व्यापारियों ने अपनी दुकानों के शटर गिरा दिए, विरोध प्रदर्शन किया और कागज़ फाड़ते हुए अधिकारियों से बहस कि वे टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं. कईं व्यापारियों ने दावा किया कि उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन कुछ व्यापारियों ने दिप्रिंट के सामने स्वीकार किया कि उन्होंने जीएसटी के तहत पंजीकरण नहीं कराया था, क्योंकि ऐसा कर वह अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा खो देते.

व्यापारियों ने या तो परेशान किए जाने के डर से या जीएसटी को लेकर लगाए जा रहे जुर्माने से बचने के लिए अपनी दुकानों को बंद कर दिया. इससे उनका कारोबार ठप हो गया है.

व्यापारियों का दावा है कि 40 लाख रुपये तक के वार्षिक कारोबार वाले व्यवसाय को जीएसटी का भुगतान करने से छूट मिली हुई है, लेकिन इस कार्रवाई में उन्हें भी निशाना बनाया गया था.

कानपुर देहात जिले के अकबरपुर इलाके के एक किराना स्टोर के मालिक मोहम्मद अकील ने कहा, ‘वे आए, चैकिंग की, कुछ दस्तावेज़ी काम किया और चले गए. उनका कहना था कि उन्हें ऊपर से आदेश है. मैं जीएसटी के दायरे में नहीं आता, फिर भी उन्होंने मेरी दुकान की जांच की.’

बता दें कि सात दिसंबर को जिले के अकबरपुर क्षेत्र में चार अन्य दुकानों पर भी इसी तरह की छापेमारी की गई थी, लेकिन यूपी उद्योग व्यापार मंडल या यूपी ट्रेडर्स एसोसिएशन की स्थानीय इकाई के सदस्य दुकानों के आसपास इकट्ठा हो गए और और उन्होंने अधिकारियों की टीम को खदेड़ दिया.

दिप्रिंट ने प्रतिक्रिया के लिए उत्तर प्रदेश के कमर्शियल टैक्स कमिश्नर मिनिस्थी एस.के से संपर्क साधने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

छापे की निगरानी करने वाले कानपुर जोन के संयुक्त अतिरिक्त आयुक्त (जीएसटी) कमलेश कुमार ने दावा किया कि कार्रवाई इस बात को पता लगाने के लिए की गई थी कि छोटे व्यापारियों का वास्तव में 40 लाख रुपये से कम का वार्षिक कारोबार है या नहीं.

कुमार का राज्य जीएसटी विभाग के गोरखपुर जोन में ट्रांसफर कर दिया गया है. उन्होंने गुरुवार को अपना नया पद संभाला है. अधिकारी ने कहा, हालांकि स्थानांतरण एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन छापे से पहले ही उन्हें अपने ट्रांसफर के आदेश मिल गए थे.

व्यापारियों के गुस्से और विरोध को देखते हुए सरकार ने सोमवार को 72 घंटों के लिए अस्थायी रूप से छापेमारी रोक दी थी. व्यापार और बाज़ार संघों ने ‘छोटे और मध्यम व्यापारियों के उत्पीड़न’ का आरोप लगाया है.


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‘इनपुट के आधार पर छापेमारी’

अगले साल की शुरुआत में होने वाले नगरपालिका चुनावों के मद्देनजर किसी भी विरोध से बचने के लिए यूपी सरकार ने फिर से छापेमारी शुरू नहीं की है, लेकिन एक अधिकारी ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि छापे में कथित रूप से पकड़े गए कर चोरी करने वालों के खिलाफ ‘कार्रवाई’ जल्द शुरू की जाएगी.

आगे की कार्रवाई के डर से व्यापारियों ने शहरी और ग्रामीण कानपुर में बुधवार को एक दिन के लिए कई बाज़ारों को बंद रखा. यहां तक कि आम लोगों ने भी हलचल वाले बाजारों से दूरी बनाए रखी. बागपत, उन्नाव, वाराणसी, गोरखपुर, बदायूं, महोबा, हरदोई और फिरोजाबाद सहित राज्य के अन्य जिलों में इसी तरह के हालात थे.

वाराणसी में व्यापारियों ने 12 दिसंबर को सेल्स टैक्स कार्यालय परिसर में ज़मीन पर लेटकर विरोध जताया था.

उधर जालसाजों ने भी जल्दी पैसा बनाने के लिए इस मौके का फायदा उठाना शुरू कर दिया है. सिद्धार्थ नगर में जीएसटी अधिकारी बनकर दुकानदारों से कथित रूप से पैसे ऐंठने के आरोप में एक शख्स को गिरफ्तार किया गया.

राज्य जीएसटी विभाग ने व्यापारियों को परेशान किए जाने के आरोपों से इनकार किया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि वे सिर्फ उन व्यापारियों को निशाना बना रहे हैं, जो जीएसटी पंजीकरण या कर भुगतान से बच रहे थे.

यह समस्या काफी बड़ी है. रिपोर्ट्स के अनुसार जीएसटी पंजीकरण के बिना व्यापार करने वालों की संख्या पांच लाख तक हो सकती है.

अधिकारी ने बताया, ‘विभाग द्वारा तैयार की गई लिस्ट के आधार पर छापेमारी की गई है. हमें कई तरह के इनपुट मिले हैं, जिनमें डेटा एनालिसिस और शिकायतें भी शामिल हैं.’

अधिकारी ने आगे कहा, ‘कर चोरी एक सच्चाई है और यह भी सच है कि कई व्यापारी जीएसटी रजिस्ट्रेशन या भुगतान से बच रहे हैं. कई व्यापारी जानबूझकर पंजीकरण नहीं करा रहे हैं.’


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‘कानून से अनजान छोटे व्यापारी’

कर चोरी के आरोपों का सामना कर रहे कानपुर के छोटे और मझोले व्यापारी छापेमारी के ‘तरीके’ को लेकर परेशान और गुस्से में हैं.

व्यापारियों ने कहा कि महामारी के बाद से कारोबार ठप पड़ा है. बड़े व्यापारी तो बाज़ार में बने हुए हैं, लेकिन छोटे व्यापारी आज भी अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

राजबी रोड स्थित होजरी मार्केट के उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष मोहम्मद कलीम ने दिप्रिंट को बताया कि 10-20 लाख रुपये के वार्षिक कारोबार वाले छोटे व्यापारियों पर भी छापे मारे गए हैं. हालांकि ‘जीएसटी नियम साफ तौर पर बताते हैं कि जिन व्यापारियों का वार्षिक कारोबार है 40 लाख रुपये से कम है, वह जीएसटी के दायरे में नहीं आते हैं. हम मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से अनुरोध करते हैं कि वह व्यापारियों को अपना व्यापार सुधारने में मदद करने के लिए समय दें और अधिकारियों को गलत तरीके से छापे मारने से भी रोकें.’

मोहम्मद इकराम की हौजरी की दुकान को भी रेड का सामना करना पड़ा था. उन्होंने कहा, ‘जब उन्हें कुछ नहीं मिला तो वे वापस चले गए, लेकिन उसके बाद दुकानें बंद हो गईं क्योंकि ज्यादातर छोटे व्यापारी हैं (जो डर गए).’

लेकिन कुछ व्यापारियों न माना कि इस आरोप में दम है कि कुछ व्यापारी जीएसटी पंजीकरण और कर भुगतान से बच रहे हैं.

थोक कपड़ा विक्रेता मोहम्मद इरफान ने दिप्रिंट को बताया कि जीएसटी लागू होने से पहले बिना सिले कपड़े पर कोई टैक्स नहीं था. उन्होंने कहा, ‘वह व्यापारी जो छोटे स्तर पर काम करते हैं. यानी दैनिक आधार पर खरीद और बिक्री करते हैं, जीएसटी के तहत खुद को पंजीकृत नहीं करते हैं. ज्यादातर लोगों को कानून की जानकारी ही नहीं है. उन्हें लगता है कि वे बिल, रिटर्न आदि नहीं दिखा पाएंगे.’

वह कहते हैं,‘छोटे व्यापारियों के बीच थोड़ी-बहुत गड़बड़ संभव है. वह छोटी-छोटी चीजों पर भी जुर्माने से बचना चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, यह समस्या खासकर कानपुर जिले के अंदरूनी इलाकों में छोटे व्यापारियों के बीच काफी ज्यादा है.

इरफान ने कहा, ‘हमारी ओर से भी कुछ खामियां हैं. अब भले ही बड़े व्यापारियों को निशाना बनाया जा रहा हो, लेकिन कार्रवाई से डरने वाले छोटे व्यापारियों को भी डर लगने लगा है.’

कुछ का दावा है कि व्यापारियों को ‘एक रुपये की भी गड़बड़ी’ के लिए भारी जुर्माने का सामना करना पड़ता है.

होजरी बाज़ार के एक थोक व्यापारी उमर बेग ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रयागराज के हमारे एक ग्राहक ने 30,000 रुपये का मटेरियल खरीदा था, लेकिन जब जीएसटी अधिकारियों ने कपड़ों के पीस की सही संख्या की जांच की, तो उन्हें छह और पीस मिले, जिसके बाद उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ा था.’

इसी बाज़ार के एक अन्य थोक विक्रेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि कई छोटे व्यापारी जीएसटी से बचते हैं ताकि वे सरकार के रडार पर आने से बच जाएं.


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व्यापारी जीएसटी पंजीकरण से क्यों बचते हैं

कम्प्यूटरीकृत बिलिंग, वकीलों या चार्टर्ड एकाउंटेंट पर निर्भरता, और कागजी कार्रवाई भी इसका एक कारण है.

राजबी रोड व्यापार मंडल के सदस्य नरेश दयाल ने दिप्रिंट को बताया कि जीएसटी लागू होने के बाद से दस्तावेज़ीकरण कई गुना बढ़ गया है.

उन्होंने कहा, ‘पहले हम केवल हैंड बिलिंग (सिस्टम) तक ही सीमित थे, लेकिन अब सभी बिलिंग कम्प्यूटराइज्ड हैं. यह हमारी लागत को बढ़ा देता है, क्योंकि हमें कम्प्यूटराइज्ड रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति को नौकरी पर रखना पड़ेगा. जीएसटी अपने आप में बुरा नहीं है, लेकिन इसे सरल बनाने की जरूरत है.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिलों को बनाए रखने और रिटर्न दाखिल करने के लिए उन्हें वकीलों या चार्टर्ड एकाउंटेंट पर निर्भर रहना पड़ता है.

पेच बाग के एक अन्य थोक व्यापारी राशिद ने कहा कि छोटे पैमाने के खरीदार जीएसटी बिल नहीं चाहते हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमें आमतौर पर ऐसे ग्राहक मिलते हैं जो फुटपाथों और गांवों में जाकर सामान बेचते हैं. वे बिल नहीं लेना चाहते हैं. बाज़ार नीचे की ओर जा रहा है. हमारे पास एक दिन में मुश्किल से चार से छह ग्राहक आते हैं. उनमें से ज्यादातर बिल नहीं चाहते हैं. यहां तक कि अगर हम सस्ती दर पर बेचते हैं, तो भी हमें नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि हम दिन के अंत में जीएसटी बिलों में कटौती करनी पड़ जाती हैं’

व्यापारी भी जीएसटी रजिस्ट्रेशन से बचने के लिए कम मुनाफे का हवाला देते हैं.

होजरी निर्माता मोहम्मद इश्तियाक ने कहा कि व्यापारियों को बिक्री पर ध्यान दिए बिना जीएसटी देनी होती है. उन्होंने कहा, ‘जब हम कोई सामान बेचते हैं, तो लागू GST दर सिर्फ पांच प्रतिशत होती है. हम मुश्किल से कोई मुनाफा कमा पाते हैं, लेकिन हमारी बिक्री पर ध्यान दिए बिना जीएसटी के हिस्से का भुगतान करना होगा. दिन के अंत में हमारा मुनाफा सिर्फ दो प्रतिशत रह जाता है.

उक्त जीएसटी अधिकारी कमलेश कुमार ने इस बात से इनकार किया कि भारी जुर्माना लगाया गया था.

उन्होंने कहा, ‘लगाया गया जुर्माना आमतौर पर काफी कम होता है और किसी भी व्यापारी को परेशान नहीं किया जाता है. अगर व्यापारी पंजीकृत है, तो उन्हें डरने की जरूरत नहीं है.’

(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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