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Wednesday, 26 November, 2025
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पेगासस, मीडिया, कारण बताओ नोटिस—आंध्र प्रदेश के निलंबित IPS अधिकारी और जगन सरकार के बीच क्यों तनातनी है?

पूर्ववर्ती टीडीपी सरकार में खुफिया प्रमुख रहे निलंबित आईपीएस अधिकारी ए.बी. वेंकटेश्वर राव पर अपने कार्यकाल के दौरान पेगासस स्पाइवेयर खरीदने और उसका इस्तेमाल करने का आरोप लगा है. वह इन आरोपों को निराधार बताते हैं.

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हैदराबाद: ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने’ की वजह से 2020 में निलंबित किए जा चुके आंध्र प्रदेश के एक आईपीएस अधिकारी चंद्रबाबू नायडू सरकार के समय बतौर खुफिया प्रमुख अपने कार्यकाल के दौरान पेगासस सॉफ्टवेयर की कथित खरीद और उपयोग को लेकर एक नए विवाद में उलझ गए हैं. पिछले एक महीने से राज्य में यह मामला काफी गर्माया हुआ है.

महानिदेशक रैंक के अधिकारी ए.बी. वेंकटेश्वर राव को आंध्र प्रदेश की मौजूदा वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी सरकार ने एक कारण बताओ नोटिस थमाया गया है क्योंकि उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा था कि पिछली सरकार ने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा या इस्तेमाल नहीं किया था.

नोटिस में राव पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ‘सरकार की अनुमति’ के बिना इस मुद्दे पर बोलकर अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) नियमों का उल्लंघन किया है.

इस पर, अपने जवाब में पुलिस अधिकारी ने कहा है कि एआईएस नियमों के तहत कथित पेगासस खरीद पर उनकी ‘जवाबदेही और पारदर्शिता’ अनिवार्य है क्योंकि यह उसकी सेवा अवधि से जुड़ा मामला है.

उन्होंने लिखा, ‘जब खुफिया विभाग के प्रमुख के तौर पर मेरे कार्यकाल को लेकर सवाल उठाया जा रहा था और मुझ पर आरोप लगाया जा रहा था कि मैंने नागरिकों की गोपनीयता को अवैध ढंग से भंग करने के लिए (पेगासस) खरीदा और इस्तेमाल किया…मेरे पास अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के तहत अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल करने और एक एआईएस अधिकारी के तौर पर नियम 6 और 17 के तहत अपने अधिकारों (मीडिया से बातचीत और एक अधिकारी के तौर पर अपने कृत्यों का बचाव) का उपयोग कर खुद को और अपने परिवार को इस तरह के हमलों से बचाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.’

कभी चंद्रबाबू नायडू का ‘मैन फ्राइडे’ कहे जाने वाले राव को मई 2019 में वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली युवजना श्रमिका रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) की सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही कोई पोस्टिंग नहीं दी गई है.

राव को कारण बताओं नोटिस और उस पर उनका जवाब पिछले महीने के अंत में ही भेजा गया था लेकिन यह 5 अप्रैल को ही सामने आया. दिप्रिंट ने दोनों दस्तावेजों की कॉपियां हासिल की हैं.


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कैसे शुरू हुआ विवाद

फरवरी 2020 में ए.बी. वेंकटेश्वर राव को इजरायल स्थित रक्षा निर्माण कंपनी आर.टी. इन्फ्लेटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ सांठगांठ करने और महत्वपूर्ण पुलिस और खुफिया जानकारियां उसे लीक करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. आईपीएस अधिकारी पर कंपनी को ठेके देने में प्रक्रियाओं के उल्लंघन का भी आरोप लगा था.

विवादास्पद पेगासस स्पाइवेयर का मुद्दा इसी साल 17 मार्च को उस समय उछला जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि उसे मैन्युफैक्चर करने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ समूह ने करीब पांच साल उन्हें यह 25 करोड़ रुपये में बेचने की पेशकश की थी. ममता ने कहा कि उन्होंने इसे नहीं खरीदा था, लेकिन दावा किया कि आंध्र सरकार ने चंद्रबाबू नायडू के कार्यकाल के दौरान ऐसा किया था.

नायडू की पार्टी टीडीपी ने तत्काल इस आरोप का खंडन किया, साथ ही आंध्र प्रदेश के डीजीपी की तरफ से अगस्त 2021 में एक आरटीआई पर दिए गए जवाब की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया जिसमें उन्होंने कहा था कि पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने यह सॉफ्टवेयर न कभी खरीदा न इस्तेमाल किया.

हालांकि, सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी ने जोर देकर कहा कि नायडू और उनके खुफिया प्रमुख ए.बी. वेंकटेश्वर राव ने ‘निजी तौर पर’ स्पाइवेयर खरीदा होगा और इस मामले में ‘गहन जांच’ का आह्वान किया.

इस पर पार्टियों में छिड़े सियासी घमासान के बीच आंध्र विधानसभा ने 21 मार्च को एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें यह पता लगाने के लिए एक समिति का गठन किया गया कि क्या टीपीडी सरकार ने पेगासस खरीदा और इस्तेमाल किया था.

उसी दिन, राव ने अपने नाम को लेकर स्पष्टीकरण के उद्देश्य से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई, जिसकी वजह से ही बाद में राज्य सरकार ने उन्हें एक कारण बताओ नोटिस भेजा.

सैन्य-स्तर के खुफिया उपकरण पेगासस को लेकर जुलाई 2021 में दुनियाभर में बवाल मच गया था जब विभिन्न मीडिया समूहों के वैश्विक मंच की तरफ से आरोप लगाया गया कि सॉफ्टवेयर का उपयोग भारत सहित तमाम देशों की सरकारों द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों, व्यापारिक नेताओं, पत्रकारों, एक्टिविस्ट और अन्य प्रमुख हस्तियों की जासूसी के लिए किया गया है.

कारण बताओ नोटिस

राव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि कम से कम ‘अप्रैल 2019 तक’ तो ‘किसी भी सरकारी विभाग’ ने पेगासस सॉफ्टवेयर न खरीदा और या न ही इस्तेमाल किया था और वह ‘चारित्रिक हत्या’ के शिकार बने हैं.

उन्होंने ये संकेत भी दिए कि वह कुछ मीडिया चैनलों और वाईएसआरसीपी नेताओं के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं अखिल भारतीय सेवा नियमों से बंधा हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी मुझ पर उंगली उठा सकता है.’

एक दिन बाद ही 22 मार्च को आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ से उन्हें एक कारण बताओ नोटिस भेजा जिसमें कहा गया था, ‘सेवा के जुड़े अधिकारी ने सरकारी पूर्वानुमति के बिना प्रेस को संबोधित किया जिससे एआईएस (आचरण) नियमावली 1968 के नियम 6 और नियम 17 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है.

नोटिस में स्पष्ट किया गया कि नियम 6 और 17 के तहत इसे चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि ‘सेवा से जुड़े सदस्य का कृत्य न तो कर्तव्य के वास्तविक निर्वहन से जुड़ा है और न ही उसके निजी चरित्र या उसके अपनी निजी क्षमता से किए गए किसी कार्य को सही ठहराता है.’

नोटिस में पूर्व खुफिया प्रमुख को स्पष्टीकरण के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया. साथ ही कहा गया कि ऐसा करने में विफल रहने पर उनके खिलाफ आचरण संबंधी नियमों के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी.

नियम 6 और 17—राव पर जिनके उल्लंघन का आरोप लगा है—उन परिस्थितियों पर सीमाएं निर्धारित करते हैं जिनमें इस सेवा से जुड़ा कोई अधिकारी पब्लिक मीडिया का सहारा ले सकता है.

नियम 6 स्पष्ट करता है कि ‘सरकार की तरफ से पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं होगी’, बशर्ते सेवा का सदस्य, ‘अपने कर्तव्यों का निर्वहन में या अन्यथा किसी पुस्तक के प्रकाशन या योगदान में पब्लिक मीडिया में भागीदारी कर रहा हो.

नियम 17 में कहा गया है कि सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना सेवा से जुड़े सदस्य ‘ऐसे किसी आधिकारिक कृत्य को सही ठहराने के लिए किसी अदालत या प्रेस का सहारा नहीं ले सकते हैं जो प्रतिकूल आलोचना या मानहानिकारक प्रकृति के हों.’

राव ने 29 मार्च को अपना जवाब पेश करने के लिए व्यापक तौर पर नियमावली का ही हवाला दिया और यह भी कहा कि उन्होंने नियम 6 और 17 का पालन किया है.


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नियमावली का ही दिया हवाला

अपने स्पष्टीकरण में राव ने नियमावली का हवाला देते हुए कहा कि एआईएस नियमों के तहत उनकी तरफ से पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखना अनिवार्य है.

राव ने अपने पत्र में लिखा, ‘आचरण नियमावली…एक एआईएस (अखिल भारतीय सेवा) अधिकारी के तौर पर मेरे लिए नियम 3 (1ए) (4) का पालन अनिवार्य बनाती है जिसमें कहा गया है, ‘सेवा का प्रत्येक सदस्य जवाबदेही और पारदर्शिता बनाए रखेगा’ और इस तरह मेरे लिए पेगासस सॉफ्टवेयर की खरीद और/या उसके उपयोग से जुड़े सवालों और विवाद के संबंध में जवाबदेह और पारदर्शी रवैया अपनाना अनिवार्य था और मैंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया.’

उन्होंने नियम 6 और 17 का भी विस्तार से हवाला दिया और कहा कि उन्होंने इनका उल्लंघन नहीं किया है जैसा कि कारण बताओ नोटिस में आरोप लगाया गया है.

राव के मुताबिक, नियम 6 एआईएस सदस्यों को ‘अपने कर्तव्यों के वास्तविक निर्वहन का बचाव करने’ का ‘अधिकार’ देता है, जबकि नियम 17 उन्हें ‘अपने निजी जीवन और निजी चरित्र पर हमलों’ से खुद को बचाने की अनुमति देता है.

उन्होंने लिखा, ‘मुझे इस बात की प्रसन्नता हो रही है कि मैंने तत्कालिक चुनौतियों का सामना करने के लिए दोनों नियमों का उपयोग किया.’

राव ने दावा किया कि मीडिया को संबोधित करने का उनका उद्देश्य यह था कि उनके खुफिया विभाग प्रमुख रहने के दौरान पेगासस सॉफ्टवेयर की कथित खरीद और उपयोग के संबंध में ‘स्थितियों को स्पष्ट’ कर दिया जाए.

उन्होंने तर्क दिया, ऐसा करके उन्होंने नियम 6 का उल्लंघन नहीं किया, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई अधिकारी ‘अपने कर्तव्यों के निर्वहन में’ मीडिया का सहारा लेता है, तो इसके लिए पूर्व सरकारी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है.

राव ने अपने स्पष्टीकरण में कहा है, ‘कई प्रमुख व्यक्तियों के साथ-साथ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सार्वजनिक तौर पर उठाया गया मुद्दा पेगासस सॉफ्टवेयर की कथित खरीद के संबंध में था. खासकर इसमें यह कहा गया कि आंध्र प्रदेश सरकार ने खुफिया विभाग के एडीजी/डीजी के तौर पर मेरे माध्यम से इसे खरीदा था. उस लिहाज से यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें मेरे वास्तविक कर्तव्यों के निर्वहन पर सवाल उठाया गया था और इस तरह यह एक आधिकारिक मुद्दा था और मैं इस मुद्दे से संबंधित अधिकारी था.’

नियम 17 के बारे में राव ने कहा कि इसमें अदालत या प्रेस से संपर्क करने के लिए सरकार से मंजूरी मांगने वाले अधिकारियों के लिए भी एक प्रावधान है. नियम के इस भाग में कहा गया है कि यदि अनुरोध मिलने के 12 सप्ताह बाद भी सरकार की तरफ से मंजूरी के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जाती है तो सेवा से जुड़े सदस्य ‘यह मानने के लिए स्वतंत्र होंगे कि उनकी तरफ से मांगी गई मंजूरी मिल गई है.’

राव ने जोर देकर कहा कि वह 21 मार्च को राज्य सरकार को संबोधित एक पत्र पहले ही भेज चुके थे जिसमें कुछ लोगों और संगठनों के खिलाफ मानहानि का मामले दर्ज कराने की अनुमति मांगी गई थी और ‘इस संबंध में वह 12 हफ्ते इंतजार करने के लिए तैयार हैं.’ राव ने आगे कहा कि उन्होंने सरकार को सूचित किया था कि वह ‘तात्कालिक महत्व के सार्वजनिक’ मुद्दे पर मीडिया को संबोधित करेंगे. उसी दिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.

इसके अलावा, राव ने यह भी कहा कि वह अपने ‘निजी चरित्र’ का बचाव कर रहे थे जिस पर हमला किया जा रहा है और सरकार की किसी भी कार्रवाई या नीति की आलोचना नहीं कर रहे थे जो नियमों के तहत निषिद्ध है.

नियम 17 का ‘स्पष्टीकरण’ वाला हिस्सा साफ तौर पर बताता है कि इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो ‘सेवा से जुड़े किसी सदस्य को अपने निजी चरित्र या अपनी निजी क्षमता से किए गए किसी भी कृत्य को सही ठहराने से रोकता हो’, बशर्ते इस तरह की कार्रवाई के संबंध में सरकार को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी हो.

राव ने लिखा, ‘पेगासस या तो एक आधिकारिक मुद्दा है या एक निजी मुद्दा है. यह एक साथ दोनों प्रकृति का नहीं हो सकता. हालांकि, जैसा कि आरोपों और संलग्न मीडिया रिपोर्टों में नजर आता है. पेगासस का मुद्दा मुझसे और खुफिया विभाग के प्रमुख के तौर पर मेरे कार्यकाल से जुड़ा था.’

उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ ‘अपमानजनक’ आरोप उनके चरित्र और उनके परिवार के सदस्यों के लिए ‘मानहानि कारक’ थे—जिसमें उनके बेटे का स्पष्ट संदर्भ दिया गया था जिस पर पहले आर.टी. इन्फ्लेटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ डील करने का आरोप लगाया गया था.

राव ने मंगलवार को दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अभी तक सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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