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Saturday, 5 October, 2024
होमदेशअर्थजगतमोदी सरकार की अन्न योजना महामारी के दौरान गरीबी को बढ़ने से रोकने में मददगार साबित हुई: IMF

मोदी सरकार की अन्न योजना महामारी के दौरान गरीबी को बढ़ने से रोकने में मददगार साबित हुई: IMF

इस पेपर से पता चलता है कि साल 2019 में भारत में अत्यधिक गरीबी 0.8 प्रतिशत आबादी के बराबर थी और खाद्य हस्तांतरण इस बात को सुनिश्चित करने में मददगार बना कि यह 2020 के महामारी वाले वर्ष में इसी निम्न स्तर पर बना रहे.

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नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक वर्किंग पेपर में कहा गया है कि कोरोना महामारी के दौरान 80 करोड़ परिवारों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने वाली केंद्र सरकार की नीति ने भारत को अत्यधिक गरीबी (एक्सट्रीम पावर्टी) के जाल में जाने से रोक दिया है और यह विश्व स्तर पर आमदनी को लगे सबसे बड़े झटके में से एक को झेल सका है.  इसने भारत द्वारा गरीबी रेखा के सीमांकन में संशोधन का भी सुझाव दिया है, क्योंकि अब यह एक मध्यम आय वाले देश की श्रेणी में आगे बढ़ रहा है.

यह मुफ्त खाद्यान्न मार्च 2020 में शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई), जिसके तहत केंद्र सरकार ने प्रत्येक लाभार्थी परिवार को हर महीने पांच किलोग्राम खाद्यान्न मुफ्त में प्रदान किया, के एक हिस्से के रूप में वितरित किया गया था. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत बांटें जाने वाले उस सामान्य कोटा के अतिरिक्त था, जो कि 2-3 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर दिया जाता है.

पिछले महीने, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी खजाने पर 80,000 रुपये की अतिरिक्त अनुमानित लागत के साथ पीएमजीकेएवाई कार्यक्रम को सितंबर 2022 तक बढ़ा दिया था.

5 अप्रैल को जारी किये गए आईएमएफ के इस पेपर ने कहा, ‘इस कार्यक्रम ने गरीबों को एक तरह की सुरक्षा प्रदान की और भारत में अत्यधिक गरीबी के और अधिक फैलाव को रोका. यह भारत के सामाजिक सुरक्षा ढांचे की मजबूती को दर्शाता है क्योंकि इसने दुनिया के सबसे बड़े बाहरी कारणों से लगे आमदनी के झटकों में से एक का सफलता के साथ सामना किया है.‘

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अत्यधिक गरीबी को ‘भोजन, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता सम्बन्धी सुविधाओं, स्वास्थ्य, आश्रय (आवास), शिक्षा और सूचना सहित बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं के घोर अभाव वाली स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है. यह न केवल लोगों की आमदनी पर, बल्कि सेवाओं तक उनकी पहुंच पर भी निर्भर करता है.’

आईएमएफ के पेपर का कहना कि यह एक तर्कसंगत अनुमान है कि इस मुफ्त में मिलने वाले खाद्यान्न ने भारत में अत्यधिक गरीबी के फैलाव में वृद्धि को रोका है, खासकर यह देखते हुए कि इसके लाभार्थी परिवार सब्सिडी वाले खाद्यान्न को खुले बाजार में भी बेच सकते हैं.

इस पेपर को भारत, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका के लिए आईएमएफ के कार्यकारी निदेशक और प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के पूर्व अंशकालिक सदस्य सुरजीत भल्ला, न्यूयॉर्क स्थित अर्थशास्त्री करण भसीन और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी द्वारा मिलकर लिखा गया है.

लेखकों के अनुसार, भारत में अत्यधिक गरीबी महामारी के पहले वाले साल. 2019,  में जनसंख्या के 0.8 प्रतिशत जितनी कम थी, और खाद्य हस्तांतरण यह सुनिश्चित करने में मददगार रहा कि यह 2020 के महामारी वाले वर्ष में भी यह इसी निम्न स्तर पर बना रहे.

जरुरत है एक नई आधिकारिक गरीबी रेखा की

इस वर्किंग पेपर में यह भी कहा गया है कि भारत को अपनी गरीबी रेखा के सीमांकन को मौजूदा 1.9 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति दिन से संशोधित कर 3.2 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति दिन कर देना चाहिए, क्योंकि अब यह कम आय वाले देश से मध्यम आय वाले देश की श्रेणी की तरफ बढ़ रहा है.

इसमें कहा गया है,  ‘अत्यधिक गरीबी का निम्न स्तर – 2019 (0.76 प्रतिशत) और 2020 (0.86 प्रतिशत) दोनों सालों में जनसंख्या का लगभग 0.8 प्रतिशत – आधिकारिक गरीबी रेखा की सीमा को अब परचेजिंग पावर पैरिटी -पीपीपी (क्रय शक्ति में समानता) के आधार पर $ 3.2 किये जाने की आवश्यकता का संकेत देता है.’

डॉलर का पीपीपी मूल्य इसके बाजार भाव से अलग होता है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (आर्गेनाईजेशन  फॉर  इकनोमिक  को -ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) के आंकड़ों के अनुसार, पीपीपी के संदर्भ में एक डॉलर का मूल्य वर्तमान में 23.30 रुपये है, जो 2011 में 15.55 रुपये था.

देश की गरीबी रेखा के बारे में आईएमएफ वर्किंग पेपर के अनुमान के अनुसार, भारत अब जायज रूप से यह दावा कर सकता है कि कोरोना महामारी से पहले वह अत्यधिक गरीबी को खत्म करने के कगार पर था.

इस वर्किंग पेपर में लेखकों द्वारा उपयोग किये गए डेटा और इसकी गणना के लिए वर्ष 2011-12 के उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण (कंस्यूमर स्पेंडिंग सर्वे) को शामिल किया गया है, क्योंकि 2017-18 के नवीनतम सर्वेक्षण को सरकार द्वारा कथित तौर पर आंकड़ों की गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों के आधार पर ख़ारिज कर दिया गया था. गरीबी के आंकड़े वास्तविक सकल राज्य घरेलू उत्पाद (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडूस  -जीएसडीपी) विकास दर का उपयोग करके प्राप्त किए गए हैं. 2011-12 के बाद गरीबी के आंकड़ों की गणना करने के लिए, लेखकों ने निजी अंतिम उपभोग खर्च (प्राइवेट फाइनल कंसम्पशन स्पेंडिंग) पर नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) के आंकड़ों का इस्तेमाल किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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