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Friday, 17 May, 2024
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पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में छात्राओं की भागीदारी बढ़ी, PU ने दिए हैं लालू, नीतीश जैसे नेता

कोरोना महामारी के कारण दो साल से छात्रसंघ चुनाव बंद था. इस साल आधा दर्जन से अधिक छात्र संगठन चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं.

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नई दिल्ली: कोरोना महामारी के कारण बंद पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव फिर से होने जा रहा है. अंतिम बार 2019 में छात्रसंघ चुनाव हुआ था जिसमें पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप) के मनीष कुमार ने अध्यक्ष पद पर बाजी मारी थी. 

चुनाव के लिए नामांकन 7 से 10 नवंबर को किया गया जबकि वोटिंग 19 नवंबर को होनी है. चुनाव परिणाम भी 19 नवंबर को ही आएंगे.

ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहे जाने वाले इस विश्वविद्यालय का अपना एक गौरवशाली इतिहास है. एक वक्त आईएएस, आईपीएस से लेकर नेताओं की फौज तैयार करने वाले पटना विश्वविद्यालय का बिहार से लेकर देश की राजनीति में एक विशेष महत्व रहा है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, जेपी नड्डा, रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे, दिवंगत नेता रामविलास पासवान आदि जैसे राजनेता सियासत का ककहरा यहीं से सीखे हैं. 

लड़कियों की बढ़ रही है भागीदारी

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अब धीरे धीरे लड़कियों की भागीदारी बढ़ रही है. 2012 में दोबारा शुरू हुए चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए आइसा से चुनाव लड़ी दिव्या गौतम दूसरे स्थान पर रही थी. इस चुनाव में दिव्या सिर्फ 168 वोट से एबीवीपी के आशीष सिन्हा से चुनाव हार गई थी. आशीष सिन्हा पटना के कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक अरुण कुमार सिन्हा के बेटे हैं. 2012 छात्रसंघ चुनाव में सेंट्रल पैनल के पांच पदों में से दो पर लड़कियां चुनाव जीती थी. एआईएसएफ की अंशु कुमारी छात्र आरजेडी के सैफ दानिश करीम को 960 वोटों से हराकर महासचिव बनी थी जबकि छात्र जेडीयू की उम्मीदवार अनुप्रिया ने 600 वोटों से एआईएसएफ की प्राची राज को हराकर सचिव का पद हासिल किया था.

उसके बाद फिर से दोबारा फरवरी 2018 में हुए चुनाव में एबीवीपी की योषिता पटवर्धन उपाध्यक्ष पद पर जीती थी. लेकिन छात्र संघ के भंग होने के कारण दिसंबर 2018 में फिर से चुनाव हए. इस चुनाव में अंजना सिंह 2134 वोटों के साथ उपाध्यक्ष पद पर जीती थी. साथ ही महासचिव पद पर दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर लड़कियां रही थी.

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2019 के छात्रसंघ चुनाव में सेंट्रल पैनल की पांच पदों में से दो पर लड़कियों ने चुनाव जीता था. महासचिव पद के लिए एबीवीपी की प्रियंका श्रीवास्तव 3731 वोटों के साथ निर्दलीय उम्मीदवार उज्ज्वल कुमार को हराया था जबकि कोषाध्यक्ष पद पर आइसा की कोमल कुमारी ने छात्र जदयू वाजिद शम्स को हराया था.

इस बार के चुनाव में भी लड़कियों की मजबूत भागीदारी दिख रही है. अध्यक्ष पद के लिए इस साल दो लड़कियां मैदान में है. एबीवीपी ने प्रगति राज को मैदान में उतारा है जबकि मानषी झा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही हैं. साथ ही दूसरे पदों के लिए भी कई लड़कियां इस बार चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है.

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव 2012 में अध्यक्ष पद के लिए दूसरे स्थान पर रहने वाली और पटना वीमेंस कॉलेज की प्रोफेसर दिव्या गौतम कहती है, ‘जब मैं चुनाव लड़ रही थी तो काफी सालों बाद चुनाव हुआ था. उस वक्त चुनाव में छात्र-छात्राएं काफी कम सक्रिय थे, लेकिन अब छात्र-छात्राएं सक्रिय हो रहे हैं. वो अपने लोकतांत्रिक अधिकार को समझ रहे हैं.’ 2012 और अब के चुनाव में अंतर के बारे में बताते हुए दिव्या कहती हैं कि, ‘यह सच है कि पहले चुनाव इतने खर्चीले नहीं होते थे जितने अब हो रहे हैं.’

दिव्या आगे कहती हैं, ‘जब मैंने चुनाव लड़ा था तो सभी सोच रहे थे कि क्या पटना विश्वविद्यालय में लड़कियां अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ सकती हैं. पटना विश्वविद्यालय हमेशा से छात्रों की राजनीति के लिए जाना जाता रहा था. लोगों के मन में काफी संकोच था. सोच रहे थे कि इनको अध्यक्ष पद के लिए टिकट देना चाहिए की नहीं, लेकिन अब इन सब चीजों में काफी कमी आई है. विश्वविद्यालय में लड़कियों का वोटिंग प्रतिशत अधिक है जिसके कारण अब लड़कियां चुनाव लड़ भी रही हैं और छात्र राजनीति में सक्रिय भी हैं. उन्होंने पहले के चुनाव को देखा है, अब उन्हें अनुभव भी है.’

बता दें कि 2019 के छात्र संघ चुनाव में सबसे अधिक वोट पटना वीमेंस कॉलेज की लड़कियों ने डाला था. 2019 के चुनाव में पड़े कुल 12,442 वोट में से 3,345 वोट पटना वीमेंस कॉलेज की लड़कियों ने डाला था जो कि पटना विश्वविद्यालय के कॉलेजों में सबसे अधिक था. वीमेंस कॉलेज के बाद सबसे अधिक वोट मगध महिला कॉलेज की लड़कियों ने डाला था.

पटना वीमेंस कॉलेज की पूर्व छात्रा अनुष्का श्रीवास्तव कहती हैं, ‘पहले वीमेंस कॉलेज की लड़कियां छात्र राजनीति में कम रुचि रखती थीं लेकिन अब उनका प्रतिनिधित्व काफी बढ़ा है.’

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, जयपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष सोमू आनंद कहते हैं, ‘2018 के बाद अचानक से चुनाव में लड़कियों के वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोत्तरी देखी गई. इसके बाद से लड़कियां चुनाव में काफी सक्रिय हुई.’


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आधा दर्जन से अधिक छात्र संगठन मैदान में

चुनावी बिगुल बजने के साथ ही सभी छात्र संगठनों के उम्मीदवार और निर्दलीय प्रत्याशी अब छात्र-छात्राओं को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की ओर से अध्यक्ष पद के लिए प्रगति राज, उपाध्यक्ष पद के लिए प्रतिभा कुमारी, महासचिव के लिए बिपुल कुमार, संयुक्त सचिव पद के लिए रविकरण सिंह जबकि कोषाध्यक्ष पद के लिए वैभव मैदान में हैं.

वहीं, आइसा की ओर से आदित्य रंजन अध्यक्ष, मनीला फूले उपाध्यक्ष, सचिन कुमार महासचिव, कुमारी रचना संयुक्त सचिव और कल्पना सिंह कोषाध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं.

इसके अलावा, छात्र जदयू की ओर से अध्यक्ष पद के आनंद मोहन, उपाध्यक्ष पद के लिए विक्रमादित्य सिंह, महासचिव पद के लिए साक्षी खत्री, संयुक्त सचिव पद के लिए संध्या कुमारी और कोषाध्यक्ष पद के लिए रविकांत चुनाव लड़ रहे हैं.

एनएसयूआई और एआईएसएफ ने संयुक्त रूप से शाश्वत शेखर को अध्यक्ष, मीरसरफाज अली को उपाध्यक्ष, समृद्धि सुमन को महासचिव, अविनाश मिश्रा को संयुक्त सचिव व आसिफ इमाम को कोषाध्यक्ष पद के लिए उतारा है.

राजद छात्र संघ की ओर से साकेत कुमार अध्यक्ष, वसंत कुमार उपाध्यक्ष जबकि कुंदन कुमार महासचिव और प्रेमलता कुमारी संयुक्त सचिव पद से चुनाव लड़ रहे हैं. इसके साथ ही पप्पू यादव की पार्टी जाप ने भी पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. 

अपने-अपने दावे, अपने-अपने तर्क 

अखिल भारतीय छात्र विद्यार्थी परिषद से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार प्रगति राज ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद महिला सशक्तीकरण और महिला सुरक्षा को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बना कर चुनावी मैदान में है. इसके साथ ही परिषद स्मार्ट क्लास, इन्फ्रास्ट्रक्चर और विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की कमी को अपने केंद्र में रखकर छात्र- छात्राओं से समर्थन मांग रहा है.’

प्रगति कहती हैं, ‘एक वक्त पटना विश्वविद्यालय ईस्ट का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था और यहां से हर साल कई आईएएस अधिकारी निकलते थे, लेकिन आज विश्वविद्यालय अपना अस्तित्व ही खो चुका है. हम चुनाव जीतने के बाद पटना विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास को दोबारा शुरू करने के लिए काम करेंगे.’

एनएसयूआई-एआईएसएफ के संयुक्त उम्मीदवार शाश्वत शेखर दिप्रिंट से बात करते हुए कहते हैं, ‘पटना विश्वविद्यालय में सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा का है. यहां के कॉलेजों में आए दिनों मारपीट की घटना होती रहती है. गोलीबारी-बमबारी विश्वविद्यालय के लिए आम बात हो गई है.’

शेखर ने आगे कहा, ‘कैंपस में लड़कियां सुरक्षित नहीं है. हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा इन सब चीजों को खत्म करना है. कैंपस में स्टूडेंट फ्रैंडली माहौल होना जरूरी है और यह तमाम चीजें छात्रों को कैंपस से दूर करती हैं.’ 

शाश्वत कहते हैं, ‘अगर हम चुनाव जीतते हैं तो सभी कॉलेज के पुस्तकालय को आधुनिक कराने का प्रयास करेंगे. साथ ही केंद्रीय लाइब्रेरी को 24 घंटे सातों दिन खुलवाने की कोशिक करेंगे. पटना विश्वविद्यालय में किसी भी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है, हम चाहेंगे कि भविष्य में इन सब चीजों को आयोजन हो.’

एनएसयूआई का पटना विश्वविद्यालय में पहले कोई विशेष में जनाधार नहीं रहा है. इस सवाल का जवाब देते हुए शाश्वत कहते हैं कि, ‘हम 2017 से पटना विश्वविद्यालय में माइक्रो लेवल पर काम कर रहे हैं. कोरोना के कारण पिछले 2 साल से चुनाव नहीं हो पाया था, इस बार मैं चुनाव लड़ रहा हूं. इस चुनाव में कोई भी प्रत्याशी मेरे जितना अनुभवी नहीं है. मैं छात्रों के बीच रहकर काम कर रहा हूं. बस मैं छात्रों से अपील करता हूंं कि पटना विश्वविद्यालय में जिस तरह से धन बल का प्रयोग किया जाता है उसमें न फंसें. छात्र-छात्राएं हमारे साथ जुड़ रहे हैं. मेरी सकारात्मक छवि रही है. हम जीतने जा रहे हैं.’ 

वहीं आइसा से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आदित्य रंजन कहते हैं कि हम पटना विश्वविद्यालय में स्मार्ट क्लासरूम, सुसज्जित प्रयोगशाला, कैंटीन की व्यवस्था, लाइब्रेरी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर मैदान में हैं. 

 

चुनाव प्रचार के दौरान उम्मीदवार | फोटो: ट्विटर/@AISA_Bihar

पीयू को सीयू बनाने की मांग अधर में  

पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग वर्षों पुरानी है. पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे थे तो मंच से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग की थी. उस वक्त प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार की मांग को खारिज कर दिया था. इस बार छात्रसंघ चुनाव में पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग फिर से जोरों पर है. पीयू मांगे सीयू के नारे लग रहे हैं. आइसा से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आदित्य रंजन ने कहा कि, ‘हमारी सबसे पहली और सबसे बड़ी मांग है कि विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिले.’ 

हालांकि, एबीवीपी से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार प्रगति राज ने इसको लेकर जदयू पर निशाना साधा. प्रगति कहती हैं, ‘केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा तब मांगा जाता है जब राज्य विश्वविद्यालय को चलाने में विफल हो जाता है. अगर हम एक विश्वविद्यालय नहीं चला पा रहे हैं तो यह जदयू की विफलता है. जदयू सत्ता में रहने के बाद भी विश्वविद्यालय को नहीं चला  पा रही है.’

प्रगति कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है कि एबीवीपी केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा के पक्ष में नहीं है. परिषद पहले मूलभूत चीजों पर काम करना चाहता है. उसके बाद हम केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग करेंगे. अभी भी पटना विश्वविद्यालय की स्थिति बिहार के बाकी विश्वविद्यालयों से काफी बेहतर है तो हम अभी क्यों केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मांगें.’


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कितना बदला है छात्र संघ चुनाव

सोमू आनंद दिप्रिंट से बातचीत में कहते हैं, ’हम पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव को दो भागों में बांट कर देख सकते हैं. फरवरी 2018 के छात्र संघ चुनाव में ऐसे चेहरे चुनाव जीते थे जो कैंपस में सक्रिय रहे थे. स्टूडेंट एक्टिविज्म में सक्रिय रहे थे. उस वर्ष दिव्यांशु भारद्वाज चुनाव जीते थे जबकि गौतम आनंद दूसरे स्थान पर रहे थे. ये दो छात्र नेता कैंपस में सक्रिय रहते थे.

लेकिन उसके बाद के चुनाव में धन बल और चुनावी कैंपेन का बोलबाला बढ़ने लगा. राजनीतिक दलों के नेता सीधे तौर पर चुनाव में हस्तक्षेप करने लगे. पहले छात्र संघ चुनाव में नुक्कड़ नाटक, तख्तियां, नारे आदि के माध्यम से चुनाव लड़े जाते थे, जो अब सिमट कर रह गया है. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव जो पहले जेएनयू के चुनाव की तरह होता था वह अब डीयू के चुनाव की तरह होने लगा है. 

पटना विश्वविद्यालय से जुड़े छात्रों का मानना है कि छात्र संघ चुनाव में प्रशांत किशोर की एंट्री के बाद काफी बदला है.  प्रशांत ने छात्र संघ चुनाव को कॉलेज के मुद्दे, छात्रों की राजनीति से हटाकर उस राजनीतिक दलों के प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया. प्रशांत किशोर जदयू में शामिल होने के बाद से ही छात्रों को राजनीति में जोड़ने की मुहिम शुरू कर दी थी. उन्होंने इस काम के लिए पार्टी के कई विधायक और विधान पार्षद को मैदान में उतारा. जदयू ने पीयू को सीयू का दर्जा देने की मांग जोर शोर से उठाया. प्रशांत किशोर के पीयू से सीयू अभियान के तहत 10 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं को जोड़ा गया. प्रशांत किशोर के अभियान के कारण दिसंबर 2018 के चुनाव में जदयू के मोहित प्रकाश चुनाव जीते थे.

28 साल तक नहीं हुआ चुनाव, 2012 में दोबारा शुरू

80 के दशक में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव हिंसात्मक होने लगा. उसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने चुनाव बंद कराने का फैसला लिया. हालांकि इसके पीछे कई कारण थे. 1984 में बंद हुआ चुनाव दोबारा 2012 में शुरू हुआ. इसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आशीष सिन्हा चुनाव जीते थे. 

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व संयुक्त सचिव और भाजपा युवा मोर्चा के नेता राजा रवि कहते हैं, ‘ऐसा नहीं कि बीच में छात्र संघ चुनाव कराने के लिए आवाज नहीं उठाई गई, समय समय पर चुनाव कराने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया. विद्यार्थी परिषद ने चुनाव कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन किया. दोबारा चुनाव शुरू कराने के लिए कई छात्र ने लाठियां खाई, आईसीयू तक में लोग गए.’

वो कहते हैं, ‘चुनाव बंद कराने को हम कह सकते हैं कि यह नेतृत्व दबाने के लिए किया गया. कुछ लोगों को यह मंजूर नहीं था कि नए नेतृत्व उभर के आए.’

राजनीति में बिहार का योगदान

बिहार ही नहीं देश की राजनीति में पटना विश्वविद्यालय का अहम योगदान रहा है. 1974 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना विश्वविद्यालय के छात्रों ने तत्कालीन केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया था. बिहार के 23 में से 16 मुख्यमंत्री पटना विश्वविद्यालय से रहे हैं. हालांकि, इनमें से कई का विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति से सीधा संबंध नहीं था.

पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 में हुई थी. यहां छात्र संघ का पहला आधिकारिक चुनाव 1970 में हुआ था. 1970 के पहले छात्रसंघ चुनाव में पटना विश्वविद्यालय से लालू प्रसाद यादव महासचिव पद पर जीते थे. उसके अगले साल 1971 में लालू यादव अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरे लेकिन उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार रामजतन सिन्हा से हार का सामना करना पड़ा. साल 1973 के चुनाव में लालू यादव अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़े और जीत हासिल की. इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव के साथ बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी महासचिव पद पर और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सहायक सचिव पद पर जीते थे. केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे 1977 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ से चुनाव जीते थे.


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