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Monday, 2 December, 2024
होमदेशपिता की मौत के लिए पटियाला आशा वर्कर पर बच्चों ने लगाया वायरस घर ‘लाने का आरोप’, लेकिन ड्यूटी करना मजबूरी है

पिता की मौत के लिए पटियाला आशा वर्कर पर बच्चों ने लगाया वायरस घर ‘लाने का आरोप’, लेकिन ड्यूटी करना मजबूरी है

कोविड मरीज़ों के घर जाना आशा कार्यकर्त्ता करमजीत कौर के काम का हिस्सा है और काम के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है. उन्हें अपने बच्चों की देखभाल करनी है, और वो अकेली कमाने वाली हैं.

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पटियाला: 11 मई को पटियाला के दभलान गांव की आशा कार्यकर्त्ता 51 वर्षीय करमजीत कौर ने कोविड-19 के हाथों अपने पति को गंवा दिया. 14 मई को वो काम पर वापस आ गईं- घर घर जाकर सैम्पल जमा करना और लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रोत्साहित करना.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उनके बच्चों के मन में अब मां के प्रति कड़वाहट है और वो उन्हें दोष देते हैं कि उनके वायरस को ‘घर लाने’ से ही, उनके पिता की मौत हुई है. लेकिन कौर, जो ख़ुद भी इस अपराध बोध से हिली हुई हैं, अपनी ड्यूटी जारी रखे हुए हैं. कारण ये कि वो परिवार में अकेली कमाने वाली सदस्य बची हैं.

कौर ने कहा, ‘मेरे बच्चे कहते हैं कि उनके पिता को मैंने ही कोविड वायरस दिया. चूंकि मैं हर रोज़ कोविड पज़िटिव लोगों के पास जाती हूं. वो ग़ुस्सा हैं, नाराज़ हैं, और अब मुझे दोष देते हैं.’

‘मैं उनका ग़ुस्सा समझती हूं कि वो कैसा महसूस करते हैं. मैं भी इस बारे में ख़ुद को दोषी मानती हूं, लेकिन मैं क्या कर सकती हूं? अगर अपने परिवार को पालना है, तो मुझे बाहर निकलना ही होगा.’

कौर महीने में 2,500 रुपए की मामूली रक़म कमाती हैं. उनका बेटा बीएससी नर्सिंग कर रहा है, एक बेटी की शादी हो चुकी है, और 22 साल की एक दूसरी बेटी घर पर है. उसने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर ली है, लेकिन कॉलेज नहीं गई चूंकि और उनके पति अमरजीत सिंह के पास, कॉलेज में दाख़िला कराने के साधन नहीं थे.

उन्होंने कहा, ‘मैं सोचती हूं कि इतनी कम तनख्वाह में कैसे गुज़ारा चलाउंगी. कैसे सुनिश्चित करूंगी कि मेरे बच्चे पढ़ लिखकर अपने पांवों पर खड़े हो जाएं.’

‘मैंने देखा ही नहीं कि मेरे घर में क्या हो रहा था’

कौर पूरे पटियाला में काम कर रहीं, उन 63 रैपिड रेस्पॉन्स टीमों का हिस्सा हैं, जो अपने अपने इलाक़ों में जाकर कोविड के हर मामले का पता रखती हैं और चिकित्सा धिकारियों की निगरानी में चिकित्सा अभियान चलाती हैं.

ये एक ऐसी ज़िम्मेदारी है, जो उन्हें पूरे दिन घर से बाहर रखती है. पति की मौत को एक महीना हुआ है और कौर को एक अपराध बोध होता है. उन्होंने कहा कि वो अपने काम से जुड़ी ज़िम्मेदारियों में इतनी डूबी हुई थीं कि उन्होंने ‘अपने पति के लक्षणों को अनदेखा कर दिया.’


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उन्होंने आगे कहा, ‘मेरा दिन सुबह 8 बजे शुरू होता है, जब मैं घर-घर जाकर सर्वे करती हूं और लोगों को टीकाकरण के फायदे बताती हूं. फिर में घर घर से कोविड संदिग्ध मामलों के नमूने लेने और टीके लगाने निकल जाती हूं. मैं शाम तक घर लौटती हूं और जब तक खाना पकाकर निपटती हूं, तब तक सोने का समय हो जाता है.’


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उन्होंने कहा, ‘मेरे पति बीमार थे, लेकिन मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, ये सोचकर कि वो वायरल इनफेक्शन होगा. मुझे भी बुख़ार था लेकिन मैं फील्ड में लोगों को कोविड लक्षणों के प्रति जागरूक करने, और गर्भवती महिलाओं पर नज़र रखने में इतनी व्यस्त थी, कि मैंने देखा ही नहीं कि मेरे अपने घर में क्या हो रहा था’.

अमरजीत सिंह, जो एक दूधिया थे, 25 अप्रैल को बीमार हो गए. कौर ने बताया कि जब तीन दिन तक बुख़ार तेज़ रहा, तो गांव में एक झोलाछाप से मश्विरा करके, उन्होंने टायफायड की दवा ले ली. इससे पहले कि वे समझ पाते कि उन्हें कोविड था, उनका ऑक्सीजन सैचुरेशन स्तर गिरने लगा, और सांस फूलने लगी. 3 मई को उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां 5 मई को वो कोविड पॉज़िटिव पाए गए. जब डॉक्टरों ने उनका सीटी स्कैन कराया, तो उनके फैफड़े काफी हद तक ख़राब हो चुके थे. एक हफ्ता अस्पताल में रहने के बाद, 11 मई को उनकी मौत हो गई.

कौर ने कहा, ‘मैंने ही वायरस उन तक पहुंचाया, और समय रहते मैं उन्हें अस्पताल नहीं भेज पाई. मैं ख़ुद को दोषी महसूस करती हूं’.

लेकिन, वायरस के लिए ख़ुद कौर का टेस्ट निगेटिव आ गया. ये पूछने पर कि क्या उन्हें टीका लग गया, कौर ने कहा कि वो टीका लगवाने गईं थीं, लेकिन उनके एस्थमा की वजह से, उन्हें इसकी सलाह नहीं दी गई.

‘प्रोत्साहन मिल जाए तो अच्छा रहेगा’

कौर के पति अपने पीछे तीन गायें छोड़ गए हैं. अपने गुज़र-बसर के लिए, कौर अलग से कुछ व्यवसाय करना चाहती हैं, लेकिन अभी उनके पास कोई ठोस योजना नहीं है.

उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसी आशा कार्यकर्त्ताओं के लिए मुआवज़े पर विचार करना चाहिए, जिन्होंने कोविड से अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया है, चूंकि वो हर रोज़ घर से बाहर निकलकर, हॉटस्पॉट्स का दौरा करती हैं, और अपने परिवारों को जेखिम में डालती हैं.

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई आशा वर्कर मर जाती है, तो उसके परिवार को 50 लाख रुपए मुआवज़ा मिलता है. लेकिन अगर उससे परिवार के किसी सदस्य को वायरस लग जाए तो उसका क्या? क्या सरकार को ऐसे परिवारों को कुछ मुआवज़ा नहीं देना चाहिए?’

उन्होंने पूछा, ‘मेरे पति की मौत इसलिए हुई कि मेरा वायरस उन्हें लगा. उस दौरान मैं घर-घर जा रही थी, तो क्या मुझे उसके लिए मुआवज़ा नहीं मिलना चाहिए? मैं अपने बच्चे कैसे पालूंगी? अगर हम इतनी समाज सेवा कर रहे हैं, तो सरकार को हमारे लिए कुछ नहीं करना चाहिए?’.

कौली ब्लॉक जिसके अंतर्गत दभलान गांव आता है, के ग्रामीण चिकित्सा अधिकारी डॉ असलम परवेज़ उनसे सहमत हैं.

उन्होंने कहा, ‘अगर कुछ और नहीं तो कुछ सहायता ही मिल जाए, जिससे उनके बच्चों को शिक्षा मिल जाए, उनकी फीस का इंतज़ाम हो जाए. उन्हें 5-6 गायें ही दे दीजिए, जिससे वो साथ में व्यवसाय कर सकें. कम से कम किसी रूप में तो उन्हें मुआवज़ा दीजिए’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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