scorecardresearch
Thursday, 14 August, 2025
होमदेशअभिभावक की यौन हिंसा पारिवारिक विश्वास की बुनियाद को नष्ट कर देती है : न्यायालय

अभिभावक की यौन हिंसा पारिवारिक विश्वास की बुनियाद को नष्ट कर देती है : न्यायालय

Text Size:

नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म के दोषी व्यक्ति की सजा बरकरार रखते हुए बुधवार को कहा कि किसी अभिभावक द्वारा की गई यौन हिंसा पारिवारिक विश्वास की बुनियाद को नष्ट कर देती है।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति संदीप कुमार की पीठ ने कहा कि महिलाओं की गरिमा से “कोई समझौता नहीं किया जा सकता।” उसने न्याय तंत्र को निर्देश दिया कि वह “गलत सहानुभूति” या “प्रक्रियात्मक निष्पक्षता” के नाम पर इस गरिमा के उल्लंघन की अनुमति न दे।

चार अगस्त को पारित फैसले में पीठ ने कहा कि न्याय केवल दोषसिद्धि तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें क्षतिपूर्ति भी शामिल होनी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने पीड़िता को हिमाचल प्रदेश राज्य के तहत मुआवजे के रूप में 10.50 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा, “अभिभावक द्वारा की गई यौन हिंसा एक अलग श्रेणी का अपराध है, जो पारिवारिक विश्वास की बुनियाद को नष्ट कर देता है तथा इसकी भाषा और भावना दोनों में कड़ी निंदा की जानी चाहिए।”

उसने कहा, “एक घर, जिसे एक सुरक्षित स्थल होना चाहिए, उसे अकथनीय आघात का स्थल बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालतों को यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि ऐसे अपराधों का समान रूप से कठोर न्यायिक जवाब दिया जाएगा।”

पीठ ने कहा कि इस तरह के मामले में नरमी बरतने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करना न केवल अनुचित होगा, बल्कि यह कमजोर लोगों की रक्षा करने के न्यायालय के अपने संवैधानिक कर्तव्य के साथ विश्वासघात भी होगा।

उसने कहा,“जब एक बच्ची को अपने ही पिता के हाथों कष्ट सहने के लिए मजबूर किया जाता है, तो कानून को दृढ़ और अडिग स्वर में बोलना चाहिए। ऐसे अपराधों के लिए सजा में कोई रियायत नहीं दी जा सकती, जो परिवार को एक सुरक्षित स्थान के रूप में स्थापित करने वाली अवधारणा को ही नष्ट कर देते हैं।”

शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दोषी व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया। उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 6 (यौन उत्पीड़न) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था।

भाषा पारुल नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments