मुनव्वर फारूक़ी मेरी कहानी को जो मैं उन्हें सुना रही हूं, बीच में ही रोकते हुए कहते हैं कि वो सुन नहीं रहे हैं.
वो मुझसे कहते हैं, ‘सॉरी, मेरा दिमाग़ भटक गया था. मैं पिछले दस सेकेंड्स से सुन नहीं रहा था’. वो कहते हैं कि कुछ दिन से उनका दिमाग़ कुछ ज़्यादा ही भटक रहा है.
उन्हें कौन दोष दे सकता है? एक सामान्य जीवन जीना बहुत मुश्किल होता है जब आपको पीछे से इसलिए निशाना बनाया जाता है कि आप एक मुस्लिम कॉमेडियन हैं. एक मज़ाक़ उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है जो उन्होंने अप्रैल 2020 में किया था और उसके बाद से नहीं किया है.
वो मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘अब ये नहीं लिख देना कि मेरा दिमाग़ भटक जाता है. लिखिए कि मैं ईमानदार हूं’.
इस 28 वर्षीय शख़्स पर ये एक साल बहुत भारी रहा है. 2021 के पहले दिन उसे स्टेज पर ही गिरफ्तार कर लिया गया था, उसके बाद 37 दिन वो जेल में रहा और हाल ही में उसके लगातार 16 शो रद्द कर दिए गए.
फारूक़ी का करियर संकट में आ गया है और अपनी कॉमेडी को लेकर उन्हें ज़बरदस्ती विवादों का सामना करना पड़ रहा है. उनके आसपास हर किसी को उनकी स्थिति में बेहूदगी नज़र आती है लेकिन उनके लिए ये एक हक़ीक़त है.
सिर्फ एक चीज़ साफ है: हो सकता है कि ज़िंदगी से उनका ध्यान भटक रहा हो लेकिन उनका मन कॉमेडी से नहीं भटक रहा.
दोहरा ख़तरा
फारूक़ी कहते हैं, ‘मैं किसी पीड़ित की तरह नहीं लगना चाहता’, फिर वो रुकते हैं और अपने मुंबई अपार्टमेंट की बालकनी से बाहर देखते हुए कहते हैं, ‘मैं एक पीड़ित तो हूं लेकिन पीड़ित जैसा लगना नहीं चाहता’.
उस भारत में जहां जेलों में जाने वाले कॉमेडियंस, कार्टूनिस्ट्स और आलोचकों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसमें कोई शक नहीं कि फारूक़ी के मन में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से ग़ायब होने का विचार आ रहा है.
उन्होंने एक बयान पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा कि बस अब उनका बहुत हो गया. इससे पहले नवंबर में बेंगलुरू में उनके ताज़ा शो डोंगरी टु नोव्हेयर को पुलिस ने ‘क़ानून व्यवस्था की संभावित समस्या’ का हवाला देते हुए कैंसल कर दिया. गुरुग्राम में भी उनका शो रद्द कर दिया गया लेकिन वो स्टेज को कभी नहीं छोड़ सकते. उन्हें सबसे ज़्यादा इसी से प्यार है.
उन्हें इंदौर में उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब एक हिंदू संगठन के कुछ लोग स्टेज पर चढ़कर दावा करने लगे कि उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी की थी और राजनेताओं को अपमानित किया था. उसके बाद कई बार उनकी ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज की गई. उन्होंने 37 दिन जेल में बिताए जिनमें उनका जन्मदिन भी शामिल था.
फारूक़ी का अभी भी मानना है कि ‘डोंगरी टु नोव्हेयर’ बिल्कुल ‘साफ’ है और उनके दर्शक- उनके मुताबिक़ भारत की जनसांख्यिकी का सही प्रनितिधित्व- हमेशा उसका मज़ा लेते हैं लेकिन लोगों के बीच स्टैंड-अप कॉमेडी करना अब उनके बस में नहीं है. वो अपने दर्शकों या आयोजकों को ख़तरे में डालने का जोखिम नहीं ले सकते. वो जेल से बाहर हो सकते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि वो अभी भी क़ैद में हैं.
लेखक और कॉमेडियन वरुण ग्रोवर कहते हैं, ‘मैं समझता हूं कि वो सबसे प्रतिभावान कॉमेडियनंस में से एक हैं. उनकी पहचान का दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा उनका धर्म है’.
उन्होंने कहा कि आम तौर पर दो तरह के हास्य व्यक्तित्व होते हैं- पसंद करने लायक़ हास्य और आपत्तिजनक हास्य. ग्रोवर कहते हैं कि फारूक़ी पसंद आने लायक़ हैं इसीलिए उनसे एक दोहरा ख़तरा है. लोग समझते हैं कि वो ऐसे राक्षस नहीं हैं जैसा लोग उन्हें देखना चाहते हैं.
ग्रोवर कहते हैं, ‘ये एक ज़बर्दस्त मेल है- वो मज़ाक़िया हैं, पसंद आने लायक़ हैं और इतने चालाक हैं कि किसी को ठेस पहुंचाए बिना अपनी बात कहने का रास्ता निकाल लेते हैं. अगर कोई पूर्वाग्रही सोच लेकर उनके शो में जाता है तो मुनव्वर को उसे अपना प्रशंसक बनाने में सिर्फ 15-20 मिनट लगते हैं’.
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दो भारत
बीबीसी ने कहा है कि भारतीय दर्शक ‘तुनक-मिज़ाज’ हो सकते हैं और टाइम के एक कॉलम में, जनवरी में हुई फारूक़ी की गिरफ्तारी की मिसाल देते हुए कहा गया कि ‘भारत में एक बहुसंख्यक लहर चल रही है’. आमतौर पर लोकमत की अदालत फैसला करती है कि कौन ‘राष्ट्र-विरोधी’ हैं और कौन नहीं है और अकसर ख़ुद ही उसके परिणाम सुना देती है.
तो वही क्यों? फारूक़ी कंधे उचकाते हुए अंदाज़ा लगाते हैं, ‘क्योंकि मेरे पास दर्शक हैं’.
सड़कों पर लोग हर समय असमानताओं और अन्याय को लेकर मज़ाक़ करते रहते हैं. वो कहते हैं कि अगर वो लोग कैमरे पर पकड़े जाएं, तो वो एक मीम बन जाएंगे और वायरल हो जाएंगे. अगर इसी तरह की बातें वो कहते तो उनके साथ क्या होता, इसका जवाब पहले ही मिल चुका है.
‘हालात’ की बात करते हुए फारूक़ी तनाव में आ जाते हैं. वो अपनी सीट में और धंस जाते हैं, अपने पैर को थपथपाते हैं और जीन्स के ऊपर से अपने घुटनों को रगड़ते हुए ख़ुद को सकून पहुंचाने की कोशिश करते हैं. अपनी बात का समर्थन पाने के लिए वो कमरे में मौजूद परिचित चेहरों की ओर देखते हैं और एक कॉमेडियन के नाते अनजाने में एक प्रशिक्षित व्यवहार करने लगते हैं.
अपने दर्शकों के साथ वो यही करते हैं: उनसे नज़रें मिलाते हैं, उनके भाव पढ़ते हैं और निजी लगने वाले मज़ाक़ में लोगों को खींच लेते हैं. बाद में वो मुझे बताते हैं कि लोगों पर उनके शब्दों का असर देखकर उन्हें ताक़त का अहसास होता है- जब वो सस्पेंस पैदा करते हैं तो लोग तनाव में आ जाते हैं और जब वो राहत देते हैं तो लोग शांत हो जाते हैं.
कॉमेडी प्रासंगिक भी होती है लेकिन फारूक़ी को लोग प्रसंग से बाहर लेते रहते हैं और यही वो समय होता है जब वास्तविकता सामने आती है.
दिप्रिंट के इंटरव्यू का एक हिस्सा कैफे में हुआ जो मुंबई में कॉमेडी का मुख्य केंद्र है. फारूक़ी थके हुए हैं और इंटरव्यू के दौरान जम्हाइयां लेते हैं. बीती रात उन्होंने जागकर नेटफ्लिक्स पर मनी हिस्ट देखा था जिसकी उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल के लिए रिव्यू किया था. इससे पहले अपने अपार्टमेंट पर उन्होंने उनींदे ढंग से काजू और तले हुए स्नैक्स पेश किए थे और अपनी कुक को फोन करके पूछा था कि किचन में तेल कहां रखा था. उनके लिए काम शुरू करने से पहले उनकी कुक उन्हें इंस्टाग्राम पर फॉलो करती थी.
फारूक़ी ख़ुश हो जाते हैं जब उस जगह पर उन्हें अपने दोस्त मिल जाते हैं. वो उस कमरे में बहुत सहज हैं जहां उन्होंने कॉमेडी का अपना सफर शुरू किया था. वो स्टाफ के साथ हंसी-मज़ाक़ करते हैं जिनमें से ज़्यादातर लोग उन्हें मशहूर होने से पहले से जानते हैं. वो अपने लिए एक ही बार में जलजीरा और ड्रिंक्स ऑर्डर करते हैं.
उनका स्टाफ हमें बताता है कि हमें जल्दी ख़त्म करना होगा क्योंकि उन्हें कविता के एक कार्यक्रम के लिए कमरे की ज़रूरत है. वो फारूक़ी से पूछते हैं कि क्या वो परफॉर्म करना पसंद करेंगे. एक पल गंवाए बिना फारूक़ी एक कविता शुरू कर देते हैं: ‘मैं दो भारत से आया हूं…’
जो कविता वो पढ़ते हैं, वो प्यार के बारे में है.
वो स्टेज पर पहुंच जाते हैं और माइक स्टैंड के पास ऐसे झुकते हैं जैसे वो कोई पुराना दोस्त हो. बाद में वो मुझसे कहते हैं कि उन्हें स्टेज पर उतना मज़ा नहीं आया जितना आमतौर पर आता था- वो उन लोगों को चुटकुले सुनाना चाहते हैं जो उन्हें देखने आए हैं वो कविता आयोजनों में शिष्टाचार दिखावा नहीं करना चाहते. वो अपने हास्य को किसी ब्लैक बॉक्स में नहीं चाहते.
वो कहते हैं, ‘त्रासदी से कॉमेडी को ज़्यादा सामग्री मिलती है. अगर आपने ज़िंदगी में इतना कुछ देखा है, तो आप भावुक हो जाते हैं लेकिन आप हर चीज़ के लिए तैयार रहते हैं’.
दंगों से लेकर बाद में माता-पिता दोनों की मौत और जेल के अंदर तक वो पहले ही ज़िंदगी में काफी कठोरता देख चुके हैं.
‘कॉमेडी सस्ती नहीं होती’
त्रासदि में हास्य ढूंढने के लिए आपको हिम्मत चाहिए होती है. वो कहते हैं, ‘वही हिम्मत से हम यहां खड़े हैं’.
फारूक़ी की कहानी ऐसी है जो वर्ग और स्थान से आगे निकल जाती है और यही वजह है कि वो कामयाब हैं: उनके दर्शक खुले हुए हैं और कॉमेडी से जुड़ने वाले हैं. गीज़र्स और चप्पलों से लेकर भूतों की कहानियां सुनाने तक, फारूक़ी किसी को उसके प्रसंग से अलग किए बिना अपने निजी जीवन से हास्य निकालते हैं. भले ही उसमें गुजरात दंगों से गुज़रने जैसी निजी बातें शामिल हों. चाहे स्टेज पर हो या उससे बाहर, उनका ये स्पष्ट आत्मबोध ही सबके सामने ज़ाहिर हो जाता है.
मूल रूप से जूनागढ़ के रहने वाले फारूक़ी ने दो साल तक एक बर्तनों की दुकान पर काम किया जिसके बाद वो मुम्बई आ गए और वो कहते हैं कि वो अपने जीवन से सुखी थे लेकिन जब उनके पिता को लकवा हुआ तो उन्होंने ग्राफिक डिज़ाइन में एक कोर्स किया और दवाओं के लिए पैसे कमाने के लिए एक स्थानीय फर्म में नौकरी कर ली.
फारूक़ी ने बहुत तेज़ी के साथ कामयाबी की ऊंचाइयों को छुआ है. हास्य का उनका सफर केवल 2018 में जाकर शुरू हुआ जब उन्होंने एक शो का प्रचार होते हुए देखा. वो एक टिकट ख़रीदना चाहते थे लेकिन वो 500 रुपए का था, फिल्म के टिकट का दोगुना. एक सस्ता टिकट भी था- 300 रुपए का- जिससे आप एक ओपन माइक आयोजन में दाख़िल हो सकते थे. फारूक़ी ने वो ख़रीद लिया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक असली मुंबईकर के अंदाज़ में उन्हें सार्वजनिक रूप से पहली बार तब पहचाना गया जब फरवरी 2020 में वो एक लोकल ट्रेन में जा रहे थे.
वो मुझसे कहते हैं, ‘लेकिन कॉमेडी सस्ती नहीं होती’. वर्गों के भेद हमेशा रहते हैं चाहे वो दर्शकों में हों या परफॉर्मन्स में या जिस तरह के जोक्स वो सुनाते हैं. वो कहते हैं कि ये ज़िंदगी की दूसरी चीज़ों की तरह ही है.
उनकी ज़िंदगी की ट्रेजीकॉमेडी उस डार्क कॉमेडी में भी आ जाती है जो वो अपने सबसे क़रीबी दोस्तों के साथ साझा करते हैं.
वो कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि मैं हर समय 3-4 अलग अलग मुनव्वर फारूक़ी के किरदार अदा कर रहा हूं. एक परिवार के साथ, एक दोस्तों के साथ, एक स्टेज पर…’ वो कौनसा किरदार प्ले करना पसंद करते हैं? वो कहते हैं यक़ीनन वो जिसमें वो अपने सबसे क़रीबी दोस्तों के साथ रहते हैं.
उनके एक दोस्त, जो कविता के ओपन माइक आयोजन के दौरान मौजूद थे. उन्होंने देखा कि फारूक़ी ग्रीन रूम के कांच के दरवाज़े के पीछे से प्रदर्शनों को देख रहे थे. ऐसा नज़र आ रहा था कि जैसे मुनव्वर सलाख़ों के पीछे थे. उनके दोस्त ने उन्हें लिखा, ‘जेल की आदत नहीं गई ना?’
उनके एक और दोस्त सदाक़त ख़ान को भी उनके साथ जनवरी में इंदौर में गिरफ्तार किया गया था. ख़ान फारूक़ी के प्रशंसक थे और दोनों में दोस्ती हो गई जब ख़ान ने उन्हें मैसेज किया और उनके एक शो में शरीक हुए. ख़ान एक फैन के नाते शो में हिस्सा लेने उनके साथ मुंबई से इंदौर गए और उन्हें तब गिरफ्तार किया गया जब वो फारूक़ी के समर्थन में खड़े हुए. जेल के अंदर दोनों और क़रीब आ गए और अब बिल्कुल भाइयों की तरह हैं. जेल से रिहा होने के बाद दोनों ने साथ मिलकर काम करने का फैसला किया. ख़ान अब उनके टुअर मैनेजर हैं.
ख़ान ने कहा, ‘वो ऐसे इंसान नहीं हैं जो टूट जाएंगे. उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगी में बहुत कुछ सहा है. ये सब उसके मुक़ाबले कुछ नहीं है. उन्हें बस ये बात बुरी लगती है कि इससे उनके चाहने वालों पर क्या असर पड़ेगा जो उनके लिए बहुत ख़ास हैं’. वो अपने प्रशंसकों से सिर्फ ऑनलाइन बातचीत नहीं करना चाहते बल्कि उनके लिए शो करना चाहते हैं.
उनके क़रीबी दोस्त उन्हें बचाते हैं और बदले में फारूक़ी उन्हें बचाते हैं. वो किसी भी विषय पर बात कर लेंगे लेकिन फारूक़ी उस आघात के बारे में बात नहीं करना चाहते जिससे वो गुज़रे हैं या हिंदू समूहों से मिली धमकियां उनके चाहने वालों को कैसे प्रभावित करती हैं. फारूक़ी को अपने दोस्तों के ऐसे ही काल्पनिक आरोपों में फंसाए जाने का डर है जैसे ख़ुद उन पर लगाए गए हैं.
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आराम और बेचैनी के बीच
जब हमारे इंटरव्यू को जारी रखने का समय आया तो फारूक़ी सार्वजनिक जगह पर खाने को लेकर होशियार हो जाते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हें पहचान लिया जाएगा. फारूक़ी फौरन ही साफ करते हैं कि वो जिससे भी आमने-सामने मिलते हैं वो बेहद मददगार होता है और उन्हें पता होता है कि वो अहम हैं. बस वो ये नहीं चाहते कि लोग उनपर दया करें या उनपर अफसोस करें.
व्यक्तिगत रूप से वो अलग हो जाते हैं, अकसर अपने फोन में खो जाते हैं ,अपने प्रशंसकों और चाहने वालों की सोहबत में सहज नज़र आते हैं. वो इंस्टाग्राम पर पोस्ट और डीएम्स को स्क्रोल करते हैं, कभी कभी किसी को जवाब देते हैं और फिर अपने आंकड़े और कमेंट्स देखने के लिए यूट्यूब खोल लेते हैं.
ऐसा नहीं है कि वो वास्तविक जीवन में लोगों के साथ समय बिताना नहीं चाहते हैं- बस उनके पास कुछ ज़्यादा कहने को नहीं है कि उनके साथ क्या हो रहा है. साथ ही, ऐसा और कुछ नहीं है जिसकी वो बात कर सकें या सोच सकें क्योंकि उनपर यही जुनून सवार है.
किसी के साथ घूमने जाने के न्यौते को मना करने की नाकाम कोशिश के बाद हेल्मेट का बकल लगाकर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होते हुए वो कहते हैं, ‘मुझे अगर कोई चीज़ सीखनी है तो वो ये कि ना कैसे कहा जाए’.
वो मुझे चेतावनी देते हैं कि उनकी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर चलना आरामदेह नहीं होगा लेकिन पानी पूरी के लिए ऐसा किया जा सकता है. हमें मजबूरन एक बस के पीछे इंतज़ार करना पड़ता है और आगे बढ़ने के लिए वो थोड़ी देर को बस और फुटपाथ के बीच के गैप में घुसने की सोचते हैं. वो रुकना तो नहीं चाहते लेकिन अपनी ज़िंदगी की दूसरी हर चीज़ की तरह उन्हें रुकना पड़ जाता है.
मोटरबाइक सवारी के बीच में वो मुझे अपनी बहन के यहां डिनर की दावत देते हैं लेकिन फिर दोबारा सोचते हैं. उनका परिवार डिनर देर से करता है और उन्हें नमाज़ पढ़नी है- इसलिए उन्हें यक़ीन है कि मैं बोर हो जाउंगी. पेशकश वापस लिए जाने के बाद वो तय करते हैं कि पानी पूरी की बजाय हमें एक पुरानी पसंदीदा जगह पर जल्दी डिनर करेंगे.
यक़ीनन रेस्टोरेंट के सर्वर्स उन्हें पहचान लेते हैं, हमें एक कोने में बिठाते हैं और उनमें से एक हेलो कहने आता है. खाने के बाद हमारा सर्वर पूछता है कि क्या उसे बची हुई दाल तड़का पैक करनी चाहिए. फारूक़ी कहते हैं हां, और उससे कहते हैं कि इसे बाहर किसी भूखे को दे दें.
‘कॉमेडी मुझमें इज़ाफा करती है’
मुनव्वर फारूक़ी का इलाज इबादत और परफॉर्मंस हैं लेकिन अपने लिए उन्हें एक चीज़ करना पसंद है और वो है ख़रीदारी. ख़ासकर जूते, घड़ियां और टोपियां. वो मुझे अपनी टैग ह्यूअर घड़ी दिखाते हैं और बताते हैं कि जब वो छोटे थे तो किस तरह टोपियां ख़रीदने के लिए पैसे बचाया करते थे. अब चीज़ें बदल गईं हैं.
उन्हें नहीं लगता कि उन्हें पोस्टर ब्वॉय बनाया जा रहा है या उन्हें कॉमेडी समुदाय के लिए एक मिसाल में बदला जा रहा है. वो कहते हैं, ‘मैं कॉमेडी में कुछ नहीं जोड़ता…कॉमेडी मुझमें जोड़ती है’.
फारूक़ी तरह तरह की टोपियां पहनते हैं. हालांकि स्टैंड-अप कॉमेडी उनका पहला प्यार है. वो एक लेखक पहले हैं और उन्होंने ख़ुद को अपने कौशल तक सीमित नहीं रखा है- वो रैप करते हैं और एक वेब सीरीज़ लिख रहे हैं. वो कहते हैं, ‘स्टेज का अलग नशा होता है और वो फिर से परफॉर्म करने को बेचैन हैं.
ये भाव उस समय बिल्कुल साफ था जब वो उसी दिन स्टेज पर गए थे लेकिन वो वहां कोई चुटकुला सुनाने या नफरत की बात करने नहीं गए थे. वो वहां एक प्रेम की कविता के लिए गए थे.
वो पढ़ते हैं, ‘एक शायरी लिखी है, कभी मिलोगी तो सुनाउंगा…’
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