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Monday, 23 December, 2024
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भारत में 10 लाख़ में से महज़ 0.65% लोग करते हैं अंगदान, अंधविश्वास जैसी अड़चनें

सबसे गंभीर स्थिति हार्ट ट्रांसप्लांट की है. एक साल में जहां 10,000 मरीज़ों को इसकी ज़रूरत होती है, वहीं 150-200 मरीज़ों का ही हार्ट ट्रांसप्लांट हो पाता है.

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नई दिल्ली : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से अंगदान को लेकर चौंकाने वाली जानकारी निकलकर सामने आई है. इसके मुताबिक अंगदान को लेकर लोगों के बीच जागरूकता तो बढ़ी है लेकिन इसको लेकर लोगों में अभी भी ढेर सारी भ्रांतिया हैं जो आंगदान को व्यापक बनाने की राह में बाधा हैं. ऊपर से सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि भारत में 10 लाख़ लोगों में से महज़ 0.65 प्रतिशत लोग अंगदान करते हैं.

भारत में अंगदान का औसत भले ही नग्णय हो लेकिन स्पेन में 10 लाख़ में से 48 प्रतिशत, अमेरिका में 33.32 प्रतिशत और ब्रिटेन में 24.52 प्रतिशत लोग अंगदान करते हैं. एम्स से मिली ताज़ा जानकारी के मुताबिक अंगदान में धार्मिक आस्था, परिवार का बंटा हुआ मत और दिल्ली एनसीआर में बाहर से आई आबादी का होना एक बहुत बड़ी बाधा है.

दिल्ली एनसीआर में बाहर से आई आबादी इसलिए बाधा है क्योंकि अंगदान के लिए परिवार के किसी व्यक्ति की सहमति चाहिए होती है और बाहर से आए लोगों के परिवार वाले आसानी से नहीं मिल पाते. वहीं, एक बड़ी बाधा ये है कि ब्रेन डेड मरीज़ों के परिवार वाले इस बात को स्वीकार नहीं करते कि मरीज़ को सिर्फ़ वेंटिलेटर पर रखा जा सकता है. इसके अलावा वो ब्रेन डेड मरीज़ को लेकर इतने भावनात्मक होते हैं कि उनके अंगदान के लिए अक्सर तैयार नहीं होते.

ये बातें बुधवार को एम्स के ऑर्गन रिलेटिव बैंकिंग ऑर्गेनाइज़ेशन (ओआरबीओ) द्वारा आयोजित अंगदाता समारोह में निकल कर सामने आई. इस कार्यक्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और एम्स के अध्यक्ष डॉक्टर हर्षवर्धन भी मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद थे. हर्षवर्धन ने कहा, ‘अंगदान करने वालों के परिवार वाले सबसे मज़बूत लोग होते हैं जो ऐसे दर्द और भावनात्मक मौके पर इतना अहम फ़ैसला लेते हैं.’ उन्होंने ऐसे लोगों को दिल से धन्यवाद दिया.

सबसे गंभीर स्थिति हार्ट ट्रांसप्लांट की है. एक तरफ़ एक साल में जहां 10,000 मरीज़ों को इसकी ज़रूरत होती है, वहीं 150-200 मरीज़ों का ही हार्ट ट्रांसप्लांट हो पाता है. ये बात भी सामने आई है कि दिल से जुड़े अंगों की कमी एक वैश्विक समस्या है.

इस दौरान जारी एक प्रेस रिलीज़ में ये भी बताया गया कि मानव शरीर के अंगों और ऊत्तकों की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है. जैसे कि देश में सालाना 1.5 से दो लाख़ मरीज़ों को किडनी ट्रांसप्लांट की दरकार होती है लेकिन महज़ 7500 से 8000 मरीज़ों को ही किडनी मिल पाती है.


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वहीं, सालाना 75 से 80 हज़ार मरीज़ों को लीवर ट्रांसप्लांट की दरकार होती है, लेकिन महज़ 1800 मरीज़ों को ही लीवर मिल पाता है. इस अवधि में एक लाख़ लोगों को कॉर्निया के ट्रांसप्लांट की दरकार होती है, लेकिन आधों को ही यह मिल पाता है.

एम्स के इस कार्यक्रम के दौरान अंगदान करने वाले 51 परिवारों के लोग भी मौजूद थे जिन्हें स्वास्थ्य मंत्री ने सम्मानित किया. कार्यक्रम में केंद्रीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू, ओलंपिक चैंपियन मैरि कॉम और पद्म भूषण से सम्मानित गायक मोहित चौहान भी मौजूद थे.

क्या है अंगदान के काम से जुड़ा ओआरबीओ

ओआरबीओ एम्स में स्थित है. इसका काम अंगदान को असाना बनाना है और इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करना है. यही नहीं, दान किए गए अंग को सही तरीके से वितरित करना भी इसका ज़िम्मा है. ये अंगदान की शुरुआती प्रक्रिया से लेकर इसके मरीज़ को मिलने तक की प्रक्रिया में शामिल होता है.

इसी की वजह से दिल्ली स्थित एम्स में ब्रेन डेथ और अंगदान जैसे विषयों को एमबीबीएस, बीएससी (नर्सिंग) और एमएससी (नर्सिंग) में शामिल किया गया है. अंगदान को बढ़ावा देने के लिए ये हर साल 200 प्रोत्साहन कैंपों का आयोजना करता है.

ओरआरओबी की डॉक्टर आर्ती विज ने कहा, ‘हमारी एक हेल्पलाइन है जो 24 घंटे चलती है और इसे पेशेवर लोग चलाते हैं. ट्रांसप्लांटेशन ऑफ़ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट 1994 के निर्देशों के मुताबिक हमने एम्स में होने वाले हर मौत को नोटिफ़ाई करने का काम सफ़लतापूर्वक किया है.’

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