प्रयागराज, 20 फरवरी (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि ग्राम पंचायत की संपत्तियों का संरक्षण करते समय कब्जेदार को अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बगैर जमीन खाली करने का आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने यह आदेश सहारनपुर के नकुड के रहने वाले लीलू नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका पर पारित किया।
याचिकाकर्ता ने संबंधित तहसीलदार द्वारा चार जनवरी, 2023 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया था। तहसीलदार ने उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत विवादित जमीन से कब्जा खाली करने का निर्देश दिया था।
इस मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा, “यह अदालत सहारनपुर के नकुड के तहसीलदार के आचरण की घोर निंदा करती है जिसने उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत 11 दिनों के भीतर कार्यवाही पूर्ण की।”
अदालत ने कहा, “किस बात को लेकर तहसीलदार ने इतनी जल्दीबाजी की, यह रिकार्ड से स्पष्ट नहीं है। हालांकि, एक बात स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता को इस मामले में अपना पक्ष रखने से वंचित किया गया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की पूर्ण उपेक्षा की गई।”
उपरोक्त बातों को देखते हुए अदालत ने इस रिट याचिका को स्वीकार किया और चार जनवरी, 2023 के आदेश को रद्द किया।
अदालत ने पिछले बृहस्पतिवार को पारित अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता एक महीने के भीतर इस नोटिस के खिलाफ अपनी आपत्तियां दाखिल करेगा। इसके बाद, संबंधित अधिकारी कानून के मुताबिक कार्यवाही करेंगे और याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का पूर्ण अवसर देंगे और छह महीने के भीतर इस मामले में निर्णय करेंगे।
भाषा राजेंद्र राजेंद्र रंजन
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