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Friday, 22 November, 2024
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नागरिकता संशोधन विधेयक को विपक्ष ने बताया संविधान विरोधी, कहा- सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिकेगा

राज्यसभा में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक (सीएबी) को ‘समानता के अधिकार’ सहित संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार बताया.

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नई दिल्ली : राज्यसभा में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक (सीएबी) को ‘समानता के अधिकार’ सहित संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार बताते हुए इस बारे में सरकार को ‘राजहठ’ त्यागने की सलाह दी. हालांकि इन आरोपों को खारिज करते हुए सत्ता पक्ष ने इस विधेयक को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सलाह पर लाया गया एक कदम बताया और दावा किया कि इससे पूर्वोत्तर की ‘सांस्कृतिक पहचान’ को कोई खतरा नहीं पहुंचेगा. विपक्ष ने इसे संविधान विरोधी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में न टिक पाने की बात कही.

चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि विपक्ष को राजनीतिक हितों के बजाय राष्ट्र के हित साधने की नसीहत दी. नड्डा ने कहा कि यह विधेयक बेहद परेशानियों में जीवन जी रहे लाखों लोगों को सम्मानपूर्वक जीवन यापन करने का अधिकार प्रदान करेगा.

सपा ने कहा- मोहम्मद अली जिन्ना का ख्वाब पूरा कर रही है सरकार

सपा के जावेद अली ने सुझाव दिया कि इस विधेयक में तीन देशों के बजाय पड़ोसी देश और धार्मिक अल्पसंख्यक लिखना चाहिए, इससे सारा विवाद खत्म हो जाएगा. जावेद अली ने कहा कि 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ख्वाब देखा था कि पाकिस्तान को हिन्दू मुक्त और भारत को मुस्लिम मुक्त किया जाए. सपा सदस्य ने दावा किया मौजूदा सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिकता रजिस्टर पंजी लाकर जिन्ना के उस ख्वाब को पूरा कर रही है.

अन्नाद्रमुक ने तमिलनाडु आए शरणार्थियों के लिए मांगी नागरिकता

अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि तमिलनाडु में श्रीलंका से कई हिन्दू, बौद्ध, ईसाई एवं शरणार्थी आये हैं. वे वर्षों से नागरिकता पाने की उम्मीद लगाये हुए हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को भी नागरिकता दी जानी चाहिए.

अन्नाद्रमुक सदस्य ने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना से पहले पूर्वी पाकिस्तान से एक करोड़ शरणार्थी भारत आए थे. इनमें हिन्दू, मुस्लिम सभी थे. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना के बाद बहुत सारे शरणार्थी वापस चले गये. उन्होंने अधिकारियों से जानना चाहा कि ऐसे जो लोग देश में अभी तक रह रहे हैं, उनका भविष्य क्या होगा?

जदयू ने किया विधेयक का समर्थन

जद (यू) के रामचंद्र प्रसाद सिंह ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह सीधा विधेयक है लेकिन बात कुछ और ही हो रही है. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेदों की बात हो रही है लेकिन वह भारतीय नागरिकों के लिए है. लेकिन यहां तो बात लोगों को नागरिकता देने की ही हो रही है.

सिंह ने कहा कि इस विधेयक के बहाने लोगों के मन में भय पैदा किया जा रहा है. उन्होंने अपने संबोधन में तृणमूल नेता ब्रायन पर तीखा हमला बोला और कहा कि विगत में जब हाजीपुर में रेलवे जोन बन रहा था, उस समय तृणमूल कांग्रेस नेता ने उसका भारी विरोध किया था.

सिंह ने बिहार में नीतीश कुमार नीत सरकार द्वारा विभिन्न समुदायों के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों को डराने का प्रयास बंद होना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह खुद धर्म के नाम पर अन्याय नहीं होने देंगे.

डेरेक ओ ब्रायन ने बिल को बताया बंगाल विरोधी

तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने नागरिकता संशोधन विधेयक का भारी विरोध करते हुए कहा कि यह भारत और बंगाल विरोधी है.

उन्होंने कहा कि बंगालियों को राष्ट्रभक्ति सिखाने की जरूरत नहीं है और अंडमान की जेलों में बंद कैदियों में 70 प्रतिशत बंगाली थे.

डेरेक ने बंगाल के कई स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेज भी भारतीय लोगों की मनोस्थिति को नहीं तोड़ पाए. उन्होंने कहा कि आज कुछ लोग बंगाल के हितैषी बन रहे हैं. उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा और यह मामला उच्चतम न्यायालय में भी जाएगा.

तृणमूल सदस्य ने आरोप लगाया कि यह सरकार ‘नाजियों’ की तरह कदम उठा रही है. उन्होंने कहा कि सरकार देश के नागरिकों को आश्वासन देने के लिहाज से काफी अच्छी है लेकिन अपने वादों को तोड़ने के लिहाज से ‘‘और भी ज्यादा अच्छी है.’

उन्होंने जर्मनी के यातना केंद्रों की तुलना हिरासत शिविरों से की और एनआरसी का संदर्भ देते हुए कहा कि शिविरों में बंद 60 प्रतिशत लोग बांग्लाभाषी हिन्दू हैं.

डेरेक ने दावा किया कि पूर्वी पाकिस्तान में 1970 के दशक में धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि भाषा के आधार पर उत्पीड़न किया गया था. उन्होंने कहा कि वहां से आए कई लोगों के दस्तावेज अब नहीं हैं, ऐसे में वे कैसे अपने दस्तावेज दिखा सकते हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक पर चर्चा में हिस्सा ले रहे टीआरएस सदस्य के केशव राव ने कहा ‘गृह मंत्री ने कहा कि उन्हें शासन के लिए चुना गया है और दोबारा जनादेश मिला है. यह ठीक है. लेकिन वह संविधान को तोड़ नहीं सकते.’

उन्होंने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है जिसकी वजह से वह इसका विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘इसे एनआरसी से अलग नहीं किया जा सकता, यह एनआरसी की छाया है. विधेयक के कानून बनने के बाद किसी को नागरिकता मिलेगी, किसी को नहीं. नागरिकता के लिए अलग अलग आधार बनाए जा रहे हैं जो नहीं होना चाहिए.’

केशव राव ने कहा ‘मैं धार्मिक आधार पर उत्पीड़न से सहमत हूं और ऐसे लोगों को राहत दिए जाने की बात से भी इत्तेफाक रखता हूं. लेकिन इसकी आड़ में विभाजन नहीं होना चाहिए. मैं अपील करता हूं कि देश को धार्मिक आधार पर न बांटा जाए.’

माकपा ने बिल को बहुलतावाद पर चोट करने वाला बताया

माकपा सदस्य टीके रंगराजन ने विधेयक को संविधान विरोधी बताते हुए कहा ‘यह विधेयक भारत के बहुलतावाद पर चोट करता है. इसके जरिये मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है. इसके लिए जो औचित्य दिया जा रहा है वह सही नहीं है.’

उन्होंने सवाल किया ‘क्या मुस्लिम धार्मिक आधार पर प्रताड़ित नहीं हो सकते? पाकिस्तान में अहमदिया, म्यामां में रोहिंग्या और श्रीलंका में तमिल लोग धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं.’

सीपीआईएम के टीके रंगराजन ने हर किसी के लिए नागरिकता की मांग करते हुए कहा ‘धर्म कभी भी, किसी भी राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता.’

उन्होंने कहा ‘क्या सरकार ने इस बात पर विचार किया है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

द्रमुक सदस्य तिरुचि शिवा ने कहा ‘बहुलतावाद और लोकतांत्रिक भारत में विश्वास करने वालों के लिए धर्म कभी कोई बाधा नहीं रहा. मुझे पूरा विश्वास है कि उच्चतम न्यायालय की कसौटी पर यह विधेयक खरा नहीं उतरेगा.’

शिवा ने कहा ‘नागरिकता के लिए केवल तीन देशों को ही क्यों चुना गया ? अफगानिस्तान अविभाजित भारत का हिस्सा नहीं था. अगर अफगानिस्तान को चुना गया तो भूटान, म्यामां और श्रीलंका को क्यों छोड़ दिया गया ? भूटान में ईसाई आज भी अपने घर पर ही प्रार्थना करते हैं. वह जब चर्च जाना चाहते हैं तो भारत आते हैं.’

सरकार पर ध्रुवीकरण और धर्म निरपेक्षता पर चोट करने का आरोप लगाते हुए शिवा ने कहा ‘यह पहलू क्यों नजरअंदाज किया गया कि भाषा, संस्कृति और अलग अलग आधार पर भी अत्याचार हो रहे हैं.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) को मोदी सरकार का ‘हिन्दुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने’ वाला करार कदम देते हुए इस बात पर भरोसा जताया कि यह प्रस्तावित कानून न्यायालय के कानूनी परीक्षण में नहीं टिक पाएगा.

चिदंबरम ने विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिये संसद से एक ‘असंवैधानिक काम’ पर समर्थन लेना चाहती है. उन्होंने कहा कि संसद में निर्वाचित होकर आये सदस्यों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे कानून बनाते समय यह देखें कि यह संविधान के अनुरूप है कि नहीं.

उन्होंने कहा कि इस विधेयक के मामले में लोकसभा के बाद यदि राज्यसभा इसे पारित कर देती है तो वह अपने दायित्व को संविधान के तीन अन्य अंगों में से एक (न्यायालय) के लिए ‘त्याग’ रही है. उन्होंने कहा, ‘आप इस मुद्दे को न्यायाधीशों की गोद (विचारार्थ) में डाल रहे हैं.’

पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि यह मामला यही नहीं रूकेगा और यह न्यायाधीशों के पास जाएगा. उन्होंने कहा कि निर्वाचित नहीं होने वाले न्यायाधीश और निर्वाचित नहीं होने वाले वकील अंतत: इसके बारे में निर्धारण करेंगे. ‘अत: यह संसद का अपमान होगा.’

मनोनीत सदस्य स्वप्न दास गुप्ता ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि शरणार्थियों और प्रवासियों की श्रेणियां पूरी तरह अलग अलग और स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं.

उन्होंने कहा कि पूर्वी बंगाल से आए बंगालियों को विलुप्त किया जा रहा है और उनकी पहचान को स्वीकार करना चाहिए.

असम गण परिषद ने कहा राज्य के शरणार्थियों को अन्य राज्यों में भी भेजा जाय

असम गण परिषद के वीरेंद्र प्रसाद वैश्य ने कहा ‘असम अतिरिक्त बोझ को स्वीकार नहीं कर सकता. यहां आने वाले शरणार्थियों और प्रवासियों को अन्य राज्यों में भी भेजा जाना चाहिए.’

वैश्य ने असमी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिए जाने, असम में इनर लैंड परमिट योजना लागू करने तथा असम समझौते के उपबंध छह का कार्यान्वयन किए जाने की मांग भी की.

भाजपा सदस्य केजे अल्फोंस ने कहा ‘हमारे संविधान के मूल तत्व में दया की बात निहित है. उत्पीड़ितों पर दया के लिए ही यह विधेयक लाया जा रहा है. फिर यह संविधान का उल्लंघन कैसे कर सकता है?’

उन्होंने कहा ‘सच तो यह है कि यह विधेयक उत्पीड़न के शिकार लोगों के साथ 70 साल से होते आए भेदभाव को खत्म करेगा.’

अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यानंद ने श्रीलंका से तमिलनाडु आ कर वहां शरणार्थी शिविरों में बीते करीब 30 साल से रह रहे तमिल शरणार्थियों को दोहरी नागरिकता दिए जाने की मांग की.

उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक के दायरे में श्रीलंका के शरणार्थियों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

भाजपा के मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भारत की संस्कृति, परंपरा और हमरे संकल्प को दोहराता यह बिल है. उन्होंने कहा कि इस बिल को हमारे कानूनी विभाग की मंजूरी मिलने के बाद ही पेश किया गया है. संविधान के अनुच्छेद- 246 कहता है कि सभी मुद्दों पर कानून बनाया जा सकता है.

संविधान में सदन को नागरिकता पर बिल बनाने का अधिकार है. जिन लोगों को उनकी आस्था के कारण उत्पीड़ित किया जा रहा है अगर उन्हें हम नागरिकता दे रहे हैं तो इसमें क्या दिक्कत है.

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