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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेश‘सिर्फ 8.5 टन लोहा और 3 लाख रुपए’ : बिहार के ‘महा’ पुल चोरी की असली कहानी

‘सिर्फ 8.5 टन लोहा और 3 लाख रुपए’ : बिहार के ‘महा’ पुल चोरी की असली कहानी

रोहतास के गांववालों को एक फुटब्रिज की अजीब चोरी के बारे में लंदन तक से कॉल आ रहे हैं, लेकिन पुरानी दुश्मनियां और रंजिश न उभर आई होती तो खुलासा ही न हो पाता

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रोहतास: एक पक्के पुल पर बैठे 23 साल के प्रिंस सिंह और उनके दोस्त मीम देखकर खूब रोमांचित हो रहे हैं. ये मीम्स बिहार के रोहतास जिले में पुल की चोरी के बाद से चर्चित हुए गांव अमियावार के बारे में हैं.

एक मीम पर रुककर प्रिंस ने कहा, ‘जरा इसे देखो!’ उसमें यादों की बारात फिल्म में मुहम्मद रफी-आशा भोंसले के मशहूर गाने की नकल बज रही थीं, ‘चुरा लिया है तुमने जो पुल को, नहर नहीं चुराना सनम.’

एक जंग लगे लोहे के पैदल पुल की वजह से यह गांव राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में छा गया है. 1970 के दशक के ढहते-टूटते पुल को पर कोई बात नहीं होती थी लेकिन दिनदहाड़े कुछ चोरों ने इसे ‘चुरा’ कर खास बना दिया.

अप्रैल के मूर्ख दिवस के बाद एक सुबह कुछ असामान्य-से मेहनती ‘सिंचाई अधिकारियों’ का दल 60 फुट लंबे और 12 फुट चौड़े पुल तोड़ने गांव में पहुंचा, जो हर किसी की आंख में खटकता था और गांव वाले कब से उससे छुटकारा पाना चाहते थे.

महज तीन दिनों – 2 से 4 अप्रैल तक उन्होंने खंभों को उखाड़ लिया, कई टन लोहा जमा किया और खुशी-खुशी विदा हो गए.

गांववाले खुश थे, सरकारी कर्मचारियों की मेहनत की तारीफ कर रहे थे और उनके काम की सफाई की तस्वीरें उतार रहे थे. लेकिन 6 अप्रैल को एक स्थानीय अखबार में खबर छपी कि अमियावार के ‘ऐतिहासिक पुल’ की ‘चोरी’ हो गई, इसे सुनकर सभी हैरान रह गए.

अब कुछ गांववालों के पास दिल्ली और लंदन से पत्रकारों और यूट्यूबरों के कॉल आ रहे हैं.

दिप्रिंट की टीम 13 अप्रैल को अमियावार पहुंची तो कुछ गांववाले मजे लेने के मूड में थे, वहीं कुछ हैरान भी थे. उनके मुताबिक, ठीक-ठीक वह नहीं हुआ, जैसा खबरों में बाताया जा रहा है. दरअसल, पुरानी दुश्मनियां और रंजिशें नहीं उभर आई होतीं तो इसका खुलासा नहीं हुआ होता.

पुलिस जांच में कहानी में कुछ और मोड़ निकल आए. अभी तक आठ लोग गिरफ्तार किए गए हैं, जिनमें जल संसाधन विभाग (डब्लूआरडी) का एक कथित बिगड़ैल असिस्टेंट इंजीनियर भी है. जिस जूनियर इंजीनियर ने घटना की सूचना पुलिस को दी, उसे भी सस्पेंड कर दिया गया हैं और पुलिस अब गांव के सरपंच के लडक़े की तलाश में है.

एक ‘बुलावे’ के बाद चोरी

रोहतास जिला मुख्यालय से राज्य राजमार्ग 15 पर गाड़ी से घंटे भर की यात्रा आपको अच्छे-खासे संपन्न गांव अमियावार पहुंचा देगी. करीब 13,000 आबादी वाले इस गांव में खाने-पीने की चीजों और किराना वर्गरह का छोटा-सा बाजार और अपना हायर सेकेंडरी स्कूल है.

गांव से आरा नहर गुजरती है इसलिए पुल की जरूरत है.

अमियावर में कंक्रीट का पुल | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

चोरी हुआ लोहे का पैदल पुल 1972 में बना और उससे 10 से ज्यादा गांव अमियावार ग्राम पंचायत से जुड़ गईं. समय गुजरने के साथ वह ‘ऐतिहासिक’ नहीं, पुरानी पहचान-सा बन गया और उससे करीब 150 फुट दूरी पर एक नया पक्का पुल बन गया.

करीब दो दशकों से पुराना पैदल पुल नहर में लडक़ों के कूदने और मवेशियों के लिए मौत का फंदा बन गया था.
गांव की नवनिर्वाचित सरपंच सीमा के पति 42 वर्षीय अपूर्व सिन्हा ने कहा, ‘हर कोई इससे छुटकारा पाना चाहता था क्योंकि मवेशी लोहे के पुल में पुंस जाते थे और कई दिनों तक उनके मरने से सड़ांध पुैलती रहती थी.’

गांव की मुखिया राम दुलारी ने 24 मार्च 2022 को एक चिट्ठी में इन्हीं बातों का हवाला देकर जल संसाधन विभाग के असिस्टेंट इंजीनियर राधेश्याम को इस पुल की देखरेख के लिए बुलाया. चिट्ठी की प्रति दिप्रिंट के पास उपलब्ध है.

चिट्ठी में लिखा गया, ‘आग्रह है कि पुराने पुल के खंभे गिरा दिया जाऐ और यहां से हटा लिए जाएं, क्योंकि मवेशियों के शव उसमें पुंस जाते हैं और आ-10 दिन तक सड़ांध पुैलती रहती है.’

विभाग को यह चिट्ठी 30 मार्च 2022 को मिली. फटाफट 2 अप्रैल को 10 से ज्यादा उत्साही लोग गैस कटर, पिकअप वैन और जेसीबी लेकर पहुंच गए.

मोके स 500 मीटर की दूरी रहने वाले 28 वर्षीय अल्ताफ अंसारी ने कहा, ‘वे सुबह करीब 6 बजे आए और शाम ढलने तक काम करते रहे. लगातार दो दिन तक वे गैस कटर और जेसीबी से खंभे काटते रहे और तीसरे दिन लोहा उठाकर ले जाने लगे.’

मजदूर काम करते रहे और गांव की मुखिया से चिट्ठी पाए असिस्टेंट इंजीनियर राधेश्याम उसकी देखरेख करते रहे. किसी बात की शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. एक अन्य गांववासी 23 वर्षीय अफजाल अंसारी ने कहा, ‘उन्होने कहा कि वे सरकारी आदमी हैं और हमारे पास कुछ कहने की वजह नहीं थी.’

सरकारी अधिकारियों ने बताया कि अप्रैल, मई और जून के महीने में आरा नहर में पानी आना बंद हो जाता है इसलिए जल संसाधन विभाग मरम्मत वगैरह का काम इसी दौरान करता है.

इसलिए सब कुछ इतना सामान्य था कि पुरानी रंजिशें और नाराजगियां न होतीं तो सब चुपचाप पिट जाता.


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कैसे हुआ खुलासा

कई संस्थानों के लिए काम करने वाले स्थानीय रिपोर्टर राहुल मिश्रा केे मुताबिक, गांव के पूर्व मुखिया ने पुल चोरी हो जाने  की खबर देने के लिए कई अखबार वालों को बुलाया. उन्होंने कहा, ‘हमने 6 अप्रैल को चोरी हुए पुल की खबर चलाई तो सब का ध्यान उस ओर गया.’

हालांकि जल संसाधान विभाग के अधिकारी ने बताया कि नाराजगी यह थी कि निविदा जारी करने की सामान्य प्रक्रिया को अपनाए बगैर पुल को उठा ले जाया गया. मतलब यह हुआ कि कई लोग मुनाफे वाला सौदा खो बैठे.

फुटब्रिज के बारे में कहानियां पढ़कर स्थानीय लोगों को मजा आता है. फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

अधिकारी ने कहा, ‘पुल को तोड़ने वालों ने निविदा आमंत्रण की प्रक्रिया पूरी नहीं की इसलिए खबर स्थानीय मीडिया को लीक कर दी गई.’

दिप्रिंट ने दूसरे स्थानीय रिपोर्टरों से बात की. उन लोगों ने बताया कि उन्हें इस खबर की भनक कुछ ठेकेदारों से मिली जो ठेका न पाने से नाराज थे.

मानक प्रक्रिया यह है कि किसी अनुपयोगी सरकारी ढांचे को तोड़ने के पहले एक समिति बनाई जाती है, जो उसे बेमतलब ढांचा करार देती है. उसके बाद वह समिति उसका मूल्यांकन करती है और उसी के मुताबिक, ठेके के लिए निविदा आमंत्रित की जाती है.

रोहतास जिले के जल संसाधन विभाग के एक्जक्यूटिव इंजीनियर महेंद्र कुमार सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि फुटब्रिज जैसे ढांचे को तोड़ने की जिम्मेदारी आम तौर विभाग की ‘मेकेनिकल’ टीम की होती है.

इस मामले में वाकई तय प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ. गांव की मुखिया की चिट्ठी से जेसे ही पता चला कि पुल को उठाना है तो उस काम करने के लिए एक गैर-सरकार ‘टीम’ बनाई गई. पुलिस की अब तक गिरफ्तारी से यही पता चलता है कि कुछ इंजीनियर, कुछ स्थानीय लोगों और कुछ ठेकेदारों की मिलीभगत से यह काम फटाफट अंजाम दिया गया.

पत्रकार राहुल मिश्रा ने कहा कि मौजूदा गांव मुखिया राम दुलारी और उनके पूर्ववर्ती की दुश्मनी ने भी इस कहानी में भूमिका निभाई और इलाके में अटकलों का बाजार गरम हो गया.

गिरफ्तारियां, वायरल वीडियो और गांव की मुखिया के बेटे की पुलिस तलाश

स्थानीय अखबारों में पहली खबर आने के दिन ही जल संसाधान विभाग के एक जूनियर इंजीनियर अरशद कमाल शम्सी ने नसीरगंज पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज करवाई. पुलिस ने धारा 379 (चोरी) के तहत एफआइआर दर्ज की.

तीन दिन बाद रोहतास पुलिस ने आठ संदिग्धों को पकड़ा और जेसीबी, पिकअप वैन तथा दो गैस सिलेंडर भी जब्त कर लिया. पुलिस ने 247 किलो लोहा और 3,100 रु. नकद भी बरामद किए.

नासरीगंज थाने के पुलिस अधिकारियों ने उस जगह का निरीक्षण किया जहां कभी फुटब्रिज था | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

रोहतास के एसपी आशीष भारती ने कहा, ‘प्रारंभिक जांच में हमने पाया कि राधेश्यम (जल संसाधन विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर) ने इस डकैती की योजना बनाई और तीन लोग उसके साथ साजिश में जुड़े थे.’

गिरफ्तार दूसरे लोगों में जल संसाधन विभाग के अस्थायी मजदूर अरविंद कुमार, पिकअप वैन के मालिक चुदन कुमार, और कबाड़ डीलर शिव कल्याण भारद्वाल, मनीष कुमार, सच्चिदानंद सिंह, गोपाल कुमार और चंदन कुमार शामिल हैं.

जल संसाधन विभाग के एक्जक्यूटिव इंजीनियर महेंद्र कुमार सिंह के मुताबिक, राधेश्याम को सस्पेंड कर दिया गया है, लेकिन मामले के मुख्य शिकायतकर्ता अरशद कमाल शम्सी को सस्पेंड कर दिया गया है. शम्सी को किसलिए सस्पेंड किया गया, यह साफ नहीं है.

मामले की जांच के लिए खुद एसपी की अगुआई में विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया गया है.

नसीरगंज के एसएचओ सुभाष कुमार ने कहा, ‘मामले में दूसरी संबंधित धाराएं 409 (सरकारी अधिकारी द्वारा आपराधिक विश्वास भंजन), 420 (धोखाधड़ी और बेइमानी ), 411 (चोरी की संपत्ति हासिल करने की बेईमानी), और 120बी (आपराधि साजिश) भी जुड़ेंगी.’

इसी के साथ-साथ एक ड्रामा भी चल रहा है.

रोहतास के एसपी के मुताबिक, गांव की मुखिया का बेटा गांधी चौधरी इस मामले में शामिल है और फिलहाल वह फरार है. उसके खिलाफ पहले ही बिहार और झारखंड में 13 मामले लंबित हैं. कथित तौर पर फरारी के दौरान ही उसने पुलिस के खिलाफ एक अपमानजनक वीडियो बनाया है.

एसपी ने कहा, ‘पुलिस का मनोबल तोड़ने के लिए चौधरी ने एक मनगढंत वीडियो बनाया कि स्थानीय पुलिस शराब की तस्करी में जुड़ी है.’

वायरल वीडियो में दिखे दो लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया है, जो इलाके में शराब की ‘होम डिलीवरी’ से संबंधित है. (बिहार में शराबबंदी लागू है).

यह बहुत कुछ लूठ जैसा नहीं

संदिग्धों ने इतनी मुसीबत झेलकर भी शायद पुल की चोरी से ज्यादा कुछ हासिल नहीं किया.

जल संसाधन विभाग के एक्जक्यूटिव इंजीनियर महेंद्र कुमार सिंह ने कहा, ‘मीडिया रिपोर्ट में बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया. पहले कहा गया कि 40 टन लोहा चोरी किया गया: फिर बताया गया कि 50 टन और बाद में उसे बढ़ाकर 500 टन बाता दिया गया. हमारा अनुमान है कि ज्यादा से ज्यादा 8.5 टन लोहा था.’

नसीरगंज के एसएचओ ने भी कहा कि लोहा इतना ज्यादा नहीं था, जैसा मीडिया खबरों में बताया गया है. उन्होंने कहा, ‘लोहा तीन पिकअप में ले जाया गया. हमने एक को पकड़ा और उसमें 247 किलो मिला. दो पिकअप की तलाश है.’
दिप्रिंट ने स्थानीय बाजार में कीमत पता की तो औसत 40 रु. प्रति किलो है.

देहरी में एक कबाड़ डीलर ने दिप्रिंट से कहा कि चोरी किया गया लोहा 8.5 टन (8,500 किलो) ही था तो इस दाम के आधार पर उससे ‘3.5 लाख रु. से ज्यादा नहीं मिलेंगे.’


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(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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