अलीगढ़: अलीगढ़ की एक कॉलोनी के 350 निवासियों में से 11 लोगों को बीमार पड़े एक हफ्ते से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन चंदनिया स्थित इस वाल्मीकि बस्ती को 29 मई की रात भुलाए नहीं भूल रही.
इस घटना में जीवित बचे लोगों में से एक कालीचरण ने कहा, ‘एक-एक करके लोग बीमार पड़ने लगे और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. बीमारों के साथ जा रहे लोग भी रास्ते में बेहोश होने लगे. हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. पहले तो हमें लगा कि हमने कुछ ज्यादा ही पी ली है. लेकिन जल्द ही समझ आया कि हम सबने जहरीली शराब पी ली है.’
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चंदनिया के 11 में से तीन लोगों की जहर के कारण मौत हुई है.
अलीगढ़ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. भानु प्रताप सिंह कल्याणी के मुताबिक, अलीगढ़ शहर में 28 मई से 5 जून के बीच जहरीली शराब पीने से कम से कम 35 लोगों की मौत हुई है. पुलिस ने अलीगढ़ जिले से 106 शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे थे. 35 मामलों में तो जहरीली शराब से मौत की पुष्टि हुई है, जबकि बाकी 71 में यद्यपि जहरीली शराब के सेवन का संदेह है लेकिन मौत के कारण की पुष्टि होना बाकी है.
इससे पहले, अलीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कलानिधि नैथानी ने मौतों के आंकड़े को लेकर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था और इसके बजाय उन्होंने दिप्रिंट से सीएमओ से संपर्क करने को कहा था. उन्होंने कहा था, ‘मौतों के बारे में सही आंकड़ा आपको मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पास ही मिलेगा.’
कल्याणी ने बताया कि उन्होंने ‘जहरीली शराब के कारण केवल 35 लोगों की मौत की पुष्टि की है क्योंकि जब हमने उनका पेट खोला, तो शराब की तेज गंध आ रही थी. लेकिन जब हमने बाकी शवों का पोस्टमार्टम किया तो ऐसी कोई गंध नहीं थी. सभी 106 शवों का विसरा सैंपल जांच के लिए भेजा गया है और हम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.’
विसरा परीक्षण में मृतक के शरीर के आंतरिक अंगों की जांच की जाती है. यह उन मामलों में किया जाता है जहां पोस्टमॉर्टम का कोई स्पष्ट नतीजा नहीं निकलता है. इनके लिए रिपोर्ट अभी भी प्रतीक्षित है और सीएमओ ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि रिपोर्ट कब तक आएगी.
हालांकि, अलीगढ़ संभाग के आयुक्त गौरव दयाल ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि पोस्टमार्टम परीक्षण में समय लगता है, ‘एक-एक करके कई चीजों का परीक्षण किया जाता है, इसलिए हम सभी रिपोर्ट मिलने की समय सीमा के बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा धारणा यही कि सभी 106 मौतें जहरीली शराब के कारण हुई हैं और हम सभी पीड़ित परिवारों को मुआवजा मिलना सुनिश्चित करने के लिए सरकार के साथ काम कर रहे हैं.’
पहली मौत 28 मई को हुई थी. पुलिस के मुताबिक, इसने पुलिस को सतर्क कर दिया और जैसे ही सस्ती, देशी शराब बेचने वाली तमाम दुकानों में तलाशी शुरू हुई बड़ी संख्या में बोतलों से भरे कार्टन शहर में नहर में फेंक दिए गए. बाद में कई मौतें लोगों के नहर में मिली शराब की बोतलों का सेवन किए जाने के कारण होने का अनुमान है.
अलीगढ़ जिले के अकराबाद स्थित ईंट भट्ठा मजदूर उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने नहर में फेंकी गई बोतलों की शराब पी थी. यहां 5 जून को पांच मौतें होने की सूचना मिली थी.
पुलिस ने इस मामले में 61 लोगों को गिरफ्तार किया है और 17 प्राथमिकी दर्ज की हैं. इसमें तीन मुख्य आरोपियों अनिल चौधरी, ऋषि शर्मा और बिपिन यादव पर यूपी आबकारी अधिनियम की धारा 60 ए और भारतीय दंड संहिता की धारा 272 (खाद्य या पेय पदार्थों में मिलावट), 273 (हानिकारक खाद्य या पेय पदार्थ की बिक्री), 304 (लापरवाही से मौत), धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी) और 468 (धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी) के तहत मामला दर्ज किया गया है. तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीड़ितों के परिवारों के लिए 5 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है.
अलीगढ़ में पहली बार त्रासदी के एक हफ्ते बाद दिप्रिंट ने 5 जून को बुरी तरह प्रभावित दो क्षेत्रों—चंदनिया और अकराबाद का दौरा किया और इस घटना में बचे लोगों से मुलाकात की.
चंदनिया में मृतकों के परिजनों ने जहां दिप्रिंट से कहा कि उनका भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मुआवजे का पैसा पर्याप्त नहीं है और वे यही चाहते थे कि नौकरी मिले, वहीं अकराबाद में कई लोगों को राज्य की तरफ से घोषित मुआवजे के बारे में पता ही नहीं था.
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‘काउंटरों पर जहर हमारा इंतजार कर रहा था’
दिप्रिंट की टीम को देखते हुए यहां का एक निवासी एकदम बिफर पड़ा, ‘हमारे बारे में अब क्यों पूछने आए हो? आपको 30 मई को यहां आना चाहिए था, यहां तीन युवकों की लाशें देखनी चाहिए थीं, जब उनकी पत्नियों ने उनके पैरों में चूड़ियां तोड़ी थीं.’
अपना नाम न बताने को तैयार उस व्यक्ति ने कहा, ‘उस दिन के बारे में हम आपको क्या बताएं? उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. क्या आप या कोई अन्य उनका दर्द समझ सकता है?’
चंदनिया में कई लोगों के गले पर छोटे-छोटे बैंडेज लगे हैं, जो यह बताते हैं कि उनकी हाल ही में डायलिसिस हुई है. 29-30 मई के बीच रात में 11 लोगों को कॉलोनी के पास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया था. एक बैंक में क्लर्क के तौर पर कार्यरत रवींद्र सिंह की दाहिनी आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई है.
कल्याणी ने बताया, ‘मिथाइल अल्कोहल, जिसके अंश इनके द्वारा इस्तेमाल शराब में पाए गए थे, के सेवन से शरीर में फॉर्मेल्डिहाइड का तेजी से उत्पादन होता है, जो ऑप्टिक नर्व, किडनी और लिवर को अस्थायी या स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है. अगर समय पर इलाज मिल जाए तो तीन-चार दिनों में ये अंग ठीक हो सकते हैं. यदि नहीं, तो इन्हें स्थायी क्षति हो सकती है.’
29 मई, जब इस कालोनी के लोगों का जहरीली शराब के सेवन से बीमार होना शुरू हुआ था, से लेकर अब तक कई राजनेता, प्रशासक और एक्टिविस्ट परिवारों के प्रति संवेदना जताने आ चुके हैं. लेकिन यहां के लोगों को सांत्वना के शब्द नहीं चाहिए.
30 मई को अपने पति नितिन को गंवा देने वाली सीमा चौहान का कहना है, ‘मुझे न तो कोई आश्वासन चाहिए और न ही संवेदना. मैं बस यही चाहती हूं कि सरकार मुझे रोजगार दे, ताकि मैं अपने चार छोटे बच्चों का पालन-पोषण कर सकूं. मेरे पास कुछ नहीं बचा है.’
25 वर्षीय पूनम ने बताया कि अपने 30 वर्षीय पति छोटू को खोने के बाद से वह पूरी तरह अकेली रह गई है. उसने कहा, ‘वह युवा था, और बच सकता था लेकिन डॉक्टरों ने उसे हाथ लगाने तक से इनकार कर दिया. मैंने उसे भर्ती कराने की कोशिश में तीन-चार घंटे गंवाए और उसकी मौत हो गई. क्या कोई उसे वापस ला पाएगा?’
जो बच गए वे अब बुरी तरह कर्ज में डूबे हुए हैं. इन सभी को इलाज पर औसतन 60-70 हजार रुपये खर्च करने पड़े. उनमें से ज्यादातर छोटी-मोटी नौकरी करने वाले हैं जिनका औसत वेतन 12 से 15 हजार रुपये प्रति माह है.
इस त्रासदी में बचे एक व्यक्ति के पिता, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, ने कहा, ‘क्या सरकार को यह जिम्मेदारी नहीं उठानी चाहिए कि वहां काउंटरों पर जहर रखा था, हमारे द्वारा सेवन किए जाने का इंतजार कर रहा था? निश्चित तौर पर उन्हें हमारे अस्पताल के बिलों की भरपाई करनी चाहिए. हम गरीब हैं, हम कहां जाएं?’
कालीचरण के मुताबिक वह सरकार की तरफ से अनुमोदित एक ब्रांड गुड इवनिंग के सेवन के बाद बीमार पड़ गया, जो कि वह पहले भी इस्तेमाल करता रहा था. लेकिन, एसएसपी नैथानी के अनुसार, आरोपी ब्रांड के नकली पैकेज में अवैध और नकली शराब बेच रहे थे.
अधिकांश पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए पांच लाख रुपये का सरकारी मुआवजा बहुत कम है. वे तो बस यह चाहते हैं कि नौकरी दी जाए. सीमा ने कहा, ‘क्या मेरे चार बच्चे अपना बाकी जीवन सिर्फ 5 लाख रुपये पर गुजार लेंगे? मुझे यह नहीं चाहिए. मुझे सिर्फ रोजगार की गारंटी चाहिए.’
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‘जागरूकता अभियान ने उन्हें बचाया’
इस बीच, अकराबाद, जहां पांच लोगों की मौत हुई है, के ईंट भट्ठा मजदूरों के पीड़ित परिजनों को मुआवजे के पैकेज की भी जानकारी नहीं है. लॉकडाउन के कारण कई जगहों पर काम ठप होने के कारण एकदम खाली हाथ हो गए इन लोगों को तो बस भट्टों के फिर से खुलने का ही इंतजार है.
अपना नाम न बताने को तैयार एक श्रमिक ने कहा, ‘मैं मुआवजे के बारे में कुछ नहीं जानता. मैं सिर्फ अपनी भाभी के शव का अंतिम संस्कार करना चाहता हूं (जिसकी मौत 4 जून को हुई थी) और जिंदगी में आगे बढ़ना चाहता हूं. लॉकडाउन ने हमारे काम को बुरी तरह प्रभावित किया है. हमारे पास खाने के लिए भी ज्यादा कुछ नहीं है. क्या आप सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कह सकते हैं कि हमारी भट्टी फिर से चालू हो जाए?’
अमूमन यहां के भट्ठा मजदूर बहुत गरीब होते हैं, जिनकी कमाई मुश्किल से 700-800 रुपये प्रति सप्ताह होती है. उनका कहना है कि अपने काम की थकावट मिटाने के लिए पीते हैं, और शराब से उन्हें तुरंत नींद आ जाती है.
नकली शराब से मौतों की घटना ने अब कई मजदूरों के बच्चों को अनाथ कर दिया है.
5 जून को अलीगढ़ में जब तापमान 39 डिग्री के करीब था, 20 वर्षीय सनी तपती रेत पर नंगे पैर खड़ा होकर पोस्टमार्टम के बाद अपने पिता का शव मिलने का इंतजार कर रहा था.
उसका चेहरा एकदम भावशून्य था. अब उसके ऊपर सात छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी थी, और शोक जताना उसके लिए वक्त बर्बाद करने जैसा था जिससे कुछ हासिल होने वाला नहीं था.
उसने बताया, ‘पिछले साल, मैंने गया में अपनी मां को किसी बीमारी के कारण खो दिया. उसे समय पर इलाज नहीं मिल पाया था. हम गरीब लोगों की किसी को परवाह नहीं है. मैं किसी मुआवजे को लेकर आश्वस्त नहीं हूं. पता नहीं इसकी पुष्टि हुई भी या नहीं कि मेरे पिता की मौत का कारण जहरीली शराब थी या नहीं.’
पुलिस को अकराबाद भट्ठे के पास बहने वाली नहर के किनारे 280 क्वार्टर बॉटल मिली थी. एसएचओ मिश्रा का कहना है कि प्रशासन सक्रिय न होता तो हताहतों की संख्या बहुत ज्यादा होती.
उन्होंने 5 जून को दिप्रिंट को बताया था, ‘डीएम और हमारे पुलिसकर्मियों की तरफ से बनाई गई टीमें गांव-गांव जा रही हैं (28 मई को जहरीली शराब से पहली मौत के बाद से) और लोगों को कम से कम दो हफ्ते शराब न पीने के लिए कह रही थी क्योंकि यह जहरीली हो गई है. यदि यह जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया होता तो आपको आज यहां हर जगह लाशें ही दिख रही होतीं.’
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