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शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
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गांधीवादी शकुंतला चौधरी को पद्मश्री दिये जाने की घोषणा पर परिजन ने कहा-‘देर आयद, दुरुस्त आयद’

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गुवाहाटी, 29 जनवरी (भाषा) असम की गांधीवादी कार्यकर्ता 102-वर्षीय शकुंतला चौधरी को पद्मश्री से सम्मानित करने का फैसला किये जाने में भले ही काफी देर हो गई हो, लेकिन उनके परिजन और शुभचिंतकों के लिए यह ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’ के समान है। इनलोगों ने अधिकारियों से अनुरोध किया है कि वे यह सम्मान उन्हें यहां आकर सौंपें।

चौधरी उम्र के इस पड़ाव पर नि:स्वार्थ सेवा, सत्य, सादगी और अहिंसा के लिए समर्पित अपने जीवन की धुंधली यादों के साथ, सरनिया आश्रम में रहती हैं। यह वही आश्रम है, जहां महात्मा गांधी 1946 में अपनी अंतिम यात्रा के दौरान रुके थे।

कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक न्यास (केजीएनएमटी) की समन्वयक कुसुम बोरा मोकासी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमें बहुत खुशी है कि उन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने का फैसला किया गया है, लेकिन यह सम्मान उन्हें बहुत पहले दिया जाना चाहिए था।… अब वह इसे ग्रहण के लिए राष्ट्रीय राजधानी की यात्रा कर पाने की स्थिति में नहीं हैं।’’

विनोबा भावे की करीबी सहयोगी रहीं चौधरी 1947 से ही गांधीवादी संस्थानों के ‘दिल और आत्मा’ रही हैं, जिन्होंने राज्य में अनेक युवतियों और महिलाओं के जीवन में व्यापक परिवर्तन लाये हैं। उन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

मोकासी ने कहा, ‘‘पहले, अगर हम पुरस्कारों पर चर्चा करते तो वह नाराज हो जाती थीं और कहती थीं कि समाज सेवा उनका कर्तव्य है, लेकिन अब हमें यह भी यकीन नहीं है कि उन्हें पद्म श्री से सम्मानित होने का अहसास हुआ है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उनकी उम्र को देखते हुए हम अधिकारियों से सरनिया आश्रम में एक साधारण समारोह में उन्हें (चौधरी को) पुरस्कार प्रदान करने का अनुरोध करते हैं।’’

उनकी भतीजी चंदना चौधरी बरुआ ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘चौधरी संभवत: इस घटनाक्रम के बारे में भिज्ञ नहीं होंगी, लेकिन हम उन्हें इसके बारे में लगातार बता रहे हैं, ताकि उन्हें कुछ अहसास हो सके।’’

बरुआ ने कहा, ‘‘बहुत से लोगों ने हमें फोन करके कहा कि यह सम्मान उन्हें (चौधरी को) बहुत देरी से मिला है, लेकिन ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’। हमें उम्मीद है कि उन्हें यह पुरस्कार यहीं दिया जाएगा, ताकि वह इसे खुद ग्रहण कर सकें।’’

चौधरी, हालांकि खुश हैं और उन्हें बधाई देने आने वाले शुभचिंतकों के गुलदस्ते लेकर प्रसन्न नजर आ रही हैं। वह सभी का हाथ जोड़कर अभिनंदन कर रही हैं और अपनी मंद आवाज में ‘महात्मा गांधी की जय’ के नारे भी लगा रही हैं।

भाषा

सुरेश दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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