नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) फ़िल्म निर्माता-लेखक सीमा कपूर का अपने दिवंगत पति और प्रतिष्ठित अभिनेता ओम पुरी के बारे में कहना है कि वह उन्हें अपने जीवन के लिए अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान मानती हैं।
सीमा कपूर ने अपनी आत्मकथा ‘यूं गुजरी है अब तलक’ में इसी संदर्भ में लिखा है,‘‘ कई बार आपको जब कोई धक्का लगता है तभी आपको अपनी ताकत और मजबूती का एहसास होता है। मेरे जीवन में अगर वो पीड़ाएँ नहीं होतीं तो शायद मैं वहाँ नहीं होती, जहाँ आज हूँ।’’
ओम पुरी से अल्पकालिक विवाह, फिर उनका दूसरी शादी करना और 14 वर्षों बाद फिर से उसी सीमा के पास लौट आना-सीमा कपूर ने किताब में यह सब साझा किया है।
क्या आत्मकथा लिखने के दौरान कुछ ऐसे कड़वे सच भी सामने आए, जिन्हें लिखते हुए उन्हें स्वयं डर लगा हो, इस सवाल के जवाब में सीमा कपूर ने पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘ हां, ऐसा कई बार हुआ। लेकिन मैंने उन सभी कड़वे सच को भी पूरी ईमानदारी के साथ लिखा है।’’
एक सवाल के जवाब में सीमा कपूर ने कहा, ‘‘ लौट कर आने के बाद कोई दिन ऐसा नहीं गया, जब ओम पुरी ने माफी न मांगी हो। वो हर रोज सॉरी कहते थे।’’
आत्मकथा पढ़ते हुए ऐसे लगता है कि जैसे यह किसी एक स्त्री की नहीं, बल्कि अनेक स्त्रियों की आत्मकथा है और ऐसी आत्मकथा लिखने में बहुत साहस की जरूरत होती है।
अपनी आत्मकथा ‘यूं गुजरी है अब तलक’ पर एक चर्चा में भाग लेते हुए सीमा कपूर ने बृहस्पतिवार को यहां कहा कि उन्होंने अपने जीवन के सबसे निजी और संवेदनशील अनुभवों को बड़ी संजीदगी, धैर्य और साफ़गोई के साथ किताब में साझा किया है।
राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित आत्मकथा पर इंडियन वुमन प्रेस कोर में आयोजित चर्चा के दौरान सीमा कपूर ने अपने बचपन से लेकर अब तक के जीवन से जु़ड़े कई किस्से सुनाए।
दिवंगत अभिनेता ओम पुरी के साथ अपने वैवाहिक जीवन से जुड़ी निजी स्मृतियों से लेकर एक स्त्री के आत्म-निर्माण तक की यह यात्रा केवल आत्मकथ्य नहीं, बल्कि मानव संबंधों की जटिलता और स्त्री-स्वत्व की सशक्त अभिव्यक्ति है।
इस किताब में सीमा कपूर ने पारसी थियेटर में बीते अपने बचपन की यादों से लेकर सिनेमा के क्षेत्र में अपने करियर और सिनेमा से जुड़े अन्य लोगों के साथ अपने संबंधों के बारे में खुलकर लिखा है।
चर्चा के दौरान सीमा कपूर ने कहा कि वह पुरी साहब को अपने जीवन के लिए अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान ही मानती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘… क्योंकि कई बार आपको जब कोई धक्का लगता है, तभी आपको अपनी ताक़त और मज़बूती का एहसास होता है। मेरे जीवन में अगर वो पीड़ाएँ नहीं होतीं तो शायद मैं वहाँ नहीं होती, जहाँ आज हूँ। मेरा मानना है कि जीवन में आने वाला हर दुख आपको अपने भीतर से निखरने का एक अवसर देता है।’’
उनका कहना था,‘‘ मैं आभारी हूँ कि मैंने उस दुख को न कि सिर्फ़ झेला बल्कि उसे जज़्ब भी किया। उस हादसे ने मुझे आहत किया लेकिन उससे मैं एक बेहतर और अधिक संवेदनशील इनसान बनकर निकली।’’
‘यूँ गुज़री है अब तलक’ केवल एक सिने हस्ती की कहानी नहीं है। यह उस स्त्री का आत्मबोध है, जो रिश्तों की टूटन के बाद भी खुद को बिखरने नहीं देती, बल्कि अपने व्यक्तित्व को निखारते हुए और भी मजबूत होकर निकलती है।
इस आत्मकथा में विवाह जैसे सामाजिक संस्थानों की विफलता से उपजे आघात को सिर्फ़ दुख की कथा नहीं बनाया गया, बल्कि एक नई शुरुआत का प्रवेशद्वार दिखाया गया है। समाज में जहां विवाह-विच्छेद को एक स्त्री की हार की तरह देखा जाता है, वहीं सीमा कपूर ने अपने निजी जीवन की त्रासदी को न सिर्फ़ पूरे आत्मबल से जिया, बल्कि उसे ही अपनी रचनात्मक सफलता की आधारशिला बना लिया।
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि हाल के वर्षों में सिनेमा से जुड़ी हस्तियों द्वारा हिन्दी में अपनी आत्मकथाएँ लिखने का जो सिलसिला शुरु हुआ है, वह समूचे हिन्दी समाज के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
उन्होंने कहा कि इससे पाठकों को इन कलाकारों के जीवन के अनछुए पहलुओं को जानने-समझने का मौका तो मिलता है, साथ ही यह हिन्दी भाषा में सृजनात्मक अभिव्यक्ति को भी एक नया विस्तार देता है।
भाषा नरेश नरेश माधव
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