नई दिल्ली: दूरदराज के इलाकों में सामुदायिक मध्यस्थता की व्यवस्था, विवाद निपटारे का वैकल्पिक तंत्र बनाना, आम लोगों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना और हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज बनना, यही वो उद्देश्य हैं जिन्हें लेकर कानून और न्याय मंत्रालय ने ‘प्रो बोनो क्लब’ कार्यक्रम शुरू किया था.
तीन साल के साथ-साथ पांच साल के कोर्स वाली कानूनी पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए यह कार्यक्रम पिछले साल शुरू किया गया था लेकिन कोविड पाबंदियों के कारण इसे बीच में ही रोकना पड़ा. अब सभी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और आईआईटी खड़गपुर समेत करीब 50 लॉ कॉलेजों के शामिल होने के साथ इस प्रोग्राम को गति मिल रही है.
कानून मंत्रालय की न्याय बंधु योजना के एक सब-क्लब के तौर पर लॉन्च प्रो बोनो क्लब संभावित वकीलों में लीगल वॉलंटियर स्किल विकसित करने पर केंद्रित है. इसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, और मंत्रालय यह सुनिश्चित कर रहा है कि प्रत्येक राज्य में कम से कम एक कॉलेज प्रो बोनो क्लब का हिस्सा हो.
कानून मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रो बोनो क्लब उनमें (कानून के छात्रों) युवावस्था के दौरान ही बतौर वॉलंटियर काम करने की भावना पैदा करने और उन्हें याचिकाओं का ड्राफ्ट तैयार करने में कुशल बनाने की एक पहल है.’
मंत्रालय के अंब्रेला प्रोग्राम ‘डिजाइनिंग इनोवेशन सॉल्यूशंस फॉर होलिस्टिक एक्सेस टू जस्टिस इन इंडिया (दिशा)’ के एक हिस्से के तौर पर तैयार न्याय बंधु लोगों को स्वैच्छिक कानूनी सलाह देने और पंजीकृत वकीलों को पंजीकृत लाभार्थियों के साथ जोड़ने में मदद के लिए एक नि:शुल्क कानूनी सेवा है जो समाज के वंचित तबके को मुहैया कराई जाती है.
न्याय बंधु में हाई कोर्ट के साथ-साथ जिला अदालतों के अधिवक्ताओं का एक समर्पित पैनल शामिल है.
अधिकारी ने कहा, ‘प्रो बोनो क्लब के तहत वॉलंटियर छात्रों को उच्च न्यायालयों द्वारा स्थापित न्याय बंधु पैनल के वकीलों के साथ काम करने का मौका मिलेगा. इससे जुड़ने की प्रक्रिया को न्याय विभाग (डीओजे), कानून मंत्रालय की तरफ से सुगम बनाया जाएगा, जो नियमित तौर पर इन वॉलंटियर के काम पर नजर रखेगा.’
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लाभार्थियों को करेंगे जागरूक
दिशा एक कानूनी सहायता योजना है जिसके तहत टेली-लॉ प्रोग्राम, प्री-लिटिगेशन मॉडल को बढ़ावा देना, समर्पित अधिवक्ताओं के साथ कॉमन सर्विस सेंटर और लाभार्थियों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसी सेवाएं मुहैया कराना शामिल है.
कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि दिशा राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नाल्सा) और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) की तरफ से मुहैया कराई जाने सेवाओं का पूरक प्रोग्राम है. नाल्सा और एसएलएसए दोनों वैधानिक ढांचे में काम करते हैं और क्रमश: सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा जज और राज्य के हाई कोर्ट के एक मौजूदा जज उनके कामकाज की निगरानी करते हैं.
हालांकि, दिशा और इसके तहत आने वाले प्रो बोनो क्लब जैसे कार्यक्रमों पर कानून और न्याय मंत्रालय की पूरी नजर रहती है.
प्रो बोनो क्लब का इरादा लाभार्थियों को कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए जमीनी स्तर पर समर्पित स्वयंसेवकों की कमी को पूरा करना भी है.
एक बार जब कोई लॉ कॉलेज प्रो. बोनो क्लब में शामिल हो जाता है, तो वह जिस तरह की कानूनी सहायता प्रदान करना चाहता है, उसकी एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) विकसित करने के लिए न्याय विभाग से फंड पाने के योग्य हो जाता है.
कम्युनिटी केयर पर सहायता के तहत लॉ कॉलेज को उस जिले के एक गांव को गोद लेना होगा जहां संस्था स्थित है ताकि उसके निवासियों को नियमित कानूनी सेवाएं प्रदान की जा सकें.
मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘जो छात्र अपने कॉलेज के प्रो बोनो क्लब के साथ स्वेच्छा से काम करना चाहते हैं, उन्हें अपने संस्थान की तरफ से गोद लिए गए गांव का दौरा करना होगा, शिक्षण शिविर आयोजित करने होंगे और सरकारी कार्यक्रमों और कानूनों के बारे में जानकारी देनी होगी.’
क्लब में शामिल होने वाले कॉलेजों के संकाय सदस्यों को निशुल्क कानूनी सेवाओं पर कानूनी संबंधी जानकारी व्यापक स्तर पर मुहैया कराने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
हालांकि कॉलेजों को अपना खुद का एसओपी तैयार करने और इस पर अमल करने की आजादी मिलेगी, लेकिन निगरानी के उद्देश्य से मंत्रालय उनके बारे में जानकारी रखेगा.
डीओजे के एक अधिकारी ने कहा, ‘कॉलेजों को प्रस्तावित गतिविधियों का एक मासिक कैलेंडर जमा कराना होगा और साथ ही अपनी गतिविधियों के ब्योरे, अभियान के लाभार्थियों को मिले फायदे और उसके बारे में लाभार्थियों की राय पर एक न्यूजलेटर भी तैयार करना होगा.’
जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है, इसके बारे में जानने के लिए डीओजे अधिकारियों की एक टीम नियमित रूप से लॉ स्कूलों का दौरा करेगी.
प्रो बोनो क्लब में शामिल होने वाले कॉलेज अपने पूर्व छात्रों का नेटवर्क तैयार करके अपनी मुफ्त सेवाओं के लिए अधिक फंड जुटाने का इंतजाम भी कर सकते हैं. डीओजे अधिकारी ने कहा, ‘किसी कॉलेज में प्रो बोनो क्लब के लिए दो मॉडल हैं. इसमें एक बिना सहायता वाला मॉडल है, जो उन कॉलेजों के लिए है जिनके पास साधन हैं और जिन्हें किसी बाहरी स्रोत से वित्तीय सहायता की आवश्यकता नहीं है. दूसरा असिस्टेड मॉडल है, जिसके तहत कॉलेजों को एनजीओ या कानून फर्मों से आर्थिक सहायता हासिल करने की अनुमति दी जाएगी.’
चूंकि कानून मंत्रालय कॉलेजों को कानूनी स्वयंसेवा को एक विशेष क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, इसने इस बात पर जोर दिया है कि कानूनी शिक्षा केंद्रों में निशुल्क सेवाएं मुहैया कराना एक नियमित गतिविधि बननी चाहिए. अधिकारी ने कहा, ‘यदि किसी विशेष कॉलेज के छात्र प्रतिबद्धता दर्शाते हैं, तो मंत्रालय उन्हें मंत्रिस्तरीय कार्यों में भी शामिल कर सकता है.’
प्रो बोनो क्लब की एक अन्य खासियत यह होगी कि इसके तहत सदस्य छात्रों के लिए भी परामर्श सत्र आयोजित किए जाएंगे. अधिकारी ने कहा, ‘कानूनी सहायता के क्षेत्र में स्वयंसेवकों का वंचित तबके के प्रति संवेदनशील और धैर्यवान होना आवश्यक है. अनुभवी, पेशेवर कानूनी स्वयंसेवकों के साथ इन सत्रों में छात्रों को बॉडी लैंग्वेज सहित उनकी संचार क्षमताओं में सुधार के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा, ताकि लाभार्थियों के साथ बातचीत में वे उनके शुभचिंतक बनकर सामने आ सकें.’
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