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Thursday, 18 April, 2024
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बीमारियों से बचाव वाले मिशन ‘वन हेल्थ’ पर विशेष रूप से ध्यान देंगे नए पीएसए सूद

पीएसए सूद ने कहा कि ‘वन हेल्थ’ मिशन भारत की रोग निगरानी प्रणाली में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिए मनुष्यों, वन्यजीवों और पर्यावरण को भी देखेगा. साथ ही, उन्होंने कहा कि 6 मंत्रालय पहले से ही इस पर काम कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: ‘वन हेल्थ’- उन पहले कुछ मिशनों में से एक है जिन पर नव नियुक्त प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर (पीएसए) डॉ अजय के. सूद अपना ध्यान केंद्रित करेंगे. इस मिशन का मकसद स्वास्थ्य के प्रति एक एकीकृत दृष्टिकोण जो बीमारियों की निगरानी और रोकथाम के लिए मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करता है.

दिप्रिंट के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, डॉक्टर सूद ने कहा कि विज्ञान, स्वास्थ्य, पशुपालन और पर्यावरण मंत्रालयों सहित भारत सरकार के छह मंत्रालयों ने पहले से ही भारत की रोग निगरानी प्रणाली में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए चर्चा शुरू कर दी है.

उन्होंने कहा, ‘वन हेल्थ इंसानों, वन्य जीवन और पर्यावरण को समग्रता में, न कि खंडित तरीके से, देखने के लिए अपनाया गया एक एकीकृत दृष्टिकोण है, क्योंकि दोनों बीच एक संबंध है, या एक दूसरे पर निर्भर हैं. कोविड के अनुभव से हम जानते हैं कि कैसे जानवरों से मनुष्यों में संक्रमण फैल सकता है. इसलिए, यह एक बहुत ही जुड़ी हुई प्रणाली है.’

यूएस वन हेल्थ इनिशिएटिव टास्क फोर्स द्वारा दी गयी इसकी परिभाषा के अनुसार, वन हेल्थ मिशन ‘लोगों, जानवरों और हमारे पर्यावरण के लिए सर्वोत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर काम कर रहीं कई विधाओं के सहयोगी प्रयासों’ को प्रोत्साहित करने वाला एक दृष्टिकोण है.‘

किसी बीमारी के फैलने के दौरान सिर्फ मनुष्यों का परीक्षण करने के बजाय, वन हेल्थ वाला दृष्टिकोण रोगजनकों (पैथोजन्स) या अन्य कारकों की तलाश में वन्यजीवों और पर्यावरण की निगरानी करेगा जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.

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दिप्रिंट से बात करते हुए, पीएसए कार्यालय में कार्यरत एक वैज्ञानिक, डॉ सिंदुरा गणपति ने आगे बताया कि यदि कोई रोगज़नक़ मवेशियों और पशुओं या यहां तक कि किसी एक फसल को भी प्रभावित करता है, तो भी यह मनुष्यों के स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित करता है.

डॉक्टर सूद ने कहा, ‘इसलिए, इंसानों के स्वास्थ्य की निगरानी करना ही पर्याप्त नहीं है. हम इन सभी सबसिस्टम (उपसमूहों) को अलग-अलग देख रहे हैं.’

उन्होंने बताया, ‘हमने उन छह मंत्रालयों के साथ चर्चा की जो कई वर्षों से इस पर काम कर रहे हैं. हम यह देखने का प्रयास कर रहे हैं कि इस एकीकृत दृष्टिकोण में क्या कमियां हैं – यह कुछ ऐसा है जो विभिन्न मंत्रालयों, विभिन्न प्रजातियों और विभिन्न देशों में फैला हुआ है.’

डॉक्टर सूद ने कहा कि सभी संबंधित मंत्रालय पहले से ही ‘वन हेल्थ’ के विभिन्न पहलुओं पर स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए, हमें वास्तव में एकदम शुरुआत से आरम्भ करने की ज़रूरत नहीं है. हमारा इरादा अंतराल की पहचान करना और यह देखना है कि क्या यह मिशन वाला दृष्टिकोण उन्हें पाट सकता है.’

‘एक डिजिटल नेटवर्क खड़ा करने की है जरूरत’

डॉक्टर सूद ने बताया कि कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्य पहले ही वन हेल्थ मिशन शुरू कर चुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमें देखना होगा कि क्या हमारी निगरानी फुलप्रूफ (बिना किसी भूल-चूक के) है. मान लीजिए कि कहीं कोई मामला सामने आता है, तो हमें यह देखना होगा कि क्या हमारे पास पूरा डिजिटल बुनियादी ढांचा है.’

डॉक्टर सूद ने दिप्रिंट को बताया कि यह मिशन इस सवाल का भी हल निकालेगा कि कैसे किसी नए संभावित रोग पैदा करने वाले रोगज़नक़ के बारे में जानकारी का प्रसार किया जाएगा, किन हितधारकों की पहचान की जानी चाहिए और किन्हें लूप में (जानकारी के दायरे में) रखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘इस मिशन के तहत तमाम डिजिटल नेटवर्क स्थापित किए जाएंगे, ताकि क्या हो रहा है और इसपर कैसे कार्रवाई की जाए, ताकि इसके बारे में समझ में कोई अंतर न रहे. एक बार यह सब हो जाने पर, हमें उपचार के तरीकों की तरफ भी देखना होगा. क्या यह ऐसा कुछ नया है जिसके लिए हमें एक टीका विकसित करना होगा? क्या हम वैक्सीन प्लेटफॉर्म जैसे mRNA (एम्आरएनए) वैक्सीन या CRISPR (क्रिस्पर)-आधारित वैक्सीन प्लेटफॉर्म के लिए तैयार हैं?’

डॉक्टर सूद ने यह भी कहा कि गलत सूचना वाली समस्या को हल करना इस अभ्यास का एक अभिन्न अंग है. उन्होंने कहा, ‘जनता के साथ संवाद बहुत महत्वपूर्ण है, इसे कुछ भी बढ़ा-चढ़ा के प्रचारित नहीं करना चाहिए या कुछ छिपाना भी नहीं चाहिए. यह तभी संभव होगा जब हम अपने मन में इस बारे में स्पष्ट हों कि लोगों को क्या बताया जाना है. ताकि अकारण दहशत पैदा न हो, लेकिन यह इतना नीरस और सुस्त भी न हो कि लोग इस पर ध्यान ही न दें.’


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‘डीप टेक स्टार्ट-अप्स के लिए सही इकोसिस्टम बनाया जाये’

वन हेल्थ के अलावा, डॉक्टर सूद का कार्यालय ‘डीप टेक स्टार्ट-अप’ के लिए अनुसंधान सम्बन्धी इकोसिस्टम को विकसित करने की दिशा में भी काम कर रहा है.

डीप टेक, या डीप टेक्नोलॉजी, उन स्टार्टअप्स का अर्थ उन स्टार्टअप्स से होता है, जिनका बिजनेस मॉडल इंजीनियरिंग में उच्च तकनीक वाले नवीन प्रयोगों या फिर किसी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रगति पर आधारित होता है.

नए पीएसए ने कहा, ‘जब हम डीप टेक स्टार्ट-अप के मामले में आगे होंगे तो देश की ताकत बढ़ेगी. एडवांस मटेरियल साइंस देश की सम्पदा को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.‘

उन्होंने कहा कि एक डीप टेक स्टार्ट-अप की भूमिका नए पदार्थों के महत्वपूर्ण गुणों को समझना और फिर उन्हें नई तकनीकों को डिजाइन करने के लिए लागू करने वाली होगी. इसके लिए उन्होंने ग्राफीन का उदाहरण दिया जो एक ऐसा पदार्थ है जो अपने विशिष्ट गुणों के कारण कई इंजीनियरिंग एप्लिकेशन्स का हिस्सा बन गया है.

पीएसए सूद ने कहा, ‘यही वह चीज है जिस पर हम अभी चर्चा कर रहे हैं – हम डीप टेक स्टार्ट-अप के लिए सही पारिस्थितिकी तंत्र कैसे तैयार कर सकते हैं? ऐसे कौन से नीतिगत निर्णय हैं जिन्हें लेने की आवश्यकता है? ऐसी कौन सी चीजें हैं जिनकी हमारे शोधकर्ताओं को आवश्यकता होगी.’

उन्होंने बताया, ‘उदाहरण के लिए, एक डीप टेक स्टार्ट-अप को शुरू करने के लिए बहुत सारे महंगे उपकरणों की आवश्यकता होती है और हर स्टार्ट-अप तुरंत इन सब में निवेश नहीं कर सकता है. हमारे कार्यालय ने आई-एसटीईएम (आई-स्टेम) पोर्टल शुरू किया है, जिसे भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु द्वारा होस्ट किया जा रहा है.’

यह पोर्टल किसी को भी मामूली लागत पर सरकार द्वारा फंडेड है जो वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करने की अनुमति देता है.


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