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Friday, 29 March, 2024
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सीरम इंस्टीट्यूट की सर्विकल कैंसर के खिलाफ भारत की पहली स्वदेशी HPV वैक्सीन के बारे में जानिए सब कुछ

पुणे स्थित एसआईआई को भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया से इस वैक्सीन के विपणन के लिए हरी झंडी मिल गई है. सर्वाइकल कैंसर दुनिया भर में महिला कैंसर मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है.

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नई दिल्ली: भारत के पास जल्द ही अपना पहला स्वदेशी रूप से विकसित ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) टीका हो सकता है जो सर्विकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर) को रोकने में भी मदद करता है.

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने 12 जुलाई को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को सर्विकल कैंसर के खिलाफ इसके पहले क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस वैक्सीन (क्यूएचपीवी) के लिए मार्केट ऑथॉरिजेशन (बाजार में बेचे जाने की अनुमति) प्रदान कर दी.

एचपीवी दुनिया भर में सबसे आम सेक्सुअली-ट्रांसमिटेड (यौन संपर्क से फैलने वाला) संक्रमण है जो इसके स्ट्रेन (उपभेद) के आधार पर शरीर के विभिन्न हिस्सों में छालों का कारण बनता है. इस संक्रमण का कोई इलाज नहीं है, और छाले अक्सर अपने आप चले जाते हैं.

एचपीवी से संक्रमित बहुत से लोगों में कोई लक्षण विकसित नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी वे यौन संपर्क के माध्यम से दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं. हालांकि, महिलाओं के मामले में एचपीवी सर्विकल कैंसर का कारण भी बन सकता है.

सर्विकल कैंसर दुनिया भर में महिलाओं की कैंसर के होने वाली मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है. कई अध्ययनों से पता चलता है कि सर्विकल कैंसर से होने वाली 85 प्रतिशत मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं, जहां नियमित रूप से होने वाले स्त्री रोग संबंधी जांच काफी कम अथवा एकदम से नदारद होती है.

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एचपीवी के 16, 18, 31, 33, 35, 39, 45, 51, 52, 56, 58, 59, 66, और 68 सहित लगभग 14 उच्च जोखिम वाले प्रकार मौजूद हैं. एचपीवी वैक्सीन्स (टीकों) में आमतौर पर वायरस की बाहरी सतह पर पाया जाने वाला एल 1 नामक प्रोटीन मौजूद होता है, जो वायरस जैसे कणों (वायरस-लाइक पार्टिकल्स -वीएलपी) को एक साथ जमा करने में सक्षम होते हैं.

इसके बाद ये वीएलपी शरीर को यह सोचने हेतु चकमा देने में सफल हो जाते हैं कि उस पर वायरस का हमला हुआ है. इसकी वजह से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती है और इस तरह उसे एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है.

एसआईआई उस क्वाड्रिवेलेंट एचपीवी वैक्सीन पर काम कर रहा है जिसमें 6,11,16,18 सीरोटाइप के एल1 वीएलपी शामिल हैं.

यह टीका इन चार स्ट्रेनस (उपभेदों) से होने वाले एचपीवी संक्रमण को रोकता है, जिसके बारे में इस कंपनी का कहना है कि यह विकासशील दुनिया में प्रचलित पेपिलोमा वायरस के खिलाफ लगभग 90 प्रतिशत मामलों में सुरक्षा प्रदान करने की उम्मीद करती है.

एसआईआई ने साल 2018 में लड़कियों युवा महिलाओं में इस वैक्सीन की प्रभावकारिता का अध्ययन करने के लिए देश भर के कई केंद्रों में चरण II / III के क्लिनिकल ट्रायल्स (नैदानिक परीक्षण) शुरू किये थे, जिसके तहत तीन साल तक के लिए दीर्घकालिक फॉलो-अप कार्रवाई की गई थी.

इस परीक्षण के परिणामों की समीक्षा डीसीजीआई की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी (विषय विशेषज्ञ समिति) द्वारा की गई थी.

बता दें कि भारत में एचपीवी वैक्सीन उपलब्ध करवाने के पिछले सारे प्रयास विवादों में घिरे रहे थे.

साल 2009 में, सीथ-आधारित संगठन प्रोग्राम फॉर एप्रोप्रियेट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ (पाथ) ने अमेरिका में विकसित दो एचपीवी टीकों – गार्डासिल और सर्वारिक्स – के साथ एक नैदानिक परीक्षण शुरू किया था.

इस परीक्षण के तहत आंध्र प्रदेश में 10 से 14 वर्ष की आयु की 13,000 लड़कियों को गार्डासिल और गुजरात में 10,000 लड़कियों को सर्वारिक्स का टीका लगाया गया था.

हालांकि, इस अध्ययन में शामिल सात लड़कियों की मौत के बाद सामाजिक कार्यकर्ता समूहों द्वारा इसके तहत कथित तौर पर किये जा रहे सुरक्षा उपायों और नैतिक मानदंडों के उल्लंघनों पर चिंता जताये जाने के बाद भारत सरकार ने मार्च 2010 में वह परीक्षण रोक दिया था.

हालांकि, साल 2011 में की गई एक आंतरिक सरकारी जांच ने यह निष्कर्ष निकाला कि इन मौतों का टीकाकरण से कोई संबंध नहीं था और इसमें किसी भी प्रकार के नैतिक मानदंडों का उल्लंघन नहीं किया गया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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