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Wednesday, 11 December, 2024
होमदेश'हेट स्पीच स्वीकार्य नहीं'- SC ने नूंह हिंसा को लेकर सबूत नोडल अफसरों को भेजने को कहा

‘हेट स्पीच स्वीकार्य नहीं’- SC ने नूंह हिंसा को लेकर सबूत नोडल अफसरों को भेजने को कहा

याचिकाकर्ताओं की सुनवाई करते हुए संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 18 अगस्त तय की है.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को याचिककर्ताओं को निर्देश दिया कि वे जुटाए गए साक्ष्य संबद्ध नोडल अधिकारियों को भेजें, जिन्हें तहसीन पूनावाला फैसले के मुताबिक नियुक्त किया गया है.

नूंह हिंसा से जुड़े याचिकाकर्ताओं की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह निर्देश जारी किया.

संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 अगस्त की तारीख तय की है.

अदालत ने एएसजी को केंद्र से निर्देश लेने और 18 अगस्त को होने वाली सुनवाई की तारीख पर, नफरत भरे भाषण के मामलों को देखने के लिए बनी समिति के बारे में सूचित करने को कहा है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि हेट स्पीच की समस्या सही नहीं और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. मामले में दर्ज एफआईआर की प्रगति को देखने के लिए कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है कि नोडल अधिकारी की समिति समय-समय पर बैठक करे.

कोर्ट ने कहा कि कमेटी जांच नहीं कर सकती, पर जांच का निरीक्षण करने के लिए कोई व्यवस्था होनी चाहिए. कोर्ट ने एक मैकेनिज्म का भी सुझाव दिया है.

सरकार की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त महानिदेशक ने कहा कि वे कुछ न कुछ समाधान निकालेंगे और सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत को इसके बारे में अवगत कराएंगे.


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याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत को बताया कि समस्या एफआईआर दर्ज होने की नहीं, बल्कि केस के प्रगति को लेकर है, क्योंकि मामला दर्ज होने के बाद कुछ नहीं हुआ.

कोर्ट ने सुझाव दिया कि समिति रिकॉर्ड ठीक से बनाए रखे, ताकि वे लापरवाही की जांच कर सकें. शीर्ष अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि समुदायों के बीच कुछ सद्भाव रहा है और जिसको लेकर सभी की जिम्मेदारी है. कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि पुलिस को संवेदनशील बनाया जाए.

मुस्लिमों का बायकॉट करने और गुरुग्राम में मस्जिदों को बंद करने जैसी कई घटनाओं के बाद, सुप्रीम कोर्ट को सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने वाले वक्ताओं के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने की मांग वाली एक नई याचिका प्राप्त हुई है.

वकील ने गुरुग्राम में हुई कुछ घटनाओं का जिक्र किया था, जिसमें कहा गया था कि जो लोग अल्पसंख्यक समुदाय के किसी भी सदस्य को दुकानों में नौकरी देंगे, उन्हें गद्दार कहा जाएगा.

एप्लीकेशन के मुताबिक, नूंह हिंसा के बाद, विभिन्न राज्यों में 27 से अधिक रैलियां आयोजित की गई हैं, जहां मुसलमानों की हत्या और उनके सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान कर घृणा पैदा करने वाले भाषण खुलेआम दिए गए.

एप्लीकेश में कई सारी रैलियों जिक्र है, जो कि 1 से 7 अगस्त के बीच में हुईं.

याचिका में कई ट्रांस्क्रिप्ट (प्रतिलेखों) और वीडियो का संदर्भ दिया गया है. इसमें यह भी दावा किया गया है कि यहां के निवासियों और स्टोर चलाने वालों को चेतावनियां मिलीं कि यदि उन्होंने दो दिनों के बाद किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को काम पर रखा या रखना जारी रखा तो उनके बिजनेस का बहिष्कार किया जाएगा.

ये रैलियां पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई जगहों पर आयोजित की गईं. आवेदन में कहा गया है कि ऐसी रैलियां जो समुदायों को बदनाम करती हैं और खुले तौर पर हिंसा और लोगों की हत्या का आह्वान करती हैं, उनका प्रभाव केवल उन क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं होता जो कि वर्तमान में सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहे हों, बल्कि पूरे देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक वैमनस्य व अथाह हिंसा को जन्म देने वाली होंगी.

इसमें आगे कहा गया है कि उपरोक्त एरिया में अभी बने हुए बहुत ही अनिश्चित हालात को देखते हुए, सांप्रदायिक उत्पीड़न की एक वाजिब आशंका पैदा हो गई है जिस पर शीर्ष अदालत को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.

आवेदन में दिल्ली के पुलिस आयुक्त, उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, हरियाणा के पुलिस महानिदेशक और ऐसे अन्य अधिकारियों को पर्याप्त कार्रवाई करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई है, जो यह सुनिश्चित करें कि ऐसी रैलियों की अनुमति न दी जाए, जिनमें नफरत भरे भाषण दिए जाते हों.

याचिका में सीधे तौर पर मांग की गई है कि यदि संबंधित अधिकारी उपरोक्त विरोध प्रदर्शनों को रोकने में विफल रहते हैं, तो उन्हें बताना चाहिए कि जवाबकर्ताओं और बाकी अधिकारियों ने क्या कार्रवाई की.

आवेदन में उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ त्वरित, उचित कार्रवाई का भी अनुरोध किया गया है जो इन प्रदर्शनों में शामिल हुए थे और वहां नफरत फैलाने वाले भाषण को रोकने के उपायों को नहीं अपनाया.


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