नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने जिला एवं राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में नियुक्तियों में देरी पर नाराजगी जताते हुए शुक्रवार को कहा कि अगर सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो उसे इससे संबंधित कानून समाप्त कर देना चाहिए.
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि शीर्ष अदालत से न्यायाधिकरणों में रिक्तियों की समीक्षा करने और उन्हें भरने के लिए कहा जा रहा है.
पीठ ने कहा, ‘यदि सरकार न्यायाधिकरण नहीं चाहती है, तो वह कानून निरस्त कर दे. हम यह देखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं कि रिक्तियों को भरा जाए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायपालिका से यह मामला देखने को कहा गया है. यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है.’
जिला और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष और इसके सदस्यों / कर्मियों की नियुक्ति में सरकारों की निष्क्रियता और पूरे भारत में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के मामले का स्वत: संज्ञान लेने के बाद शीर्ष अदालत इस पर सुनवाई कर रही है.
शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह आठ सप्ताह में रिक्त स्थानों पर भर्ती करे.
पीठ ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया बंबई उच्च न्यायालय के फैसले से प्रभावित नहीं होनी चाहिए, जिसने कुछ उपभोक्ता संरक्षण नियमों को रद्द कर दिया था.
पीठ ने कहा, ‘हमारे द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया को स्थगित नहीं रखा जाना चाहिए. हमारा विचार है कि हमारे द्वारा निर्धारित समय और प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए क्योंकि कुछ नियुक्तियां की जा चुकी हैं और अन्य नियुक्तियां अग्रिम चरण में हैं.’