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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशसिर्फ ‘केरला स्टोरी’ नहीं—बीते 10 साल में 28 भारतीय महिलाएं IS में गई, जिन्हें नसीब हुई मौत या सज़ा

सिर्फ ‘केरला स्टोरी’ नहीं—बीते 10 साल में 28 भारतीय महिलाएं IS में गई, जिन्हें नसीब हुई मौत या सज़ा

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में कम से कम 133 भारतीयों ने इस्लामिक स्टेट के ‘संघर्ष थिएटर’ की यात्रा की. इनमें 28 महिलाएं थीं, उनकी ज़िंदगी की कहानियों पर एक नज़र.

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नई दिल्ली: हैदराबाद में जन्मी ज़ेबा फरहीन के जीवन में उस कथित बुरे सपने की शुरुआत तब हुई, जब वो कतर के एक स्कूल में पढ़ रही थी.

2013 में केरल की रहने वाली क्लासमेट हेबा से दोस्ती होने के बाद, उसके जरिए दोहा के एक अस्पताल में काम करने वाली एक यमनी महिला अमानी अब्दुल नाम की नर्स से मिली. उस साल 24 अक्टूबर को 15-वर्षीय ज़ेबा, चुपके से अपना घर छोड़ कर नर्स के साथ इस्तांबुल निकल गई.

वहां से, दोनों लड़कियां तुर्की के एक शहर निकल गईं, जहां दो महिलाओं ने उन्हें रिसीव किया. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, वे छह से सात घंटे की दूरी तय कर सीरिया के एक अंजान शहर में आ गए. ज़ेबा ने दावा किया, ‘‘उसे 20 दिनों से अधिक समय तक एक घर में बंदी बनाकर रखा गया था’’.

दिसंबर 2014 की शुरुआत में ज़ेबा वहां से किसी तरह भागने में सफल रही और तुर्की के एयरपोर्ट पहुंची, जहां उसने अपने पैरेंट्स से संपर्क किया. इस्तांबुल में भारतीय दूतावास ने उसे भारत वापस भेजने से पहले दोहा, कतर लौटने की व्यवस्था की.

ज़ेबा की नाटकीय कहानी 133 भारतीयों पर एक सरकारी खुफिया दस्तावेज़ में छिपी हुई है, जिन्होंने पिछले एक दशक में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के ‘‘संघर्ष क्षेत्र’’ की यात्रा की या ऐसा करने की कोशिश की.

इस लिस्ट में 28 महिलाओं की डिटेल्स हैं, जिनमें से 22 केरल की हैं और बाकी हैदराबाद, कर्नाटक और महाराष्ट्र से हैं.

इन नामों में वो चार महिलाएं शामिल हैं, जिन्होंने कथित तौर पर फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ में मुख्य किरदारों के लिए प्रेरणा का काम किया, जो इस महीने रिलीज़ होने के बाद से बॉक्स ऑफिस पर विवाद खड़े कर रही है, लेकिन करोड़ों का कारोबार कर रही है. हालांकि, फिल्म को कई राज्यों ने प्रोपगेंडा बता कर बैन किया है, तो कई ने इसे युवाओं के लिए आंखे खोल देने वाली सच्चाई कहा है.

जहां एक ओर इस बात पर बहस तेज़ हो गई है कि फिल्म प्रोपगेंडा है— केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा लिया गया स्टैंड—या एक सच्ची कहानी है. दिप्रिंट कुछ असल महिलाओं की कहानियों पर नज़र डाल रहा है जो कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने के लिए भारत छोड़कर सीरिया या अफगानिस्तान चली गईं.

सरकारी दस्तावेज़ की जानकारी, इन कथित आईएस प्रवासियों की एक विविध प्रोफाइल तैयार करती है, जिन्होंने धर्मांतरण किया या जिहाद के रास्ते पर चली गईं.

ईसाई धर्म या हिंदू धर्म से इस्लाम में परिवर्तित होने वाले मुट्ठी भर लोग, जिनमें कुछ मांताएं थीं, कुछ विधवा थीं, कुछ संघर्ष में मारी गईं और कुछ अभी भी सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में हिरासत में हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं अपने पतियों के साथ आईएस संघर्ष क्षेत्रों में गईं और कभी लौट नहीं पाई, लेकिन ज़ेबा फरहीन जैसे दुर्लभ अपवाद हैं.

इनमें से कुछ महिलाओं की ज़िंदगी को अदालती दस्तावेज़, समाचार कवरेज और मीडिया इंटरव्यू विस्तार देते हैं. एक डेंटिस्ट थी, किसी के पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी, कई धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोलती थीं. कुछ के खिलाफ भारत में मामले दर्ज हैं और किसी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.

संभावना है कि जांच एजेंसियों की फरार लोगों की लिस्ट में शामिल लड़कियों को भारत वापस लाया जाएगा- चाहे सुनवाई के लिए या अपने परिवारों और समुदायों में फिर से बसाने के लिए.

एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने इस साल की शुरुआत में दिप्रिंट को बताया था, “सरकार का मानना है कि वास्तव में ये अनुमान लगाना कठिन है कि क्या इन्हें सही ढंग से दोषी करार दिया जा सकेगा और ऐसे प्रशिक्षित, युद्ध में शामिल रहे जिहादियों की सामुदायिक वापसी की उम्मीद करना बेमानी है.”


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‘द केरला स्टोरी, कासरगोड फैक्टर के लिए प्रेरणा’

‘द केरला स्टोरी’ एक मेलोड्रामा फिल्म है जिसकी कहानी चार महिलाओं के ईर्द-गिर्द घूमती है. मुख्य किरदार, शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) एक हिंदू महिला है, जिसके इस्लाम कबूल करने के बाद के भयानक अनुभव को दिखाया गया है, जिसमें सीरिया में आतंकवादियों के लिए सेक्स स्लेव बनने और अफगानिस्तान जेल में जीवन बिताने के लिए मजबूर होना शामिल है.

इसमें दो अन्य महिलाओं की कहानियों भी हैं, जिनका अलग-अलग तरह से ब्रेनवॉश किया गया है – गीतांजलि मेनन (सिद्धि इदनानी), इस्लाम कबूल कर लेती हैं और निमाह मैथ्यू (योगिता बिहानी) जो इसे नहीं अपनाती हैं.

चौथा किरदार, आसिफा (सोनिया बलानी) का है जो बार-बार इन लड़कियों के ज़हन में अल्लाह का खौफ पैदा करती है और दावा करती है कि हिजाब पहनने वाली लड़कियों के साथ कभी भी बलात्कार नहीं होता है.

एक सीन में निमाह पुलिस से पूछती है: “क्या आप जानते हैं सर कि कासरगोड में कुछ गांव हैं जहां शरीया कानून प्रचलित है? दुनिया में कहीं भी बम विस्फोट होता है, चाहे वह श्रीलंका में हो, सिंगापुर में हो या अफगानिस्तान, इसमें हमेशा केरल का कनेक्शन होता है. ऐसा क्यों होता है सर?”

जिन वास्तविक महिलाओं ने कथित तौर पर इन किरदारों को प्रेरित किया, विशेष रूप से उन 21 लोगों की फेहरिस्त में शामिल थीं, जो कथित तौर पर 2016 की गर्मियों में आईएस में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान चले गए थे. इनमें से अधिकांश को कासरगोड में कट्टरपंथी कहा गया था.

निमिषा उर्फ फातिमा ईसा—शालिनी उन्नीकृष्णन के लिए मॉडल कही जाती हैं— जिस समय उन्होंने कथित तौर पर इस्लाम कबूल किया उस समय वे कासरगोड जिले के सेंचुरी कॉलेज में डेंटिस्ट की स्टूडेंट थीं.

सोनिया सेबेस्टियन, उर्फ आयशा और मेरिन जैकब, उर्फ मरियम, मुस्लिम लड़कों से शादी करने और इस्लाम में परिवर्तित होने से पहले ईसाई थीं. कासरगोड की एक अन्य महिला, रेफिला का विवाह इजास नामक एक डॉक्टर से हुआ था.

चारों 2016 में अपने पतियों जो कथित रूप से कट्टरपंथी थे के साथ इस्लामिक स्टेट में आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए केरल से अफगानिस्तान चलीं गईं थीं.

The family of Nimisha alias Fatima | Illustration: Manisha Yadav/ThePrint
निमिषा फातिमा का परिवार | चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट

2017 की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक प्रेस रिलीज़ के अनुसार, अब्दुल राशिद अब्दुल्ला नाम का एक व्यक्ति – सोनिया सेबेस्टियन का पति – कासरगोड और पालक्काड़ के युवाओं को आईएस में शामिल करने के पीछे कथित “मुख्य साजिशकर्ता” था. 2019 में अफगानिस्तान में एक कथित हवाई हमले के दौरान उसकी मौत हो गई थी.

2018 में यास्मीन मोहम्मद जाहिद–अब्दुल रशीद की एक और पत्नी, न्यूज़ मिनट की एक रिपोर्ट के अनुसार–आईएस में शामिल करने के वास्ते कथित तौर पर 15 लोगों की भर्ती करने के लिए एनआईए की एक विशेष अदालत ने उसे 7 साल की जेल की सज़ा सुनाई थी. उसे कथित तौर पर जुलाई 2016 में दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने बेटे के साथ काबुल भागने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया था.

इस बीच, निमिषा, सोनिया सेबेस्टियन, मेरिन जैकब और रेफेला 2019 में पब्लिक डोमेन में लौट आए. ऐसा तब हुआ जब वे “आईएस विंडो” बन गए और अफगान बलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उनमें से कुछ का इंटरव्यू अफगानिस्तान के एक हिरासत केंद्र में 2020 के खोरासान फाइल्स: द जर्नी ऑफ इंडियन  ‘इस्लामिक स्टेट’ विडोस नामक एक डॉक्यूमेंट्री के लिए किया गया.

2021 में फिर से अटकलों के बीच महिलाओं पर नए सिरे से ध्यान दिया गया कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा जेल से उनकी रिहाई और भारत लौटने का रास्ता हो सकता है.

सोनिया के पिता वी.जे. सेबेस्टियन फ्रांसिस ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और कहा कि उसे उसकी बेटी के साथ भारत वापिस लाया जाए और निमिषा की मां बिंदू संपथ भी उसकी वापसी के लिए लगातार मिन्नतें कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट में 2017 में एक याचिका के दौरान, संपथ ने दावा किया था कि उनकी बेटी का “ब्रेनवॉश, कट्टरपंथी और अफगानिस्तान में आईएसआईएस के जिहाद में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया था”.

वर्तमान में निमिषा को एनआईए के “आईएसआईएस पालक्काड़ मामले” में “फरार” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. ऐसा माना जाता था कि 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया, लेकिन मालूम नहीं है कि वो इस समय कहां है.

निमिषा की मां ने पहले दिप्रिंट को बताया था, “मुझे यह भी नहीं पता कि वो ज़िंदा है या मर गई है. अगर उसे वापस लाया जाता है, तो मुझे पता है कि उसे कैद हो सकती है, लेकिन कम से कम उस पर भारतीय कानून के अनुसार मुकदमा चलाया जाएगा.”


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आंकड़ों में कितने धर्म परिवर्तन?

निमिषा, सोनिया सेबेस्टियन और मेरिन जैकब के अलावा, केवल एक अन्य महिला स्पष्ट रूप से दूसरे धर्म से इस्लाम में परिवर्तित हुई थी—रितिका जया शेट्टी, उर्फ मरियम, सरकारी सूची में उसका संबंध एक हिंदू परिवार से बताया गया है.

मूल रूप से मुंबई की रहने वाली शेट्टी कतर में रहती थीं. जब वे मोहम्मद कामिल सुल्तान नामक एक भारतीय मूल के व्यक्ति से मिलीं और उससे निकाह कर लिया, जो ज़ाहिर तौर पर एक “चैंपियन रनर” था.

ऐसा माना जाता है कि वे 2014 में अपने पति के साथ सीरिया या इराक चली गई थी. सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार, “उसके ठिकाने का मालूम नहीं है और न ही उसके पति की जानकारी है”.

खिलाफत के सपने, हिज़्र और मुश्किलें

रणनीतिक मामलों की वेबसाइट स्ट्रैटन्यूज ग्लोबल द्वारा जारी डॉक्यूमेंट्री खोरासन फाइल्स में छपे एक इंटरव्यू में कथित आईएस भर्ती करने वाले अब्दुल रशीद की पत्नी सोनिया सेबेस्टियन ने अंग्रेज़ी में स्पष्ट रूप से बात की कि कैसे इस्लामी जीवन जीने की उनकी “उम्मीदें” पूरी नहीं हुईं. उसने कहा, “सच में लोग उतने धार्मिक नहीं थे जितना वो चाहती थी”.

इंजीनियरिंग की डिग्री रखने वाली सेबेस्टियन ने भी भारत लौटने और अपने पति के परिवार के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की थी.

Sonia sebastian
एनआईए की वेबसाइट पर ‘मोस्ट वांटेड’ की लिस्ट में सोनिया सेबेस्टियन का स्क्रीनशॉट | www.nia.gov.in

मिडल इस्टर्न आउटलेट द नेशनल न्यूज़ को 2020 में दिए एक इंटरव्यू में मेरिन जैकब, जो कभी कैथोलिक और आईबीएम की कर्मचारी थीं, ने कहा कि वे हमेशा शरिया कानून के साथ रहना चाहती थीं. उसने दावा किया कि वो “खुश” थी और अफगानिस्तान में “शांतिपूर्ण जीवन” जी रही थी जब तक कि परिवार को वहां से भागना नहीं पड़ा. उसके पहले और दूसरे पति दोनों मारे गए थे.

सरकारी खुफिया दस्तावेज़ में, सोनिया और मेरिन दोनों को “अफगानिस्तान में हिरासत में” सूचीबद्ध किया गया है. सोनिया “आईएसआईएस कासरगोड मामले” और मेरिन “आईएसआईएस पालक्काड़ मामले” में “फरार” अभियुक्तों में से हैं.

वास्तव में, सेबस्टियन या जैकब जैसी लड़कियों ने आईएस जीवन जीने के बारे में जो भी सपने देखे होंगे, लेकिन वो हवा हो सकते थे क्योंकि इराकी, सीरियाई और बहुराष्ट्रीय ताकतों के निरंतर हमलों के कारण खिलाफत टूट गई थी.

कुछ महिलाओं की मृत्यु हो गई, कुछ हिरासत केंद्रों में फंस गई हैं और अन्य गायब हो गई हैं.

एक उदाहरण एर्नाकुलम की सफना मुलायमपिली कुट्टाथिल का है, जो अपने पति शफीक के साथ दिसंबर 2018 में संयुक्त अरब अमीरात से “हिज़्र” करने गई थी.

परंपरागत रूप से, हिज़्र शब्द 622 सीई में मक्का से मदीना में पैगंबर मुहम्मद के प्रवासन को संदर्भित करता है, जो इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है.

सरकारी दस्तावेज़ में कहा गया है कि जनवरी 2019 में सफना और उसके पति ने “सूचित” किया था—जिसके बारे में यह नहीं कहा गया है—कि उन्होंने उक्त हिज़्र को “2014 में गठित ख़िलाफ़त की विलायत” के लिए किया था.

यह इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) का एक संदर्भ था, जो 2014 में आईएस के एक सहयोगी के रूप में उभरा और खुरासान के क्षेत्र में एक “खिलाफत” स्थापित करने का लक्ष्य रखा, जो ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों को शामिल करता है. आईएसकेपी आत्मघाती बम विस्फोटों सहित हिंसा के विभिन्न कृत्यों में शामिल रहा है.

उनके आने के कुछ देर बाद ही खुरासान में दोनों पति-पत्नी की हत्या कर दी गई.

केरल में थिराथल की रामशिमोल ने भी “आईएसकेपी के लिए हिज़्र किया” (हालांकि, सरकारी दस्तावेज़ में यह स्पष्ट नहीं है) और माना जाता है कि वर्तमान में वे सीरिया में है. हालांकि, उसके पति को यूएई से सीरिया में अपना हिज़्र करने की कोशिश करने पर हिरासत में लिया गया था.

हिज़्र करने वाला एक और जोड़ा—कोझिकोड की हुदा रहीम और उसके पति रिशाल—2015 में दुबई के रास्ते इस्तांबुल के लिए रवाना हुए, वहां से सीरिया के लिए रवाना हुए. वह कथित तौर पर मारा गया था, लेकिन माना जाता है कि वो अभी भी सीरिया या इराक में कहीं है.

वहीं, 2014 में आईएसआईएस सरगना अबू बक्र अल-बगदादी ने मुसलमानों को ‘इस्लामिक स्टेट’ में आने का न्यौता देते हुए इसे अपना फर्ज बताया था.

एक ऑडियो संदेश में उसने मुसलमानों से इराक और सीरिया पहुंचने और इस्लामिक राज्य के गठन में मदद करने की अपील की थी.

ऑडियो में बगदादी ने कहा,“मुसलमानों आगे बढ़ो. हां, यह तुम्हारा राज्य है. आगे बढ़ो क्योंकि सीरिया केवल सीरियाई लोगों के लिए नहीं और इराक़ केवल इराकी लोगों के लिए नहीं है.”


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हिरासत शिविर

सितंबर 2013 में हैदराबाद की अर्जुमंद बानो और उसके पति मुहम्मद इकरामुद्दीन ने अपने दो बच्चों के साथ रियाद के लिए उड़ान भरी. युवा परिवार अंततः सीरिया के रास्ते में घायल हो गया और फिर कभी वापस नहीं लौट पाया.

इकरामुद्दीन के पिता मोइजुद्दीन ने इस साल की शुरुआत में दिप्रिंट को बताया था, “मेरे जैसे परिवारों के लिए स्थिति बेहद दर्दनाक है.”

आईएस में शामिल होने वाले कई अन्य भारतीय पुरुषों की तरह, इकरामुद्दीन ने देश के बाहर काम किया और सऊदी अरब में अच्छी नौकरी की.

माना जाता है कि वो युद्ध में मारा गया था और अर्जुमंद बानो और बच्चों को अल-हॉल में रखा गया है.

अल-हॉल एक विशाल जेल शिविर है, जिसमें दुनियाभर के हजारों परिवार रहते हैं और इसे एक तरह से इस्लामिक स्टेट का मिनी-स्टेट करार दिया जाता है, जहां संगठन में उच्च स्थिति रखने वाली महिलाएं इसके कोड लागू करा रही हैं, बच्चों को तैयार कर रही हैं. वहीं, अधिकारियों के साथ सहयोग करने वालों को मौत के घाट भी उतारा जा रहा है.

Al-Hawl camp in Syria
सीरिया में अल-हॉल का एक कैंप | कॉमन्स

वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस द्वारा मई 2022 में किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, शिविर में 56,000 से अधिक लोग रहते हैं, जिनमें से कई आईएस लड़ाकों की पत्नियां और बच्चे हैं. विश्लेषण में कहा गया है कि शिविर की कुछ महिलाओं ने चरमपंथी विचारधारा को कायम रखने के लिए “प्रवर्तकों की भूमिका निभाई है, उन महिलाओं को मौत सहित कठोर सजा देकर, जो पालन नहीं करती हैं”.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, अल-हॉल में कन्नूर की मूल निवासी रिसवाना कलाथिल भी है, जिसके बारे में संदेह है कि वो 2017 की शुरुआत में अपने दुबई स्थित घर को बंद करने के बाद अपने पति जुहैल के साथ आईएस में शामिल हो गई थी. रिसवाना अपने तीन बच्चों- रेयान, रेहान और बिन्त ज़ोहा सहित शिविर में हैं, जबकि ज़ुहैल के ठिकाने की जानकारी नहीं है.

सीरिया में अन्य बंदियों में मुंबई की अमानी फातिमा और उसका बेटा शामिल हैं. वो अपने पति अबू हुफैज़ा नसीम खान के साथ सीरिया में “संघर्ष क्षेत्र” में शामिल हुईं, जो एक मैकेनिकल इंजीनियर था, जिसने काम के लिए बेहरीन जाने से पहले दिल्ली और मुंबई मेट्रो रेल परियोजनाओं में काम किया था. कॉन्फ्लिक्ट ज़ोन में उसकी मौत हो गई थी.

केरल के मलप्पुरम की रहने वाली फैबना नलकथ उर्फ फेबिना ने 2013 में अपने पति मोहम्मद मंसूर पेरुंकलेरी और बेटी हन्या पेरुंकलेरी के साथ सीरिया या इराक में प्रवेश किया. ऐसा माना जाता है कि वे वर्तमान में अल-हॉल के शिविरों में से एक में कैद है.

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के देवड़ी बाज़ार इलाके की रहने वाली सोफिया मोहम्मद मुकीत के लिए इस्तांबुल का टूरिस्ट वीजा सीरिया के लिए शुरुआती बिंदु था. वो अपने पति, जेद्दा में रहने वाले एक इंजीनियर के साथ 2015 में सीरिया चली गई, लेकिन मालूम नहीं है कि उनका ठिकाना कहां है.

एर्नाकुलम की शबनम इकबाल और कतर की एक तेल कंपनी में काम करने वाले उनके पति हशीर के यात्रा कार्यक्रम में तुर्की भी शामिल था.

अपने परिवार के सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध जाकर, वे तथाकथित रूप से “चैरिटी का काम” करने के लिए तुर्की चले गए, लेकिन 2014 में किसी समय अपनी नवजात बेटी के साथ सीरिया पहुंचे. माना जाता है कि वे लोग अभी भी संभवतः इसी इलाके में हैं.

इसके बाद बेंगलुरु की शाज़िया अहमद तबस्सुम हैं, जो 2015 के आसपास सीरिया में आईएस की सेना में शामिल होने के लिए अपने पति तैय्यब शेख मीरा- कनाडा की एक स्थायी निवासी- और तीन बच्चों के साथ चली गईं, लेकिन उनका ठिकाना भी अज्ञात है.

यह परिणाम कन्नूर की फौसिया के लिए और भी बुरा माना जाता है, जो 2015 में अपने पति और तीन बच्चों के साथ दुबई से सीरिया या इराक गई थी. उसने अपने पति मुहम्मद समीर की तरह ही अपनी जान गंवाई, जो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का “सब-डिवीजनल संयोजक” था. दंपति के तीन बच्चे, जिनमें एक बेटी भी शामिल है, जो केवल 11 वर्ष की थी जब वे सीरिया गए थे, भी मर चुके हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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